भारत में स्वास्थ्य बीमा का उदय और जोखिम

पाठ्यक्रम: GS2/स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दा

संदर्भ

  • विगत एक दशक में भारत में स्वास्थ्य बीमा कवरेज में तीव्र वृद्धि हुई है, जो मुख्यतः सरकारी योजनाओं के कारण संभव हुई है और इसे सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) की दिशा में प्रगति के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि, आलोचकों का कहना है कि केवल बीमा योजनाएँ सुदृढ़ सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचे का विकल्प नहीं हो सकतीं।

भारत में UHC और स्वास्थ्य बीमा का विस्तार 

  • 1946 में भोर समिति द्वारा परिभाषित सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल (UHC) का उद्देश्य है कि सभी को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएँ मिलें, चाहे उनकी भुगतान क्षमता कुछ भी हो।
    • हालांकि, लगभग आठ दशकों के बाद भी भारत इस दृष्टि से काफी दूर है। 
  • इसके बजाय यह भ्रम फैलाया गया है कि प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PM-JAY) और राज्य स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रमों (SHIPs) जैसे बीमा योजनाओं का विस्तार ही UHC प्रदान कर देगा।

स्वास्थ्य बीमा का विस्तार

  • विगत एक दशक में भारत में राज्य प्रायोजित स्वास्थ्य बीमा योजनाओं में तीव्र वृद्धि देखी गई है:
    • PMJAY: 58.8 करोड़ लोगों को कवर करता है, वार्षिक बजट ₹12,000 करोड़।
    • SHIPs: लगभग समान संख्या को कवर करता है, लागत लगभग ₹16,000 करोड़।
    • कुल व्यय: 2023–24 में लगभग ₹28,000 करोड़, जो कुल स्वास्थ्य व्यय का छोटा हिस्सा है लेकिन लगातार बढ़ रहा है।
  •  ये योजनाएँ रोगियों को अल्पकालिक राहत तो देती हैं, लेकिन एक स्थायी UHC ढांचा स्थापित करने में विफल रहती हैं।

स्वास्थ्य बीमा की प्रमुख कमियाँ

  • सार्वजनिक स्वास्थ्य में कम निवेश: भारत की बीमा पर निर्भरता दशकों से सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचे की उपेक्षा को दर्शाती है।
    • 2022 में स्वास्थ्य पर सार्वजनिक व्यय GDP का केवल 1.3% था, जबकि वैश्विक औसत 6.1% है।
  • लाभ आधारित चिकित्सा को प्रोत्साहन: PMJAY के दो-तिहाई फंड निजी अस्पतालों को जाते हैं, जिससे लाभ-प्रेरित देखभाल को बढ़ावा मिलता है।
    • निजी प्रदाताओं का कमजोर नियमन इस असंतुलन को बढ़ाता है, जिससे अस्पताल में भर्ती दरों पर कम प्रभाव पड़ता है लेकिन निजी अस्पतालों पर अधिक निर्भरता बनती है।
  • अस्पताल में भर्ती होने के प्रति पूर्वाग्रह: बीमा योजनाएँ केवल आंतरिक रोगी देखभाल को ही कवर करती हैं, प्राथमिक और बाह्य रोगी सेवाओं की उपेक्षा करती हैं, जो निवारक एवं सुलभ स्वास्थ्य देखभाल के लिए महत्वपूर्ण हैं।
    • बढ़ती उम्र की जनसंख्या के साथ, महंगी तृतीयक देखभाल स्वास्थ्य बजट का अधिकांश भाग व्यय कर देती है, जबकि प्राथमिक ज़रूरतें पूरी नहीं हो पातीं।
  • उच्च कवरेज के बावजूद कम उपयोग: आधिकारिक आँकड़े 80% जनसंख्या कवरेज दर्शाते हैं, लेकिन उपयोगिता कमजोर है।
    • 2022–23 में केवल 35% बीमित अस्पताल रोगियों ने बीमा का उपयोग कर पाया। 
    • जागरूकता की कमी, प्रक्रियात्मक बाधाएँ और निजी अस्पतालों का प्रतिरोध इस अंतर को बढ़ाते हैं।
  • उपचार में भेदभाव: निजी अस्पताल प्रायः बिना बीमा वाले मरीजों को प्राथमिकता देते हैं, जो अधिक शुल्क देते हैं, जबकि सार्वजनिक अस्पताल बीमित मरीजों को राजस्व के लिए प्राथमिकता दे सकते हैं।
    • इससे भेदभावपूर्ण उपचार और मौके पर बीमा में नामांकन का दबाव उत्पन्न होता है।
  • प्रदाता असंतोष और भुगतान में देरी: अस्पतालों को कम प्रतिपूर्ति और भुगतान में देरी का सामना करना पड़ता है।
    • केवल PMJAY के अंतर्गत लंबित बकाया 2023 में ₹12,000 करोड़ से अधिक था, जिससे अस्पतालों की वापसी और सेवाओं का निलंबन हुआ।
  • भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी: देखभाल से मना, फर्जी बिलिंग और अनावश्यक प्रक्रियाओं जैसी धोखाधड़ी सामान्य हैं।
    • हजारों अस्पतालों पर PMJAY के अंतर्गत कार्रवाई हुई है, लेकिन पारदर्शिता कमजोर बनी हुई है और प्रभावी ऑडिट का कोई ठोस प्रमाण नहीं है।

वैश्विक अनुभवों से सीख 

  • कनाडा और थाईलैंड जैसे देश सुदृढ़ सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के अंदर सामाजिक स्वास्थ्य बीमा का उपयोग करते हैं। प्रमुख अंतर हैं:
    • सार्वभौमिक कवरेज
    • गैर-लाभकारी प्रदाताओं पर ध्यान
    • मजबूत नियमन और जवाबदेही 
  • भारत की बीमा योजनाओं में ये सुरक्षा उपाय नहीं हैं, जिससे वे सच्चे UHC प्रदान करने के लिए अनुपयुक्त बन जाती हैं।
    • पूर्व में IRDAI ने 2047 तक स्वास्थ्य बीमा को सार्वभौमिक बनाने का लक्ष्य घोषित किया था, जो भारत की स्वतंत्रता की शताब्दी से सामंजस्यशील है।

निष्कर्ष 

  • भारत का सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल (UHC) की ओर मार्ग केवल बीमा योजनाओं पर आधारित नहीं हो सकता, क्योंकि ये लाभ-प्रेरित अस्पताल में भर्ती को बढ़ावा देती हैं, कम उपयोगिता का सामना करती हैं और भ्रष्टाचार के प्रति संवेदनशील रहती हैं।
    • यह सभी के लिए सुलभ, गुणवत्तापूर्ण देखभाल पर आधारित होना चाहिए।
  • आवश्यकताएँ:
    • स्वास्थ्य में सार्वजनिक निवेश को वर्तमान 1.3% GDP से अधिक बढ़ाना।
    • प्राथमिक और सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं को सुदृढ़ करना।
    • निजी प्रदाताओं का प्रभावी नियमन।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
[प्रश्न] भारत में स्वास्थ्य सेवा की सुलभता और समता में सुधार लाने में स्वास्थ्य बीमा की भूमिका का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए। कौन सी चुनौतियाँ इसकी प्रभावशीलता में बाधा डालती हैं, और नीतिगत सुधार उनका समाधान कैसे कर सकते हैं?

Source: TH

 

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