पाठ्यक्रम: GS3/जलवायु परिवर्तन
संदर्भ
- नेचर की वैज्ञानिक रिपोर्ट में प्रकाशित एक हालिया संयुक्त अध्ययन से पता चला है कि भारत में धूप के घंटे प्रदूषण और बादलों की अधिकता के कारण घट रहे हैं, जिससे देश की सौर ऊर्जा की महत्वाकांक्षाओं को खतरा उत्पन्न हो रहा है।
सौर मंदता क्या है?
- सौर मंदता (Solar Dimming) उस देखी गई प्रक्रिया को कहते हैं जिसमें पृथ्वी की सतह तक पहुँचने वाली सौर विकिरण में कमी आती है। इसके मुख्य कारण हैं:
- औद्योगिक उत्सर्जन, वाहनों के धुएँ और बायोमास जलाने से उत्पन्न एरोसोल प्रदूषण।
- लगातार बादल छाए रहना, विशेष रूप से मानसून के महीनों में।
- शहरी धुंध और आर्द्रता, जो सूर्य की किरणों को प्रकीर्णित एवं अवशोषित करती हैं।
भारत पर अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष
- धूप के घंटों में गिरावट: उत्तर भारतीय मैदानों में सबसे तीव्र गिरावट देखी गई, जहाँ विगत तीन दशकों में औसतन प्रति वर्ष लगभग 13.1 घंटे की धूप कम हो गई।
- ट्वॉमी प्रभाव (Twomey Effect): अध्ययन में ट्वॉमी प्रभाव को रेखांकित किया गया, जिसमें मानवजनित एरोसोल उत्सर्जन (कारखानों, वाहनों, बायोमास जलाने से) के कारण बादलों की छोटी बूंदों की संख्या बढ़ जाती है।
- गिरावट का प्रमुख कारण: दीर्घकालिक सौर मंदता का मुख्य कारण एरोसोल सांद्रता में वृद्धि है, जो मुख्यतः औद्योगिक उत्पादन, वाहन उत्सर्जन और बायोमास जलाने से उत्पन्न होती है।
- एरोसोल बादल निर्माण के लिए छोटे बीज की तरह कार्य करते हैं, जिससे आकाश अधिक समय तक ढका रहता है और पृथ्वी की सतह तक पहुँचने वाली धूप कम हो जाती है।
- एरोसोल दो प्रकार के होते हैं: प्राथमिक और द्वितीयक।
- प्राथमिक एरोसोल सीधे उत्सर्जित कण होते हैं जैसे समुद्री नमक, धूल और कालिख।
- द्वितीयक एरोसोल वायुमंडल में गैसों जैसे SO₂, NOₓ और VOCs के रासायनिक प्रतिक्रियाओं से बनते हैं, जो सल्फेट, नाइट्रेट या जैविक एरोसोल में परिवर्तित हो जाते हैं।
प्रभाव: ऊर्जा, कृषि और जलवायु
- नवीकरणीय ऊर्जा: कम होती धूप भारत की सौर ऊर्जा क्षमता को खतरे में डालती है।
- 2030 के स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को खतरे में डालते हुए सौर ऊर्जा उत्पादन में 7% तक की गिरावट हो सकती है।
- कृषि: धान और गेहूँ जैसी फसलें, जो प्रकाश संश्लेषण पर अत्यधिक निर्भर हैं, कम प्रकाश तीव्रता के कारण कम उपज दे रही हैं।
- पर्यावरण: कम होती धूप हिमालयी हिमनदों के पिघलने में अप्रत्यक्ष रूप से योगदान देती है, जिससे जल चक्र एवं क्षेत्रीय पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होते हैं।
| आगत सौर विकिरण (Insolation) – यह पृथ्वी की सतह पर प्राप्त सौर ऊर्जा को दर्शाता है, जो लघु तरंग विकिरण के रूप में आती है। – यह हमारे ग्रह के लिए ऊष्मा और ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है और वायुमंडलीय तथा जलवायु प्रक्रियाओं को संचालित करता है। – पृथ्वी को वायुमंडल की ऊपरी सतह पर प्रति मिनट प्रति वर्ग सेंटीमीटर 1.94 कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है। – यह पृथ्वी की दीर्घवृत्ताकार कक्षा के कारण वर्ष भर थोड़ा-थोड़ा बदलता रहता है: 1. एफेलियन (सूर्य से सबसे दूर): 4 जुलाई 2. पेरिहेलियन (सूर्य के सबसे निकट): 3 जनवरी भूमि और समुद्र का वितरण, वायुमंडलीय परिसंचरण एवं सूर्य की किरणों का कोण दैनिक मौसम तथा जलवायु में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। – आगत सौर विकिरण को प्रभावित करने वाले कारक 1. विभिन्न स्थानों और समयों पर प्राप्त होने वाली आगत सौर विकिरण की मात्रा और तीव्रता निम्नलिखित पर निर्भर करती है: 2. पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूर्णन; 3. सूर्य की किरणों का झुकाव कोण; 4. दिन की लंबाई; 5. वायुमंडलीय पारदर्शिता (जिसे बादल, धूल और प्रदूषण प्रभावित करते हैं); 6. स्थलाकृति और भूमि की संरचना। |
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