भारत को सर्वोच्च न्यायालय में अधिक महिला न्यायाधीशों की आवश्यकता 

पाठ्यक्रम: GS1/महिलाओं की भूमिका; GS2/न्यायपालिका

संदर्भ

  • वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय की कुल 34 न्यायाधीशों की पूर्ण संरचना में केवल एक महिला न्यायाधीश कार्यरत हैं, जिससे समावेशिता, समानता और न्याय वितरण की व्यापक प्रभावशीलता पर प्रश्न उठते हैं।

भारत के सर्वोच्च न्यायालय में महिलाएँ

  • सर्वोच्च न्यायालय ने 1950 से अब तक केवल 11 महिला न्यायाधीशों की नियुक्ति की है, जो कुल 287 न्यायाधीशों का मात्र 3.8% है।
    • एक समय में चार से अधिक महिला न्यायाधीश कभी कार्यरत नहीं रही हैं।
    • प्रथम महिला न्यायाधीश न्यायमूर्ति फातिमा बीवी थीं, जिनकी नियुक्ति 1989 में हुई थी।
  • 2021 में तीन महिलाओं की एक साथ नियुक्ति हुई, जिससे कुछ समय के लिए महिला प्रतिनिधित्व 10% से ऊपर चला गया।
  • विशेष रूप से, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या अन्य वंचित समुदायों की महिलाओं को पूरी तरह से बाहर रखा गया है।
  • वर्तमान में न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना एकमात्र महिला न्यायाधीश हैं, और 2027 में भारत की प्रथम महिला मुख्य न्यायाधीश बनने की संभावना है।
उच्च न्यायालयों और अधीनस्थ न्यायपालिका में प्रतिनिधित्व
– न्याय विभाग के अनुसार, भारत के उच्च न्यायालयों में महिला न्यायाधीशों की संख्या केवल लगभग 14% है।
– अधीनस्थ न्यायपालिका में स्थिति थोड़ी बेहतर है, जहाँ महिला न्यायिक अधिकारियों की संख्या लगभग 30% है।

महिला प्रतिनिधित्व क्यों महत्वपूर्ण है?

  • न्यायिक संवेदनशीलता और दृष्टिकोण को सुदृढ़ करना: महिला न्यायाधीश अपने जीवन अनुभवों के माध्यम से न्यायिक तर्क को समृद्ध करती हैं, विशेष रूप से निम्नलिखित मामलों में:
    • लैंगिक हिंसा
    • कार्यस्थल पर उत्पीड़न
    • पारिवारिक कानून और अभिरक्षा विवाद
    • प्रजनन अधिकार
  • वैधता और जन विश्वास: एक ऐसी न्यायपालिका जो महिलाओं को स्पष्ट रूप से शामिल करती है, निष्पक्षता और समावेशिता का संकेत देती है।
    • यह कानूनी प्रणाली में जन विश्वास को सुदृढ़ करती है और सभी नागरिकों के लिए समानता की संवैधानिक प्रतिज्ञा को पुष्ट करती है।
  • ऐतिहासिक बहिष्कार को सुधारना: महिलाओं की लगातार कम भागीदारी कानूनी शिक्षा, अभ्यास और पदोन्नति में प्रणालीगत बाधाओं को दर्शाती है।
  • सरकार की भूमिका: संविधान न्यायिक नियुक्तियों में महिलाओं के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं करता।
    • लेकिन सरकार ने उच्च न्यायालयों से सामाजिक विविधता, जिसमें लिंग भी शामिल है, को ध्यान में रखते हुए उम्मीदवारों की सिफारिश करने का आग्रह किया है।

समावेशन की चुनौतियाँ

  • कोलेजियम प्रणाली की समस्या: कोलेजियम प्रणाली, जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश और चार वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं, नियुक्तियों का निर्णय लेती है। लेकिन इसकी कार्यप्रणाली अपारदर्शी और असंगत है।
    • जाति, क्षेत्र और धर्म को कभी-कभी ध्यान में रखा जाता है, लेकिन लिंग को एक संस्थागत मानदंड के रूप में नहीं अपनाया गया है।
    • नियुक्तियों की व्याख्या करने वाले प्रस्ताव भी अनियमित रहे हैं, जिससे पारदर्शिता की कमी बनी रहती है।
  • बार से बहिष्कार: केवल एक महिला — न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा — को बार से सीधे सर्वोच्च न्यायालय में नियुक्त किया गया है, जबकि नौ पुरुष इस मार्ग से नियुक्त हुए हैं।
  • सीमित पाइपलाइन: कानूनी पेशे में वरिष्ठ पदों तक कम महिलाएँ पहुँचती हैं, जिससे उनकी पदोन्नति की संभावना घट जाती है।
    • न्यायमूर्ति नागरत्ना केवल 36 दिनों के लिए मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्य करेंगी, जो विलंबित नियुक्तियों की सीमाओं को दर्शाता है।
  • कार्यस्थल पक्षपात: लैंगिक रूढ़ियाँ और संस्थागत समर्थन की कमी महिलाओं को न्यायिक करियर अपनाने से हतोत्साहित करती हैं।

आगे की राह

  • विविधता को संस्थागत बनाना: न्यायिक नियुक्तियों में लिंग, जाति, धर्म और क्षेत्र को औपचारिक मानदंड बनाया जाना चाहिए।
  • बार से सीधी नियुक्तियाँ: अधिक महिला वरिष्ठ अधिवक्ताओं को विचार में लिया जाना चाहिए।
  • प्रारंभिक नियुक्तियाँ: महिलाओं को कम उम्र में नियुक्त किया जाए ताकि उन्हें लंबा कार्यकाल और वरिष्ठता प्राप्त हो सके।
  • चयन में पारदर्शिता: कोलेजियम की चर्चाओं को सार्वजनिक किया जाए और स्पष्ट औचित्य प्रस्तुत किया जाए।

निष्कर्ष 

  • भारत का सर्वोच्च न्यायालय अपने निर्णयों में लंबे समय से लैंगिक समानता का समर्थन करता रहा है। लेकिन वह इन सिद्धांतों को अपनी संरचना में समाहित करने में विफल रहा है। 
  • गंभीर लैंगिक असंतुलन को सुधारना केवल कानूनी पेशे में महिलाओं के प्रति निष्पक्षता का विषय नहीं है — यह सुनिश्चित करने का प्रयास है कि न्यायालय वास्तव में उन लोगों का प्रतिनिधित्व करे जिनकी सेवा वह करता है।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
[प्रश्न] भारत के सर्वोच्च न्यायालय में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के महत्व पर चर्चा कीजिए। अधिक लैंगिक विविधता न्यायिक निर्णय लेने और न्यायपालिका के बारे में जनता की धारणा को कैसे प्रभावित कर सकती है?

Source: TH

 

Other News

पाठ्यक्रम: GS2/स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दा संदर्भ विगत एक दशक में भारत में स्वास्थ्य बीमा कवरेज में तीव्र वृद्धि हुई है, जो मुख्यतः सरकारी योजनाओं के कारण संभव हुई है और इसे सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) की दिशा में प्रगति के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि, आलोचकों का कहना...
Read More

पाठ्यक्रम: GS1/जनसंख्या; GS2/सामाजिक मुद्दे; GS3/अर्थव्यवस्था संदर्भ भारत के पास जनसांख्यिकीय लाभांश है, जिसकी 65% से अधिक जनसंख्या 35 वर्ष से कम आयु की है। इस छिपी हुई क्षमता का दोहन करने तथा इसे ठोस समृद्धि में बदलने की आवश्यकता है। भारत के युवाओं की भूमिका: श्रम शक्ति से विकसित भारत...
Read More

पाठ्यक्रम: GS2/शिक्षा संदर्भ NEET, JEE, CUET, UGC-NET जैसी प्रमुख प्रवेश परीक्षाओं में हालिया पेपर लीक, अनियमितताओं और पारदर्शिता की कमी ने भारत की परीक्षा प्रणाली की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। प्रत्येक वर्ष लगभग 1.5–2 करोड़ छात्र विभिन्न राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय प्रवेश परीक्षाओं में शामिल होते हैं,...
Read More

पाठ्यक्रम: GS1/जनसंख्या; GS2/सामाजिक मुद्दे; GS3/अर्थव्यवस्था संदर्भ भारत के युवाओं को प्रायः राष्ट्र की सबसे बड़ी संपत्ति माना जाता है, लेकिन यह तथाकथित ‘जनसांख्यिकीय लाभांश’ यदि आवश्यक कौशल के बिना रह गया तो यह एक भार बन सकता है और यदि प्रणालीगत समस्याओं को दूर नहीं किया गया तो यह संकट...
Read More

पाठ्यक्रम: GS3/ऊर्जा अवसंरचना संदर्भ भारत का विद्युत क्षेत्र तकनीकी और प्रशासनिक बाधाओं का सामना कर रहा है, जिसे व्यापक आर्थिक सीमाओं ने जटिल बना दिया है — ये कारक देश की आर्थिक दिशा को प्रभावित कर सकते हैं। भारत का विद्युत क्षेत्र स्थापित क्षमता और ऊर्जा मिश्रण: 2025 के मध्य...
Read More

पाठ्यक्रम: GS3/अर्थव्यवस्था संदर्भ वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता और बढ़ते संरक्षणवाद के दौर में—जैसे हाल ही में अमेरिका द्वारा भारतीय स्टील एवं रासायनिक उत्पादों पर शुल्क वृद्धि—भारत का पर्यटन क्षेत्र एक लचीला, समावेशी तथा शुल्क-मुक्त विकास इंजन के रूप में उभर कर सामने आया है। भारत में पर्यटन क्षेत्र वर्तमान आँकड़े (2023–24):...
Read More

पाठ्यक्रम: GS3/सुरक्षा संदर्भ हाल ही में भारत की संसद ने ‘ऑनलाइन गेमिंग का संवर्धन और विनियमन अधिनियम, 2025’ पारित किया है, जिसका उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक चिंताओं वाले कुछ गेमिंग प्रारूपों को नियंत्रित और प्रतिबंधित करना है। अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ ऑनलाइन गेम्स के तीन वर्ग: ई-स्पोर्ट्स: राष्ट्रीय खेल शासन...
Read More
scroll to top