आदित्य-एल1 मिशन द्वारा कोरोनाल मास इजेक्शन (CMEs) की निगरानी

पाठ्यक्रम: GS3/अन्तरिक्ष

समाचार में 

  • भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान और नासा के वैज्ञानिकों ने प्रथम बार सूर्य की सतह के निकट दृश्य तरंगदैर्ध्य सीमा में कोरोनल मास इजेक्शन (CME) का स्पेक्ट्रोस्कोपिक अवलोकन किया है। यह अवलोकन आदित्य-एल1 पर लगे VELC पेलोड का उपयोग करके किया गया।

आदित्य-एल1 (Aditya-L1) 

  • यह भारत का प्रथम अंतरिक्ष-आधारित सौर वेधशाला है, जिसे सूर्य का अध्ययन करने के लिए लैग्रेंज बिंदु 1 से डिज़ाइन किया गया है, जो पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर स्थित है।
    • यह स्थिति सूर्य संबंधी घटनाओं का अविराम अवलोकन करने की अनुमति देती है, जिसमें ग्रहण या अन्य अवरोध नहीं होते। 
  • सितंबर 2023 में इसका प्रक्षेपण किया गया ताकि सौर गतिशीलता को बेहतर तरीके से समझा जा सके, जिसमें कोरोनल मास इजेक्शन (CME), सौर ज्वालाएँ और उनका अंतरिक्ष मौसम पर प्रभाव शामिल है — जो पृथ्वी पर उपग्रह संचालन, संचार एवं विद्युत ग्रिड के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। 
  • इस मिशन में सात स्वदेशी रूप से विकसित पेलोड हैं, जिनमें पाँच इसरो द्वारा और दो भारतीय शैक्षणिक संस्थानों के सहयोग से बनाए गए हैं। 
  • ये उपकरण सूर्य के प्रकाशमंडल (Photosphere), वर्णमंडल (Chromosphere) और कोरोना का अवलोकन करने, सौर उत्सर्जन एवं चुंबकीय क्षेत्र में होने वाले परिवर्तन तथा सौर पवन और ऊर्जावान कण प्रवाह का अध्ययन करने के लिए बनाए गए हैं।
लैग्रेंज बिंदु (Lagrange Points) 
– लैग्रेंज बिंदु अंतरिक्ष में वे स्थान हैं जहाँ दो विशाल पिंडों (जैसे सूर्य और पृथ्वी) का गुरुत्वाकर्षण बल और किसी छोटे पिंड (जैसे अंतरिक्ष यान) पर लगने वाला अभिकेन्द्रीय बल एक-दूसरे को संतुलित करते हैं। 
– इससे छोटा पिंड दोनों बड़े पिंडों के सापेक्ष अपेक्षाकृत स्थिर रह सकता है। सूर्य-पृथ्वी प्रणाली में ऐसे पाँच बिंदु (L1–L5) होते हैं।
हेलो कक्षा (Halo Orbit) लैग्रेंज बिंदु के चारों ओर एक त्रि-आयामी आवधिक कक्षा है  जो साधारण वृत्ताकार कक्षा के विपरीत, यह L1 के चारों ओर एक लूप जैसी (हेलो) पथ बनाती है। 
– यह अंतरिक्ष यान को पृथ्वी या चंद्रमा की सीधी छाया से बचने में सहायता करती है और न्यूनतम ईंधन खपत के साथ स्थिर स्थिति बनाए रखती है।

रणनीतिक महत्व (Strategic Significance) 

  • आदित्य-एल1 निरंतर सौर निगरानी प्रदान करेगा, जिससे अंतरिक्ष मौसम की घटनाओं और उनके पृथ्वी पर प्रभाव का पूर्वानुमान लगाने में सहायता मिलेगी। 
  • यह वैश्विक सौर अनुसंधान को समर्थन देगा और नासा के पार्कर सोलर प्रोब तथा यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) के सोलर ऑर्बिटर जैसे मिशनों का पूरक होगा। 
  • यह वेधशाला-स्तरीय अंतरिक्ष विज्ञान में भारत की बढ़ती क्षमता को प्रदर्शित करता है। 
  • यह भारत की व्यापक अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं के अनुरूप है, जिनमें आगामी गगनयान मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन और अंतरग्रहीय अन्वेषण शामिल हैं।

Sources:TH

 

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