वैश्विक परमाणु व्यवस्था

पाठ्यक्रम: GS2/अंतर्राष्ट्रीय संबंध

संदर्भ

  • हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा रूस और चीन के साथ ‘समान आधार पर परमाणु परीक्षण’ की नई घोषणा ने परमाणु हथियार परीक्षण की वापसी का संकेत दिया है, जिससे दशकों से चली आ रही अंतरराष्ट्रीय संयम और वैश्विक हथियार नियंत्रण की गतिशीलता को चुनौती मिली है।

वैश्विक परमाणु व्यवस्था का विकास

  • प्रारंभिक शीत युद्ध (1945–1962):
    • वैश्विक परमाणु व्यवस्था शीत युद्ध के निवारण से विकसित हुई, जहाँ परस्पर सुनिश्चित विनाश (MAD) के सिद्धांत ने महाशक्तियों को सीधे संघर्ष से रोके रखा।
    • हिरोशिमा और नागासाकी के बाद परमाणु युग का उदय।
    • अमेरिका–सोवियत संघ हथियारों की दौड़ और निवारण सिद्धांत का उद्भव।
    • क्यूबा मिसाइल संकट निर्णायक क्षण रहा; इसने पहले हथियार नियंत्रण प्रयासों को प्रेरित किया।
  • नियंत्रण का संस्थानीकरण (1960–1990):
    • परमाणु अप्रसार संधि (NPT), 1968: परमाणु व्यवस्था की आधारशिला — अप्रसार, निरस्त्रीकरण, शांतिपूर्ण उपयोग।
    • व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (CTBT): यह ‘किसी भी परमाणु हथियार परीक्षण विस्फोट’ पर प्रतिबंध लगाती है। 187 हस्ताक्षरों के बावजूद यह कभी लागू नहीं हुई।
      • प्रमुख गैर-प्रमाणक: अमेरिका, चीन, इज़राइल, मिस्र, ईरान।
      • गैर-हस्ताक्षरकर्ता: भारत, पाकिस्तान, उत्तर कोरिया।
  • शीत युद्ध के बाद का आशावाद:
    • घटते भंडार, सीमित प्रसार: वैश्विक परमाणु भंडार 1970 के दशक के अंत में 65,000 हथियारों से घटकर वर्तमान में 12,500 से कम हो गया।
      • केवल लगभग नौ राज्यों के पास परमाणु हथियार हैं, जो 1960 के दशक में अनुमानित दो दर्जन से कहीं कम हैं।
    • सहकारी खतरा न्यूनीकरण — सोवियत परमाणु सामग्री को सुरक्षित करना।
  • अमेरिकी-सोवियत द्विपक्षीय संधियाँ: सामरिक शस्त्र सीमा वार्ता (SALT) I/II, एंटी-बैलिस्टिक मिसाइल (ABM) संधि, मध्यम दूरी की परमाणु शक्ति (INF) संधि, सामरिक शस्त्र न्यूनीकरण संधि (START) I/II.

वैश्विक परमाणु व्यवस्था को कमजोर करने वाले कारक

  • हथियार नियंत्रण ढाँचे का पतन: ABM संधि से अमेरिका का बाहर निकलना (2002); INF संधि का टूटना (2019); न्यू START की संवेदनशीलता, जो अंतिम शेष अमेरिका–रूस संधि है।
    • न्यू START फरवरी 2026 में समाप्त होगी और कोई वार्ता नियोजित नहीं है।
  • उल्लंघन, वीटो और मानदंडों का क्षरण: उत्तर कोरिया का परमाणु उभार; ईरान का JCPOA अस्थिरता; NPT समीक्षा सम्मेलनों में सहमति का अभाव; और संयुक्त राष्ट्र में महाशक्तियों के वीटो ने प्रवर्तन को कमजोर किया।
  • चीन का तेज़ी से बढ़ता शस्त्रागार: MIRVs, नए साइलो, हाइपरसोनिक्स का विकास; न्यूनतम से ‘मध्यम’ निवारण की ओर बदलाव।
    • चीन का शस्त्रागार 2030 तक 1,000 से अधिक वारहेड्स तक पहुँचने का अनुमान है, जिससे रणनीतिक संतुलन बदल जाएगा।
  • रूस–यूक्रेन युद्ध और परमाणु छाया: परमाणु धमकियों का दबाव के रूप में उपयोग; NATO की परमाणु नीति पर परिचर्चा; और परमाणु-सशस्त्र लेकिन पारंपरिक रूप से कमजोर राज्य द्वारा परमाणु उपयोग का भय।
  • प्रौद्योगिकी व्यवधान: AI-सक्षम प्रारंभिक चेतावनी, स्वायत्त प्रणालियाँ, अंतरिक्ष-आधारित सेंसर, हाइपरसोनिक ग्लाइड वाहन आदि प्रथम-प्रहार अस्थिरता बढ़ा रहे हैं।
  • बिना विस्फोटक परीक्षण के आधुनिकीकरण
  • रूस: बुरेवेस्टनिक (परमाणु-संचालित क्रूज़ मिसाइल) और पोसीडॉन (परमाणु-संचालित पानी के नीचे ड्रोन) का परीक्षण।
  • चीन: 2021 से हाइपरसोनिक ग्लाइड वाहन परीक्षण।
  • अमेरिका: नया B61-13 ग्रेविटी बम, W76-2 लो-यील्ड वारहेड, और परमाणु-सशस्त्र SLCM।
  • आधुनिक क्षमताएँ उपयोगिता बढ़ाती हैं: लो-यील्ड वारहेड्स, हाइपरसोनिक डिलीवरी सिस्टम और मानव रहित प्लेटफॉर्म शुरुआती या गलत परमाणु उपयोग के जोखिम को बढ़ाते हैं।
    • मिसाइल रक्षा विस्तार: प्रस्तावित अमेरिकी ‘गोल्डन डोम’ परमाणु राज्यों के बीच नई प्रतिस्पर्धी चक्र का संकेत देता है।

कैस्केड प्रभाव: भारत, पाकिस्तान और अन्य

  • यदि अमेरिका विस्फोटक परीक्षण फिर से शुरू करता है:
    • चीन और रूस लगभग निश्चित रूप से अनुसरण करेंगे।
    • भारत संभवतः अपने थर्मोन्यूक्लियर डिज़ाइन को मान्य करने के लिए परीक्षण फिर से शुरू करेगा।
    • पाकिस्तान भारत का अनुसरण करेगा।
  • अन्य सीमा-रेखा वाले राज्य हथियारों की ओर प्रेरित हो सकते हैं, जिससे मौजूदा अप्रसार मानदंड टूट सकते हैं।

वैश्विक परमाणु व्यवस्था में भारत का स्थान

  • भारत की जिम्मेदार भागीदार स्थिति: नो फर्स्ट यूज़ (NFU) — यद्यपि विकसित होती परिचर्चा; विश्वसनीय न्यूनतम निवारण; और NPT से बाहर होने के बावजूद मजबूत अनुपालन इतिहास।
  • भारत की कूटनीतिक भूमिका: अप्रसार पर ग्लोबल साउथ दृष्टिकोण का समर्थन; सार्वभौमिक निरस्त्रीकरण और रणनीतिक संयम का आह्वान; और MTCR, वासेनार (Wassenaar) आदि निर्यात-नियंत्रण व्यवस्थाओं में भागीदारी, लेकिन NSG से बाहर।
  • भारत के लिए चुनौतियाँ:
    • पाकिस्तान के सामरिक परमाणु हथियार और अस्थिर कमांड संरचनाएँ।
    • चीन का शस्त्रागार वृद्धि दो-मोर्चा रणनीतिक समस्या उत्पन्न करता है।
    • परमाणु वितरण प्रणालियों का आधुनिकीकरण और विविधीकरण करने का दबाव।

आगे की राह: संभावित भविष्य की दिशाएँ

  • बहुध्रुवीय परमाणु व्यवस्था: महाशक्ति प्रतिद्वंद्विता की वापसी; अधिक परमाणु द्वय और त्रय के साथ विकेंद्रीकृत निवारण; तथा गलत गणना का उच्च जोखिम।
  • हथियार नियंत्रण का पुनर्निर्माण: अमेरिका–चीन–रूस त्रिपक्षीय ढाँचे की आवश्यकता।
    • दक्षिण एशिया, मध्य पूर्व और पूर्वी एशिया के लिए क्षेत्र-विशिष्ट व्यवस्थाएँ।
    • पारदर्शिता उपाय और संकट हॉटलाइन।
  • प्रौद्योगिकी शासन: स्वायत्त परमाणु निर्णय लेने पर सीमाएँ।
    • AI-सक्षम कमांड-एंड-कंट्रोल के लिए वैश्विक नियम।
    • हाइपरसोनिक्स और अंतरिक्ष हथियारकरण पर प्रतिबंध।
  • निरस्त्रीकरण मानदंडों का पुनर्जीवन: नागरिक समाज और गैर-परमाणु राज्यों से दबाव।
    • परमाणु हथियारों पर प्रतिबंध की संधि (TPNW) एक नैतिक साधन के रूप में, भले ही प्रमुख शक्तियाँ बाहर रहें।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
[प्रश्न] शीत युद्ध काल से लेकर आज तक वैश्विक परमाणु व्यवस्था के विकास का मूल्यांकन कीजिए। बदलते भू-राजनीतिक गठबंधनों ने परमाणु निरस्त्रीकरण और अप्रसार की संभावनाओं को किस प्रकार प्रभावित किया है?

Source: TH

 

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