2047 तक विकसित भारत के लिए अंतरिक्ष कार्यक्रम की महत्वपूर्ण भूमिका

पाठ्यक्रम: GS3/ अन्तरिक्ष

समाचारों में 

  • ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला की हालिया अंतरिक्ष यात्रा (ISS) भारत के एक प्रमुख अंतरिक्ष शक्ति के रूप में उदय को दर्शाती है, जो विकसित भारत 2047 की दृष्टि के अनुरूप है और अंतरिक्ष क्षेत्र में विश्वबंधु भारत के दर्शन को अपनाती है।

भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के आयाम

  • वैज्ञानिक एवं तकनीकी आयाम:
    • कम लागत में नवाचार: भारत के मिशन जैसे चंद्रयान-3 ने वैश्विक समकक्षों की तुलना में लगभग 1/10 लागत में चंद्रमा पर सफल लैंडिंग की; ISS अनुसंधान मिशन भी अंतर्राष्ट्रीय लागत की तुलना में बहुत कम लागत में पूर्ण हुआ।
    • स्वदेशी अनुसंधान एवं विकास: प्रक्षेपण यान (PSLV, GSLV Mk-III), नेविगेशन प्रणाली (NavIC), और क्रायोजेनिक तकनीक का विकास भारत की आत्मनिर्भरता को दर्शाता है।
  • आर्थिक आयाम:
    • अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था: वर्तमान में ~$8 बिलियन मूल्य की, भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र 2040 तक $40 बिलियन तक पहुँचने की संभावना है।
    • स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र:स्काईरूट एयरोस्पेस, अग्निकुल ब्रह्मांड, और पिक्सल जैसे 300 से अधिक स्टार्टअप्स, जिन्हें इन-स्पेस और NSIL का समर्थन प्राप्त है।
    • उपग्रह सेवाएँ: ब्रॉडबैंड (OneWeb, Jio-Satellite), कृषि, लॉजिस्टिक्स और वित्तीय समावेशन में वृद्धि को गति देती हैं।
  • राजनयिक एवं वैश्विक आयाम (विश्वबंधु भारत):
    • दक्षिण-दक्षिण सहयोग: भारत अफ्रीकी और एशियाई देशों को उपग्रह और प्रक्षेपण सेवाएँ प्रदान करता है (जैसे GSAT-9 “दक्षिण एशिया उपग्रह”)।
    • अंतरराष्ट्रीय सहयोग: NASA (निसार मिशन), आर्टेमिस समझौते, और फ्रांस, रूस, स्पेसएक्स, एक्सिओम स्पेस के साथ साझेदारी।
    • सॉफ्ट पावर: भारत को एक उत्तरदायी, किफायती अंतरिक्ष प्रक्षेपण प्रदाता के रूप में मान्यता प्राप्त है, जो वैश्विक सद्भावना को बढ़ावा देता है।
  • सामाजिक एवं विकासात्मक आयाम:
    • स्वास्थ्य एवं शिक्षा: INSAT उपग्रहों के माध्यम से ग्रामीण भारत को टेलीमेडिसिन और टेली-शिक्षा कार्यक्रमों से जोड़ा गया।
    • कृषि: उपग्रह आधारित फसल पूर्वानुमान, मृदा की आर्द्रता मानचित्रण और सटीक खेती से उत्पादकता में वृद्धि।
    • आपदा प्रबंधन: INSAT और RISAT द्वारा रीयल-टाइम अलर्ट और ट्रैकिंग से जलवायु लचीलापन को मजबूती।
    • शहरी नियोजन: रिमोट सेंसिंग और GIS स्मार्ट सिटी विकास की नींव रखते हैं।
    • समावेशिता: अंतरिक्ष तकनीक के लाभ शहरी क्षेत्रों से आगे बढ़कर ग्रामीण और वंचित समुदायों तक पहुँचते हैं।
  • सुरक्षा एवं रणनीतिक आयाम:
    • स्वदेशी नेविगेशन: NavIC प्रणाली भारत को विदेशी नेविगेशन प्रणालियों पर निर्भर नहीं रहने देती।
    • सैन्य उपयोग: सैन्य संचार और निगरानी उपग्रहों का विकास; दोहरे उपयोग वाली तकनीकें सुरक्षा को बढ़ाती हैं।
    • ASAT परीक्षण (2019): एंटी-सैटेलाइट क्षमता का प्रदर्शन अंतरिक्ष में प्रतिरोध स्थापित करता है।
    • भू-राजनीतिक लाभ: अमेरिका, चीन और रूस के संदर्भ में रणनीतिक स्वायत्तता को बढ़ावा।
भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के आयाम

चुनौतियाँ

  • वैश्विक निजी दिग्गजों (SpaceX, Blue Origin आदि) से बढ़ती प्रतिस्पर्धा।
  • अंतरिक्ष मलबा और कक्षीय भीड़ की समस्याएँ।
  • अनुसंधान एवं विकास में कम निवेश।
  • वाणिज्यीकरण और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच संतुलन।
  • स्टार्टअप्स और विदेशी निवेश (FDI) के लिए स्पष्ट नियामक ढांचे की आवश्यकता।

आगे की राह

  • वैश्विक मानकों को प्राप्त करने के लिए अनुसंधान एवं विकास में निवेश बढ़ाना।
  • सरल प्रक्रियाओं के माध्यम से निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करना।
  • विशेष रूप से वैश्विक दक्षिण और प्रमुख शक्तियों के साथ अंतरिक्ष कूटनीति को बढ़ाना।
  • बाह्य अंतरिक्ष के सतत और जिम्मेदार उपयोग को प्राथमिकता देना।

Source: PIB

 

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