पाठ्यक्रम: GS2/राजव्यवस्था और शासन
संदर्भ
- सर्वोच्च न्यायालय ने उपयोगकर्ता-जनित सामग्री पर सख़्त दृष्टिकोण अपनाने का सुझाव दिया और सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स के लिए एक निष्पक्ष, स्वायत्त नियामक की मांग की।
सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ/सुझाव
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स को नियंत्रित करने के लिए एक निष्पक्ष, स्वायत्त प्रणाली होनी चाहिए जो किसी भी प्रभाव से मुक्त हो।
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक मूल्यवान मौलिक अधिकार है, लेकिन यह विकृति या अश्लीलता की ओर नहीं ले जा सकती।
- ऐसा कोई तंत्र होना चाहिए जहाँ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की भी रक्षा हो सके।
- सर्वोच्च न्यायालय ने सुझाव दिया कि उपयोगकर्ता की आयु सत्यापित करने के लिए आधार संख्या या आयकर पैन का उपयोग किया जा सकता है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र से चार सप्ताह के अंदर सार्वजनिक परामर्श हेतु मसौदा नियम लाने को कहा है।
मंत्रालय की प्रतिक्रिया
- सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने कहा कि वह सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 के साथ प्रकाशित आचार संहिता में संशोधन करने की योजना बना रहा है ताकि सभी डिजिटल सामग्री के लिए अश्लीलता पर दिशानिर्देश शामिल किए जा सकें।
- प्रस्तावों में विभिन्न आयु समूहों के लिए ऑनलाइन सामग्री की रेटिंग और राष्ट्र-विरोधी डिजिटल सामग्री पर रोक शामिल है।
- यह प्रस्ताव अनुच्छेद 19(1)(a) और अनुच्छेद 19(2) के तहत लगाए गए युक्तिसंगत प्रतिबंधों के अनुरूप रखा गया है।
डिजिटल सामग्री सेंसरशिप
- डिजिटल सामग्री सेंसरशिप का अर्थ है ऑनलाइन सामग्री पर सरकारों, संगठनों या अन्य संस्थाओं द्वारा नियंत्रण। इसमें शामिल हैं:
- वेबसाइटों और ऐप्स को ब्लॉक करना;
- सोशल मीडिया सामग्री को हटाना;
- ओटीटी (Over-The-Top) स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म्स का नियमन;
- डिजिटल समाचार और पत्रकारिता पर प्रतिबंध।
सेंसरशिप की आवश्यकता
- भ्रामक जानकारी और फेक न्यूज़ पर रोक: अफवाहों के तीव्रता से फैलाव को रोकता है जो भीड़ हिंसा, घबराहट और सार्वजनिक अव्यवस्था को उत्पन्न कर सकते हैं।
- घृणा भाषण और सांप्रदायिक सामग्री पर नियंत्रण: ऐसी सामग्री को रोकना आवश्यक है जो सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा देती है, हिंसा भड़काती है या सामाजिक सद्भाव को खतरे में डालती है।
- बच्चों और संवेदनशील समूहों की सुरक्षा: हानिकारक, अश्लील, हिंसक या भ्रामक सामग्री तक पहुँच को सीमित करता है जो नाबालिगों का शोषण कर सकती है।
- प्लेटफ़ॉर्म जवाबदेही में खामियाँ: सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स सामग्री मॉडरेशन में देरी करते हैं, पारदर्शिता की कमी होती है और प्रायः कमजोर प्रवर्तन तंत्र के कारण जिम्मेदारी से बचते हैं।
- साइबर अपराधों की रोकथाम: बाल यौन शोषण सामग्री (CSAM), तस्करी, ड्रग मार्केट्स और अवैध वित्तीय गतिविधियों से जुड़ी वेबसाइटों एवं ऑनलाइन सामग्री को ब्लॉक करने की आवश्यकता है ताकि साइबर अपराधों को रोका जा सके तथा संवेदनशील उपयोगकर्ताओं की सुरक्षा हो सके।
- एआई खतरों और डीपफेक्स का समाधान: एआई-जनित नकली वीडियो/फोटो को नियंत्रित करना आवश्यक है जो प्रतिष्ठा को हानि पहुँचा सकते हैं, लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को विकृत कर सकते हैं और नागरिकों को गुमराह कर सकते हैं।
भारत में डिजिटल सेंसरशिप को नियंत्रित करने वाला कानूनी ढांचा
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19(1)(a)): अनुच्छेद 19(2) के अंतर्गत शालीनता, नैतिकता और सार्वजनिक व्यवस्था से संबंधित युक्तिसंगत प्रतिबंधों के अधीन।
- सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम, 2000: धारा 69A सरकार को सुरक्षा या सार्वजनिक व्यवस्था संबंधी चिंताओं के लिए ऑनलाइन सामग्री को ब्लॉक करने का अधिकार देती है।
- मध्यस्थ दिशानिर्देश एवं डिजिटल मीडिया आचार संहिता, 2021: सोशल मीडिया, ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म्स और डिजिटल समाचार मीडिया को नियंत्रित करता है।
- ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म्स द्वारा स्व-नियमन: नेटफ्लिक्स और अमेज़न प्राइम जैसे प्लेटफ़ॉर्म्स डिजिटल पब्लिशर्स कंटेंट ग्रिवेन्सेस काउंसिल (DPCGC) जैसे स्व-नियामक ढाँचे का पालन करते हैं।
- केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC): जिसे सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952 के अंतर्गत स्थापित किया गया था, भारत में फिल्मों की सेंसरशिप के लिए जिम्मेदार है।
भारत में डिजिटल सेंसरशिप की चुनौतियाँ
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और नियमन का संतुलन: अत्यधिक नियमन रचनात्मकता को दबा सकता है, जबकि कम नियमन हानिकारक सामग्री फैला सकता है।
- पारदर्शिता और जवाबदेही: सामग्री मॉडरेशन और सेंसरशिप के निर्णयों में प्रायः स्पष्ट दिशानिर्देशों की कमी होती है, जिससे दुरुपयोग की चिंताएँ बढ़ती हैं।
- अधिकार क्षेत्र संबंधी मुद्दे: कई डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स भारत के बाहर से संचालित होते हैं, जिससे प्रवर्तन कठिन हो जाता है।
- प्रौद्योगिकीगत प्रगति: डिजिटल मीडिया का तीव्रता से विकास लगातार और निष्पक्ष नियमन को जटिल बनाता है।
आगे की राह
- स्वतंत्र नियामक संस्थाओं को सशक्त बनाना: सुनिश्चित करना कि न्यायालय और निष्पक्ष संस्थाएँ सेंसरशिप निर्णयों की समीक्षा करें।
- सामग्री मॉडरेशन में पारदर्शिता बढ़ाना: डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स को सामग्री हटाने पर नियमित पारदर्शिता रिपोर्ट प्रकाशित करनी चाहिए।
- डिजिटल साक्षरता को प्रोत्साहित करना: नागरिकों को फेक न्यूज़ पहचानने के लिए शिक्षित करना, बजाय प्रतिबंधात्मक सेंसरशिप लागू करने के।
- नीति निर्माण में सार्वजनिक परामर्श: पत्रकारों, कानूनी विशेषज्ञों और नागरिक समाज को डिजिटल सामग्री नियमन तैयार करने में शामिल करना।
Source: IE
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संक्षिप्त समाचार 27-11-2025