भारत का रणनीतिक मोड़: एशिया की ओर नई दिशा

पाठ्यक्रम: GS2/अंतर्राष्ट्रीय संबंध

संदर्भ

  • एशिया की ओर भारत की विदेश नीति का फोकस बदलते वैश्विक परिदृश्य को दर्शाता है, जहाँ एशिया आर्थिक गतिशीलता, तकनीकी नवाचार और भू-राजनीतिक प्रभाव का केंद्र बनकर उभर रहा है।

क्यों एशिया पहले से अधिक महत्वपूर्ण है?

  • आर्थिक शक्ति केंद्र : एशिया विश्व की सबसे तीव्रता से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, जिनमें चीन, भारत, दक्षिण कोरिया और आसियान देश शामिल हैं।
    • यह वैश्विक GDP वृद्धि में 60% से अधिक योगदान देता है, जिससे यह व्यापार, निवेश और नवाचार का केंद्र बन गया है।
  • साझा सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध : भारत के दक्षिण-पूर्व और पूर्व एशिया के साथ सभ्यतागत संबंध विश्वास एवं सहयोग की नींव प्रदान करते हैं, जो पश्चिमी गठबंधनों में प्रायः नहीं मिलते।
  • क्षेत्रीय स्थिरता और बहुध्रुवीयता : एक सुदृढ़ एशियाई ब्लॉक पश्चिमी प्रभुत्व का संतुलन कर सकता है और अधिक न्यायसंगत वैश्विक शासन संरचना को बढ़ावा दे सकता है।
    •  BRICS, SCO और ASEAN जैसे ढाँचे तेजी से परस्पर जुड़े हुए हैं।

एशिया की रणनीतिक केंद्रीयता और महत्वपूर्ण भूमिका 

  • तियानजिन SCO शिखर सम्मेलन (2025) एशिया की बढ़ती एकता का प्रतीक था, जहाँ रूस, भारत और चीन के राष्ट्राध्यक्ष एक साथ आए — यह क्षण G7 बैठकों में देखी जाने वाली एकजुटता के तुल्य था।
  • ‘G2’ शिखर सम्मेलन (बुसान) में अमेरिका और चीन की बैठक ने इस गहरी वैश्विक समझ को दर्शाया कि शक्ति का केंद्र एशिया में स्थानांतरित हो गया है।
  • अमेरिकी विदेश मंत्री ने स्वीकार किया कि “21वीं सदी की कहानी एशिया में लिखी जाएगी।”

एशियाई व्यवस्था में भारत की भूमिका

  • ऐतिहासिक रूप से, भारत की विदेश नीति पश्चिम की ओर झुकी रही है, विशेषकर शीत युद्ध के बाद के दौर में।
    • अमेरिका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया के साथ रणनीतिक साझेदारियों ने रक्षा सहयोग एवं आर्थिक लाभ प्रदान किए।
    • पश्चिम एशिया में भारत के बड़े हित हैं — 90 लाख से अधिक भारतीय प्रवासी और खाड़ी देशों से $30 अरब की प्रेषण राशि।
  • इससे भारत एशिया में अवसरों से वंचित रहा, जहाँ RCEP और ASEAN-नेतृत्व वाली पहलों में भारत की पूर्ण भागीदारी नहीं रही।
  • वर्तमान में भारत चीन, अमेरिका और रूस के साथ जटिल संबंधों को संतुलित कर रहा है ताकि बड़ी शक्तियों के बीच रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखी जा सके, साथ ही SCO एवं QUAD जैसे बहुपक्षीय मंचों में भागीदारी भी कर रहा है।
  • भारत का चुनाव अमेरिका और चीन के बीच नहीं है, बल्कि एकीकृत एशियाई भविष्य की ओर है।
    • एशिया का सहयोग पश्चिमी औपनिवेशिक या नियम-आधारित व्यवस्था से अलग है — यह साझा आपूर्ति श्रृंखलाओं और पारस्परिक हितों पर आधारित है।

भारत के लिए चिंताएँ और चुनौतियाँ 

  • रणनीतिक मोड़ : चीन और रूस के साथ भारत के सुधरते संबंध क्षेत्रीय पुनर्संतुलन को दर्शाते हैं, जबकि अमेरिकी एकतरफ़ावाद बहुपक्षीय स्थान को कम कर रहा है।
    • अमेरिका की अप्रकट चिंता — “एक और चीन को रोकना” — यह दर्शाती है कि भारत को चीन के साथ “विश्वास करो लेकिन सत्यापित करो” कूटनीति अपनानी चाहिए, विशेषकर सीमा वार्ताओं के दौरान जो कश्मीर की भू-राजनीति को पुनर्परिभाषित कर सकती हैं।
  • खंडित क्षेत्रीय फोकस : पश्चिम एशिया में भारत की ‘रणनीतिक चुप्पी’, जबकि यह क्षेत्र अत्यंत महत्वपूर्ण है — 90 लाख भारतीय श्रमिकों का घर और भारत के तेल का 40% आपूर्ति करता है — भारत की विश्वसनीयता को कमजोर करता है।
  • पड़ोस की गतिशीलता : CPEC से चीन की वापसी, पाकिस्तान का ADB ऋणों पर नया निर्भर होना, और बगराम बेस पर अमेरिका की महत्वाकांक्षाएँ एक अस्थिर पड़ोस को दर्शाती हैं।
    • चाबहार बंदरगाह पर अमेरिकी प्रतिबंधों से भारत को मिली छह महीने की छूट ईरान, अफगानिस्तान, मध्य एशिया और रूस तक रणनीतिक पहुँच खोलती है।
    • यह समय रक्षा आवंटनों पर राष्ट्रीय परिचर्चा का है, जिसमें आयातित प्लेटफॉर्मों के बजाय नवाचार-आधारित क्षमता पर जोर दिया जाना चाहिए।

आगे की राह: रणनीतिक स्वायत्तता पर भारत का दावा

  • रणनीतिक स्वायत्तता को पुनः स्थापित करना: भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को अपनी दोहरी वैश्विक भूमिकाओं को पहचानना चाहिए — एक तीव्रता से बढ़ती अर्थव्यवस्था और ग्लोबल साउथ का प्रतिनिधि।
    • सतत विकास, तकनीक और मूल्य-श्रृंखला एकीकरण में इसकी प्राथमिकताएँ भारत की विशिष्ट यात्रा को दर्शानी चाहिए, न कि आयातित ढाँचों को।
    • भारत की विशिष्टता उच्च विकास और विकास प्राथमिकताओं को संतुलित करने में है। संयुक्त राष्ट्र में इसके SDGs ग्लोबल साउथ के साथ अधिक मेल खाते हैं।
  • नए वैश्विक नियमों को अपनाना : परस्पर जुड़ी डिजिटल अर्थव्यवस्था अब तकनीकी क्षमता, आर्थिक वृद्धि और सैन्य शक्ति को परिभाषित करती है। भारत को चाहिए कि वह:
    • राष्ट्रीय डेटा संप्रभुता की रक्षा करे;
    • स्वदेशी तकनीकी नवाचार को तीव्र करे;
    • स्थानीय रक्षा निर्माण को सुदृढ़ करे;
    • समावेशी आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा दे।
  • साइबर युद्ध नई सीमा के रूप में : 21वीं सदी की सुरक्षा भूमि-आधारित अभियानों से नहीं, बल्कि साइबर युद्ध से तय होगी।
    • भारत की AI, डिजिटल रक्षा और साइबर क्षमता में बढ़त राष्ट्रीय सुरक्षा का मुख्य स्तंभ बननी चाहिए।
  • AI संप्रभुता : कृत्रिम बुद्धिमत्ता भारत के आर्थिक और रणनीतिक भविष्य को परिभाषित करेगी। संसदीय स्थायी समिति ने सही रूप से सॉवरेन AI क्षमता बनाने के लिए 20 गुना अधिक वित्त पोषण की सिफारिश की है। इसमें शामिल हैं:
    • राष्ट्रीय रणनीतिक AI सहयोग;
    • उच्च-स्तरीय कम्प्यूटेशनल अवसंरचना;
    • स्वामित्व वाले AI मॉडल का विकास;
    • प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा संचालित प्रतिभा पाइपलाइन।
  • वैश्विक नियमों को पुनर्परिभाषित करना : तकनीकी परस्पर निर्भरता 21वीं सदी में शक्ति को संचालित करती है।
    • इसका अर्थ है कि भारत के लिए राष्ट्रीय डेटा, स्थानीय नवाचार, रक्षा उत्पादन और समावेशी वृद्धि पर कोई समझौता नहीं। 
    • भारत AI संप्रभुता के साथ 2047 तक दो अंकों की समावेशी वृद्धि और वैश्विक शक्ति का दर्जा सुनिश्चित कर सकता है।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
[प्रश्न] एशिया की ओर भारत के रणनीतिक परिवर्तन के पीछे के कारण की जांच करें। यह परिवर्तन किन तरीकों से क्षेत्रीय और वैश्विक भू-राजनीति में भारत की भूमिका को पुनः तय कर सकता है?

Source: TH

 

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