जलवायु परिवर्तन और उर्वरक असंतुलन से मृदा स्वास्थ्य प्रभावित: ICAR अध्ययन

पाठ्यक्रम: GS3/कृषि

संदर्भ

  • हाल ही में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने चिंताजनक प्रमाण प्रस्तुत किए हैं कि अवैज्ञानिक उर्वरक उपयोग और जलवायु परिवर्तन भारत की कृषि योग्य मृदा में कार्बनिक कार्बन के गंभीर क्षरण का कारण बन रहे हैं।

मुख्य निष्कर्ष 

  • असंतुलित उर्वरक उपयोग: अध्ययन में पाया गया कि असंतुलित और अत्यधिक उर्वरक उपयोग — विशेषकर यूरिया एवं फॉस्फोरस — ने मृदा के कार्बन स्तर को क्षतिग्रस्त किया है।
    • हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गहन एवं अवैज्ञानिक उर्वरक उपयोग के कारण सबसे गंभीर गिरावट देखी गई।
    • बिहार, जहाँ उर्वरकों का अधिक संतुलित उपयोग किया गया, ने बेहतर मृदा कार्बन स्वास्थ्य प्रदर्शित किया।
  • कार्बनिक कार्बन और ऊँचाई का संबंध: पहाड़ी क्षेत्रों की मृदा में अधिक कार्बनिक कार्बन पाया गया, जबकि मैदानी क्षेत्रों की मृदा में कमी देखी गई।
    • कम मृदा कार्बन से ऊष्मा परावर्तन बढ़ता है, जिससे ग्रीनहाउस प्रभाव और वैश्विक ऊष्मीकरण का जोखिम बढ़ता है।
  • तापमान का नकारात्मक प्रभाव: अध्ययन चेतावनी देता है कि बढ़ते तापमान मृदा के कार्बनिक कार्बन को और कम कर सकते हैं, जिससे मृदा का स्वास्थ्य और जलवायु प्रभाव खराब हो सकते हैं।
    • राजस्थान और तेलंगाना जैसे गर्म क्षेत्रों में कार्बनिक पदार्थ के तीव्र विघटन के कारण मृदा में कार्बनिक कार्बन (SOC) की मात्रा कम पाई गई।
  • वर्षा और फसल प्रणाली का प्रभाव:
    • धान और दलहन आधारित प्रणालियाँ अधिक कार्बन स्तर बनाए रखती हैं क्योंकि जल-प्रधान खेती से सूक्ष्मजीव गतिविधि बढ़ती है।
    • गेहूँ और मोटे अनाज आधारित प्रणालियों में कार्बन स्तर कम पाया गया।
मृदा का स्वास्थ्य क्यों महत्वपूर्ण है? 
कृषि का समर्थन: भारत की 54% से अधिक कार्यबल प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है।
स्वस्थ मृदा उच्च फसल उत्पादन और बेहतर पोषण गुणवत्ता सुनिश्चित करती है।

खाद्य सुरक्षा: कार्बनिक पदार्थ एवं पोषक तत्वों से समृद्ध मृदा अधिक लचीली और पौष्टिक फसलें उत्पन्न करती है।
पर्यावरणीय संतुलन: स्वस्थ मृदा जल को नियंत्रित करती है, कार्बन को संग्रहित करती है, जैव विविधता को समर्थन देती है और बाढ़, सूखा तथा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के विरुद्ध बफर का कार्य करती है।
आर्थिक प्रभाव: खराब मृदा स्वास्थ्य से उत्पादकता घटती है, इनपुट लागत बढ़ती है और दीर्घकालिक भूमि क्षरण होता है — जिससे किसानों की आय और राष्ट्रीय GDP प्रभावित होती है।

संबंधित प्रयास और पहल 

  • मृदा स्वास्थ्य कार्ड (SHC) योजना (2015): इसका उद्देश्य प्रत्येक किसान को उनकी मृदा की पोषक स्थिति पर विस्तृत रिपोर्ट प्रदान करना है। यह संतुलित और विवेकपूर्ण उर्वरक उपयोग को बढ़ावा देती है।
    • सरकार ने SHC योजना को समर्थन देने के लिए मृदा परीक्षण सुविधाओं को बेहतर किया है, जैसे मोबाइल मृदा परीक्षण प्रयोगशालाएँ, स्कूल मृदा स्वास्थ्य कार्यक्रम और डिजिटल ट्रैकिंग।
  • मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन (SHM): यह राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (NMSA) का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन और जैविक खेती को बढ़ावा देना है।
  • राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY) के साथ एकीकरण: SHC और SHM योजनाओं को बेहतर समन्वय एवं प्रभाव के लिए RKVY के मृदा स्वास्थ्य एवं उर्वरता घटक में मिला दिया गया है।

नीतिगत सिफारिशें

  • कार्बनिक कार्बन अवशोषण कार्यक्रम: उन मृदाओं में अवशोषण को बढ़ावा देना जिनमें 0.25% से कम कार्बनिक कार्बन है, बेहतर फसल प्रणाली और सिंचाई समर्थन के माध्यम से।
  • कार्बन क्रेडिट प्रोत्साहन: उन किसानों को वित्तीय प्रोत्साहन देना जो सतत प्रथाओं के माध्यम से मृदा में कार्बन डाइऑक्साइड को फँसाते और संग्रहित करते हैं।
  • जलवायु-लचीला फसल प्रबंधन: जलवायु परिवर्तन शमन और मृदा पुनर्स्थापन के लिए क्षेत्र-विशिष्ट फसल प्रबंधन रणनीतियाँ विकसित करना।
  • राष्ट्रीय स्तर पर वनस्पति आवरण: मृदा के खुलाव और कार्बन हानि को कम करने के लिए वृक्षारोपण एवं आवरण फसलों का विस्तार करना।

निष्कर्ष 

  • ICAR का अध्ययन संतुलित उर्वरक उपयोग, अनुकूलित फसल प्रणाली और जलवायु-संवेदनशील मृदा प्रबंधन की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करता है ताकि भारत की मृदा में कार्बनिक कार्बन को पुनर्स्थापित और संरक्षित किया जा सके। 
  • यदि सुधारात्मक कदम नहीं उठाए गए तो कार्बनिक कार्बन की निरंतर गिरावट आने वाले वर्षों में खाद्य सुरक्षा, भूमि उत्पादकता और जलवायु स्थिरता को खतरे में डाल सकती है।

Source: TH

 

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