पाठ्यक्रम: GS3/अर्थव्यवस्था
संदर्भ
- वाणिज्य और उद्योग मंत्री ने कहा है कि अब से 20–25 वर्षों में भारत 30 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएगा।
परिचय
- GDP: किसी अर्थव्यवस्था का आकार उसके वार्षिक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) से निर्धारित होता है।
- GDP उस देश में उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं के कुल बाजार मूल्य को दर्शाता है।
- वित्त वर्ष 2024 में भारत का GDP 3.9 ट्रिलियन डॉलर था।
- GDP की गणना: वैश्विक संदर्भ में किसी देश का GDP अमेरिकी डॉलर में दर्शाया जाता है ताकि सभी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना आसानी से की जा सके।
- यह GDP नाममात्र GDP होता है — वास्तविक GDP नहीं, जिसमें मुद्रास्फीति के प्रभाव को हटाया जाता है।
- GDP का अनुमान लगाने के लिए दो चीजों की आवश्यकता होती है: भारत के नाममात्र GDP का अनुमान (रुपये में) और रुपये-डॉलर विनिमय दर का अनुमान।
- दोनों महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यदि 2024 में विनिमय दर ₹65 प्रति डॉलर होती (जैसे 2014 में थी), तो भारत का ₹330 ट्रिलियन GDP $5 ट्रिलियन होता।
- लेकिन ₹84 प्रति डॉलर की दर पर यह केवल $3.9 ट्रिलियन बनता है।
अनुमानित वृद्धि
- आंकड़े बताते हैं कि वित्त वर्ष 2000 से भारत के नाममात्र GDP ने 11.9% की वार्षिक चक्रवृद्धि दर (CAGR) दर्ज की है।
- इसके अतिरिक्त, भारतीय रुपया 2000 से डॉलर के मुकाबले 2.7% की CAGR से अवमूल्यित हुआ है।
- इसलिए, यदि यह मान लिया जाए कि भारत की वृद्धि दर और रुपये का अवमूल्यन आगामी 25 वर्षों तक इसी तरह जारी रहेगा, तो भारत का GDP 2048 तक $30 ट्रिलियन को पार कर जाएगा।

चुनौतियाँ
- वृद्धि की धीमी गति: नाममात्र GDP वृद्धि 11.9% (2000–2014) से घटकर 10.3% (2014–2024) हो गई है, जो आर्थिक गति में कमी को दर्शाती है।
- रुपये का अवमूल्यन: तीव्रअवमूल्यन (2014 से 3.08% CAGR) डॉलर में भारत के GDP मूल्य को घटाता है, भले ही रुपये में GDP स्थिर रूप से बढ़े।
- निर्यात प्रतिस्पर्धा: सीमित विविधता और कुछ क्षेत्रों पर निर्भरता भारत की निर्यात-आधारित वृद्धि को बनाए रखने की क्षमता को कम करती है।
- बुनियादी ढांचे की कमी: लॉजिस्टिक्स, विद्युत और शहरी बुनियादी ढांचे की खामियाँ लागत बढ़ाती हैं और औद्योगिक विस्तार को सीमित करती हैं।
- मानव संसाधन की चुनौतियाँ: कौशल की असंगति, महिला श्रम भागीदारी की कमी, और स्वास्थ्य व शिक्षा में कम निवेश श्रम उत्पादकता को घटाते हैं।
- राजकोषीय और वित्तीय दबाव: उच्च राजकोषीय घाटा और बढ़ता कर्ज सार्वजनिक निवेश की क्षमता को सीमित करता है।
- वैश्विक आर्थिक बाधाएँ: भू-राजनीतिक तनाव, आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान, और संरक्षणवादी प्रवृत्तियाँ व्यापार एवं पूंजी प्रवाह को प्रभावित कर सकती हैं।
सरकारी पहलें
- मेक इन इंडिया (2014): घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देता है और GDP में विनिर्माण का हिस्सा 25% तक लाने का लक्ष्य रखता है।
- उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजनाएँ: 14 क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर विनिर्माण को प्रोत्साहित करती हैं ताकि निर्यात और रोजगार सृजन बढ़े।
- राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा कार्यक्रम: आधुनिक औद्योगिक बुनियादी ढांचे और संपर्कता का विकास करता है।
- पीएम गति शक्ति (2021): एक राष्ट्रीय मास्टर प्लान है जो सड़कों, रेलवे, बंदरगाहों और लॉजिस्टिक्स को एकीकृत करता है।
- भारतमाला और सागरमाला: सड़क और बंदरगाह संपर्कता को बेहतर बनाकर लॉजिस्टिक्स लागत को कम करते हैं।
- स्किल इंडिया मिशन: व्यावसायिक प्रशिक्षण के माध्यम से कार्यबल की क्षमताओं को बढ़ाता है।
- स्टार्ट-अप इंडिया और स्टैंड-अप इंडिया: उद्यमिता और नवाचार को बढ़ावा देते हैं।
- मुक्त व्यापार समझौते (FTA) और वार्ताएँ: UK, EU, UAE आदि के साथ, निर्यात बाजारों के विस्तार के लिए।
- ‘एक्ट ईस्ट’ और ‘इंडो-पैसिफिक’ रणनीतियाँ: एशिया-प्रशांत के साथ आर्थिक और रणनीतिक एकीकरण को सुदृढ़ करती हैं।
आगे की राह
- विगत दशक में वृद्धि की गति धीमी हुई है, और वृद्धि दर या विनिमय दर में छोटे परिवर्तन भी दीर्घकालिक प्रभाव डाल सकते हैं।
- जैसे-जैसे अर्थव्यवस्थाएँ विस्तार करती हैं, वृद्धि दर स्वाभाविक रूप से धीमी होती है, लेकिन भारत अभी भी अमेरिका और चीन की तुलना में बहुत छोटा है तथा इतनी धीमी गति वहन नहीं कर सकता।
- $30 ट्रिलियन का अनुमान विश्वसनीय बनाने के लिए भारत को अपनी वृद्धि दर को बनाए रखना और उसे तीव्र करना होगा।
Source: IE
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