प्रदूषित भूजल की अदृश्य लागत

पाठ्यक्रम: GS3/प्राकृतिक संसाधन

संदर्भ

  • प्रदूषित भूजल भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य, कृषि और आर्थिक स्थिरता के लिए विनाशकारी खतरा पैदा करता है।

भारत के भूजल की स्थिति 

  • वार्षिक भूजल गुणवत्ता रिपोर्ट (2024) के अनुसार, भारत की 600 मिलियन जनसंख्या पीने और कृषि के लिए भूजल पर निर्भर है।
    • ग्रामीण क्षेत्रों में 85% पेयजल और 65% सिंचाई का जल भूमिगत स्रोतों से आता है। 
  • विश्व बैंक का अनुमान है कि पर्यावरणीय क्षरण भारत को वार्षिक 80 अरब डॉलर की हानि पहुंचाता है, जो GDP का लगभग 6% है।
  • प्रदूषण का दायरा : केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) की 2024 वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार:
    • 440 जिलों में से 20% नमूनों में नाइट्रेट प्रदूषण पाया गया, मुख्यतः उर्वरक के दुरुपयोग और सेप्टिक टैंक रिसाव के कारण।
    • 9% नमूनों में अत्यधिक फ्लोराइड पाया गया, जिससे राजस्थान, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में अस्थि और दंत फ्लोरोसिस हुआ।
    • पंजाब और बिहार में आर्सेनिक की सांद्रता WHO की 10 µg/L सीमा से अधिक रही, जिससे कैंसर का खतरा बढ़ा।
    • पंजाब, राजस्थान और आंध्र प्रदेश में 100 ppb से अधिक यूरेनियम स्तर दर्ज किए गए।
    • 13% नमूनों में अत्यधिक लौह (Iron) पाया गया, जो जठरांत्र और विकास संबंधी विकारों से जुड़ा है।

प्रदूषित भूजल के प्रभाव

  • कृषि और संबंधित गतिविधियों पर प्रभाव:
    • देश की लगभग एक-तिहाई भूमि मृदा के क्षरण से प्रभावित है, जिसे प्रदूषित सिंचाई जल में वृद्धि होती है।
    • भारी धातुएं और रासायनिक अवशेष फसलों में प्रवेश कर उत्पादन और आय घटाते हैं।
    • आर्थिक प्रभाव चिंताजनक हैं:
      • प्रदूषित जल स्रोतों के पास स्थित खेतों में उत्पादकता में भारी गिरावट दर्ज की गई।
      • 2017 में 359 जिलों की तुलना में 2023 में 440 जिलों में अत्यधिक नाइट्रेट स्तर पाए गए—यह वृद्धि सब्सिडी वाले उर्वरकों के उपयोग से जुड़ी है।
      • प्रदूषित उत्पाद भारत के 50 अरब डॉलर के कृषि निर्यात क्षेत्र को खतरे में डालते हैं।
      • प्रदूषण के कारण निर्यात अस्वीकृति ने पहले ही भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा को हानि पहुंचाया है।
  • स्वास्थ्य पर प्रभाव (Health Impacts):
    • फ्लोराइड और फ्लोरोसिस: 20 राज्यों के 230 जिलों में फ्लोराइड प्रदूषण से 6.6 करोड़ लोग प्रभावित।
      • सोनभद्र (UP) में 52.3% प्रचलन दर दर्ज हुई, जो WHO की 1.5 mg/L सीमा से कहीं अधिक है।
    • आर्सेनिक और कैंसर: गंगा क्षेत्र (WB, बिहार, UP, झारखंड, असम) सबसे अधिक प्रभावित।
      • बलिया (UP) में आर्सेनिक स्तर 200 µg/L तक पहुंचा, 10,000+ कैंसर मामलों से जुड़ा।
      • बिहार के बागपत में 40 mg/L दर्ज हुआ, जो सुरक्षित सीमा से 4,000 गुना अधिक है।
    • नाइट्रेट और शिशु स्वास्थ्य: भारत के 56% जिलों में सुरक्षित नाइट्रेट स्तर से अधिक।
      • ऐसे जल से शिशु फार्मूला बनाने पर ‘ब्लू बेबी सिंड्रोम’ होता है, अस्पताल में भर्ती होने के मामलों में 28% वृद्धि।
    • यूरेनियम और अंग क्षति: पंजाब के मालवा क्षेत्र में WHO की 30 µg/L सीमा से अधिक स्तर।
      • अध्ययन बताते हैं कि 66% बच्चे और 44% वयस्क जोखिम में हैं, जिनमें पुरानी गुर्दे की क्षति शामिल है।
    • भारी धातुएं और सीवेज: कानपुर और वापी जैसे औद्योगिक क्षेत्रों में सीसा, पारा और क्रोमियम आम हैं।
      • प्रदूषित कुओं से हैजा, पेचिश और हेपेटाइटिस के प्रकोप हुए।
  • सामाजिक असमानता को बढ़ावा:
    • अमीर परिवार तकनीक एवं स्वच्छ जल स्रोतों से बचाव कर लेते हैं, जबकि ग्रामीण गरीब प्रदूषण और बीमारी के चक्र में फंसे रहते हैं।
    • विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आने वाले बच्चों की सीखने की क्षमता प्रभावित होती है, जिससे भविष्य की संभावनाएं सीमित होती हैं और पीढ़ी-दर-पीढ़ी गरीबी बनी रहती है।

भूजल संकट क्यों बना रहता है ?

  • संस्थागत विखंडन: CGWB, CPCB, SPCBs, जल शक्ति मंत्रालय जैसी कई एजेंसियां अलग-अलग कार्य करती हैं।
  • कमजोर प्रवर्तन: जल अधिनियम (1974) भूजल को मुश्किल से कवर करता है, जिससे कानूनी खामियां रह जाती हैं।
  • पारदर्शिता और निगरानी की कमी: वास्तविक समय का सार्वजनिक डेटा उपलब्ध नहीं।
  • अत्यधिक दोहन और प्रदूषण का संकेंद्रण: भूजल का अत्यधिक पंपिंग प्रदूषकों को केंद्रित करता है और आर्सेनिक व फ्लोराइड जैसे भू-जनित विषाक्त पदार्थों को सक्रिय करता है।

गुणवत्ता सुधार के प्रयास और पहल 

  • भूजल पुनर्भरण संरचनाएं: रिचार्ज शाफ्ट, गड्ढे, परकुलेशन तालाब और इंजेक्शन कुएं।
  • अटल भूजल योजना (Atal Jal): ग्राम पंचायत स्तर पर जल बजटिंग और सुरक्षा योजनाएं।
  • तकनीकी और संस्थागत नवाचार: स्मार्ट तकनीक, भूजल अधिकारों का संस्थानीकरण।
  • जागरूकता अभियान: ‘Reduce, Reuse, Recharge, and Recycle’ का प्रचार।
  • अन्य पहलें:
    • भूजल आकलन और प्रबंधन पहल
    • मनरेगा (MGNREGS)
    • 15वीं वित्त आयोग अनुदान
    • जल शक्ति अभियान:कैच द रेन( Catch the Rain)2024
    • अमृत 2.0
    • BWUE (2022)
    • मिशन अमृत सरोवर (2022)
    • राष्ट्रीय एक्वीफर मैपिंग (NAQUIM)

आगे की राह: संकट से कार्रवाई तक

  • राष्ट्रीय भूजल प्रदूषण नियंत्रण ढांचा स्थापित करना।
  • वास्तविक समय निगरानी अवसंरचना का आधुनिकीकरण।
  • लक्षित उपचार और स्वास्थ्य हस्तक्षेप।
  • शहरी और औद्योगिक अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार।
  • सतत कृषि को बढ़ावा देना।
  • नागरिक-केंद्रित शासन को सक्षम करना।
  • निर्यात प्रतिष्ठा की रक्षा करना।

निष्कर्ष 

  • भूजल प्रदूषण कोई हाशिए का मुद्दा नहीं है—यह भारत की अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य और भविष्य पर मौन भार है। जल की कमी के विपरीत, प्रदूषण अक्सर अपरिवर्तनीय होता है। केवल साहसिक और समन्वित कार्रवाई ही इस पर्यावरणीय संकट को अपरिवर्तनीय राष्ट्रीय आपदा बनने से रोक सकती है।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
[प्रश्न] भारत में पब्लिक हेल्थ, खेती और अर्थव्यवस्था पर प्रदूषित भूजल के कई तरह के प्रभाव पर चर्चा करें। कौन से पॉलिसी उपाय उन्हें कम कर सकते हैं?

Source: TH

 

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