पाठ्यक्रम: GS1/सामाजिक मुद्दे
संदर्भ
- भारत में ट्रांसजेंडर व्यक्ति नीतिगत वादों से पृथक हैं और उन्हें प्रणालीगत उपेक्षा का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि समावेशी, लागू करने योग्य और मानवीय नीतियों की कमी के कारण उन्हें सम्मान से निरंतर वंचित रखा जा रहा है।
भारत में ट्रांस लोगों के बारे में
- ट्रांसजेंडर लोग अपनी विशिष्ट पहचान, ऐतिहासिक तौर पर हुआ बहिष्कार और मुख्यधारा के सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक जीवन से प्रणालीगत अलगाव के कारण भारत में एक लिंग अल्पसंख्या मानी जाती हैं।
- जनगणना (2011): 4.87 लाख से अधिक व्यक्तियों की पहचान ‘अन्य’ लिंग श्रेणी के अंतर्गत ट्रांसजेंडर के रूप में की गई।
कानूनी मान्यता और संवैधानिक समर्थन
- NALSA बनाम भारत संघ (2014): भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को ‘तीसरे लिंग/थर्ड जेंडर’ के रूप में मान्यता दी, और संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16 और 21 के अंतर्गत उनके मौलिक अधिकारों की पुष्टि की।
- ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 यह अधिनियम ट्रांसजेंडर पहचान को व्यापक रूप से परिभाषित करता है, जिसमें ट्रांस पुरुष, ट्रांस महिलाएं, इंटरसेक्स व्यक्ति और हिजड़ा, अरवानी, जोगता जैसी सामाजिक-सांस्कृतिक पहचानें शामिल हैं।
- यह शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य सेवा और सार्वजनिक वस्तुओं तक पहुँच में भेदभाव को प्रतिबंधित करता है।
- प्राचीन भारतीय ग्रंथों में ट्रांस पहचान को तृतीयप्रकृति (तीसरी प्रकृति) के रूप में संदर्भित किया गया है, जो सांस्कृतिक मान्यता को दर्शाता है।
ट्रांसजेंडर लोगों द्वारा सामना की जाने वाली समस्याएँ
- प्रणालीगत उपेक्षा और सामाजिक बहिष्कार:
- परिवारों द्वारा प्रारंभिक अस्वीकृति से उत्पन्न आंतरिक कलंक
- बदमाशी, उत्पीड़न और हिंसा के माध्यम से व्यक्तिगत कलंक
- शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य सेवा और आवास में संरचनात्मक भेदभाव
- इन बाधाओं के कारण स्कूलों से उच्च ड्रॉपआउट दर, औपचारिक रोजगार तक सीमित पहुँच, और बेघरता, भिक्षा तथा असुरक्षित कार्य स्थितियों की संवेदनशीलता बढ़ती है।
- प्रतिनिधित्व और पहुँच की कमी:
- विधायी निकायों में ट्रांस ट्रांसजेंडरों की अनुपस्थिति नीति निर्माण में अस्पष्टता को बनाए रखती है।
- संसद, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय परिषदों में प्रतिनिधित्व के बिना, लैंगिक अल्पसंख्यकों की आवश्यकताएं केंद्र बिंदु के बजाय फुटनोट बनकर रह जाती हैं।
- स्वास्थ्य और कल्याण:
- NACO ने ट्रांसफेमिनाइन व्यक्तियों की HIV और मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों के प्रति संवेदनशीलता को उजागर किया है।
- सामाजिक कलंक और हिंसा:
- बहिष्कार के कारण कई ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को भीख मांगने या यौन कार्य करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। हिंसा और उत्पीड़न की घटनाएँ प्रायः होती रहती हैं।
- कानूनी चुनौतियाँ:
- ट्रांसजेंडर अधिनियम, 2019 में लिंग पुनर्निर्धारण का प्रमाण माँगना NALSA के आत्म-पहचान सिद्धांत के विपरीत है।
सरकारी पहलें
- SMILE योजना (सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय): ट्रांसजेंडर व्यक्तियों और भिक्षा में संलग्न लोगों को समर्थन देने के उद्देश्य से शुरू की गई। इसमें शामिल हैं:
- गरिमा गृह नामक आश्रय स्थल
- कौशल विकास और शिक्षा कार्यक्रम
- चिकित्सा और मनोवैज्ञानिक सहायता
- उद्यमिता के लिए वित्तीय सहायता
- राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर पोर्टल: पहचान पत्र और प्रमाण-पत्र प्रदान करता है, जिससे सरकारी सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित होती है।
- सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा जारी की गई, जिसका उद्देश्य है:
- कार्यस्थल पर भेदभाव को प्रतिबंधित करना
- निष्पक्ष भर्ती, पदोन्नति और प्रशिक्षण सुनिश्चित करना
- शिकायत निवारण तंत्र की स्थापना
- राज्य स्तरीय नीतियाँ: केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक में समर्पित ट्रांसजेंडर कल्याण बोर्ड, पेंशन और छात्रवृत्तियाँ उपलब्ध हैं।
तीन तात्कालिक प्राथमिकताएँ
- शिक्षा: छात्रवृत्तियाँ, समावेशी पाठ्यक्रम और विरोधी उत्पीड़न प्रोटोकॉल यह सुनिश्चित करें कि कोई बच्चा स्कूल छोड़ने को मजबूर न हो।
- स्वास्थ्य सेवा: किफायती, राज्य-समर्थित लिंग परिवर्तन और मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ विलासिता नहीं, बल्कि जीवनरक्षक साधन हैं।
- रोजगार और आवास: भेदभाव-विरोधी कानूनों और किराए की सुरक्षा को दंडात्मक प्रावधानों के साथ लागू किया जाए। वेतन पर्चियों और संपत्ति दस्तावेज़ों में समावेशिता स्पष्ट रूप से दिखाई देनी चाहिए।
आगे की राह
- वर्तमान कानूनों का बिना अवरोध के प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित करें
- समावेशी शिक्षा और रोजगार को बढ़ावा दें
- मीडिया, पाठ्यक्रम और सार्वजनिक संवाद के माध्यम से समाज को संवेदनशील बनाएं
- सार्वजनिक स्थलों में सुरक्षा और गरिमा की गारंटी दें
| दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न [प्रश्न] भारत में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के हाशिए पर जाने में योगदान देने वाले सामाजिक, कानूनी और सांस्कृतिक कारकों पर चर्चा करें। |