भारत की आपदा प्रतिक्रिया: संघवाद के लिए जोखिमभरी दिशा

पाठ्यक्रम: GS2/ शासन, केंद्र-राज्य संबंध, GS3/ आपदा प्रबंधन

संदर्भ

  • वायनाड भूस्खलन (केरल, 2024) का मामला उन संरचनात्मक समस्याओं को उजागर करता है, जहाँ ₹2,200 करोड़ की आकलित हानि के बावजूद केंद्र से केवल ₹260 करोड़ प्राप्त हुए। इसने भारत की आपदा-प्रतिक्रिया वित्तीय प्रणाली पर चिंताओं को पुनः उत्पन्न कर दिया है।

भारत की आपदा-प्रतिक्रिया वित्तीय रूपरेखा

  • भारत में आपदा प्रबंधन के लिए वित्तीय व्यवस्थाएँ संविधान में निहित हैं और आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 (DM Act, 2005) द्वारा शासित हैं।
  • A. संवैधानिक आधार (अनुच्छेद 280 और सातवीं अनुसूची)
    • वित्त आयोग (FC) (अनुच्छेद 280): वित्त आयोग को संवैधानिक रूप से यह अनुशंसा करने का दायित्व है कि राज्यों को अनुदान कैसे दिया जाए और DM Act, 2005 के अंतर्गत गठित निधियों के संदर्भ में आपदा प्रबंधन पहलों के वित्तपोषण की वर्तमान व्यवस्थाओं की समीक्षा की जाए।
    • सातवीं अनुसूची: आपदा प्रबंधन समवर्ती सूची (प्रविष्टि 23) में आता है, लेकिन लोक व्यवस्था (प्रविष्टि 1) और लोक स्वास्थ्य (प्रविष्टि 6) राज्य विषय हैं, जिससे राज्यों को आपदा प्रबंधन की प्राथमिक जिम्मेदारी मिलती है।
  • B. द्विस्तरीय वित्तीय संरचना (DM Act, 2005)
    • राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (SDRF): राज्य सरकारों के पास तत्काल राहत के लिए उपलब्ध प्राथमिक कोष।
    • वित्त पोषण अनुपात (केंद्र:राज्य):
      • सामान्य श्रेणी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के लिए 75:25
      • विशेष श्रेणी राज्यों (पूर्वोत्तर राज्य, सिक्किम, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर) के लिए 90:10
    • शमन कोष: 15वें वित्त आयोग ने SDRF के साथ-साथ राज्य आपदा शमन कोष (SDMF) की स्थापना की भी अनुशंसा की।
    • राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (NDRF): गंभीर आपदा की स्थिति में, जब SDRF अपर्याप्त हो, तो NDRF राज्य को पूरक सहायता प्रदान करता है।
    • वित्त पोषण स्रोत: पूरी तरह केंद्र सरकार द्वारा वित्तपोषित।
    • शमन कोष: 15वें वित्त आयोग की अनुशंसा पर राष्ट्रीय आपदा शमन कोष (NDMF) भी स्थापित किया गया।

भारत की आपदा प्रबंधन प्रणाली की प्रमुख ताकतें

  • सुदृढ़ संस्थागत श्रृंखला: NDMA, SDMAs और DDMAs की उपस्थिति ऊर्ध्वाधर समन्वय सुनिश्चित करती है।
    • यह संरचना जिम्मेदारियों का स्पष्ट विभाजन, राष्ट्रीय एजेंसियों से स्थानीय अधिकारियों तक बेहतर संचार और योजना व क्रियान्वयन क्षमता में सुधार सक्षम करती है।
  • बेहतर प्रारंभिक चेतावनी और चक्रवात प्रबंधन: भारत ने विशेष रूप से ओडिशा और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में चक्रवात प्रबंधन में उल्लेखनीय प्रगति की है।
    • इसमें बेहतर IMD पूर्वानुमान मॉडल, डॉपलर रडार नेटवर्क और उपग्रह-आधारित निगरानी जैसे कारक योगदान करते हैं। 
    • इन सुधारों ने हाल के वर्षों में चक्रवातों के दौरान मृत्यु दर को काफी कम कर दिया है।
  • सामुदायिक-आधारित तैयारी:आपदा मित्र जैसे कार्यक्रम, नियमित मॉक ड्रिल (DMExes), और सामुदायिक स्तर पर सुदृढ़ आपदा प्रतिक्रिया टीमों ने तैयारी की संस्कृति विकसित करने में सहायता की है।
    •  इससे समुदाय पहले प्रत्युत्तरकर्ता के रूप में कार्य करते हैं, जो किसी भी आपदा के शुरुआती घंटों में अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।

प्रमुख समस्याएँ और केंद्रीकरण के प्रमाण

  • नियम-आधारित तंत्र का अभाव: DM Act स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं करता कि “गंभीर प्रकृति की आपदा” क्या होती है।
  • प्रक्रियात्मक विलंब: NDRF सहायता का वितरण कई समय लेने वाले चरणों पर निर्भर करता है, जैसे:
    • राज्य द्वारा विस्तृत ज्ञापन प्रस्तुत करना
    • अंतर-मंत्रालयी केंद्रीय टीम (IMCT) द्वारा आकलन
    • केंद्र सरकार की उच्च स्तरीय समितियों द्वारा अनुमोदन
  • पुराने राहत और मुआवज़ा मानदंड: SDRF/NDRF ढाँचे के अंतर्गत उपयोग किए जाने वाले मुआवज़ा मानदंड नियमित रूप से अद्यतन नहीं किए गए हैं ताकि मुद्रास्फीति, पुनर्निर्माण लागत या आजीविका हानि को दर्शाया जा सके।
  • आवंटन मानदंडों में कमजोरियाँ: यद्यपि 15वें वित्त आयोग ने शासन क्षमता, जनसंख्या, क्षेत्र और संवेदनशीलता को शामिल करते हुए एक बेहतर पद्धति लाने की कोशिश की, फिर भी आवंटन पारंपरिक चर जैसे क्षेत्र एवं जनसंख्या पर अत्यधिक निर्भर हैं।
  • तर्कसंगत मापदंडों का अभाव: यह दृष्टिकोण वैज्ञानिक, जोखिम-आधारित मापदंडों जैसे बहु-आपदा जोखिम मानचित्र, पारिस्थितिक नाजुकता, अवसंरचना संवेदनशीलता या जलवायु-संवेदनशील जोखिम सूचकांकों को पर्याप्त रूप से शामिल नहीं करता।

असंतुलित आपदा वित्तीय प्रणाली के प्रभाव

  • राज्य की वित्तीय स्थिति पर प्रभाव: जब राज्यों को आवश्यक से बहुत कम धनराशि मिलती है, तो उन्हें अधिक उधार लेना पड़ता है या विकास योजनाओं से धन लेना पड़ता है। इससे पहले से तनावग्रस्त राज्य बजट पर भारी दबाव पड़ता है।
  • प्रभावित समुदायों पर प्रभाव: मुआवज़े में देरी या अपर्याप्तता पीड़ा को लंबा करती है।
    • लोग घर, आजीविका और आवश्यक सेवाओं तक पहुँच खो देते हैं, तथा उनकी पुनर्प्राप्ति लंबी एवं अनिश्चित हो जाती है।
  • राज्य स्वायत्तता का क्षरण: जब किसी राज्य का SDRF समाप्त हो जाता है, तो वह केंद्र के आकलन और बाद की NDRF सहायता पर निर्भर हो जाता है।
    • यह निर्भरता राज्य के परिचालन नियंत्रण और योजना स्वायत्तता को सीमित कर सकती है।
  • राजनीतिक गतिशीलता: सहायता की मात्रा और समयबद्धता कभी-कभी केंद्र एवं प्रभावित राज्य सरकार के बीच राजनीतिक समीकरण से प्रभावित हो सकती है, जिससे मानवीय आवश्यकता राजनीतिक सौदेबाज़ी का साधन बन जाती है।

वैश्विक प्रथाएँ और भारत के लिए सबक

  • संयुक्त राज्य अमेरिका (FEMA): प्रति व्यक्ति क्षति सीमा का उपयोग करता है ताकि यह तय किया जा सके कि संघीय सहायता कब सक्रिय होनी चाहिए।
  • मेक्सिको (पूर्व मॉडल FONDEN): जब वर्षा या वायु की गति कुछ स्तरों को पार कर जाती थी, तो स्वचालित रूप से धन जारी किया जाता था।
  • फिलीपींस: वर्षा और मृत्यु दर पर आधारित वस्तुनिष्ठ सूचकांकों का उपयोग त्वरित-प्रतिक्रिया निधि जारी करने के लिए करता है।
  • ऑस्ट्रेलिया: संघीय सहायता को राज्य के राजस्व के सापेक्ष राहत खर्च के अनुपात से जोड़ता है।

आगे की राह

  • नियम-आधारित और वस्तुनिष्ठ वित्तपोषण को मजबूत करना: 16वें वित्त आयोग को स्वचालित, ट्रिगर-आधारित तंत्र बनाने की अनुशंसा करनी चाहिए, जो निम्न पर आधारित हो:
    • वर्षा या बाढ़ सीमा
    • हानि-से-GSDP अनुपात
    • प्रति व्यक्ति आर्थिक हानि
    • उपग्रह-आधारित क्षति आकलन
  • राहत मानदंडों का अद्यतन और शमन को प्राथमिकता देना: राहत मानदंडों को समय-समय पर अद्यतन किया जाना चाहिए ताकि निर्माण, आवास और आजीविका पुनर्स्थापन की वर्तमान लागत से सामंजस्यशील हो सके।
    • SDMF और NDMF जैसे शमन कोषों को दीर्घकालिक योजना में एकीकृत किया जाना चाहिए और वैज्ञानिक जोखिम आकलन से जोड़ा जाना चाहिए, ताकि राज्य संरचनात्मक एवं गैर-संरचनात्मक शमन उपायों में निवेश करें।
  • व्यापक राष्ट्रीय आपदा संवेदनशीलता सूचकांक विकसित करना: एक वैज्ञानिक रूप से सुदृढ़ संवेदनशीलता सूचकांक विकसित किया जाना चाहिए ताकि निधि आवंटन का मार्गदर्शन किया जा सके।
    • इस सूचकांक में बहु-आपदा जोखिम, जनसंख्या और अवसंरचना का जोखिम, सामाजिक-आर्थिक संवेदनशीलता एवं पारिस्थितिक संवेदनशीलता को शामिल करना आवश्यक है।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
[प्रश्न] भारत की आपदा प्रबंधन संरचना संस्थागत रूप से सुदृढ़ है, लेकिन इसकी वित्तीय प्रणाली बढ़ते केंद्रीकरण और कमजोर होते सहकारी संघवाद को उजागर करती है।” समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
 

Other News

पाठ्यक्रम: GS3/ ऊर्जा संदर्भ एक ऐतिहासिक नीतिगत परिवर्तन में भारत ने अपने नागरिक परमाणु ऊर्जा क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए खोल दिया है—यह क्षेत्र 1962 के परमाणु ऊर्जा अधिनियम के लागू होने के बाद से केवल राज्य के लिए आरक्षित था।  अंतरिक्ष क्षेत्र के सफल उदारीकरण से प्रेरणा लेते...
Read More

पाठ्यक्रम: GS2/ राजव्यवस्था, न्यायपालिका संदर्भ हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने एक समान राष्ट्रीय न्यायिक नीति (Uniform National Judicial Policy) का प्रस्ताव रखा है, ताकि सम्पूर्ण भारत के न्यायालय मामलों का निर्णय अधिक स्पष्टता, स्थिरता और पूर्वानुमेयता के साथ कर सकें, जिससे न्याय तक पहुँच एवं न्यायपालिका...
Read More

पाठ्यक्रम: GS2/राजव्यवस्था और शासन; GS3/IT की भूमिका संदर्भ हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय में एक मुकदमा दायर किया गया, जो एआई-जनित डीपफेक वीडियो से संबंधित है, जिसने व्यक्तित्व अधिकारों का उल्लंघन किया। यह मामला इस तथ्य को रेखांकित करता है कि एआई कैसे प्रामाणिकता और धोखे के बीच की...
Read More

पाठ्यक्रम: GS2/सामाजिक मुद्दे; शिक्षा से जुड़े मुद्दे संदर्भ मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मकता (FLN) में लगातार सीखने का अंतर, जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के अंतगर्त बड़े एजुकेशनल सुधार एजेंडा के लिए खतरा है। मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मकता (FLN) के बारे में  यह बच्चों की समझ के साथ पढ़ने और...
Read More

पाठ्यक्रम: GS3/अर्थव्यवस्था संदर्भ हाल ही में घोषित चार श्रम संहिताओं के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए सुदृढ़ केंद्र-राज्य सहयोग आवश्यक है, जो सरकार के सभी स्तरों पर एकीकृत नीति क्रियान्वयन पर निर्भर करता है। चार श्रम संहिताओं का अवलोकन - श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के अनुसार, श्रम सुधारों ने 29 केंद्रीय कानूनों...
Read More

पाठ्यक्रम: GS2/अंतर्राष्ट्रीय संबंध संदर्भ एशिया की ओर भारत की विदेश नीति का फोकस बदलते वैश्विक परिदृश्य को दर्शाता है, जहाँ एशिया आर्थिक गतिशीलता, तकनीकी नवाचार और भू-राजनीतिक प्रभाव का केंद्र बनकर उभर रहा है। क्यों एशिया पहले से अधिक महत्वपूर्ण है? आर्थिक शक्ति केंद्र : एशिया विश्व की सबसे तीव्रता...
Read More

पाठ्यक्रम: GS3/कृषि संदर्भ भारत में मत्स्य पालन और जलीय कृषि, आजीविका, पोषण एवं व्यापार के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, लेकिन यह क्षेत्र अत्यधिक मछली पकड़ने, प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन तथा संसाधनों तक असमान पहुँच जैसी चुनौतियों का सामना कर रहा है। भारत में जलीय कृषि और मत्स्य पालन जलीय कृषि का...
Read More
scroll to top