भारत की निर्यात रणनीति को पुनः कैलिब्रेट करने की आवश्यकता

पाठ्यक्रम: GS3/अर्थव्यवस्था

संदर्भ

  • भारत को अपनी निर्यात रणनीति को पुनः संतुलित करने की आवश्यकता है, जिसमें बाज़ार विविधीकरण, कूटनीतिक सहभागिता और मैदान-स्तरीय व्यापार विकास शामिल हैं, ताकि बढ़ते वैश्विक व्यापारिक प्रतिकूलताओं का सामना किया जा सके तथा प्रतिस्पर्धात्मकता बनाए रखी जा सके।

भारत के निर्यात की वर्तमान स्थिति

  • अगस्त 2025 में भारतीय निर्यात ने अगस्त 2024 की तुलना में 4.77% की सकारात्मक वृद्धि दर्ज की।
  • अप्रैल–अगस्त 2025 के दौरान कुल निर्यात 5.19% बढ़कर USD 346.10 बिलियन तक पहुँच गया।
  • माल निर्यात 2.31% बढ़ा और सेवा निर्यात 8.65% उछला।
  • अप्रैल–अगस्त 2025 में हांगकांग, चीन, अमेरिका, जर्मनी, कोरिया, UAE, नेपाल, बेल्जियम, बांग्लादेश और ब्राज़ील को भारत का निर्यात अप्रैल–अगस्त 2024 की तुलना में बढ़ा।
  • वाणिज्य और उद्योग मंत्री ने बल दिया कि भारत का निर्यात प्रदर्शन उसकी अर्थव्यवस्था की लचीलापन एवं उद्योगों की प्रतिस्पर्धात्मकता को दर्शाता है।
    • भारत ने 2030 तक USD 2 ट्रिलियन निर्यात के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने की प्रतिबद्धता दोहराई।

भारत का निर्यात प्रदर्शन: क्षेत्रवार प्रवृत्ति

  • माल निर्यात: अप्रैल 2024 में भारत का माल निर्यात USD 35.2 बिलियन तक बढ़ा, जो अप्रैल 2023 में USD 34.8 बिलियन था।
  • गैर-पेट्रोलियम और गैर-रत्न एवं आभूषण निर्यात: ये निर्यात 1.32% बढ़कर USD 26.11 बिलियन तक पहुँचे, जो विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक सुधार का संकेत है।
  • सेवा निर्यात: अप्रैल 2024 में अनुमानित USD 29.57 बिलियन, सेवा निर्यात ने भी सकारात्मक प्रवृत्ति दिखाई और भारत के सुदृढ़ व्यापार प्रदर्शन में योगदान दिया।
  • हाई-टेक और वैल्यू-ऐडेड निर्यात का उदय: PLI योजना ने उन्नत विनिर्माण को तीव्र किया। इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात 32.47% बढ़कर FY 2024–25 में USD 38.58 बिलियन तक पहुँच गया, जिससे यह तीसरी सबसे बड़ी निर्यात श्रेणी बन गई।
  • समुद्री निर्यात: कुल समुद्री निर्यात सकारात्मक रहा, हालांकि अगस्त में 33% और सितंबर में 27% की गिरावट US टैरिफ के कारण हुई।
    • इसका कारण चीन, वियतनाम, थाईलैंड, जापान और बेल्जियम जैसे गंतव्यों की ओर तीव्र बाज़ार विविधीकरण है।

भारतीय निर्यात के लिए उभरती चिंताएँ और चुनौतियाँ

  • अमेरिका के साथ निर्यात में मंदी: अमेरिका द्वारा स्टीप टैरिफ वृद्धि ने भारतीय वस्तुओं की प्रतिस्पर्धात्मकता को उसके सबसे बड़े निर्यात बाज़ार में प्रभावित किया।
    • अक्टूबर 2025 में अमेरिका को निर्यात 8.5% घटा।
  • जलवायु निष्क्रियता और नियामक जोखिम: BCG रिपोर्ट के अनुसार, भारत के निर्यात-उन्मुख क्षेत्र, विशेषकर एल्यूमिनियम, लोहा और इस्पात, अंतरराष्ट्रीय जलवायु नियमों के प्रति अधिक संवेदनशील हो रहे हैं।
    • EU का कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM) और इसी तरह की नीतियाँ भारतीय निर्यात पर कार्बन टैरिफ लगा सकती हैं, जिससे लाभप्रदता एवं बाज़ार पहुँच प्रभावित होगी।
  • भूराजनीतिक अनिश्चितता और आपूर्ति श्रृंखला व्यवधान: चल रहे वैश्विक संघर्ष और व्यापार पुनर्संरेखण आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित कर रहे हैं, मालभाड़ा लागत बढ़ा रहे हैं और माँग में अनिश्चितता उत्पन्न कर रहे हैं।
    • निर्यातक अस्थिर शिपिंग मार्गों और बढ़ते बीमा प्रीमियम का सामना कर रहे हैं, विशेषकर लाल सागर एवं स्वेज़ नहर क्षेत्रों में।
  • मुद्रा अस्थिरता और वित्तीय दबाव: रुपये में उतार-चढ़ाव और वैश्विक वित्तीय परिस्थितियों के सख्त होने से निर्यात मार्जिन प्रभावित हो रहे हैं।
    • इसके जवाब में, RBI ने राहत उपाय पेश किए हैं जैसे विस्तारित क्रेडिट अवधि और ऋण पुनर्भुगतान मानदंडों में ढील।
  • पारंपरिक बाज़ारों पर अत्यधिक निर्भरता: भारत का निर्यात अभी भी अमेरिका और EU जैसे कुछ प्रमुख बाज़ारों पर अत्यधिक निर्भर है।
  • उच्च लॉजिस्टिक्स और लेन-देन लागत: भारत की लॉजिस्टिक्स लागत GDP का ~7.97% है, जो वैश्विक मानक 6–7% से अधिक है। इससे पूर्वी एशियाई निर्यातकों की तुलना में मूल्य प्रतिस्पर्धात्मकता कम होती है।
  • गैर-टैरिफ बाधाएँ (NTBs): निर्यातकों को कठोर SPS मानकों, प्रमाणन आवश्यकताओं और पर्यावरणीय मानदंडों का सामना करना पड़ता है।

निर्यात को प्रोत्साहन देने के लिए प्रमुख सरकारी पहलें

  • निर्यात संवर्धन मिशन (EPM): इसे नवंबर 2025 में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा FY 2025–26 से FY 2030–31 तक ₹25,060 करोड़ के व्यय के साथ स्वीकृति दी गई।
    • इसका उद्देश्य बिखरी हुई निर्यात योजनाओं को एकल, परिणाम-आधारित ढाँचे में समेकित करना है।
    • MSMEs, प्रथम-बार निर्यातकों और श्रम-प्रधान क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करता है, डिजिटल उपकरण, बाज़ार खुफिया एवं क्षमता निर्माण समर्थन प्रदान करता है।
  • निर्यातकों के लिए क्रेडिट गारंटी योजना: यह विशेषकर छोटे व्यवसायों के लिए वित्तीय जोखिमों को कम करने हेतु बनाई गई है।
    • यह सस्ती ऋण तक पहुँच बढ़ाती है और निर्यातकों की अंतरराष्ट्रीय आदेशों को पूरा करने की क्षमता को सुदृढ़ करती है।
  • व्यापार सुविधा और अवसंरचना: सरकार ने बंदरगाह आधुनिकीकरण, सीमा शुल्क डिजिटलीकरण और राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति में निवेश किया है ताकि टर्नअराउंड समय और लॉजिस्टिक्स लागत को कम किया जा सके।
    • ICEGATE और SEZ सुधार जैसी पहलें निर्यात प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने और व्यापार करने में आसानी को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखती हैं।
  • अन्य प्रयास जो वृद्धि को प्रोत्साहित कर रहे हैं:
    • जिलों को निर्यात हब के रूप में: स्थानीय उद्योगों और शिल्पों को वैश्विक बाज़ारों के लिए बढ़ावा देना।
    • व्यापार समझौते: UAE (CEPA) एवं ऑस्ट्रेलिया (ECTA) के साथ उन्नत साझेदारी, और EU तथा UK के साथ चल रही वार्ताएँ नए अवसर खोल रही हैं।
    • व्यापार करने में आसानी: सरल सीमा शुल्क प्रक्रियाएँ, सिंगल-विंडो क्लियरेंस और पेपरलेस व्यापार सुविधा।
    • निर्यात क्रेडिट समर्थन: EXIM बैंक वित्तपोषण का विस्तार और ECGC के अंतर्गत जोखिम कवरेज।

सामरिक पुनर्संरेखण: किस पर ध्यान देने की आवश्यकता है?

  • वैश्विक लॉजिस्टिक्स कॉरिडोर में निवेश: लैटिन अमेरिका और पश्चिम अफ्रीका के लिए प्रत्यक्ष शिपिंग मार्गों सहित, दीर्घकालिक प्रतिस्पर्धात्मकता हेतु।
    • हालिया शिपबिल्डिंग पैकेज एक कदम आगे है, लेकिन RoDTEP योजना के लिए बढ़ा हुआ बजटीय आवंटन आवश्यक है ताकि भारतीय निर्यात मूल्य-प्रतिस्पर्धी बने रहें।
  • औद्योगिक प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाना: भारतीय निर्यातकों को तकनीकी अपनाने और नवाचार, स्थिरता अनुपालन, ब्रांडिंग एवं स्थानीय बाज़ार उपस्थिति पर ध्यान केंद्रित करके प्रदर्शन मानकों को ऊँचा करना होगा।
    • भारत को सुधारों में तीव्रता लाने की आवश्यकता है ताकि वह वियतनाम, इंडोनेशिया, तुर्की और मेक्सिको जैसे देशों के वैश्वीकरण प्रयासों के बीच अपनी वैश्विक व्यापार स्थिति को बनाए रख सके तथा सुदृढ़ कर सके।
  • पारंपरिक बाज़ारों से परे विस्तार: भारत को पश्चिम एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और दक्षिण-पूर्व एशिया में अपना व्यापारिक पदचिह्न बढ़ाने की आवश्यकता है ताकि अमेरिका एवं यूरोप पर निर्भरता कम हो सके।
    • भारत का नए व्यापार समझौतों पर सक्रिय दृष्टिकोण विविधीकरण के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करता है:
      • समाप्त समझौते: यूनाइटेड किंगडम, EFTA
      • लगभग अंतिम चरण में: ओमान, न्यूज़ीलैंड
      • प्रक्रियाधीन वार्ताएँ: यूरोपीय संघ, चिली, पेरू और GCC
  • ये आधुनिक साझेदारियाँ व्यापक लाभ देने की संभावना हैं, जिनमें बाज़ार तक पहुँच, निवेश प्रवाह, आपूर्ति श्रृंखला एकीकरण और प्रौद्योगिकी सहयोग शामिल हैं, जो पुराने मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) से भिन्न हैं।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
[प्रश्न] भारत को वर्तमान वैश्विक आर्थिक परिप्रेक्ष्य में अपनी निर्यात रणनीति को पुनः संतुलित करने की आवश्यकता क्यों है। भारतीय निर्यातकों द्वारा सामना की जा रही चुनौतियों को उजागर करें और निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने के उपाय सुझाएँ।

Source: BL

 

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