पाठ्यक्रम: GS3/अर्थव्यवस्था
संदर्भ
- भारत में पारदर्शिता और लागत-कुशलता को ध्यान में रखकर तैयार की गई खरीद नीतियाँ एवं ढांचे प्रायः वैज्ञानिक आवश्यकताओं की तुलना में प्रक्रियात्मक अनुपालन को प्राथमिकता देकर नवाचार को बाधित कर देते हैं।
सार्वजनिक खरीद प्रणाली के बारे में
- सार्वजनिक खरीद वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से सरकारें शासन और आर्थिक विकास के लिए वस्तुओं एवं सेवाओं की खरीद करती हैं।
- OECD देशों में यह GDP का लगभग 12% और कुछ विकासशील देशों में 30% तक का प्रतिनिधित्व करती है।
- भारत में यह GDP का लगभग 20–22% है, जो इसे नीति कार्यान्वयन, औद्योगिक विकास और नवाचार के लिए एक शक्तिशाली साधन बनाता है।
खरीद प्रणाली का विकासात्मक चक्र
- खरीद प्रणाली केवल नियंत्रण से रचनात्मकता और रणनीति के उपकरण में बदल गई है — प्राचीन मिस्र के अभिलेखों से लेकर AI-संचालित आपूर्ति श्रृंखलाओं तक।
- औद्योगिक क्रांति: लागत-केंद्रित दृष्टिकोण
- विश्व युद्ध: दुर्लभ संसाधनों की सुरक्षा में रणनीतिक भूमिका
- 1945 के पश्चात: अर्धचालक, अंतरिक्ष और नवीकरणीय ऊर्जा में नवाचार का केंद्र
- आधुनिक समय: ‘कॉग्निटिव प्रोक्योरमेंट’ AI का उपयोग करता है पूर्वानुमानित सोर्सिंग, परिदृश्य अनुकरण और अनुपालन स्वचालन के लिए
भारत की खरीद प्रणाली
- ऐतिहासिक रूप से, भारत की खरीद प्रणाली सामान्य वित्तीय नियमों (GFR), 2017 द्वारा शासित थी और विकेंद्रीकृत, कागज़ आधारित प्रक्रियाओं के माध्यम से संचालित होती थी।
- इन नियमों ने नई विक्रेताओं और समाधानों के साथ प्रयोग की अनुमति देकर लचीलापन प्रदान किया।
- हालाँकि, इनमें प्रायः फुर्ती की कमी होती थी, छोटे खिलाड़ियों को बाहर रखा जाता था, तथा ये अक्षमता व अपारदर्शिता के प्रति संवेदनशील थीं, जबकि ये ढांचे लागत-कुशलता एवं अनुपालन पर बल देते थे।
खरीद ढांचे में सुधार
- GFR में सुधार: अनुसंधान और विकास (R&D) को सक्षम बनाने की दिशा में परिवर्तन, जिसमें GeM पोर्टल से छूट और R&D खरीद के लिए वित्तीय सीमा में वृद्धि शामिल है।
- सरकारी ई-मार्केटप्लेस (GeM): यह एक गतिशील, कागज़ रहित और नकद रहित ऑनलाइन प्लेटफॉर्म है जो सरकारी विभागों को कुशलतापूर्वक वस्तुओं एवं सेवाओं की खरीद की सुविधा देता है।
- वास्तविक समय मूल्य तुलना और रिवर्स नीलामी
- 50,000+ सरकारी खरीदारों तक सीधा पहुँच
- भ्रष्टाचार को कम करने के लिए न्यूनतम मानव हस्तक्षेप
- MSME के लिए सार्वजनिक खरीद नीति: केंद्र सरकार के मंत्रालयों और सार्वजनिक उपक्रमों द्वारा वार्षिक खरीद का 25% MSMEs से लेना अनिवार्य
- SC/ST उद्यमियों के लिए 4% उप-लक्ष्य
- महिला स्वामित्व वाले उद्यमों के लिए विशेष प्रावधान
- अर्नेस्ट मनी और टेंडर शुल्क से छूट
- स्टार्टअप इंडिया खरीद सुधार: DPIIT-मान्यता प्राप्त स्टार्टअप्स को पूर्व अनुभव और टर्नओवर आवश्यकताओं से छूट
- GeM स्टार्टअप रनवे की शुरुआत, जिससे स्टार्टअप्स अपने अद्वितीय उत्पाद और सेवाएँ प्रदर्शित कर सकें
- केंद्रीय सार्वजनिक खरीद पोर्टल (CPPP) पर पंजीकरण की अनुमति, शिथिल मानदंडों के साथ
- वोकल फॉर लोकल: भारत के प्रत्येक जिले से विशिष्ट उत्पादों को सूचीबद्ध करने के लिए 210 ODOP उत्पाद श्रेणियों का निर्माण
सरकार द्वारा हाल में उठाए गए कदम
- विशिष्ट उपकरणों के लिए GeM को दरकिनार करना, वैज्ञानिक खरीद में देरी को कम करना।
- विशिष्ट अनुसंधान आवश्यकताओं को स्वीकार करते हुए, प्रत्यक्ष खरीद सीमा को ₹1 लाख से बढ़ाकर ₹2 लाख करना।
- ₹200 करोड़ तक की निविदा स्वीकृतियों को संस्थागत प्रमुखों को सौंपना, नौकरशाही की देरी को समाप्त करना।
- ये उपाय ‘उत्प्रेरक खरीद’ की अवधारणा के अनुरूप हैं, जहाँ लचीलापन सार्वजनिक संस्थानों को उन्नत तकनीकों को शीघ्र अपनाने में सक्षम बनाता है।
भारत की सार्वजनिक खरीद प्रणाली में सुधारों का प्रभाव
- पारदर्शिता और जवाबदेही: GeM और ई-प्रोक्योरमेंट पोर्टलों जैसे प्लेटफॉर्म ने पूरी प्रक्रिया को डिजिटाइज़ कर दिया है, जिससे मानव विवेक एवं भ्रष्टाचार में कमी आई है।
- सुव्यवस्थित खरीद कानून: यह महत्वपूर्ण वित्तीय और प्रशासनिक लाभ दे सकता है, जिससे GDP का लगभग 1.2% तक की बचत संभव है।
- रणनीतिक खरीद के माध्यम से नवाचार को प्रोत्साहन: मंत्रालय अब चुनौती-आधारित निविदाएँ जारी करने के लिए प्रोत्साहित किए जा रहे हैं, जिससे जल शुद्धिकरण, अपशिष्ट प्रबंधन एवं डिजिटल शासन जैसे जटिल मुद्दों के लिए नवाचारी समाधान प्राप्त हो सकें।
- क्षेत्रीय प्रभाव: कृषि और अवसंरचना जैसे क्षेत्रों में खरीद सुधार प्रणालियों को अधिक किसान-केंद्रित और तकनीक-संचालित बना रहे हैं।
- फार्म-गेट खरीद, डिजिटाइज़्ड निगरानी और समय पर भुगतान जैसी पहलों से उत्पादकों के लिए परिणामों में सुधार हो रहा है तथा आपूर्ति श्रृंखलाएँ आधुनिक हो रही हैं।
- राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन और परिसंपत्ति मुद्रीकरण रणनीतियों को सुव्यवस्थित खरीद प्रक्रियाओं द्वारा समर्थन मिल रहा है, जिससे निजी निवेश एवं वैश्विक विशेषज्ञता आकर्षित हो रही है।
- स्वयं सहायता समूह (SHGs): GeM स्वयं-रोजगार महिला संघ (SEWA) के साथ मिलकर 21 लाख+ महिला-नेतृत्व वाले सूक्ष्म और लघु उद्यमों, महिला उद्यमियों एवं SHGs को प्रशिक्षण, सहायता और सशक्त बना रहा है।
भारत की सार्वजनिक खरीद प्रणाली सुधारों की सीमाएँ
- न्यूनतम लागत पर अत्यधिक बल : पारंपरिक L1 (न्यूनतम बोलीदाता) पर ध्यान केंद्रित करना अभी भी खरीद निर्णयों में प्रमुख है।
- यह गुणवत्ता, नवाचार और जीवनचक्र मूल्य को दरकिनार कर देता है — विशेष रूप से तब जब उन्नत तकनीकों या दीर्घकालिक प्रदर्शन वाली सेवाओं की खरीद की जा रही हो।
- कम प्रत्यक्ष खरीद सीमा: ₹2 लाख की सीमा जैव प्रौद्योगिकी और क्वांटम कंप्यूटिंग जैसे उच्च लागत वाले क्षेत्रों के लिए अभी भी अपर्याप्त हो सकती है।
- वैश्विक निविदाओं पर अत्यधिक ज़ोर: यह घरेलू आपूर्तिकर्ताओं को दरकिनार कर सकता है जब तक कि स्थानीय R&D पारिस्थितिकी तंत्र को सुदृढ़ न किया जाए।
- नवाचार के लिए सीमित समर्थन: कई नवाचारी कंपनियाँ अभी भी प्रक्रियात्मक बाधाओं, जागरूकता की कमी और जटिल निविदा दस्तावेज़ों को समझने की सीमित क्षमता से जूझ रही हैं।
- यह जोखिम से बचने वाला बना रहता है, जो स्थापित विक्रेताओं को प्राथमिकता देता है और विघटनकारी समाधानों को हाशिए पर रखता है।
- राज्यों में असंगत कार्यान्वयन: खरीद सुधारों को राज्यों और स्थानीय निकायों में असमान रूप से अपनाया गया है।
- छोटे नगरपालिकाएँ और ग्रामीण विभाग प्रायः डिजिटल अवसंरचना, प्रशिक्षण या प्रोत्साहन की कमी के कारण ई-प्रोक्योरमेंट प्लेटफॉर्म को पूरी तरह से अपनाने में असमर्थ रहते हैं, जिससे परिणामों में असंगतता आती है।
नवाचार-उन्मुख खरीद के वैश्विक मॉडल
- जर्मनी की हाई-टेक रणनीति: KOINNO जैसे समर्पित सलाहकारी निकायों के माध्यम से खरीद में नवाचार को शामिल करता है।
- अमेरिका का SBIR मॉडल: स्टार्टअप्स के लिए R&D फंड का एक भाग आरक्षित करता है, प्रारंभिक चरण की तकनीकों को जोखिम-मुक्त करने के लिए चरणबद्ध खरीद का उपयोग करता है।
- प्रदर्शन-आधारित निजी प्रबंधन का अमेरिकी मॉडल दर्शाता है कि हाइब्रिड प्रणाली कैसे सार्वजनिक निगरानी और कॉर्पोरेट फुर्ती के बीच संतुलन बना सकती है।
- दक्षिण कोरिया की प्री-कमर्शियल खरीद: महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय लक्ष्यों के अनुरूप प्रोटोटाइप के लिए प्रीमियम मूल्य का भुगतान करता है।
आगे की राह: भारत में परिवर्तनकारी खरीद की ओर
- भारत में खरीद की पूरी क्षमता का दोहन करने के लिए, चार प्रणालीगत परिवर्तन आवश्यक हैं:
- परिणाम-भारित निविदाएँ – निविदाओं का मूल्यांकन केवल लागत के आधार पर नहीं, बल्कि अनुसंधान एवं विकास निवेश जैसे गुणात्मक कारकों के आधार पर किया जाना चाहिए।
- सैंडबॉक्स छूट – प्रमुख संस्थानों को नवाचार लक्ष्यों से जुड़ी GFR से आंशिक स्वतंत्रता प्रदान करना।
- एआई-संवर्धित सोर्सिंग – तीव्र और बेहतर निर्णय लेने के लिए संज्ञानात्मक खरीद सहायकों की तैनाती।
- सह-खरीद गठबंधन – उच्च लागत वाले उपकरणों के लिए प्रयोगशालाओं में माँग को एक साथ लाना।
- भारत की वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद रणनीतिक प्रयोगशालाओं के लिए एक समान ढाँचा अपना सकती है, बशर्ते कि सुदृढ़ जवाबदेही संरचनाएँ उपस्थित हों।
| दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न [प्रश्न] चर्चा कीजिए कि भारत के खरीद सुधारों ने प्रक्रियागत अनुपालन से नवाचार की ओर ध्यान कैसे केंद्रित किया है। सार्वजनिक खरीद के माध्यम से नवाचार को गति देने में शेष चुनौतियाँ क्या हैं? |
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