सूचना के अधिकार (RTI) के बीस वर्ष

पाठ्यक्रम: GS2/शासन

संदर्भ

  • सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, जिसने कभी एक सामान्य भारतीय को शासन की असाधारण अपारदर्शिता को चुनौती देने का अधिकार दिया था, आज इसकी शक्ति, शासन और अन्य पहलुओं में क्षरण की चुनौतियों का सामना कर रहा है।

सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005 के बारे में 

  • यह अधिनियम भारत की संसद द्वारा 15 जून 2005 को पारित किया गया और 12 अक्टूबर 2005 से लागू हुआ, जिसने पहले के सूचना की स्वतंत्रता अधिनियम, 2002 को प्रतिस्थापित किया। 
  • इसका मुख्य उद्देश्य नागरिकों को सशक्त बनाना, शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देना, और भ्रष्टाचार को रोकना है।
क्या आप जानते हैं? 
– राजस्थान का ब्यावर शहर ‘RTI सिटी’ के नाम से जाना जाता है। 
– यहां के दशकों लंबे बुनियादी संघर्ष और मजदूर किसान शक्ति संगठन (MKSS) की भागीदारी ने RTI अधिनियम को वास्तविकता में बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

अधिनियम के प्रमुख प्रावधान

  • सार्वभौमिक पहुंच (धारा 3): प्रत्येक नागरिक को सार्वजनिक प्राधिकरणों से सूचना मांगने का अधिकार है।
  • जन सूचना अधिकारी (धारा 5): नामित अधिकारी RTI आवेदन प्राप्त करने और उत्तर देने के लिए जिम्मेदार होते हैं।
  • समयबद्ध उत्तर (धारा 7): प्राधिकरणों को 30 दिनों के अंदर उत्तर देना होता है, या जीवन और स्वतंत्रता से संबंधित मामलों में 48 घंटे के अंदर।
  • अपवाद (धारा 8 और 9): जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा, गोपनीयता, और व्यापार रहस्य।
  • अपील तंत्र: यदि सूचना देने से मना किया जाए, तो नागरिक उच्च प्राधिकरणों और सूचना आयोगों में अपील कर सकते हैं।
  • संस्थागत तंत्र: केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) और राज्य सूचना आयोग (SICs) अधिनियम के अंतर्गत स्थापित अर्ध-न्यायिक निकाय हैं, जो अपील एवं शिकायतों की सुनवाई करते हैं।
    • ये आयोग अनुपालन सुनिश्चित करते हैं और सूचना न देने या देरी करने पर अधिकारियों पर जुर्माना लगा सकते हैं।
  • डिजिटल पहुंच और कार्यान्वयन: सार्वजनिक प्राधिकरणों को धारा 4(1)(b) के अंतर्गत जानकारी ऑनलाइन प्रकाशित करनी होती है, और कई ने RTI पोर्टल स्थापित किए हैं ताकि आवेदन डिजिटल रूप से दाखिल किए जा सकें।
    • राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC) और अन्य सरकारी निकायों ने RTI सेवाओं की ऑनलाइन पहुंच को सुगम बनाया है।
  • संशोधन (2019): इसने केंद्र सरकार को सूचना आयुक्तों की अवधि और वेतन तय करने का अधिकार दिया, जिससे इन निकायों की स्वतंत्रता को लेकर चिंताएं उत्पन्न हुईं।

RTI से जुड़े मुख्य मुद्दे

  • देरी, अस्वीकृति और उपेक्षा: सार्वजनिक प्राधिकरणों द्वारा उत्तर देने में देरी, जो प्रायः 30-दिन की वैधानिक सीमा से अधिक होती है।
    • अस्पष्ट या अनुचित अपवादों के माध्यम से सूचना देने से मना। 
    • नागरिकों की थकावट और जागरूकता की कमी के कारण उपेक्षा, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में।
  • संस्थागत कमजोरियाँ (संशोधन 2019): इसने केंद्र सरकार को सूचना आयुक्तों की अवधि और वेतन पर नियंत्रण दे दिया, जिससे उनकी स्वतंत्रता प्रभावित हुई। इसके परिणामस्वरूप:
    • सार्वजनिक अधिकारियों की जवाबदेही में कमी।
    • सक्रिय प्रकटीकरण पर नकारात्मक प्रभाव।
  • RTI कार्यकर्ताओं को खतरे: RTI उपयोगकर्ता, विशेष रूप से बुनियादी स्तर के कार्यकर्ता, उत्पीड़न और डराने-धमकाने का सामना करते हैं।
    • कुछ मामलों में शारीरिक हिंसा या हत्या तक हो जाती है, और संस्थागत सुरक्षा बहुत कम है।
  • जन भागीदारी में गिरावट: RTI अधिनियम को नागरिकों में कम जागरूकता, RTI से जुड़ी खबरों की सीमित मीडिया कवरेज, और पहले की तुलना में नागरिक समाज के दबाव की कमी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
  • गोपनीयता बनाम पारदर्शिता: डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम (DPDPA) ने RTI अधिनियम की धारा 8(1)(j) में संशोधन किया है, जिससे व्यक्तिगत जानकारी से संबंधित अपवादों का विस्तार हुआ है। यह संभावित रूप से:
    • पारदर्शिता की कीमत पर गोपनीयता को प्राथमिकता देता है।
    • सार्वजनिक अधिकारियों को जांच से बचाने के लिए दुरुपयोग किया जा सकता है।

DPDPA, RTI अधिनियम को कैसे कमजोर करता है? 

  • DPDPA की धारा 44(3) RTI अधिनियम की धारा 8(1)(j) में एक महत्वपूर्ण संशोधन प्रस्तुत करती है, जो मूल रूप से गोपनीयता के अधिकार और जनता के जानने के अधिकार के बीच संतुलन बनाती थी। 
  • RTI अधिनियम ने सार्वजनिक हित में व्यक्तिगत जानकारी के प्रकटीकरण की अनुमति दी थी। 
  • यह RTI अधिनियम को कमजोर करता है:
    • गलत कार्यों में शामिल अधिकारियों के नामों के प्रकटीकरण को रोककर;
    • भ्रष्ट लोगों को उजागर होने से बचाकर;
    • पत्रकारों, शोधकर्ताओं और कार्यकर्ताओं को बिना अनुमति जानकारी साझा करने से रोककर;
    • ₹250 करोड़ तक का जुर्माना लगाकर, वैध जांच को हतोत्साहित करके।

आगे की राह: RTI अधिनियम को सशक्त बनाना

  • संस्थागत स्वतंत्रता पुनर्स्थापित करें: केंद्रीय और राज्य सूचना आयोगों की निष्पक्षता एवं विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए निश्चित कार्यकाल तथा स्वतंत्र वेतन संरचना पुनः स्थापित करें।
  • गोपनीयता के अतिक्रमण से सुरक्षा: स्पष्ट करें कि शासन और जवाबदेही से जुड़े मामलों में गोपनीयता सुरक्षा जनता के जानने के अधिकार से ऊपर नहीं होनी चाहिए।
  • RTI उपयोगकर्ताओं और कार्यकर्ताओं की सुरक्षा: व्हिसलब्लोअर और सूचना मांगने वालों की सुरक्षा के लिए कानूनी सुरक्षा और त्वरित शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करें।
  • कार्यान्वयन और जागरूकता में सुधार: ऑडिट और जुर्मानों के माध्यम से अनुपालन लागू करें, तथा विशेष रूप से ग्रामीण एवं वंचित समुदायों में सार्वजनिक जागरूकता अभियान बढ़ाएं।
  • डिजिटलीकरण और पहुंच को सरल बनाएं: सुनिश्चित करें कि सभी सार्वजनिक प्राधिकरण डिजिटल फाइलिंग प्रणाली अपनाएं और RTI उत्तरों पर वास्तविक समय अपडेट प्रकाशित करें।

निष्कर्ष 

  • बीस वर्षों बाद भी RTI अधिनियम भारत की लोकतांत्रिक संरचना का एक आधारस्तंभ बना हुआ है। 
  • इसने नागरिकों को सशक्त किया है, शासन में सुधार किया है, और जवाबदेही की संस्कृति को बढ़ावा दिया है। 
  • भारत को इसके सिद्धांतों के प्रति पुनः प्रतिबद्ध होना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सूचना का अधिकार डिजिटल युग में भी प्रभावी रूप से कार्य करता रहे, ताकि इसकी विरासत सुरक्षित रह सके।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
[प्रश्न] सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम के कार्यान्वयन ने भारत में लोकतांत्रिक जवाबदेही को किस प्रकार आकार दिया है, तथा कौन सी चुनौतियां इसकी प्रभावशीलता के लिए खतरा हैं?

Source: IE

 

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