भारत में जाति आधारित अत्याचारों का समाधान

पाठ्यक्रम: GS2/सामाजिक मुद्दे

संदर्भ

  • समानता और न्याय की संवैधानिक गारंटी के बावजूद, ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर शहरी संस्थानों तक जाति आधारित अत्याचार, अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के विरुद्ध भेदभाव तथा हिंसा, भारत के सामाजिक व्यवस्था को प्रभावित कर रही है।

जाति-आधारित अत्याचारों के बारे में

  • अत्याचार से तात्पर्य अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3 के अंतर्गत सूचीबद्ध किसी भी अपराध से है, जो किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाता है जो अनुसूचित जाति (एससी) या अनुसूचित जनजाति (एसटी) का सदस्य नहीं है, किसी ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध जो अनुसूचित जाति (एसटी) या अनुसूचित जनजाति (एसटी) का सदस्य है।
  • इन अपराधों में शामिल हैं:
    • सामाजिक बहिष्कार (जैसे, सार्वजनिक स्थानों तक पहुँच से वंचित करना)
    • शारीरिक हिंसा (जैसे, हमला, बलात्कार, हत्या)
    • आर्थिक शोषण (जैसे, भूमि हड़पना, बंधुआ मजदूरी)
    • जातिगत पहचान के आधार पर अपमान और मौखिक दुर्व्यवहार
  • यह अधिनियम ऐसे अपराधों को रोकने, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदायों के लिए न्याय और सम्मान सुनिश्चित करने और पीड़ितों को राहत और पुनर्वास प्रदान करने के लिए बनाया गया था।

हालिया प्रवृति (एनसीआरबी 2023 रिपोर्ट)

  • अनुसूचित जातियों (एससी) के विरुद्ध अपराध: 2023 में कुल 57,789 मामले दर्ज किए गए, जो 2022 की तुलना में 0.4% की वृद्धि दर्शाता है।
    • उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 15,130 मामले दर्ज किए गए, उसके बाद राजस्थान और मध्य प्रदेश का स्थान है।
    • एससी के विरुद्ध अपराध दर 28.7 प्रति लाख जनसंख्या रही।
  • अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के विरुद्ध अपराध: कुल 12,960 मामले दर्ज किए गए, जो पिछले वर्ष की तुलना में 28.8% की तीव्र वृद्धि दर्शाता है।
    • यह आंशिक रूप से मणिपुर में जातीय हिंसा के कारण है, जहाँ एसटी के विरुद्ध मामले 2022 में केवल 1 से बढ़कर 2023 में 3,399 हो गए।
  • क्षेत्रीय असमानताएँ: एससी अत्याचारों के उच्च-घटना वाले राज्यों में शामिल हैं:
    • मध्य प्रदेश (72.6 प्रति लाख);
    • राजस्थान (69.1 प्रति लाख);
    • बिहार (42.6 प्रति लाख);

भारत में जाति-आधारित अत्याचारों के पीछे के कारण

  • ऐतिहासिक और संरचनात्मक असमानता: अस्पृश्यता और सामाजिक बहिष्कार ने ऊर्ध्वाधर असमानताएँ उत्पन्न की हैं जो संविधान के अनुच्छेद 17 के अंतर्गत कानूनी उन्मूलन के बाद भी बनी हुई हैं।
  • संस्थानों में जातिगत संवेदनशीलता का अभाव: जातिगत पूर्वाग्रह कक्षाओं और पारिवारिक संरचनाओं में गहराई से समाया हुआ है।
    • न्यायमूर्ति के. चंद्रू की रिपोर्ट ने अलगाव को कम करने के लिए स्कूलों से जाति-आधारित नाम हटाने और संस्थानों का विलय करने की सिफारिश की।
  • संस्थागत उदासीनता और कम रिपोर्टिंग: गृह मंत्रालय स्वीकार करता है कि जाँच में देरी, पुलिस की संवेदनशीलता की कमी और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति कर्मियों का कम प्रतिनिधित्व अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के खराब प्रवर्तन में योगदान करते हैं।
  • आर्थिक और सामाजिक बहिष्कार: जाति-आधारित भेदभाव प्रायः शिक्षा, रोजगार और सार्वजनिक सेवाओं तक पहुँच से वंचित करने के रूप में प्रकट होता है।
    • यह आक्रोश को बढ़ाता है और गरीबी और भेद्यता के चक्र को बनाए रखता है।

कानूनी और संस्थागत अंतराल

  • कम रिपोर्टिंग और कम दोषसिद्धि दर: पश्चिम बंगाल में केवल 102 मामले दर्ज किए गए (एनसीआरबी 2023), जहाँ अपराध दर 0.5 प्रति लाख थी, जिससे कम रिपोर्टिंग या पंजीकरण में व्यवस्थागत कमियों पर प्रश्न उठते हैं।
    • अनुसूचित जाति से संबंधित केवल 60% मामलों में ही आरोप-पत्र दाखिल किए गए, जबकि लगभग 15% मामले साक्ष्यों के अभाव या झूठे दावों के कारण बंद कर दिए गए।
  • कानूनों का अपर्याप्त कार्यान्वयन: एनसीएसटी ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि कई राज्य त्वरित सुनवाई के लिए विशेष न्यायालय स्थापित करने, कार्यान्वयन की निगरानी के लिए नोडल अधिकारी नियुक्त करने, पीड़ितों को समय पर राहत और पुनर्वास प्रदान करने में विफल रहे हैं;
    • सामाजिक न्याय विभाग ने पाया है कि संवैधानिक आदेशों के बावजूद, नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 का प्रवर्तन विभिन्न राज्यों में असंगत बना हुआ है।
  • न्यायिक और पुलिस पूर्वाग्रह: सर्वोच्च न्यायालय ने जेल श्रम में जाति-आधारित अलगाव को असंवैधानिक और मानवीय गरिमा का उल्लंघन बताते हुए रद्द कर दिया।
    • इसके अतिरिक्त , संसद की एक स्थायी समिति ने राज्य स्तर पर प्रवर्तन में खामियों को चिन्हित किया है, तथा केंद्र सरकार से पीओए अधिनियम के सख्त अनुपालन के लिए दबाव डालने का आग्रह किया है।
संवैधानिक सुरक्षा उपाय
अनुच्छेद 15: यह धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध करता है;
अनुच्छेद 17: यह अस्पृश्यता का उन्मूलन करता है और किसी भी रूप में इसके आचरण का निषेध करता है;
अनुच्छेद 46: यह राज्य को अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों के शैक्षिक और आर्थिक हितों को बढ़ावा देने का निर्देश देता है;
अनुच्छेद 338 और 338ए: यह सुरक्षा उपायों की निगरानी के लिए अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए राष्ट्रीय आयोगों की स्थापना करता है;
समाज सुधारकों का योगदान
डॉ. बी.आर. आंबेडकर: अनुच्छेद 17 जैसे संवैधानिक प्रावधानों का मसौदा तैयार करना, जिसने अस्पृश्यता को समाप्त किया;
– मंदिर प्रवेश और सार्वजनिक संसाधनों तक पहुँच के लिए जन आंदोलनों का नेतृत्व;
– दलितों के विरोध और आध्यात्मिक मुक्ति के रूप में 1956 में बौद्ध धर्म अपनाना;
पेरियार ई.वी. रामासामी: वे आत्म-सम्मान आंदोलन के संस्थापक थे, जो ब्राह्मणवादी प्रभुत्व और धार्मिक रूढ़िवादिता के कटु आलोचक थे। 
– उनके योगदानों में शामिल हैं:
1. अंतरजातीय विवाह और महिला अधिकारों की समर्थन ;
2. जाति-आधारित रीति-रिवाजों को समाप्त करने के लिए नास्तिकता और तर्कसंगत विचारों को बढ़ावा देना;
3. तमिलनाडु में जाति-विरोधी कार्यकर्ताओं की पीढ़ियों को प्रेरित करना;
4. महात्मा ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले:
5. 1848 में पुणे में लड़कियों के लिए प्रथम स्कूल खोलना;
6. अस्पृश्यता, बाल विवाह और जाति-आधारित बहिष्कार के विरुद्ध अभियान चलाना;
7. ज्ञान और आत्म-सम्मान के माध्यम से ‘बहुजन उत्थान’ के विचार को बढ़ावा देना;
वैकोम सत्याग्रह: यह केरल में (1924-25) निचली जातियों के लिए मंदिर प्रवेश के अधिकार की मांग को लेकर किया गया एक अहिंसक विरोध प्रदर्शन था।
– महात्मा गांधी के समर्थन से टीके माधवन और के केलप्पन जैसे नेताओं ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

कानूनी सुरक्षा उपाय

  • नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955: यह अस्पृश्यता को लागू करने पर दंड का प्रावधान करता है; और सार्वजनिक स्थानों व सेवाओं तक पहुँच से वंचित करने पर रोक लगाता है।
  • अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989: यह विशिष्ट अपराधों को ‘अत्याचार’ (जैसे, हमला, अपमान, सामाजिक बहिष्कार) के रूप में परिभाषित करता है;
    • यह धारा 18 के अंतर्गत अभियुक्तों के लिए अग्रिम ज़मानत पर रोक लगाता है, और त्वरित सुनवाई के लिए विशेष न्यायालयों का गठन अनिवार्य करता है;
    • यह पीड़ितों के लिए मुआवज़ा और पुनर्वास का प्रावधान करता है;
  • अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम, 2015: यह दंडनीय अपराधों की सूची का विस्तार करता है; और गवाहों की सुरक्षा और प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों को मज़बूत करता है।
  • अत्याचार निवारण के लिए राष्ट्रीय हेल्पडेस्क: इसने 634,000 से ज़्यादा शिकायतों का समाधान किया है, कानूनी सहायता प्रदान की है और शिकायतों पर नज़र रखी है।
    • इस बीच, ओपन गवर्नमेंट डेटा प्लेटफ़ॉर्म अनुसूचित जातियों के विरुद्ध अपराधों पर विस्तृत आँकड़े प्रदान करता है, जिससे पारदर्शिता और अनुसंधान में सहायता मिलती है।

न्यायिक व्याख्या

  • 2025: सर्वोच्च न्यायालय ने जाति आधारित अपराध के आरोपियों के लिए अग्रिम ज़मानत पर रोक बरकरार रखी और ज़मानत के चरण में ‘मिनी-ट्रायल’ के विरुद्ध चेतावनी दी;
  • 2024: न्यायालय ने जेल श्रम में जाति-आधारित अलगाव को असंवैधानिक घोषित किया और राज्यों को तीन महीने के अंदर जेल नियमावली में संशोधन करने का निर्देश दिया।
    • ये निर्णय इस बात की पुष्टि करते हैं कि जाति-आधारित भेदभाव सम्मान और समानता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
  • संस्थागत तंत्र: राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग और सामाजिक न्याय मंत्रालय जैसी संस्थाओं को निम्नलिखित कार्य सौंपे गए हैं:
    • सुरक्षा उपायों के कार्यान्वयन की निगरानी करना;
    • शिकायतों की जाँच करना;
    • नीतिगत सुधारों पर सलाह देना;

आगे की राह

  • कानून प्रवर्तन को सुदृढ़ बनाएँ: जातिगत पूर्वाग्रहों के प्रति पुलिस और न्यायपालिका की त्वरित जाँच, अभियोजन एवं संवेदनशीलता सुनिश्चित करें।
  • समतावादी मूल्यों को बढ़ावा दें: जाति-आधारित पूर्वाग्रहों को दूर करने के लिए देशव्यापी शैक्षिक और मीडिया अभियान चलाएँ।
  • नागरिक समाज को पुनर्जीवित करें: धार्मिक संस्थानों, शिक्षा जगत और गैर-सरकारी संगठनों को अंतर-जातीय संवाद एवं एकजुटता को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित करें।
  • सकारात्मक कार्रवाई सुनिश्चित करें: आरक्षण को पारदर्शी तरीके से लागू करें, शिक्षा, रोज़गार और संसाधनों तक समान पहुँच सुनिश्चित करें।
  • हाशिए पर पड़ी आवाज़ों को बुलंद करें: सामाजिक न्याय के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए दलित, आदिवासी और बहुजन नेताओं को सशक्त बनाएँ।
  • न्यायिक सुधार: अत्याचार के मामलों के लिए फास्ट-ट्रैक न्यायालयों का विस्तार सभी ज़िलों तक किया जाना चाहिए।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
[प्रश्न] भारत में जाति-आधारित अत्याचारों से निपटने में कानूनी और संस्थागत तंत्र की प्रभावशीलता की जांच करें।

Source: TH

 

Other News

पाठ्यक्रम: GS2/शासन संदर्भ सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, जिसने कभी एक सामान्य भारतीय को शासन की असाधारण अपारदर्शिता को चुनौती देने का अधिकार दिया था, आज इसकी शक्ति, शासन और अन्य पहलुओं में क्षरण की चुनौतियों का सामना कर रहा है। सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005 के बारे में ...
Read More

पाठ्यक्रम: GS3/ बुनियादी ढांचा संदर्भ भारत की शहरी सड़कों की स्थिति गंभीर रूप से खराब हो गई है, जिनमें गड्ढे, टूटे फुटपाथ, अव्यवस्थित यूटिलिटी लाइनों और जलभराव जैसी समस्याएँ प्रमुख हैं।  राष्ट्रीय राजमार्गों और ग्रामीण सड़कों के मिशन-आधारित सुधारों के विपरीत, शहरी सड़कों को खंडित शासन व्यवस्था, मानकों की कमी...
Read More

पाठ्यक्रम: GS1/ जनसंख्या एवं समाज, GS2/ शासन एवं अधिकार संदर्भ स्वतंत्रता दिवस संबोधन 2025 में प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि भारत की उभरती जनसांख्यिकीय चुनौतियों से निपटने और अवैध प्रवासन को नियंत्रित करने के लिए एक उच्च-शक्ति जनसांख्यिकीय मिशन शुरू किया जाएगा।  यह घोषणा सीमा सुरक्षा एवं राष्ट्रीय अखंडता की...
Read More

पाठ्यक्रम: GS2/स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दे संदर्भ प्रत्येक वर्ष 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है — यह मानसिक बीमारियों के वैश्विक भार की याद दिलाता है, जो एक अरब से अधिक लोगों को प्रभावित करता है।  भारत में मानसिक विकारों की जीवनकाल प्रचलन दर 13.7% है, जिसे...
Read More

पाठ्यक्रम: GS3/अर्थव्यवस्था संदर्भ वर्तमान वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता, जो संरक्षणवादी उपायों और व्यापारिक विकृतियों से चिह्नित है, एक समावेशी आर्थिक प्रणाली की आवश्यकता को दर्शाती है — ऐसी प्रणाली जो निजी पूंजीगत हितों के साथ-साथ सार्वजनिक कल्याण को प्राथमिकता देती है। भारतीय पूंजी निवेश: विकास और मांग पर पुनर्विचार  आर्थिक विकास...
Read More

पाठ्यक्रम: GS2/शासन; स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दे संदर्भ हाल ही में दूषित कफ सिरप से जुड़ी दुखद घटनाओं और उसके परिणामस्वरूप कई बच्चों की मृत्यु ने भारत की ‘विश्व की फार्मेसी’ की प्रतिष्ठा की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है। भारत का फार्मास्युटिकल उद्योग भारत का फार्मास्युटिकल उद्योग वैश्विक स्तर पर...
Read More
scroll to top