पाठ्यक्रम: GS3/ ऊर्जा
संदर्भ
- एक ऐतिहासिक नीतिगत परिवर्तन में भारत ने अपने नागरिक परमाणु ऊर्जा क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए खोल दिया है—यह क्षेत्र 1962 के परमाणु ऊर्जा अधिनियम के लागू होने के बाद से केवल राज्य के लिए आरक्षित था।
- अंतरिक्ष क्षेत्र के सफल उदारीकरण से प्रेरणा लेते हुए यह सुधार स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण को तेज़ करने, ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाने और स्वदेशी उच्च-प्रौद्योगिकी विनिर्माण क्षमताओं को प्रोत्साहित करने का लक्ष्य रखता है।
संवैधानिक और कानूनी ढाँचा
- प्रविष्टि 53, संघ सूची (सातवाँ अनुसूची): परमाणु ऊर्जा के विनियमन और विकास पर संघ को विशेष अधिकार प्रदान करती है।
- परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962: परमाणु ऊर्जा पर राज्य का एकाधिकार स्थापित किया; पूर्ण निजी भागीदारी के लिए संशोधन आवश्यक हो सकते हैं।
- नागरिक परमाणु क्षति हेतु दायित्व अधिनियम, 2010 (CLND): दायित्व संबंधी चिंताओं को संबोधित करता है, लेकिन विदेशी निवेश आकर्षित करने हेतु परिष्करण की आवश्यकता हो सकती है।
- परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (AERB): परमाणु सुरक्षा और संरक्षा की निगरानी करने वाला नियामक प्रहरी।
सुधार की मुख्य विशेषताएँ
- सुधार निजी कंपनियों को विनियमित ढाँचे के अंतर्गत परमाणु ऊर्जा उत्पादन में भाग लेने की अनुमति देता है।
- वे NPCIL के साथ संयुक्त उपक्रम कर सकते हैं, सार्वजनिक–निजी भागीदारी में शामिल हो सकते हैं या बिल्ड-ओन-ऑपरेट मॉडल अपना सकते हैं।
- सरकार परमाणु सामग्री, सुरक्षा मानकों और संरक्षा प्रणालियों पर सख्त नियंत्रण बनाए रखेगी।
- नियामक निगरानी AERB और परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) के पास रहेगी।
सुधार के पीछे तर्क
- आर्थिक और औद्योगिक प्रभाव: भारत की ऊर्जा मांग तीव्रता से बढ़ रही है और विद्युत उत्पादन में कोयला अभी भी आधे से अधिक योगदान देता है।
- परमाणु ऊर्जा का विस्तार भारी इंजीनियरिंग उत्पादों जैसे रिएक्टर वेसल, टर्बाइन और सटीक घटकों की मांग बढ़ाएगा।
- भूराजनीतिक और रणनीतिक प्रभाव: यह सुधार आयातित कोयले और प्राकृतिक गैस पर निर्भरता कम करके भारत की ऊर्जा स्वतंत्रता को सुदृढ़ करता है।
- यह वैश्विक ऊर्जा बाज़ारों में भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को सुदृढ़ करता है।
- ऊर्जा और पर्यावरणीय प्रभाव: भारत ने 2030 तक 500 GW गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता स्थापित करने और 2070 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन प्राप्त करने का संकल्प लिया है।
- परमाणु ऊर्जा इन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए आवश्यक है क्योंकि यह स्थिर, दीर्घकालिक विद्युत प्रदान करती है जो नवीकरणीय-प्रधान ग्रिड का समर्थन करती है।
- निजी क्षेत्र की परिचालन दक्षता: उच्च पूंजी लागत, लंबी निर्माण समयसीमा और सीमित सरकारी संसाधनों के कारण भारत की परमाणु क्षमता धीरे-धीरे बढ़ी है।
- निजी कंपनियाँ अतिरिक्त निवेश, तकनीकी विशेषज्ञता और बेहतर परियोजना प्रबंधन ला सकती हैं।
- स्टार्टअप प्रोत्साहन: सरकार का निर्णय अंतरिक्ष क्षेत्र सुधारों की सफलता से प्रेरित है।
- अंतरिक्ष क्षेत्र खोलने के बाद 300 से अधिक स्टार्टअप्स इसमें आए और भारत जल्द ही दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र बन गया।
महत्वपूर्ण चुनौतियाँ
- सुरक्षा और नियामक तैयारी:
- AERB को निजी संस्थाओं की निगरानी हेतु क्षमता वृद्धि की आवश्यकता है।
- अंतरराष्ट्रीय मानकों से सामंजस्यशील कठोर सुरक्षा प्रोटोकॉल आवश्यक हैं।
- आपातकालीन प्रतिक्रिया तंत्र सुदृढ़ होना चाहिए।
- कानूनी और नीतिगत ढाँचा:
- परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 में व्यापक संशोधन की आवश्यकता हो सकती है।
- CLND अधिनियम, 2010 में आपूर्तिकर्ताओं, संचालकों और बीमाकर्ताओं के बीच दायित्व वितरण पर स्पष्टता चाहिए।
- प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, खरीद और भागीदारी पात्रता के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश आवश्यक हैं।
- वित्तीय और आर्थिक चुनौतियाँ:
- परमाणु परियोजनाओं की लंबी परियोजना पूरी होने की अवधि (8–12 वर्ष)।
- उच्च प्रारंभिक पूंजी वित्तीय जोखिम उत्पन्न करती है।
- परमाणु निर्माण में लागत बढ़ोतरी सामान्य है।
- नवाचारी वित्तपोषण तंत्र की आवश्यकता है।
- प्रौद्योगिकी हस्तांतरण बाधाएँ:
- वैश्विक आपूर्तिकर्ता बौद्धिक संपदा चिंताओं, दायित्व ढाँचे की अनिश्चितताओं और न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप नियंत्रणों के कारण हिचकिचा सकते हैं।
- पर्यावरणीय चिंताएँ:
- रेडियोधर्मी अपशिष्ट प्रबंधन, जल की आवश्यकता, जल ताप प्रदूषण और डीकमीशनिंग लागत।
वैश्विक मॉडल और सीख
- अमेरिका, फ्रांस, दक्षिण कोरिया और चीन जैसे देशों ने दिखाया है कि बेहतर विनियम, पारदर्शी दायित्व ढाँचे और मानकीकृत रिएक्टर डिज़ाइन परमाणु ऊर्जा को सुरक्षित रूप से विस्तार देने में सहायता कर सकते हैं। भारत अपने दृष्टिकोण को तैयार करते समय इन मॉडलों से सीख सकता है।
आगे की राह
- भारत को AERB को अधिक स्वायत्तता, जनशक्ति और संसाधन देकर सुदृढ़ करना चाहिए।
- स्पष्ट नियामक दिशानिर्देश आवश्यक हैं ताकि निजी कंपनियाँ अपनी ज़िम्मेदारियाँ समझ सकें।
- भारत को स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर्स और थोरियम तकनीकों में स्वदेशी अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देना चाहिए।
- ग्रीन बॉन्ड्स, संप्रभु गारंटी और परमाणु अवसंरचना कोष जैसी वित्तीय सुधार निवेशकों के लिए जोखिम कम करने में सहायता कर सकते हैं।
- परमाणु सुरक्षा के बारे में विश्वास बनाने और भ्रांतियों को दूर करने हेतु जन-जागरूकता अभियान आवश्यक होंगे।
| दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न [प्रश्न] भारत के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र को निजी भागीदारी के लिए उपलब्ध कराना एक रणनीतिक क्षेत्र के शासन में बड़े बदलाव को दर्शाता है। |
Source: TH
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