भारत में संख्यात्मकता के अंतर का समापन

पाठ्यक्रम: GS2/सामाजिक मुद्दे; शिक्षा से जुड़े मुद्दे

संदर्भ

  • मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मकता (FLN) में लगातार सीखने का अंतर, जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के अंतगर्त बड़े एजुकेशनल सुधार एजेंडा के लिए खतरा है।

मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मकता (FLN) के बारे में 

  • यह बच्चों की समझ के साथ पढ़ने और बुनियादी गणितीय क्रियाएँ करने की क्षमता को संदर्भित करता है। 
  • ये कौशल भविष्य की सभी सीखने की प्रक्रियाओं और व्यक्तिगत विकास के लिए आवश्यक माने जाते हैं।
    • साक्षरता: समझ के साथ धाराप्रवाह पढ़ना, सुसंगत लेखन करना और विचार व्यक्त करना।
    • संख्यात्मकता: संख्याओं को समझना, बुनियादी क्रियाएँ करना और दैनिक जीवन में गणित लागू करना।
  •  FLN विकास सामान्यतः 3 से 8 वर्ष (कक्षा 3 तक) के बच्चों को लक्षित करता है, जो संज्ञानात्मक विकास की एक महत्वपूर्ण अवधि है। 
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 ने FLN को सर्वोच्च प्राथमिकता घोषित किया, जिससे निपुण भारत मिशन की शुरुआत हुई:
    • निपुण भारत (2021): कक्षा 1–3 के सभी बच्चों के लिए 2026–27 तक सार्वभौमिक FLN प्राप्त करने का लक्ष्य।
    • दीक्षा प्लेटफ़ॉर्म: FLN के लिए डिजिटल संसाधन प्रदान करता है, जिसमें शिक्षक प्रशिक्षण और शिक्षण सामग्री शामिल है।
    • निष्ठा FLN: शिक्षकों के लिए क्षमता-विकास कार्यक्रम ताकि मूलभूत शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार हो सके।
    • EAC-PM रिपोर्ट: प्रारंभिक FLN हस्तक्षेपों के दीर्घकालिक लाभों को उजागर करती है और राज्य-स्तरीय प्रगति को ट्रैक करती है।

FLN से संबंधित चिंताएँ और मुद्दे

  • संख्यात्मकता-साक्षरता अंतर: वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट (ASER) 2024 के अनुसार, जहाँ 48.7% कक्षा 5 के छात्र धाराप्रवाह पढ़ सकते हैं, वहीं केवल 30.7% ही एक साधारण भाग का प्रश्न हल कर सकते हैं — 18 प्रतिशत अंकों का उल्लेखनीय अंतर।
    • भारत का कोई भी राज्य संख्यात्मकता में साक्षरता से बेहतर परिणाम नहीं दिखाता। 
    • यह इंगित करता है कि बच्चे शब्द पढ़ सकते हैं, लेकिन ‘संख्याएँ पढ़ने’ में संघर्ष करते हैं। 
    • यह संख्यात्मकता में लक्षित हस्तक्षेपों की आवश्यकता को रेखांकित करता है — जो भारत के मूलभूत सीखने के ढाँचे में गायब कड़ी है।
  • गणित की पदानुक्रमित प्रकृति: संख्यात्मकता की समस्या की जड़ गणित की संचयी और पदानुक्रमित प्रकृति में है।
    • भाषा में आंशिक समझ भी प्रगति को सक्षम कर सकती है। 
    • गणित में, स्थान-मूल्य जैसी बुनियादी अवधारणा को न समझना बाद के विषयों जैसे जोड़, भिन्न या दशमलव को समझ से बाहर कर देता है। 
    • पारंपरिक पाठ्यक्रम-आधारित शिक्षण, जो छात्रों की अवधारणात्मक तैयारी की परवाह किए बिना आगे बढ़ता है, इस समस्या को गहरा करता है।
  • वास्तविक दुनिया से अलगाव: अब्दुल लतीफ़ जमील पॉवर्टी एक्शन लैब (J-PAL) के साक्ष्य एक और आयाम को उजागर करते हैं: कक्षा में गणित मूल्यांकन में अच्छा स्कोर करने वाले छात्र प्रायः इस ज्ञान को वास्तविक जीवन में लागू करने में विफल रहते हैं, जैसे बाज़ार की गणनाएँ करना।
    •  इसके विपरीत, जो बच्चे वास्तविक लेन-देन (जैसे पारिवारिक दुकानों में) संभालते हैं, वे प्रायः उन अनुभवों को औपचारिक गणित समस्याओं में नहीं बदल पाते।
    •  यह दो-तरफ़ा अलगाव एकीकृत सीखने की तत्काल आवश्यकता की ओर संकेत करता है, जो कक्षा गणित को दैनिक समस्या-समाधान से जोड़ता है।
  • उच्च असफलता दर और ड्रॉप आउट: बुनियादी संख्यात्मकता में कमजोर छात्र गणित और विज्ञान में संघर्ष करते हैं, जिससे बोर्ड परीक्षाओं में उच्च असफलता दर होती है।
    • कई किशोर कक्षा 10 से पहले स्कूल छोड़ देते हैं, रुचि की कमी के कारण नहीं, बल्कि इसलिए कि शिक्षण समझ से बाहर हो जाता है। 
    • यह भय और असंबद्धता का चक्र बनाता है, जो उच्च शिक्षा एवं रोजगार के मार्गों तक पहुँच को बंद कर देता है।

आगे की राह: बहु-आयामी प्रतिक्रिया की ओर

  • प्रारंभिक कक्षाओं से आगे FLN का विस्तार: FLN हस्तक्षेपों को केवल कक्षा 3 तक सीमित करना अपर्याप्त है।
    • लगभग 70% कक्षा 5 और 50% से अधिक कक्षा 8 के छात्र साधारण भाग नहीं कर सकते (ASER 2024)। 
    • हस्तक्षेपों को कक्षा 8 तक विस्तारित करना आवश्यक है। 
    • दादरा और नगर हवेली तथा दमन और दीव से प्राप्त साक्ष्य, जहाँ FLN प्रयासों को मध्य कक्षाओं तक विस्तारित किया गया, उल्लेखनीय सुधार दिखाते हैं (परख राष्ट्रीय सर्वेक्षण 2024)।
  • FLN+ कौशल का परिचय: आगामी चरण बुनियादी कौशल से आगे बढ़कर FLN+ होना चाहिए — जिसमें भिन्न, दशमलव, प्रतिशत, अनुपात और पूर्णांक शामिल हों।
    • ये न केवल बोर्ड परीक्षाओं के लिए बल्कि कार्यात्मक साक्षरता और जीवन कौशल के लिए भी आवश्यक हैं।
FLN+ दृष्टिकोण 
– यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 और निपुण भारत मिशन के लक्ष्यों पर आधारित है, जिसका उद्देश्य है कि प्रत्येक बच्चा कक्षा 3 तक मूलभूत कौशल प्राप्त करे।
FLN+ मॉडल के प्रमुख घटक:
मध्य कक्षाओं में समर्थन को सुदृढ़ करना: हस्तक्षेप कक्षा 3 पर नहीं रुकना चाहिए। कक्षा 4 और 5 के छात्रों को संख्यात्मकता कौशल को सुदृढ़ करने के लिए निरंतर सहयोग की आवश्यकता है।
गणित को दैनिक जीवन में संदर्भित करना: गणित को वास्तविक दुनिया के अनुप्रयोगों — जैसे बजट बनाना, माप और स्थानीय समस्या-समाधान — के माध्यम से संबंधित बनाना जुड़ाव एवं स्मरणशक्ति को बढ़ा सकता है।
शिक्षक सशक्तिकरण: शिक्षकों को डायग्नोस्टिक टूल्स, विभेदित शिक्षण में प्रशिक्षण और सहकर्मी शिक्षण नेटवर्क तक पहुँच प्रदान करना प्रभावी शिक्षण के लिए आवश्यक है।
  • शिक्षण पद्धति पर पुनर्विचार: बाल-मैत्रीपूर्ण, गतिविधि-आधारित शिक्षण विधियाँ, जो प्रारंभिक कक्षाओं में प्रभावी सिद्ध हुई हैं, उन्हें उच्च प्राथमिक स्तरों के लिए अनुकूलित किया जाना चाहिए। शिक्षण को छात्रों के वास्तविक सीखने के स्तरों के अनुसार होना चाहिए, न कि कठोर पाठ्यक्रमों के अनुसार। 
  • सीखने को जीवन से जोड़ना: गणित को संदर्भ-समृद्ध समस्याओं के माध्यम से पढ़ाया जाना चाहिए जो वास्तविक दुनिया की परिस्थितियों को दर्शाती हों। दैनिक जीवन में साक्षरता और संख्यात्मकता को शामिल करना प्रासंगिकता एवं स्मरणशक्ति दोनों को बढ़ाता है।

निष्कर्ष 

  • भारत की संख्यात्मकता चुनौती गहरी, तंत्रगत और तात्कालिक है। यह गणित की परतदार प्रकृति से उत्पन्न होती है तथा पारंपरिक शिक्षण प्रथाओं द्वारा बनाए रखी जाती है जो कई शिक्षार्थियों को पीछे छोड़ देती हैं।
    • इसके परिणाम — खराब प्रदर्शन, ड्रॉप आउट और असमानता — NEP 2020 के लक्ष्यों को खतरे में डालते हैं।
  • निपुण भारत मिशन ने प्रदर्शित किया है कि केंद्रित, साक्ष्य-आधारित हस्तक्षेप बड़े पैमाने पर मूलभूत शिक्षा में सुधार कर सकते हैं।
    •  आगामी कदम इन लाभों को उच्च प्राथमिक स्तर तक विस्तारित करना और FLN+ संख्यात्मकता को राष्ट्रीय प्राथमिकता के रूप में स्थापित करना होना चाहिए। 
  • यह एक सामाजिक और आर्थिक आवश्यकता है, साथ ही एक शैक्षणिक अनिवार्यता है, जो सीधे भारत की मानव पूंजी, समानता एवं भविष्य की वृद्धि को प्रभावित करती है।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
[प्रश्न] भारत में संख्यात्मकता की कमी में योगदान देने वाली प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिए और निपुण भारत जैसी वर्तमान सरकारी पहलों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिए कि वे इन समस्याओं को किस प्रकार संबोधित करती हैं।

Source: TH

 

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