भारत में कौशल संकट और राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC)

पाठ्यक्रम: GS2/सरकारी पहल; GS3/अर्थव्यवस्था

संदर्भ

  • राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) में चल रहे संकट — जैसे वित्तीय अनियमितताएँ, कमजोर निगरानी, और संरचनात्मक असंतुलन — ने भारत में कौशल विकास के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल की संरचनात्मक कमजोरियाँ का प्रकटीकरण किया है।

राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) के बारे में 

  • उद्भव और उद्देश्य: NSDC की स्थापना 2008 में वित्त मंत्रालय के अंतर्गत की गई थी, और अब यह कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय (MSDE) के अंतर्गत एक गैर-लाभकारी सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) के रूप में कार्य करता है।
    • भारत सरकार इसकी 49% हिस्सेदारी कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय (MSDE) के माध्यम से रखती है, जबकि निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी 51% है। 
    • इसका प्रारंभिक उद्देश्य प्रशिक्षण संस्थानों को वित्तीय सहायता प्रदान करना था, ताकि वे श्रमिकों को रोजगार योग्य कौशल प्रदान कर सकें।
  • NSDC की दृष्टि: ‘सभी के लिए कौशल, सभी के लिए अवसर — कभी भी, कहीं भी’ के लिए विश्व का सबसे बड़ा मंच बनना।

NSDC का विस्तार

  •  2015 में स्किल इंडिया मिशन की शुरुआत के साथ NSDC की भूमिका का विस्तार हुआ, जिससे यह कई योजनाओं के लिए प्रमुख एजेंसी बन गया।
  • NSDC के तहत प्रमुख योजनाएँ:
    • प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY): 2,500+ केंद्रों के माध्यम से अपस्किलिंग और रिस्किलिंग।
    • राष्ट्रीय अप्रेंटिसशिप प्रोत्साहन योजना (NAPS): 49,000 से अधिक नियोक्ताओं के लिए प्रशिक्षण लागत में सहायता।
    • शिल्पकार प्रशिक्षण योजना: औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों के माध्यम से संचालित।
    • विदेशी रोजगार कार्यक्रम: विदेशों में रोजगार की सुविधा, जैसे इज़राइल में निर्माण श्रमिक।
  • इसने अपनी सीमित संसाधनों को अत्यधिक फैलाया, जिससे शासन की कमजोरियाँ, असंगत प्लेसमेंट रिकॉर्ड, अपर्याप्त गुणवत्ता आश्वासन, और प्रशिक्षुओं में व्यापक असंतोष उजागर हुआ।

NSDC में वर्तमान संकट 

  • संचालन संबंधी चुनौतियाँ और कौशल अंतर: NSDC के एक हालिया अध्ययन में चिंताजनक अंतर सामने आया — भारत को 103 मिलियन कुशल श्रमिकों की आवश्यकता है, जबकि वर्तमान आपूर्ति केवल लगभग 74 मिलियन है।
    • 40 मिलियन से अधिक व्यक्तियों को प्रशिक्षण देने के बावजूद केवल लगभग 50% को ही रोजगार मिला है।
  • संरचनात्मक और रणनीतिक समस्याएँ: सरकारी और PPP के बीच ओवरलैपिंग जिम्मेदारियाँ और मंत्रालयों व प्रशिक्षण भागीदारों के बीच समन्वय की कमी से कार्यक्षमता प्रभावित हुई है।
  • सूचना विषमता: रोजगार चाहने वाले, प्रशिक्षण प्रदाता और नियोक्ता अलग-अलग कार्य करते हैं।
    • व्यक्तियों को यह स्पष्ट जानकारी नहीं होती कि किस कौशल की मांग है, जबकि नियोक्ताओं को प्रमाणित दक्षताओं वाले उम्मीदवारों को ढूंढने में कठिनाई होती है।
  • समन्वय की विफलताएँ: शैक्षणिक संस्थान और प्रशिक्षण केंद्र प्रायः ऐसे पाठ्यक्रम प्रदान करते हैं जो उद्योग की आवश्यकताओं से सामंजस्यशील नहीं हैं, जिससे आपूर्ति और मांग के बीच असंतुलन उत्पन्न होता है तथा संसाधनों व समय की बर्बादी होती है।
  • वर्तमान पूर्वाग्रह: सरकारें और संस्थान दीर्घकालिक परिणामों — जैसे सतत रोजगार एवं करियर वृद्धि — की बजाय अल्पकालिक आँकड़ों जैसे नामांकन संख्या को प्राथमिकता देते हैं।
  • विखंडित वित्तपोषण और निगरानी: कई मंत्रालय और एजेंसियाँ ओवरलैपिंग स्किलिंग योजनाएँ चलाते हैं, जिससे जवाबदेही कमजोर होती है तथा कार्यक्षमता में कमी आती है।

सरकारी प्रतिक्रिया स्किल इंडिया 

  • डिजिटल प्लेटफॉर्म: बढ़ती चुनौतियों के प्रत्युत्तर में सरकार ने एक डिजिटल प्लेटफॉर्म लॉन्च किया है, जो स्किलिंग, शिक्षा और रोजगार प्रयासों को सुव्यवस्थित करता है।
    • इसका उद्देश्य पारदर्शिता और प्रशिक्षुओं के लिए आसान पहुँच सुनिश्चित करना है।
  • संशोधित स्किल लोन योजना: एक नया मॉडल उच्च शिक्षा और कौशल विकास के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करता है, जिसमें पात्र छात्रों के लिए ब्याज सबवेंशन शामिल है (केंद्रीय बजट 2024–25)।
  • राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन (NSDM): यह मिशन रणनीतिक दिशा प्रदान करता है, लेकिन 2022 तक 300 मिलियन लोगों को प्रशिक्षण देने का इसका महत्वाकांक्षी लक्ष्य अभी तक पूरा नहीं हुआ है।

क्या परिवर्तन की आवश्यकता है: प्रभाव के लिए सुव्यवस्था 

  • एकीकृत डिजिटल स्किल्स प्लेटफॉर्म बनाना: एक केंद्रीकृत, एआई-संचालित प्लेटफॉर्म रोजगार चाहने वालों, नियोक्ताओं, प्रशिक्षण प्रदाताओं और वित्तीय संस्थानों को जोड़ सकता है। इसमें होना चाहिए:
    • वास्तविक समय श्रम बाजार अंतर्दृष्टि;
    • प्रमाणित कौशल प्रमाण-पत्र;
    • व्यक्तिगत शिक्षण मार्ग;
    • पारदर्शी वित्तीय विकल्प जैसे छात्रवृत्तियाँ और अनुदान।
  • PPP मॉडल पर पुनर्विचार: PPP मॉडल अत्याधुनिक पाठ्यक्रम, उद्योग विशेषज्ञता और स्केलेबल अवसंरचना ला सकते हैं।
    • राष्ट्रीय अप्रेंटिसशिप प्रोत्साहन योजना जैसे मॉडल — जहाँ निजी उद्यम सीधे ऑन-द-जॉब प्रशिक्षण प्रदान करते हैं — NSDC के केंद्रीकृत दृष्टिकोण की तुलना में अधिक प्रभावी और सतत प्रतीत होते हैं।
  • प्रमाण-पत्र और मूल्यांकन का मानकीकरण: एक राष्ट्रीय कौशल प्रमाणन ढांचा — जो उद्योगों में मान्यता प्राप्त हो — श्रम बाजार में विश्वास और गतिशीलता को बढ़ा सकता है।
  • इनपुट नहीं, परिणामों पर ध्यान दें: नामांकन संख्या की बजाय रोजगार दर, वेतन वृद्धि और करियर प्रगति पर बल देना चाहिए। इसके लिए सुदृढ़ ट्रैकिंग और फीडबैक तंत्र की आवश्यकता है।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
[प्रश्न] शासन संबंधी चुनौतियाँ, नेतृत्व की अस्थिरता और प्रणालीगत अक्षमताएँ भारत के कौशल पारिस्थितिकी तंत्र में व्यापक मुद्दों को किस प्रकार प्रतिबिंबित करती हैं?

Source: BS

 

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