CII द्वारा राष्ट्रीय वैश्विक क्षमता केंद्र (GCC) नीति के लिए रूपरेखा का सुझाव

पाठ्यक्रम: GS3/अर्थव्यवस्था

संदर्भ

  • भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) ने वैश्विक क्षमता केंद्र (GCCs) के लिए एक प्रस्तावित राष्ट्रीय ढांचे का अनावरण किया है।

वैश्विक क्षमता केंद्र क्या हैं?

  • ग्लोबल इन-हाउस सेंटर्स या कैप्टिव्स (GICs) या वैश्विक क्षमता केंद्र (GCCs) मुख्य रूप से वैश्विक स्तर की कंपनियों/बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा स्थापित ऑफशोर केंद्र होते हैं जो अपनी मूल कंपनियों को विभिन्न सेवाएं प्रदान करते हैं। 
  • ये केंद्र वैश्विक कॉर्पोरेट संरचना के अंदर आंतरिक संगठन के रूप में कार्य करते हैं और आईटी सेवाएं, अनुसंधान एवं विकास (R&D), ग्राहक सहायता तथा अन्य व्यावसायिक कार्यों जैसे विशेष समाधान प्रदान करते हैं। 
  • विगत कुछ दशकों में GCCs लागत-बचत केंद्रों से विकसित होकर नवाचार को प्रोत्साहित करने और मूल्य सृजन में योगदान देने वाले रणनीतिक केंद्र बन गए हैं।

भारत में GCCs का परिदृश्य

  • भारत पहले से ही 1,800 से अधिक GCCs की मेज़बानी करता है, जो 2.16 मिलियन पेशेवरों को रोजगार देते हैं और लगभग $68 बिलियन का प्रत्यक्ष सकल मूल्य वर्धन (GVA) प्रदान करते हैं, जो सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का लगभग 1.8% है।
  • CII के ढांचे के अनुसार, 2030 तक इन केंद्रों की संख्या 5,000 तक पहुँच सकती है, जिससे $154–199 बिलियन का प्रत्यक्ष GVA उत्पन्न होगा।
    • परोक्ष और प्रेरित प्रभावों को मिलाकर कुल प्रभाव $470–600 बिलियन तक पहुँच सकता है।
भारत में GCCs का परिदृश्य
  • रोजगार की संभावनाएँ: 2030 तक यह 20–25 मिलियन रोजगारों में परिवर्तित हो सकता है, जिसमें कृत्रिम बुद्धिमत्ता, इंजीनियरिंग R&D, साइबर सुरक्षा एवं डिजिटल प्लेटफॉर्म जैसे क्षेत्रों में 4–5 मिलियन उच्च गुणवत्ता वाली प्रत्यक्ष नौकरियाँ शामिल होंगी।

भारत में GCCs की वृद्धि के कारक

  • वैश्विक क्षमता केंद्र प्रतिभा केंद्र: भारत को वैश्विक स्तर पर आईटी, इंजीनियरिंग, एनालिटिक्स और वित्त जैसे क्षेत्रों में विशेषज्ञता रखने वाली विविध प्रतिभा के लिए जाना जाता है।
    • कुशल कार्यबल की उपलब्धता ने GCCs को भारत में उच्च मूल्य एवं जटिल परियोजनाओं को लागू करने में सक्षम बनाया है।
  • वैश्विक क्षमता केंद्र तकनीकी नवाचार: मशीन लर्निंग (ML), कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) और ब्लॉकचेन जैसी उन्नत तकनीकों को तीव्रता से अपनाया गया है।
    • इससे भारत में GCCs को नवाचारी समाधान प्रदान करने और अपनी मूल कंपनियों को डिजिटल रूप से रूपांतरित करने में सहायता मिली है।
  • वैश्विक क्षमता केंद्र रणनीतिक दृष्टिकोण: लागत-बचत केंद्र के रूप में पहचाने जाने से लेकर रणनीतिक केंद्र बनने तक, वर्षों में MNCs ने भारत में GCCs स्थापित करने की क्षमता को पहचाना है।
    • अब इन केंद्रों को व्यवसायों को विकास, संचालन दक्षता और प्रतिस्पर्धात्मक लाभ दिलाने वाली रणनीतिक संपत्ति के रूप में देखा जाता है।
  • वैश्विक क्षमता केंद्र सरकारी समर्थन: भारतीय सरकार के विभिन्न सुधारों, जैसे डिजिटल इंडिया अभियान, ने भारत में GCCs की वृद्धि के लिए अनुकूल वातावरण बनाने में योगदान दिया है।

CII की सिफारिशें

  •  निवेश सुविधा: नीति विधायी रूप से समर्थित डिजिटल आर्थिक क्षेत्रों की सिफारिश करती है, जिनमें “प्लग-एंड-प्ले भौतिक एवं डिजिटल अवसंरचना, समन्वित विनियम और प्रतिस्पर्धी प्रोत्साहन” हों।  
  • राष्ट्रीय पोर्टल: यह एक राष्ट्रीय सिंगल विंडो पोर्टल की मांग करता है जो निर्बाध अनुमोदन प्रदान करे, जिसे एक तीन-स्तरीय शासन प्रणाली द्वारा समर्थित किया जाए, जिसमें एक राष्ट्रीय GCC परिषद हो।  
  • विस्तार: यह भारत के छह महानगरों से परे GCCs के विस्तार का सुझाव देता है।
    • कोयंबटूर, कोच्चि, इंदौर, जयपुर और भुवनेश्वर जैसे टियर-2 और टियर-3 शहरों को भविष्य के विकास केंद्रों के रूप में चिन्हित किया गया है, जो कम लागत, बढ़ती डिजिटल प्रतिभा एवं बेहतर प्रतिधारण दर प्रदान करते हैं। 
  •  रियायती कॉर्पोरेट कर: सरकार को अधिसूचित विशेष आर्थिक क्षेत्रों में स्थापित GCCs को रियायती कॉर्पोरेट कर दरें या कर अवकाश देने पर विचार करना चाहिए।
    • इसने स्थायी प्रतिष्ठान नियमों के समन्वय की भी मांग की है।  
  • सेवाओं पर स्पष्टता: सरकार को GCCs द्वारा प्रदान की जा रही सेवाओं की प्रकृति पर स्पष्टता प्रदान करनी चाहिए, जिससे उन्हें ‘मध्यस्थ’ की श्रेणी से बाहर किया जा सके।
    •  यह वस्तु एवं सेवा कर (GST) रिफंड और कर रिफंड आवेदन पर अधिकारियों द्वारा की जा रही विस्तृत जांच को तीव्र करने में सहायता करेगा। 
    • इन GCCs की प्रतिभा आवश्यकताओं को समर्थन देने के लिए, सरकार की राष्ट्रीय नीति को क्षेत्र की मांगों के अनुरूप विशेषीकृत प्रतिभा विकसित करने का लक्ष्य रखना चाहिए।

आगे की राह

  • वैश्विक क्षमता केंद्र ने भारत में कॉर्पोरेशनों के लिए परिदृश्य को बदल दिया है, जिससे भारत को केवल लागत-बचत माध्यम के रूप में देखने की सोच से हटकर नवाचार और रणनीतिक मूल्य के केंद्र के रूप में देखा जाने लगा है। 
  • भारत में GCCs ने देश की कुशल कार्यबल, तकनीकी लाभ और सहायक सरकारी नीतियों का उपयोग करके आर्थिक विकास, रोजगार सृजन एवं क्षेत्रीय विकास को सक्षम किया है। 
  • GCCs निरंतर नवाचार, सहयोग और प्रतिभा व अवसंरचना में निवेश के माध्यम से सतत विकास को आगे बढ़ा सकते हैं तथा भारत को $5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य में योगदान दे सकते हैं।
भारतीय उद्योग परिसंघ (CII)
– प्रकार: गैर-सरकारी, गैर-लाभकारी, उद्योग-प्रेरित और उद्योग-प्रबंधित संगठन।  
स्थापना: 1895 (इंजीनियरिंग एंड आयरन ट्रेड्स एसोसिएशन के रूप में; 1992 में CII नाम अपनाया)।  
मुख्यालय: नई दिल्ली।  
सदस्यता: 9,000 से अधिक प्रत्यक्ष सदस्य (निजी और सार्वजनिक उद्यम, SME, MNCs) और 300,000 अप्रत्यक्ष सदस्य (क्षेत्रीय संघों के माध्यम से)।  
कवरेज: भारत में 62 कार्यालयों और विदेशों में 8 कार्यालयों के माध्यम से सभी आर्थिक क्षेत्रों को कवर करता है।
 CII सरकारों और विचार नेताओं के साथ मिलकर कार्य करके उद्योग की दक्षता, प्रतिस्पर्धात्मकता एवं व्यावसायिक अवसरों को बढ़ाता है।

Source: BS

 

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