पाठ्यक्रम: GS2/स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दे
संदर्भ
- सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा — वह आदर्श प्रणाली जिसमें प्रत्येक नागरिक को आय की परवाह किए बिना गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा देखभाल मिलती है — की शुरुआत निदान सेवाओं को सुलभ, किफायती और सर्वव्यापी बनाने से होनी चाहिए।
सार्वभौमिक स्वास्थ्य के बारे में
- इसका अर्थ है कि सभी लोगों को बिना किसी आर्थिक कठिनाई के गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं की पूरी श्रृंखला तक पहुंच प्राप्त हो।
- यूएचसी के प्रमुख घटक:
- देखभाल तक पहुंच: प्रत्येक व्यक्ति को आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएं समय पर मिलनी चाहिए।
- गुणवत्तापूर्ण सेवाएं: प्रदान की गई देखभाल प्रभावी, सुरक्षित और उच्च गुणवत्ता की होनी चाहिए।
- वित्तीय सुरक्षा: चिकित्सा व्ययों के कारण किसी को भी आर्थिक संकट का सामना नहीं करना चाहिए।
- भारत राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 और संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) के तहत सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) के लिए प्रतिबद्ध है।
प्रभावी स्वास्थ्य देखभाल में निदान की भूमिका
- सटीक निदान प्रभावी चिकित्सा उपचार की नींव है। यह रोगी के इतिहास, नैदानिक परीक्षण एवं प्रयोगशाला जांचों पर आधारित होता है, जिससे प्रारंभिक मूल्यांकन की पुष्टि या संशोधन होता है और प्रायः रोग की प्रगति का पूर्वानुमान भी लगाया जाता है।

- निदान वैश्विक स्तर पर 60% से अधिक नैदानिक निर्णयों का मार्गदर्शन करता है — रोगों की प्रारंभिक पहचान से लेकर उपचार को अनुकूलित करने और प्रगति की निगरानी तक।
- भारत में निदान पर कुल स्वास्थ्य व्यय का 5% से भी कम व्यय होता है।
- समय पर और विश्वसनीय निदान सेवाओं के अभाव में मरीजों को गलत या विलंबित उपचार का जोखिम होता है, जिससे परिणाम खराब होते हैं और लागत बढ़ती है।
निदान में वर्तमान अंतराल और स्थानीय सेवाओं की आवश्यकता
- सीमित पहुंच और किफायतीपन: निदान ओपीडी देखभाल में जेब से होने वाले स्वास्थ्य व्यय का 10–15% भाग बनाता है।
- अपर्याप्त सार्वजनिक अवसंरचना: केवल 12% प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHCs) में न्यूनतम मानकों वाली प्रयोगशालाएं हैं।
- निजी प्रयोगशालाओं का प्रभुत्व: ये ग्रामीण और निम्न-आय वर्ग के लिए प्रायः महंगी होती हैं।
- खराब गुणवत्ता और नियमन: भारत में 1 लाख से अधिक लैब्स हैं, लेकिन केवल 2% ही NABL से मान्यता प्राप्त हैं।
- मानकीकरण की कमी: कई लैब्स बिना मानक प्रोटोकॉल, दक्षता परीक्षण या बाहरी ऑडिट के कार्य करती हैं।
- गलत निदान के परिणाम: इससे गलत उपचार, औषधियों का अनुचित उपयोग और प्रतिजैविक प्रतिरोध जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं।
- बदलती स्वास्थ्य आवश्यकताएं: मधुमेह और हृदय रोग जैसे NCDs बढ़ रहे हैं, जबकि टीबी और मलेरिया जैसे संक्रामक रोग भी बने हुए हैं।
- डेटा का विखंडन और डिजिटल असंगति: सार्वजनिक और निजी डेटा प्रणालियों के बीच एकीकरण की कमी सतत देखभाल को बाधित करती है।
- निवारक निदान की उपेक्षा: बीमा योजनाएं जैसे PM-JAY इन-पेशेंट देखभाल पर केंद्रित हैं, जबकि नियमित स्क्रीनिंग की कमी से NCDs की पहचान नहीं हो पाती।
- कार्यबल और प्रशिक्षण की कमी: कई तकनीशियन गुणवत्ता नियंत्रण और नैतिक प्रथाओं में प्रशिक्षित नहीं हैं, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में।
सरकारी और नीतिगत प्रतिक्रियाएं
- आवश्यक निदान की राष्ट्रीय सूची (NLED): ICMR की अद्यतन सूची भारत की स्वास्थ्य और तकनीकी आवश्यकताओं को दर्शाती है। प्रमुख समावेशन:
- PHC स्तर पर HbA1C परीक्षण
- उप-केंद्रों पर सिकल सेल, थैलेसीमिया, हेपेटाइटिस B, सिफिलिस और डेंगू के लिए रैपिड टेस्ट
- उप-केंद्रों से शुरू होकर TB की आणविक जांच
- PHC पर विस्तारित रक्त रसायन परीक्षण
- CHC पर डेंटल एक्स-रे
- आयुष्मान भारत स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र: अग्रिम पंक्ति की निदान सेवाएं प्रदान करने के लिए सुसज्जित किए जा रहे हैं।
- आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (ABDM): निदान को इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड से जोड़ता है, जिससे बेहतर डेटा साझाकरण और पूर्वानुमानित देखभाल संभव होती है।
- नीति आयोग की विज़न 2035: लैब नेटवर्क और निगरानी प्रणाली को सार्वजनिक स्वास्थ्य अवसंरचना का अभिन्न हिस्सा मानती है।
- G20 स्वास्थ्य कार्य समूह: विकेन्द्रीकृत विनिर्माण और क्षेत्रीय रणनीतियों को बढ़ावा देता है।
नवाचार और समाधान
- टेली-निदान: टेली-रेडियोलॉजी और टेली-पैथोलॉजी जैसी सेवाएं विशेषज्ञता की कमी को दूर करती हैं।
- पॉइंट-ऑफ-केयर उपकरण: पोर्टेबल उपकरण दूरदराज़ क्षेत्रों में पहुंच बढ़ा रहे हैं।
- एआई और जीनोमिक्स: निदान की सटीकता बढ़ा रहे हैं और व्यक्तिगत चिकित्सा को सक्षम बना रहे हैं।
- तकनीकी प्रगति:
- जिला अस्पतालों में उन्नत इमेजिंग
- PHC में सेमी-ऑटो एनालाइज़र
- आणविक निदान
- टेली-निदान (रेडियोलॉजी, पैथोलॉजी, डर्मेटोलॉजी)
- अग्रिम पंक्ति में उपयोग के लिए पॉइंट-ऑफ-केयर उपकरण
- लागत-प्रभावशीलता और साक्ष्य-आधारित अभ्यास: ICMR द्वारा विकसित निदान एल्गोरिद्म स्वास्थ्य प्रदाताओं को मार्गदर्शन देते हैं:
- क्रमिक बनाम समकालिक परीक्षण
- लागत–लाभ विश्लेषण
- प्रत्येक चरण से अधिकतम मूल्य प्राप्त करना
भारत के लिए सीख
- रवांडा: सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता मॉडल में बुनियादी निदान उपकरण शामिल हैं, जिससे मलेरिया और निमोनिया की प्रारंभिक पहचान होती है।
- थाईलैंड: सार्वभौमिक कवरेज योजना में मुफ्त निदान शामिल हैं, जिससे जेब से व्यय में भारी कमी आई है।
- टीबी और कोविड-19 से सीख: कोविड-19 ने RT-PCR और आणविक निदान को तीव्रता से फैलाया। अब ये TB की तेज पहचान और दवा-प्रतिरोध की निगरानी में उपयोगी हैं।
रोडमैप: निदान का लोकतंत्रीकरण
- पब्लिक-प्राइवेट साझेदारी: कम लागत वाले निदान केंद्रों की स्थापना के लिए सहयोग को प्रोत्साहित करें।
- मोबाइल लैब्स और टेलीमेडिसिन: दूरस्थ क्षेत्रों तक पहुंचने के लिए मोबाइल वैन और दूरस्थ परामर्श को एकीकृत करें।
- सब्सिडी और बीमा कवरेज: निदान को सरकारी योजनाओं में शामिल करें ताकि परीक्षण भी कवर हों।
- स्थानीय विनिर्माण: उपकरण और अभिकर्मकों के घरेलू उत्पादन में निवेश करें।
- प्रशिक्षण और कार्यबल विकास: टियर 2 और 3 शहरों में तकनीशियनों और रेडियोलॉजिस्टों के प्रशिक्षण को बढ़ाएं।
- तकनीकी क्षमता निर्माण:
- अधिक प्रशिक्षित लैब तकनीशियन
- पॉइंट-ऑफ-केयर परीक्षण के लिए कुशल कर्मी
- निदान की व्याख्या में नैदानिक प्रशिक्षण
- एआई द्वारा परिणामों की व्याख्या में सहायता
निष्कर्ष
- भारत में यूएचसी प्राप्त करने के लिए निदान सेवाएं किफायती, सुलभ और प्रशिक्षित कर्मियों द्वारा समर्थित होनी चाहिए।
- नीति, तकनीक और प्रशिक्षण के माध्यम से निदान प्रणाली को सुदृढ़ करके भारत प्रारंभिक पहचान सुनिश्चित कर सकता है, उपचार में देरी को कम कर सकता है और सभी के लिए बेहतर स्वास्थ्य परिणाम प्राप्त कर सकता है।
| दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न [प्रश्न] चर्चा कीजिए कि भारत में सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा प्राप्त करने की दिशा में निदान सेवाओं को सुलभ और किफ़ायती बनाना एक आधारभूत कदम क्यों माना जाना चाहिए। अपने उत्तर के समर्थन में उदाहरण और नीतिगत निहितार्थ प्रस्तुत कीजिए। |
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