पाठ्यक्रम: GS3/कृषि
संदर्भ
- भारत में मत्स्य पालन और जलीय कृषि, आजीविका, पोषण एवं व्यापार के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, लेकिन यह क्षेत्र अत्यधिक मछली पकड़ने, प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन तथा संसाधनों तक असमान पहुँच जैसी चुनौतियों का सामना कर रहा है।
भारत में जलीय कृषि और मत्स्य पालन
- जलीय कृषि का अर्थ है नियंत्रित वातावरण में जलीय जीवों — जैसे मछली, क्रस्टेशियन, मोलस्क और जलीय पौधों — का प्रजनन, पालन-पोषण एवं’ कटाई।
- यह कैप्चर फिशरीज (प्राकृतिक मत्स्य पालन) को पूरक करती है और प्रोटीन-समृद्ध भोजन की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए आवश्यक है।
- राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड (NFDB) के अनुसार:
- भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा जलीय कृषि उत्पादक है और वैश्विक मछली आपूर्ति में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
- यह क्षेत्र भारत के सकल मूल्य वर्धन (GVA) में 1.24% और कृषि GVA में 7.28% का योगदान करता है।
- भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश है, जिसका वैश्विक उत्पादन में लगभग 8% हिस्सा है।
- FAO की स्टेट ऑफ वर्ल्ड फिशरीज एंड एक्वाकल्चर (SOFIA) 2024 रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में वैश्विक कैप्चर फिशरीज 92.3 मिलियन टन तक पहुँची, जबकि जलीय कृषि 130.9 मिलियन टन के रिकॉर्ड स्तर पर रही, जिसकी कीमत 313 बिलियन डॉलर आँकी गई। भारत ने 10.23 मिलियन टन का योगदान दिया।
- भारत में मछली उत्पादन पिछले दशक में दोगुने से अधिक हो गया है — 2013–14 में 96 लाख टन से बढ़कर 2024–25 में 195 लाख टन, यानी 104% की वृद्धि।
- यह क्षेत्र देशभर में 3 करोड़ से अधिक मछुआरों और मत्स्य किसानों की आजीविका का समर्थन करता है।
- अगस्त 2025 तक 26 लाख से अधिक हितधारक राष्ट्रीय मत्स्य डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म (NFDP) पर पंजीकृत हैं।
भारत के प्रमुख जलीय कृषि और मत्स्य क्षेत्र
- समुद्री मत्स्य क्षेत्र: भारत का 11,098.81 किमी लंबा समुद्री तट है, जो मत्स्य पालन और जलीय कृषि का समर्थन करता है।
- पश्चिमी तट (अरब सागर): गुजरात से केरल तक, जिसमें महाराष्ट्र, गोवा और कर्नाटक शामिल हैं।
- पूर्वी तट (बंगाल की खाड़ी): पश्चिम बंगाल से तमिलनाडु तक, जिसमें आंध्र प्रदेश और ओडिशा शामिल हैं।
- अंतर्देशीय मत्स्य क्षेत्र: नदियाँ, जलाशय, तालाब, टैंक और आर्द्रभूमि।
- पूर्वी भारत: पश्चिम बंगाल, बिहार और असम।
- दक्षिण भारत: आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और तेलंगाना।
- मध्य और उत्तर भारत: छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश।
- लवणीय जल की जलीय कृषि क्षेत्र: विशेषकर झींगा पालन।
- आंध्र प्रदेश (भारत के झींगा उत्पादन का 60% से अधिक), तमिलनाडु, ओडिशा और पश्चिम बंगाल (सुंदरबन में पारंपरिक भेरी प्रणाली)।
क्षेत्र की प्रमुख चिंताएँ
- पर्यावरणीय दबाव: अत्यधिक मछली पकड़ना, आवास का क्षरण और जल प्रदूषण जलीय पारिस्थितिक तंत्र को प्रभावित कर रहे हैं।
- कश्मीर की वुलर झील में: स्नो ट्राउट की सामूहिक मृत्यु अवैध विद्युत-झटके वाली मछली पकड़ने की प्रथाओं से जुड़ी है।
- जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: बढ़ते तापमान और अनियमित वर्षा पैटर्न प्रजनन चक्र एवं जल गुणवत्ता को प्रभावित कर रहे हैं।
- नियामक और शासन संबंधी चुनौतियाँ: गहरे समुद्र में मछली पकड़ने के नए नियमों के बावजूद प्रवर्तन कमजोर है।
- खाद्य सुरक्षा और ट्रेसबिलिटी: MPEDA ने वैश्विक बाज़ारों में विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए प्रमाणन और ट्रेसबिलिटी की आवश्यकता पर बल दिया है।
- सामाजिक-आर्थिक कमजोरियाँ: छोटे पैमाने के मछुआरों को प्रायः ऋण, बीमा और बुनियादी ढाँचे तक पहुँच नहीं होती।
संबंधित प्रयास और पहल
- संस्थागत और नीतिगत चालक: ICAR, MPEDA, NFDB और CAA जैसी राष्ट्रीय एजेंसियों ने नवाचार एवं स्थिरता को बढ़ावा दिया।
- निजी क्षेत्र निवेश: हैचरियों, फ़ीड उत्पादन और निर्यात-उन्मुख मूल्य संवर्धन को सुदृढ़ किया।
- सरकारी पहल: ब्लू रिवोल्यूशन और प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) ने अंतर्देशीय और तटीय जलीय कृषि को तीव्र किया।
मुख्य सुधार:
- मछुआरों की सुरक्षा और समुद्री निगरानी के लिए जहाज़ ट्रांसपोंडर।
- किसान क्रेडिट कार्ड का समावेश।
- मत्स्य सेवा केंद्र।
- जलवायु-लचीले तटीय मछुआरा गाँव कार्यक्रम।
- राष्ट्रीय मत्स्य नीति (2020 का मसौदा)।
अन्य महत्वपूर्ण पहल
- PMMSY: इसमें FFPOs, FIDF, मत्स्य किसान समृद्धि सह-योजना, एकीकृत एक्वा पार्क, कृत्रिम रीफ, NBCs शामिल हैं।
- तकनीकी प्रगति:
- सैटेलाइट तकनीक का एकीकरण (Oceansat, PFZ)।
- GIS आधारित संसाधन मानचित्रण।
भारत के सतत मत्स्य प्रयास
- राष्ट्रीय समुद्री मत्स्य नीति (NPMF, 2017): स्थिरता को मुख्य सिद्धांत बनाया।
- संरक्षण उपाय:
- मानसून में 61-दिन का समान मछली पकड़ने पर प्रतिबंध।
- विनाशकारी तरीकों पर रोक (पेयर ट्रॉलिंग, बुल ट्रॉलिंग, LED लाइट्स)।
- सतत प्रथाओं को बढ़ावा (सी रैंचिंग, कृत्रिम रीफ, समुद्री शैवाल की खेती)।
- राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों के नियम: गियर-मेश आकार, इंजन शक्ति, न्यूनतम कानूनी आकार (MLS) और क्षेत्रीय विभाजन।
FAO की भारत के साथ दीर्घकालिक साझेदारी
- बे ऑफ बंगाल प्रोग्राम (BOBP): छोटे पैमाने की तकनीकें, समुद्री सुरक्षा और पोस्ट-हार्वेस्ट प्रथाएँ।
- BOBLME प्रोजेक्ट: EAFM, संकटग्रस्त प्रजातियों का संरक्षण और IUU फिशिंग में कमी।
- GEF-वित्त पोषित परियोजना (आंध्र प्रदेश): जलवायु-लचीली, कम-कार्बन जलीय कृषि।
- TCP: मत्स्य बंदरगाहों का आधुनिकीकरण और स्थिरता।
- FAO का आह्वान (2025): इंडिया ब्लू ट्रांसफॉर्मेशन(India’s Blue Transformation) पर नए संकल्प की आवश्यकता।
आगे की राह: स्थिरता और समावेशिता पर ध्यान
- भारत का मत्स्य और जलीय कृषि क्षेत्र निरंतर वृद्धि के लिए तैयार है — लेकिन स्थिरता अनिवार्य है। भारत को चाहिए:
- विज्ञान-आधारित स्टॉक आकलन द्वारा मछली पकड़ने को नियंत्रित करना।
- निगरानी, नियंत्रण और पर्यवेक्षण (MCS) प्रणाली को सुदृढ़ करना।
- पारिस्थितिकी-आधारित दृष्टिकोण और सतत जलीय कृषि दिशानिर्देशों को बढ़ावा देना।
- ट्रेसबिलिटी, प्रमाणन और डिजिटल निगरानी उपकरणों को बढ़ाना।
- छोटे पैमाने के मछुआरों और किसानों के लिए समावेशिता सुनिश्चित करना।
- ब्लू रिवोल्यूशन 2.0:
- स्थिरता: जिम्मेदार मछली पकड़ने, आवास संरक्षण और जलवायु लचीलापन पर जोर।
- समावेशिता: महिलाओं और छोटे पैमाने के मछुआरों को प्रशिक्षण एवं बाज़ार तक पहुँच के माध्यम से सशक्त बनाना।
- विविधीकरण: समुद्री कृषि, सजावटी मछली पालन और झींगा व टूना जैसी उच्च-मूल्य प्रजातियों में विस्तार।
| दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न [Q] भारत में सस्टेनेबल फिशरीज़ और एक्वाकल्चर को पाने के लिए आवश्यक मुख्य चुनौतियों और पॉलिसी में दखल पर चर्चा करें। भारत इस सेक्टर में इकोलॉजिकल कंज़र्वेशन एवं इकोनॉमिक ग्रोथ के बीच सामंजस्य कैसे स्थापित कर सकता है? |
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