ईरान-भारत: प्राचीन सभ्यताएँ और नए क्षितिज

पाठ्यक्रम: GS2/ अंतर्राष्ट्रीय संबंध

संदर्भ

  • विश्व एक ऐसे परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है, जिसमें पश्चिमी नेतृत्व वाली अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में, विशेष रूप से अमेरिका का प्रभुत्व स्पष्ट रूप से दिखाई देता है, जिसने पारंपरिक रूप से वित्तीय प्रणालियों, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और मीडिया पर नियंत्रण के माध्यम से वैश्विक प्रभाव स्थापित किया है।
  • यह “संकट” अंतरराष्ट्रीय कानून के स्पष्ट उल्लंघन, व्यापार युद्धों, पर्यावरणीय विनाश और वैश्विक संस्थाओं की उपेक्षा के माध्यम से उत्पन्न हुआ है।

ग्लोबल साउथ और प्राचीन सभ्यताओं का उदय

  • ग्लोबल साउथ, जिसमें एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और मध्य पूर्व के विकासशील देश शामिल हैं, स्थानीय मॉडल, स्वदेशी ज्ञान एवं विज्ञान, प्रौद्योगिकी, रक्षा और सुरक्षा में आत्मनिर्भरता के आधार पर एक नया मार्ग अपना रहे हैं।
    • उदाहरण के लिए: भारत और ईरान जैसी प्राचीन सभ्यताएँ, जिनका शांति, सांस्कृतिक समृद्धि और प्रभुत्व के प्रतिरोध का गहरा इतिहास रहा है, इस बदलाव में एक विशिष्ट भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं।
  •  ये सभ्यताएँ शांति, आध्यात्मिकता, विविधता के सम्मान और शासन की बुद्धिमत्ता जैसे मूल्यों को प्रस्तुत करती हैं। भारत और ईरान ने ऐतिहासिक रूप से विजेताओं को सांस्कृतिक एवं राजनीतिक रूप से प्रभावित किया है, और आज भी वे संप्रभुता, न्याय और संवाद के सिद्धांतों को बनाए रखते हैं।

भारत और ईरान की सभ्यतागत योगदान

  • साझा सभ्यतागत मूल्य: शांति, आध्यात्मिकता, विविधता, प्रकृति का सम्मान और अच्छाई की बुराई पर विजय।
  • सांस्कृतिक लचीलापन: विजयों के बाद भी दोनों सभ्यताओं ने दर्शन, कला और शासन मॉडल के माध्यम से आक्रमणकारियों को पुनः आकार दिया।
  • आधुनिक इतिहास के उदाहरण:
    • भारत: उपनिवेशवाद विरोधी संघर्ष, गुटनिरपेक्ष आंदोलन।
    • ईरान: तेल का राष्ट्रीयकरण (1950 के दशक), इस्लामी क्रांति (1979)।

समकालीन प्रासंगिकता

  • ईरान की दृढ़ता: प्रतिबंधों, “आर्थिक आतंकवाद” और बाहरी दबावों के बावजूद, ईरान ने अपनी रणनीतिक स्वायत्तता नहीं छोड़ी।
  • भारत की स्वतंत्रता: भू-राजनीतिक दबावों का सामना करते हुए भी भारत संतुलित विदेश नीति बनाए रखता है।
  • रणनीतिक समन्वय: दोनों देश INSTC, ऊर्जा साझेदारी और पश्चिम एशिया में सहयोग के माध्यम से एक साथ कार्य कर रहे हैं।

फिलिस्तीन मुद्दा: एक परीक्षण बिंदु

  • फिलिस्तीन का संघर्ष ग्लोबल साउथ की पश्चिमी प्रभुत्व और पाखंड के विरुद्ध प्रतिरोध की अग्रिम पंक्ति के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। 
  • अधिकार के लिए यह लड़ाई पूरे ग्लोबल साउथ में प्रभुत्व के प्रतिरोध की भावना को समाहित करती है।

उभरती बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था

  • वर्तमान वैश्विक व्यवस्था एक अधिक बहुध्रुवीय प्रणाली में विकसित हो रही है, जहाँ शक्ति एकल प्रभुत्व के बजाय कई भागीदारों में वितरित होती है।
  •  ग्लोबल साउथ अब परिधीय नहीं बल्कि नई कूटनीतिक संरेखण, व्यापार गलियारों, सुरक्षा ढाँचों और शासन सुधारों को आकार देने में केंद्रीय भूमिका निभा रहा है। 
  • चीन, भारत, ब्राज़ील एवं सऊदी अरब जैसे देश क्षेत्रीय एकीकरण और वैश्विक सहयोग को आगे बढ़ाने वाले मध्य शक्तियों के रूप में उभर रहे हैं। 
  • यह नई व्यवस्था प्रभुत्व और श्रेष्ठता के बजाय भागीदारी, समानता, न्याय एवं संप्रभुता के सम्मान की मांग करती है।

आगे की राह

  • दक्षिण-दक्षिण सहयोग को सुदृढ़ करना: BRICS, SCO और NAM का विस्तार करें, जिसमें वास्तविक वित्तीय और तकनीकी विकल्प हों।
  • सभ्यतागत कूटनीति: भारत और ईरान शांति, सततता एवं विविधता के सम्मान पर आधारित मूल्य-आधारित व्यवस्था का नेतृत्व कर सकते हैं।
  • बहुपक्षवाद में सुधार: संयुक्त राष्ट्र में सुधार, समावेशी निर्णय-निर्माण और ग्लोबल साउथ का प्रतिनिधित्व करने वाले वित्तीय संस्थानों की मांग करें।
  • रणनीतिक स्वायत्तता: दोनों देशों को स्वतंत्रता की रक्षा करते हुए यूरेशिया और अफ्रीका के साथ संबंधों को सुदृढ़ करना चाहिए।
  • फिलिस्तीन समाधान: न्यायपूर्ण और शांतिपूर्ण समाधान का समर्थन अंतरराष्ट्रीय कानून में विश्वास पुनर्स्थापित करेगा।

निष्कर्ष

  • भारत और ईरान, अपनी सभ्यतागत विरासत और रणनीतिक साझेदारी के माध्यम से, ग्लोबल साउथ को एक न्यायपूर्ण, मानवीय एवं बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की ओर नेतृत्व देने की स्थिति में हैं, जो परस्पर सम्मान, संप्रभुता, मानव गरिमा और साझा समृद्धि पर आधारित है — तथा पश्चिम के एकतरफा प्रभुत्व के पतन का एक वैकल्पिक मार्ग प्रस्तुत करती है।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
[प्रश्न] अंतर्राष्ट्रीय मामलों में वैश्विक दक्षिण के उदय से उत्पन्न चुनौतियों और अवसरों का परीक्षण कीजिए।

Source: TH

 

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