“नोटबंदी के नौ वर्ष पश्चात्”

पाठ्यक्रम: GS3/अर्थव्यवस्था

संदर्भ

  • 2016 में सरकार द्वारा नोटबंदी की घोषणा के बाद से जनता के पास मौजूद मुद्रा दोगुने से भी अधिक हो गई है।

नोटबंदी (Demonetisation) 

  • प्रधानमंत्री ने 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी की घोषणा की। इसमें कहा गया कि सभी मौजूदा ₹500 और ₹1,000 के नोट, जो प्रचलन में कुल मुद्रा का लगभग 86% थे, अब वैध मुद्रा नहीं रहेंगे। 
  • 2016 की नोटबंदी का उद्देश्य काले धन को समाप्त करना, नकली मुद्रा पर रोक लगाना, डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देना और अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाना था।

जनता के पास मुद्रा (Currency with Public) 

  • जनता के पास मुद्रा की गणना कुल प्रचलन में मुद्रा (CIC) से बैंकों के पास नकदी घटाकर की जाती है।
    • CIC का अर्थ है केंद्रीय बैंक द्वारा जारी किए गए नोट और सिक्के, जिनका उपयोग उपभोक्ताओं एवं व्यवसायों के बीच लेन-देन के लिए भौतिक रूप से किया जाता है। 
  • नोटबंदी के नौ वर्ष बाद भी जनता के पास मुद्रा का स्तर ऊँचा है, हालांकि सरकार और RBI ने कम-नकदी समाज की दिशा में प्रयास किए हैं। 
  • हालाँकि, अर्थव्यवस्था का आकार भी प्रत्येक वर्ष 6% से अधिक की वृद्धि के साथ बढ़ा, जिससे प्रचलन में मुद्रा का GDP अनुपात नोटबंदी से पहले के स्तर से नीचे आ गया।

क्या मुद्रा में वृद्धि वास्तविक तस्वीर दिखाती है? 

  • प्रचलन में मुद्रा की संख्या में वृद्धि वास्तविकता का प्रतिबिंब नहीं है, क्योंकि GDP वृद्धि बेहतर  रही है और FY2026 की प्रथम तिमाही में 7.8% तक पहुँची। 
  • 2016 की नोटबंदी के बाद से, प्रचलन में मुद्रा प्रत्येक वर्ष लगातार बढ़ी है, और CIC से GDP का अनुपात 2016-17 में 8.7% से बढ़कर 2020-21 में 14.5% हो गया।
    • अब यह अनुपात 2025 में घटकर 11.11% हो गया है, जबकि मार्च 2016 में यह 12.1% था। 
  • उच्च CIC-GDP अनुपात दर्शाता है कि लोग और व्यवसाय लेन-देन के लिए नकदी पर अधिक निर्भर हैं, जबकि कम अनुपात डिजिटल भुगतान, बैंकिंग चैनलों एवं औपचारिक वित्तीय प्रणालियों की ओर बदलाव को दर्शाता है। 
  • कम CIC-GDP अनुपात, जो बढ़ती डिजिटलीकरण और नकदी पर कम निर्भरता से प्रेरित है, सामान्यतः मौद्रिक नीति के सुचारू प्रसारण एवं बेहतर मुद्रास्फीति नियंत्रण को सक्षम बनाता है।

भारत का CIC-GDP अनुपात अन्य देशों की तुलना में

  •  नोटबंदी और कोविड काल के बाद, यद्यपि भारत का मुद्रा-से-GDP अनुपात सुधरा है, यह अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं से अधिक है। 
  • जापान का अनुपात 9-11%, यूरोज़ोन का 8-10% और चीन का 9.5% है।
    • रूस का अनुपात 8.3% और अमेरिका का 7.96% है। 
  • भारत का उच्च 11.11% अनुपात इसके बड़े नकदी-निर्भर अनौपचारिक क्षेत्र, नकदी रखने की सांस्कृतिक प्राथमिकता, सीमित कार्ड उपयोग और तुलनात्मक रूप से कम अपनाने से उत्पन्न होता है। 
  • साथ ही, भारत तेज़ी से डिजिटल भुगतान प्रणालियों को भी अपना रहा है, जबकि अमेरिका, यूरोज़ोन, चीन और रूस जैसी अर्थव्यवस्थाएँ पहले से ही अत्यधिक औपचारिक एवं डिजिटल हैं।

भारत की मुद्रा आपूर्ति की गतिशीलता: नोटबंदी से डिजिटलीकरण तक 

  • नोटबंदी (2016) ने अल्पकालिक मांग आघात उत्पन्न किया: MSME पर दबाव, रोजगारों की हानि और तरलता की कमी। GDP वृद्धि अस्थायी रूप से 6% से नीचे चली गई। 
  • डिजिटलीकरण में वृद्धि: 2016 के बाद, UPI लेन-देन 2025 तक ₹20 लाख करोड़/माह से अधिक हो गए, जो टियर-2/3 शहरों तक गहराई से फैले और खुदरा भुगतान में नकदी के स्थान पर उपयोग का संकेत दिया। 
  • मुद्रा-से-GDP अनुपात: 2016 में 12% से घटकर 2024 में लगभग 10.5% हो गया, जो नकदी की कम तीव्रता को दर्शाता है, हालांकि बड़े अनौपचारिक क्षेत्र के कारण यह अभी भी विकसित अर्थव्यवस्थाओं से अधिक है।
RBI की मुद्रा आपूर्ति की माप (Measures of Money Supply) 
– अप्रैल 1977 में पेश की गई, RBI मुद्रा आपूर्ति को चार श्रेणियों में वर्गीकृत करता है — M1, M2, M3 और M4 — जिन्हें तरलता के घटते क्रम में रखा गया है।
M1 (संकीर्ण  मुद्रा): जनता के पास मुद्रा + बैंकों में माँग जमा (अंतर-बैंक को छोड़कर) + RBI में अन्य जमा।
M2: M1 + डाकघर बचत बैंक जमा।M3 (व्यापक मुद्रा): M1 + वाणिज्यिक और सहकारी बैंकों में समय जमा।M4: M3 + सभी डाकघर जमा (समय और माँग दोनों)।

नीतिगत उपयोग: इनमें से, M3 RBI द्वारा मौद्रिक लक्ष्य निर्धारण और व्यापक आर्थिक आकलन के लिए मुख्य माप है, जैसा कि चक्रवर्ती समिति (1982–85) ने अनुशंसित किया था।
M3 क्यों महत्वपूर्ण है?यह मुद्रा और जमा दोनों को समाहित करता है, जो व्यय, बचत और ऋण सृजन को प्रभावित करते हैं।
– यह मध्यम अवधि की नीतिगत विश्लेषण के लिए संकरी मापों की तुलना में अधिक स्थिर और विश्वसनीय है।यह तरलता की स्थिति को दर्शाता है, जो बैंक बैलेंस शीट और ऋण प्रसारण को प्रभावित करती है।

भारत में डिजिटल अर्थव्यवस्था (Digital Economy in India) 

  • नोटबंदी के बाद, डिजिटल अर्थव्यवस्था तीव्रता से बढ़ रही है, जिसने 2022–23 में राष्ट्रीय आय में 11.74% का योगदान दिया और 2024–25 तक 13.42% तक पहुँचने की संभावना है। 
  • ICRIER द्वारा जारी स्टेट ऑफ इंडिया’स डिजिटल इकॉनमी रिपोर्ट 2024 के अनुसार, भारत अब अर्थव्यवस्था के डिजिटलीकरण में विश्व में तीसरे स्थान पर है। 
  • 2030 तक, भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था देश की कुल अर्थव्यवस्था का लगभग पाँचवाँ हिस्सा बनने का अनुमान है, जो पारंपरिक क्षेत्रों की वृद्धि को पीछे छोड़ देगी।
भारत में डिजिटल अर्थव्यवस्था

Source: IE

 

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