पाठ्यक्रम: GS3/अर्थव्यवस्था; रोजगार; विकास एवं प्रगति
संदर्भ
- हाल ही में भारत के स्वतंत्रता दिवस संबोधन के दौरान, प्रधानमंत्री ने देश से अपनी निर्भरता छोड़ने और तकनीकी संप्रभुता को अपनाने का आह्वान किया, ताकि कृत्रिम बुद्धिमत्ता, क्वांटम कंप्यूटिंग, सेमीकंडक्टर्स एवं अंतरिक्ष तकनीक जैसे डीप-टेक नवाचारों में नेतृत्व किया जा सके।
डीप टेक्नोलॉजी के बारे में
- यह उन नवाचारों को संदर्भित करता है जो उन्नत वैज्ञानिक और इंजीनियरिंग खोजों पर आधारित होते हैं, जैसे कि एआई, क्वांटम कंप्यूटिंग, बायोटेक्नोलॉजी एवं स्पेस टेक्नोलॉजी, और जिनका प्रभाव विघटनकारी होता है।
- इसमें प्रायः लंबा विकास चक्र, उच्च पूंजी निवेश और कठोर सत्यापन की आवश्यकता होती है।
- डीप-टेक स्टार्टअप पारंपरिक स्टार्टअप्स से मुख्य रूप से उनकी तकनीक-आधारित दृष्टिकोण, लंबे विकास चक्र और उच्च जोखिम कारकों में भिन्न होते हैं।
- पारंपरिक स्टार्टअप्स सामान्यतः ई-कॉमर्स, SaaS या उपभोक्ता सेवाओं जैसे बिजनेस मॉडल नवाचारों पर निर्भर करते हैं।
भारत की क्षमताएँ
- प्रतिभा पूल: भारत में विश्व-स्तरीय इंजीनियर और वैज्ञानिक हैं। कई वैश्विक तकनीकी कंपनियाँ अपने मुख्य अनुसंधान एवं विकास के लिए भारतीय प्रतिभा पर निर्भर करती हैं।
- भारत वैज्ञानिक अनुसंधान में वैश्विक स्तर पर तीसरे स्थान पर है और ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स में 81वें से 39वें स्थान पर पहुंच गया है।
- लागत दक्षता: भारतीय स्टार्टअप कम लागत पर नवाचार कर सकते हैं, जिससे वे वैश्विक साझेदारियों के लिए आकर्षक बनते हैं।
- सरकारी प्रोत्साहन: सेमीकंडक्टर्स और ग्रीन हाइड्रोजन के लिए PLI योजना जैसी पहलें स्वदेशी क्षमताओं के निर्माण में सहायता कर रही हैं।
भारत के डीप-टेक इकोसिस्टम में चिंताएं और समस्याएं
- नौकरशाही बाधाएँ: भारत की नौकरशाही प्रणाली, जो औपनिवेशिक विरासत से जुड़ी है, नवाचार के बजाय नियंत्रण के लिए डिज़ाइन की गई थी और यह एक बड़ी बाधा बनी हुई है।
- धीमा निर्णय-निर्धारण: अनुसंधान, आईपी फाइलिंग और फंडिंग वितरण के लिए नियामक अनुमोदन में प्रायः देरी होती है।
- विखंडित निगरानी: डीप-टेक कई मंत्रालयों में फैला है — MeitY, DST, DBT, ISRO, DRDO — जिससे समन्वय में चुनौतियाँ आती हैं।
- जोखिम से बचाव: नौकरशाह प्रायः प्रयोगात्मक प्रौद्योगिकियों का समर्थन करने में संकोच करते हैं, क्योंकि उन्हें लेखा-परीक्षण जांच या राजनीतिक परिणाम का भय रहता है।
- फंडिंग गैप और बाज़ार विफलता: डीप-टेक को धैर्यशील पूंजी और लंबे विकास काल की आवश्यकता होती है।
- CSR फंड का कम उपयोग: भारत का ₹15,000 करोड़ वार्षिक CSR बजट रणनीतिक तकनीक को समर्थन दे सकता है, लेकिन यह अत्यधिक सीमा तक अप्रयुक्त है।
- निवेशक संकोच: कई निवेशकों के पास तकनीकी समझ या दीर्घकालिक जोखिम लेने की इच्छा नहीं होती।
- समर्पित रणनीतिक फंड की कमी: भारत में ऐसा कोई फंड नहीं है जो इस अंतर को पाट सके। IndiaAI और राष्ट्रीय क्वांटम मिशन जैसी सरकारी योजनाएँ वैश्विक समकक्षों की तुलना में कम वित्तपोषित हैं।
- प्रतिभा पलायन और अनुसंधान की कमी: भारत में शीर्ष स्तर के इंजीनियर और वैज्ञानिक तैयार होते हैं, लेकिन कई बेहतर अवसरों के लिए विदेश चले जाते हैं।
- घरेलू अनुसंधान बजट कम है और अकादमिक-उद्योग संबंध कमजोर हैं।
- विश्वविद्यालय बड़े पैमाने पर अनुसंधान नहीं करते।
- आईपी निर्माण कम है; भारत अक्सर वैश्विक तकनीकी कंपनियों के लिए बैक ऑफिस के रूप में कार्य करता है।
- GPU क्लस्टर और उन्नत कंप्यूटिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी एआई और क्वांटम अनुसंधान को सीमित करती है।
- कानूनी और नैतिक चिंताएं: भारत में एआई और निगरानी तकनीक को लेकर गोपनीयता और नागरिक स्वतंत्रता पर गंभीर प्रश्न उठते हैं।
- डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम (DPDPA) को सरकार को व्यापक छूट देने के लिए आलोचना मिली है, जिससे व्यक्तिगत अधिकार कमजोर होते हैं।
- एआई-संचालित निगरानी में पर्याप्त सुरक्षा उपायों की कमी है।
- चेहरे की पहचान प्रणाली बिना सुदृढ़ कानूनी ढांचे के लागू की जा रही है।
- नागरिकों पर निगरानी बढ़ रही है जबकि राज्य को बिना रोक-टोक डेटा तक पहुंच मिल रही है।
- सांस्कृतिक और रणनीतिक असंतुलन: भारत की तकनीकी संस्कृति अक्सर आविष्कार के बजाय निष्पादन को प्राथमिकता देती है।
- क्विक कॉमर्स और फिनटेक प्रभुत्वशाली हैं, जबकि अग्रणी तकनीकों की खोज कम होती है।
- राष्ट्रवाद और तकनीकी कंपनियों के साथ सांस्कृतिक युद्ध वास्तविक बुनियादी क्षमताओं के निर्माण से ध्यान विचलित करते हैं।
- डीप-टेक को एक संभावनाशील क्षेत्र माना जाता है, न कि मुख्य इंफ्रास्ट्रक्चर।
- राजनीतिक नाटकीयता कभी-कभी नीति क्रियान्वयन को पीछे छोड़ देती है।
- रणनीतिक तकनीकों को अभी भी केवल वाणिज्यिक उद्योग की उत्तरदायी माना जाता है।
संबंधित प्रयास और पहलें
- केंद्रीय बजट (2025-26): भारत उभरती तकनीकों का केंद्र बनने की दिशा में अग्रसर है, जैसे भारतीय सेमीकंडक्टर मिशन और अनुसंधान एवं विकास के लिए बढ़ा हुआ वित्तपोषण।
- प्रधानमंत्री अनुसंधान फैलोशिप (PMRF): सरकार PMRF के अंतर्गत प्रवेश संख्या तीन गुना कर रही है, जिससे पाँच वर्षों में 10,000 विद्वानों को समर्थन मिलेगा।
- राष्ट्रीय डीप टेक स्टार्टअप नीति (NDTSP): यह प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार कार्यालय द्वारा संचालित है। इसमें 80 से अधिक नीति हस्तक्षेप शामिल हैं और लगभग 200 विशेषज्ञों से परामर्श लिया गया है। इसके उद्देश्य हैं:
- तकनीकी संप्रभुता के माध्यम से भारत के आर्थिक भविष्य को सुदृढ़ करना;
- ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था की ओर संक्रमण;
- नैतिक नवाचार को बढ़ावा देना;
- स्टार्टअप्स को फंडिंग, इंफ्रास्ट्रक्चर और आईपी सुरक्षा प्रदान करना।
- राष्ट्रीय मिशन ऑन इंटरडिसिप्लिनरी साइबर-फिजिकल सिस्टम्स (NM-ICPS): यह विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) द्वारा शुरू किया गया था, जिसमें एआई, रोबोटिक्स, स्वायत्त प्रणालियाँ, IoT, ड्रोन पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
- ईवी स्टार्टअप्स द्वारा संचालित समाधान (EVolutionS): ईवी घटक विकास को तीव्र करने और एक सुदृढ़ आपूर्ति श्रृंखला बनाने के लिए।
- टेक्नोलॉजी बिजनेस इनक्यूबेटर्स (TBIs): स्टार्टअप्स को प्रोटोटाइप से उत्पाद तक पहुंचने में सहायता करते हैं।
- जलवायु, ऊर्जा और सतत तकनीक (CEST) पहलें: उन्नत हाइड्रोजन और फ्यूल सेल्स, मीथेन न्यूनीकरण, कार्बन कैप्चर एवं उपयोग, और एआई/एमएल-आधारित जलवायु पूर्वानुमान मॉडल पर केंद्रित।
- बायोटेक्नोलॉजी इंडस्ट्री रिसर्च असिस्टेंस काउंसिल (BIRAC) कार्यक्रम: बायोटेक नवाचार और व्यावसायीकरण को बढ़ावा देता है।
- अनुसंधान राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (ANRF): उच्च प्राथमिकता वाले डीप-टेक अनुसंधान के लिए; इलेक्ट्रिक वाहन, जलवायु तकनीक और मूलभूत विज्ञान पर केंद्रित।
आगे की राह
- एक समर्पित ‘इंडिया स्ट्रैटेजिक फंड’ की आवश्यकता है, जो अकादमिक अनुसंधान और औद्योगिक अनुप्रयोग के बीच के अंतर को समाप्त किया जा सके, जैसा कि अमेरिका और इज़राइल में देखा गया है।
- भारत के पास प्रतिभा, बाज़ार और नीति की गति जैसे सभी तत्व हैं — लेकिन उसे संरचनात्मक जड़ता को पार करना होगा। अमेरिका और चीन से प्रतिस्पर्धा करने के लिए भारत को चाहिए:
- साहसिक, अनुसंधान-आधारित उद्यमिता की ओर सांस्कृतिक बदलाव;
- सुव्यवस्थित शासन और नियामक सुधार;
- शिक्षा जगत और उद्योग जगत के बीच सुदृढ़ संबंध;
- आधारभूत प्रौद्योगिकियों में गहन निवेश।
| दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न [प्रश्न] भारत की नौकरशाही संरचना उसके गहन-तकनीकी पारिस्थितिकी तंत्र के विकास को किस प्रकार प्रभावित करती है, इसका आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए। आपके विचार में, शासन को अग्रणी नवाचार की माँगों के अनुरूप अनुकूल बनाने के लिए कौन से सुधार आवश्यक हैं? |
Previous article
भारत में सट्टेबाजी ऐप्स पर प्रतिबंध और धन शोधन पर अंकुश
Next article
STEM शिक्षा और विकलांग छात्र