एआई डेटा केंद्रों की बढ़ती ऊर्जा मांग

पाठ्यक्रम: GS3/विज्ञान और प्रौद्योगिकी

संदर्भ

  • भारत, एआई-आधारित और डेटा-गहन डेटा केंद्रों से उत्पन्न हो रही विद्युत की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर्स (SMRs) के उपयोग की संभावनाओं का पता लगा रहा है।

डेटा केंद्रों से बढ़ती बिजली की मांग 

  • भारत में डेटा केंद्रों की मांग को डिजिटल इंडिया अभियान, डेटा स्थानीयकरण नीतियों, इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की बढ़ती संख्या और 5G के विस्तार से प्रेरित किया जा रहा है, जिससे IoT एवं AI जैसी डेटा-गहन तकनीकों को अपनाने में तीव्रता आएगी। 
  • वैश्विक स्तर पर डेटा केंद्रों को आपूर्ति की जाने वाली विद्युत 2024 में लगभग 460 TWh से बढ़कर 2030 तक 1,000 TWh और 2035 तक लगभग 1,300 TWh तक पहुँचने की संभावना है। 
  • डेटा केंद्रों की विद्युत खपत: एआई वर्कलोड्स में बड़ी संख्या में ग्राफिक प्रोसेसिंग यूनिट्स (GPUs) का उपयोग होता है, जिनके प्रत्येक रैक की खपत 80–150 किलोवाट होती है, जबकि पारंपरिक एंटरप्राइज़ सर्वरों की खपत 15–20 किलोवाट होती है।
    • यह कम्प्यूटेशनल तीव्रता विद्युत की असीम मांग में वृद्धि करती है, जिससे एआई डेटा केंद्र क्षेत्र में ऊर्जा खपत में वृद्धि का सबसे बड़ा कारक बन गया है। 
  • इस बढ़ती मांग के कारण गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी प्रमुख टेक कंपनियाँ विश्वसनीय एवं कार्बन-मुक्त ऊर्जा के लिए परमाणु ऊर्जा समाधानों की ओर रुख कर रही हैं।

स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर्स (SMRs) की आवश्यकता 

  • एआई-आधारित डेटा केंद्रों को अपनी तीव्रता से बढ़ती ऊर्जा मांग को पूरा करने के लिए सतत और स्वच्छ ऊर्जा समाधानों की आवश्यकता है। 
  • हालाँकि नवीकरणीय ऊर्जा कंपनियों की प्रथम पसंद रही है, लेकिन इसमें अनियमितता और अपर्याप्त भंडारण जैसी अंतर्निहित चुनौतियाँ हैं। ऐसे में परमाणु ऊर्जा एक व्यवहार्य समाधान प्रदान करती है क्योंकि यह स्वच्छ और चौबीसों घंटे विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित करती है।
    • SMRs को प्राथमिकता दी जाती है क्योंकि ये लचीलापन और स्केलेबिलिटी के माध्यम से बेहतर सुरक्षा प्रदान करते हैं, क्षमता में क्रमिक वृद्धि की सुविधा देते हैं, दूरस्थ या ऑफ-ग्रिड अनुप्रयोगों के लिए अनुकूल होते हैं, और पूर्वनिर्माण के माध्यम से लागत प्रभावी निर्माण संभव बनाते हैं।
स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर्स (SMRs) क्या हैं? 
– स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर्स (SMRs) उन्नत परमाणु रिएक्टर हैं जिनकी प्रति यूनिट विद्युत उत्पादन क्षमता 300 मेगावाट (MW(e)) तक होती है, जो पारंपरिक परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की क्षमता का लगभग एक-तिहाई है।
स्मॉल: पारंपरिक परमाणु रिएक्टर की तुलना में आकार में बहुत छोटा।
मॉड्यूलर: सिस्टम और घटकों को फैक्ट्री में असेंबल कर एक इकाई के रूप में साइट पर ले जाकर स्थापित किया जा सकता है।
रिएक्टर्स: परमाणु विखंडन की प्रक्रिया से ऊर्जा उत्पादन के लिए ऊष्मा उत्पन्न करते हैं। 
– SMRs के चार मुख्य प्रकार हैं: लाइट वॉटर, हाई टेम्परेचर गैस, लिक्विड मेटल, और मोल्टन सॉल्ट।
– वर्तमान में केवल दो SMR परियोजनाएँ ही विश्व स्तर पर चालू हुई हैं:रूस की अकादेमिक लोमोनोसोव फ्लोटिंग पावर यूनिट, जिसमें दो 35 MWe मॉड्यूल हैं और जो 2020 से व्यावसायिक उपयोग में है।
– चीन की HTR-PM डेमो परियोजना, जिसे 2021 में ग्रिड से जोड़ा गया और 2023 में पूर्ण व्यावसायिक संचालन शुरू हुआ।

चिंताएँ क्या हैं?

  • नियामक चुनौतियाँ: वर्तमान परमाणु नियामक ढांचा मुख्य रूप से बड़े रिएक्टरों के लिए डिज़ाइन किया गया है।
    • SMRs का उपयोग परमाणु हथियारों के लिए सामग्री उत्पादन और सैन्य स्थलों के साथ सह-स्थापना की संभावना अप्रसार (non-proliferation) संबंधी चिंताएँ उत्पन्न करती है।
  • कानूनी अड़चनें: भारत का “परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व अधिनियम, 2010” ऑपरेटर की जिम्मेदारी को उपकरण आपूर्तिकर्ताओं पर डालता है, जिससे वित्तीय जोखिम के कारण विदेशी निवेशक हतोत्साहित होते हैं।
  • उच्च प्रारंभिक लागत: यद्यपि SMRs को दीर्घकालिक रूप से अधिक लागत प्रभावी माना जाता है, लेकिन प्रारंभिक पूंजी निवेश काफी अधिक होता है।
  • अपशिष्ट प्रबंधन: परमाणु अपशिष्ट को संभालना और उसका निपटान एक महत्वपूर्ण चुनौती बना हुआ है।
  • आपूर्ति श्रृंखला और निर्माण: SMRs के घटकों के लिए एक सुदृढ़ आपूर्ति श्रृंखला विकसित करना और गुणवत्ता निर्माण प्रक्रियाएँ सुनिश्चित करना उनकी सफलता के लिए अत्यंत आवश्यक है।

वैश्विक SMR नियामक सुधार 

  • इन चुनौतियों से निपटने के लिए, विश्व भर के देश SMR विनियमों में छह प्रमुख तरीकों से सुधार कर रहे हैं:
    • बड़े रिएक्टर-विशिष्ट नियमों के स्थान पर तकनीक-तटस्थ ढांचे;
    • फ्लीट अनुमोदन और संयुक्त निर्माण-संचालन लाइसेंस सहित सरलीकृत लाइसेंसिंग;
    • फैक्ट्री निर्माण प्रमाणन के साथ मॉड्यूलर निर्माण की सुविधा;
    • अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) मानकों और डिज़ाइन की पारस्परिक मान्यता के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय सामंजस्य;
    • छोटे संयंत्रों के जोखिम के अनुपात में आपातकालीन योजना क्षेत्रों और स्टाफिंग को समायोजित करने वाली जोखिम-आधारित आवश्यकताएँ;
    • अनुवर्ती इकाइयों के लिए त्वरित तैनाती मार्ग।

भारत की SMRs की दिशा में पहल 

  • मुंबई स्थित भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (BARC) में SMRs पर अनुसंधान और विकास जारी है। 
  • इस पहल के अंतर्गत”भारत स्मॉल रिएक्टर (BSR)” एक प्रमुख परियोजना है, जिसका उद्देश्य मौजूदा रिएक्टरों को पुनः डिज़ाइन कर अतिरिक्त सुरक्षा विशेषताओं को शामिल करना और उनकी दक्षता बढ़ाना है। 
  • भारत ने SMRs के विकास के लिए ₹20,000 करोड़ का अनुसंधान एवं विकास मिशन घोषित किया है। 
  • भारत का लक्ष्य 2033 तक कम से कम पाँच स्वदेशी रूप से विकसित रिएक्टरों की तैनाती करना है। 
  • भारत और फ्रांस ने SMRs और उन्नत मॉड्यूलर रिएक्टर्स (AMRs) पर केंद्रित एक सहयोग कार्यक्रम शुरू किया है।

आगे की राह 

  • डेटा केंद्र भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था और एआई भविष्य के केंद्र में हैं, लेकिन उनकी ऊर्जा तीव्रता एक स्थिरता संकट उत्पन्न करती है। 
  • SMRs एक रणनीतिक अवसर प्रस्तुत करते हैं: विश्वसनीय, हरित ऊर्जा सुनिश्चित करना, साथ ही घरेलू परमाणु निर्माण और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना। 
  • हालाँकि, इस दृष्टिकोण को वास्तविकता में बदलने के लिए विधायी सुधार, दायित्व संबंधी चिंताओं का समाधान, और सुरक्षा व जन विश्वास सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक होगा।

Source: TH

 

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