शिक्षित भारतीयों की बेरोजगारी

पाठ्यक्रम: GS3/ अर्थव्यवस्था

संदर्भ 

  • भारत में शिक्षित बेरोजगारी में तीव्रता देखी जा रही है, जहाँ डिग्रीधारी कम-कुशल रोजगारों के लिए आवेदन कर रहे हैं।
    • यह श्रम बाज़ार की गहरी परेशानी को उजागर करता है और शिक्षा तथा रोजगार की आवश्यकताओं के बीच असंगति को दर्शाता है।

वर्तमान प्रवृत्तियाँ

  • अत्यधिक अर्हता: डिग्रीधारियों द्वारा सफाईकर्मी और चपरासी जैसी भूमिकाओं के लिए आवेदन करना दर्शाता है कि सम्मानजनक प्रारंभिक औपचारिक रोजगारों की भारी कमी है। 
  • कैंपस प्लेसमेंट तनाव: प्रतिष्ठित संस्थानों के कई स्नातक बिना रोजगार के रह जाते हैं, जो विभिन्न क्षेत्रों में उच्च-कुशल श्रमिकों की कम मांग को दर्शाता है। 
  • वेतन स्थिरता: नए कर्मचारियों का वेतन वर्षों से ₹3–4 लाख प्रति वर्ष के आसपास बना हुआ है, जबकि महंगाई बढ़ती रही है, जिससे वास्तविक आय में गिरावट आई है। 
  • मानव लागत: बेरोजगारों में आत्महत्या की घटनाएँ मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव और सामाजिक अस्थिरता को दर्शाती हैं।

प्रमुख कारण

  • कौशल असंगति: लगभग 33% स्नातकों का कहना है कि उनके कौशल उद्योग की आवश्यकताओं से सामंजस्यशील नहीं हैं।
    • उदाहरण के लिए, इंजीनियरिंग कॉलेज प्रायः ऐसे कोडर्स तैयार करते हैं जिन्हें व्यावहारिक परियोजना अनुभव नहीं होता, जिससे वे स्टार्टअप या टेक कंपनियों के लिए अनुपयुक्त हो जाते हैं। 
  • बेरोजगार वृद्धि और कम रोजगार लोच: सेवाएँ GDP में 54% से अधिक योगदान देती हैं, लेकिन केवल 30% से कम रोजगार उत्पन्न करती हैं।
    • वहीं, पारंपरिक रूप से बड़े कार्यबल को रोजगार देने वाला विनिर्माण क्षेत्र नीतिगत और बुनियादी ढांचे की कमियों के कारण कमजोर बना हुआ है। 
  • कमज़ोर उद्योग-शैक्षणिक संस्थान संबंध: केवल 12% उत्तरदाताओं ने किसी भी प्रकार की कैंपस भर्ती या प्लेसमेंट सहायता की सूचना दी।
    • अधिकांश संस्थान सैद्धांतिक ज्ञान पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जबकि व्यावसायिक कौशल या इंटर्नशिप की उपेक्षा करते हैं। 
  • लिंग असमानता: महिला स्नातकों की बेरोजगारी दर 30% से अधिक है, जो सांस्कृतिक पूर्वाग्रहों, सुरक्षा चिंताओं और निजी क्षेत्र के रोजगारों या रात्रि शिफ्टों तक सीमित पहुँच से बाधित है।
    • उदाहरण के लिए, बिहार में महिलाएँ सामाजिक प्रतिबंधों के कारण रोजगार के विकल्पों से वंचित रहती हैं। 
  • क्षेत्रीय असंतुलन: बिहार और झारखंड में शिक्षित बेरोजगारी 35% से अधिक है, जबकि बेंगलुरु और मुंबई जैसे महानगर शहरी युवाओं को आकर्षित करते हैं, जिससे क्षेत्रीय असमानता एवं ग्रामीण-शहरी पलायन का दबाव बढ़ता है।

आर्थिक और सामाजिक प्रभाव

  • बढ़ती सामाजिक असमानता: दीर्घकालिक शिक्षित बेरोजगारी शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों तथा सामाजिक समूहों के बीच आय एवं अवसर की असमानता को बढ़ाती है, जिससे सामाजिक तनाव तथा असंतोष उत्पन्न होता है। 
  • अपराध और सामाजिक अशांति में वृद्धि: युवाओं में बेरोजगारी प्रायः उच्च अपराध दर, नशे का व्यसन और विरोध या उग्र आंदोलनों में भागीदारी से जुड़ी होती है, जिससे समुदायों की स्थिरता प्रभावित होती है। 
  • कौशल और मानव पूंजी का क्षरण: लंबे समय तक बेरोजगारी से कौशल में गिरावट आती है और भविष्य की रोजगार क्षमता कम होती है, जिससे बेरोजगारी एवं प्रतिभा के कम उपयोग का दुष्चक्र बनता है। 
  • परिवार और घरेलू तनाव: शिक्षित सदस्यों से अपेक्षित आय की हानि से परिवारों में आर्थिक तनाव बढ़ता है, जिससे विवाह में देरी, बच्चों की शिक्षा में निवेश में कमी और स्वास्थ्य परिणामों में गिरावट आती है। 
  • अनौपचारिक क्षेत्र पर दबाव: विस्थापित स्नातक अनौपचारिक, असुरक्षित रोजगारों की ओर बढ़ते हैं, जिनमें सामाजिक सुरक्षा नहीं होती, जिससे अस्थिर जीवनशैली एवं कर राजस्व की हानि होती है। 
  • शहरी बुनियादी ढांचे के विकास में देरी: बेरोजगार युवाओं का महानगरों की ओर पलायन आवास, परिवहन और स्वच्छता प्रणालियों पर दबाव डालता है, जिससे जीवन की गुणवत्ता प्रभावित होती है। 
  • मानसिक स्वास्थ्य और आत्महत्या के समूह: व्यक्तिगत मामलों से परे, कुछ क्षेत्रों में बेरोजगारी से संबंधित आत्महत्याओं के समूह देखे गए हैं, जो स्थानीय सामाजिक-आर्थिक संकट को दर्शाते हैं और लक्षित हस्तक्षेप की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।

नीतिगत अंतर और सुधार की आवश्यकता

  • हाल की योजनाएँ (आत्मनिर्भर भारत रोज़गार योजना, पीएम कौशल विकास योजना, स्टार्टअप इंडिया) ने अवसरों की पहुँच में सुधार किया है, लेकिन इनका पैमाना और गहराई अभी भी अपर्याप्त है।
  • भारत के लिए आवश्यक है :
    •  मांग-आधारित शिक्षा: राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुसार रोजगार से जुड़ी अप्रेंटिसशिप और व्यावहारिक कौशल को शिक्षा में शामिल किया जाए।
    •  श्रम-प्रधान और हरित विकास: विनिर्माण, नवीकरणीय ऊर्जा और संबद्ध सेवाओं जैसे क्षेत्रों को प्राथमिकता दी जाए ताकि अधिक रोजगार सृजित हों। 
    • महिला-केंद्रित नीतियाँ: सुरक्षित शहरी परिवहन, लचीले कार्य वातावरण और कार्यस्थल पर उत्पीड़न से सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। 
    • पारदर्शी और विस्तृत डेटा: श्रम सर्वेक्षणों में राज्य स्तर पर स्नातक बेरोजगारी और रोजगार की गुणवत्ता के विस्तृत मापदंड शामिल किए जाएँ।

Source: IE

 

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