भारत के विद्युत क्षेत्र की उन्मुक्ति: भारतीय अर्थव्यवस्था की सहायता के लिए

पाठ्यक्रम: GS3/ऊर्जा अवसंरचना

संदर्भ

  • भारत का विद्युत क्षेत्र तकनीकी और प्रशासनिक बाधाओं का सामना कर रहा है, जिसे व्यापक आर्थिक सीमाओं ने जटिल बना दिया है — ये कारक देश की आर्थिक दिशा को प्रभावित कर सकते हैं।

भारत का विद्युत क्षेत्र

  • स्थापित क्षमता और ऊर्जा मिश्रण: 2025 के मध्य तक भारत की कुल स्थापित विद्युत क्षमता 476 गीगावाट तक पहुँच गई है, जिसमें गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों की हिस्सेदारी 49% है। इसमें शामिल हैं:
    • थर्मल (कोयला, गैस, डीज़ल): 240 GW; ~50.5%
    • सौर ऊर्जा: 110.9 GW; ~23.3%
    • पवन ऊर्जा: 51.3 GW; ~10.8%
    • जल विद्युत: 46.9 GW; ~9.8%
    • परमाणु ऊर्जा: 8.8 GW; ~1.8%
  • नवीकरणीय ऊर्जा में प्रगति: 2014 से 2025 के बीच स्थापित नवीकरणीय क्षमता तीन गुना बढ़कर 76 GW से 226 GW से अधिक हो गई।
    • सौर ऊर्जा में 39 गुना से अधिक वृद्धि हुई, और पवन ऊर्जा विशेष रूप से ऑनशोर परियोजनाओं में विस्तार कर रही है। 
    • भारत का 2030 तक 500 GW गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता का लक्ष्य महत्वाकांक्षी है, लेकिन 176 GW से अधिक की परियोजनाएँ कार्यान्वयन में हैं।
  • मांग और भविष्य की दिशा: भारत की विद्युत मांग प्रति वर्ष 7–9% की दर से बढ़ रही है, जबकि पीक डिमांड इससे भी तेज़ी से बढ़ रही है।

भारत के विद्युत क्षेत्र का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

  • GDP वृद्धि और औद्योगिक विस्तार: विश्वसनीय विद्युत आपूर्ति विनिर्माण, सेवाओं और डेटा सेंटर व इलेक्ट्रिक वाहनों जैसी उभरती तकनीकों के लिए आवश्यक है।
    • 2001 से 2022 के बीच औद्योगिक और वाणिज्यिक बिजली मांग क्रमशः 3× एवं 4.5× गुना बढ़ी, जो विभिन्न क्षेत्रों में आधुनिकीकरण को दर्शाती है।
  • रोजगार और निवेश: यह क्षेत्र उत्पादन, संचरण, वितरण और नवीकरणीय ऊर्जा में करोड़ों नौकरियाँ प्रदान करता है।
    • ₹6.4 लाख करोड़ के ट्रांसमिशन और वितरण निवेश जैसे बुनियादी ढांचे की परियोजनाएँ स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को प्रोत्साहित करती हैं तथा कुशल रोजगार सृजित करती हैं।
  • ग्रामीण विकास और विद्युतीकरण: सार्वभौमिक घरेलू विद्युतीकरण ने ग्रामीण क्षेत्रों में छिपी हुई मांग को उजागर किया है, जिससे उत्पादकता, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार हुआ है।
    • सौभाग्य और दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना (DDUGJY) जैसी योजनाओं के तहत 2.8 करोड़ से अधिक घरों को ग्रिड से जोड़ा गया।
  • ऊर्जा सुरक्षा और व्यापार: भारत अब प्रति वर्ष 1.5 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक मूल्य की विद्युत का निर्यात करता है, और मध्य पूर्व तक अंडरसी ट्रांसमिशन लिंक की योजना बना रहा है।
    • नवीकरणीय ऊर्जा में विविधता लाने से ऊर्जा स्वतंत्रता बढ़ती है और कोयला व गैस के आयात बिल में कमी आती है।
  • जलवायु और सतत विकास लक्ष्य: भारत का 2030 तक 500 GW गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता का संकल्प उसके 45% कार्बन तीव्रता में कटौती के वादे को समर्थन देता है।
    • स्वच्छ ऊर्जा की ओर संक्रमण दीर्घकालिक पर्यावरणीय लागत को कम करता है तथा वैश्विक जलवायु वित्त अवसरों के साथ सामंजस्यशील है।

भारत के विद्युत क्षेत्र की प्रमुख चुनौतियाँ

  • उत्पादन पर छिपा हुआ कर: भारतीय कंपनियाँ प्रभावी लागत से दोगुना बिजली मूल्य चुकाती हैं, जिससे उत्पादन पर ‘100% कर’ जैसा भार पड़ता है।
    • इसका आधा हिस्सा वितरण अक्षमताओं से और आधा क्रॉस-सब्सिडी से आता है, जहाँ उद्योग और वाणिज्यिक उपभोक्ता घरेलू एवं कृषि उपयोगकर्ताओं को सब्सिडी देते हैं। 
    • बड़ी कंपनियाँ कैप्टिव पावर या सौदेबाज़ी के ज़रिए इससे बच निकलती हैं, जबकि MSMEs के विस्तार, रोजगार सृजन और वैश्विक प्रतिस्पर्धा की क्षमता सीमित हो जाती है।
  • सब्सिडी का स्थानांतरण: बिजली सब्सिडी GDP का लगभग 1.2–1.3% खपत करती है।
    •  पहले कृषि मुख्य लाभार्थी थी, अब लगभग आधी सब्सिडी घरेलू उपभोक्ताओं को जाती है। 
    • 70–85% सब्सिडी मध्यम वर्ग और अमीर परिवारों को मिलती है।
  • वैश्विक प्रतिस्पर्धा: चीन तेजी से ‘इलेक्ट्रो-स्टेट’ बन रहा है, अपनी अर्थव्यवस्था को नवीकरणीय ऊर्जा से विद्युतीकृत कर रहा है और AI, EVs व डेटा सेंटर जैसे भविष्य के उद्योगों में प्रभुत्व की ओर बढ़ रहा है।
    • यदि भारत ने अपने विद्युत क्षेत्र में सुधार नहीं किया, तो वह इस वैश्विक दौड़ में पीछे रह सकता है।

अन्य चुनौतियाँ

  • वितरण और ग्रिड समस्याएँ: वितरण कंपनियों (DISCOMs) ने 2022–23 तक ₹6.77 लाख करोड़ से अधिक घाटा जमा कर लिया है।
    • DISCOMs अक्षमता, राजनीतिक हस्तक्षेप और बार-बार के बेलआउट से ग्रस्त हैं।
  • AT&C हानि: राष्ट्रीय औसत AT&C हानि लगभग 25% है, जबकि विकसित देशों में यह 6–7% है।
    • ये हानियाँ पुराने बुनियादी ढांचे, चोरी और खराब मीटरिंग से उत्पन्न होती हैं।
  • ईंधन की कमी और आपूर्ति अंतराल: कोयला प्रमुख ऊर्जा स्रोत बना हुआ है, लेकिन घरेलू उत्पादन मांग के अनुरूप नहीं है।
    • इससे उत्पादन क्षमता का कम उपयोग और आयात पर निर्भरता बढ़ती है।
  • टैरिफ विकृति: बिजली दरें प्रायः राजनीतिक रूप से प्रभावित होती हैं, और क्रॉस-सब्सिडी से औद्योगिक उपभोक्ताओं पर भार पड़ता है।
    • टैरिफ संशोधन में देरी और भिन्न मूल्य संरचनाएँ निवेश एवं दक्षता को हतोत्साहित करती हैं।
  • कम क्षमता उपयोग: स्थापित क्षमता बढ़ने के बावजूद, ईंधन की कमी और अव्यवहारिक PPA के कारण वास्तविक उत्पादन पिछड़ता है।
  • नीतिगत विखंडन: केंद्र और राज्य सरकारों के बीच अधिकारों की ओवरलैपिंग सुधारों को जटिल बनाती है।
    • ओपन एक्सेस और सब्सिडी लक्षित करने जैसी प्रगतिशील नीतियों का कार्यान्वयन असमान है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा एकीकरण की चुनौतियाँ: भारत ने 2030 तक 500 GW गैर-जीवाश्म क्षमता का संकल्प लिया है, लेकिन ग्रिड आधुनिकीकरण और भंडारण समाधान पीछे हैं।
    • अंतराल वाली नवीकरणीय ऊर्जा को बेस-लोड मांग के साथ संतुलित करना अभी भी तकनीकी चुनौती है।

प्रमुख नीतियाँ और सुधार

  • बिजली अधिनियम, 2003: प्रतिस्पर्धा, ओपन एक्सेस और उपभोक्ता संरक्षण की शुरुआत की।
    • लाइसेंस-मुक्त उत्पादन और वितरण, पावर ट्रेडिंग एवं अनिवार्य मीटरिंग को सक्षम किया। 
    • राज्य विद्युत नियामक आयोगों (SERCs) की स्थापना की और ग्रामीण विद्युतीकरण को बढ़ावा दिया।
  • राष्ट्रीय विद्युत नीति (NEP) और टैरिफ नीति: सभी के लिए सस्ती, विश्वसनीय विद्युत की नींव रखी।
    • टैरिफ नीति (2006, संशोधित 2016) ने लागत-आधारित दरों, नवीकरणीय एकीकरण और दक्षता को प्राथमिकता दी।
  • दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना (DDUGJY): ग्रामीण विद्युतीकरण और कृषि व गैर-कृषि भार के लिए फीडर पृथक्करण पर केंद्रित।
    • गांवों में सब-ट्रांसमिशन और वितरण बुनियादी ढांचे को सुदृढ़ किया।
  • सौभाग्य योजना: सार्वभौमिक घरेलू विद्युतीकरण का लक्ष्य।
    • 2.8 करोड़ से अधिक घरों को ग्रिड से जोड़ा गया, जिससे ग्रामीण उत्पादकता और कल्याण में सुधार हुआ।
  • उज्ज्वल डिस्कॉम एश्योरेंस योजना (UDAY): राज्य स्वामित्व वाली वितरण कंपनियों के वित्तीय पुनरुद्धार का उद्देश्य।
    • AT&C हानियों को कम करने, बिलिंग दक्षता सुधारने और लागत व राजस्व के अंतर को समाप्त करने पर केंद्रित।
  • राष्ट्रीय विद्युत पोर्टल: उत्पादन, पारेषण और उपभोग के लिए केंद्रीकृत डेटा और विश्लेषण।
  • एक राष्ट्र, एक ग्रिड: एकीकृत राष्ट्रीय ग्रिड विभिन्न क्षेत्रों में निर्बाध विद्युत प्रवाह को सक्षम बनाता है।
    • विश्वसनीयता, दक्षता और बाजार एकीकरण को बढ़ाता है।
  • पुनर्गठित वितरण क्षेत्र योजना: स्मार्ट मीटर, फीडर स्वचालन और हानि न्यूनीकरण लक्ष्यों के साथ डिस्कॉम को आधुनिक बनाने के लिए शुरू की गई।
    • प्रदर्शन मेट्रिक्स से वित्तीय सहायता को जोड़ा गया।

आगे की राह: विद्युत क्रांति की ओर

  • अकुशलता के चक्र का समापन:
    • केवल तकनीकी कारकों पर आधारित, विद्युत दरों का आमूल-चूल सरलीकरण।
    • क्रॉस-सब्सिडी का उन्मूलन, यह सुनिश्चित करना कि उपयोगकर्ता केवल कुशल लागत का भुगतान करें।
    • वास्तव में गरीब परिवारों के लिए लक्षित सब्सिडी, अमीरों के लिए लाभ समाप्त।
    • सुधारों के वित्तपोषण के लिए केंद्र और राज्यों के बीच साझा संक्रमण लागत।
    • सुधारों के दबाव को बढ़ाने के लिए अव्यवहार्य डिस्कॉम का व्यवस्थित रूप से बाहर निकलना।
  • भारत का विद्युत वितरण सार्वजनिक क्षेत्र के अंतिम एकाधिकार वाले क्षेत्रों में से एक बना हुआ है। 
  • 1990 के दशक में दूरसंचार सुधारों ने आईटी क्रांति को जन्म दिया; विद्युत क्षेत्र में इसी तरह के प्रतिस्पर्धी सुधार उत्पादकता और विकास की एक नई लहर ला सकते हैं।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
[प्रश्न] आर्थिक विकास को गति देने में भारत के विद्युत क्षेत्र की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए। चर्चा कीजिए कि यह औद्योगिक विकास, ग्रामीण सशक्तिकरण और राजकोषीय स्थिरता में किस प्रकार योगदान देता है।

Source: IE

 

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