पाठ्यक्रम: GS2/अंतर्राष्ट्रीय संबंध; GS3/अर्थव्यवस्था
संदर्भ
- जैसे-जैसे वैश्विक व्यापार परिदृश्य में परिवर्तन हो रहे हैं और अमेरिका के राष्ट्रपति ने आक्रामक शुल्कों को पुनः लागू किया है — जिनमें कुछ 50% तक पहुँच रहे हैं (इन्हें ‘पारस्परिक शुल्क’ के रूप में प्रस्तुत किया गया है) — विश्व ने संयमित रणनीतिक प्रतिक्रिया दी है।
अमेरिका द्वारा हालिया शुल्क
- अब लगभग सभी अमेरिकी व्यापार साझेदारों को 10% से 50% के बीच शुल्कों का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें एशियाई देशों पर औसतन 22.1% शुल्क लगाया गया है।
- भारत जैसे देशों पर 25% शुल्क लगाया गया है, साथ ही रूस के साथ व्यापार करने पर संभावित दंड भी।
- केवल चीन और कनाडा ने प्रतिशोध किया है। अधिकांश अन्य देशों ने अमेरिकी बाज़ार तक पहुँच बनाए रखने के लिए बातचीत या अनुपालन का मार्ग चुना है, चांहे ये कदम विवादास्पद हों।
| ऐतिहासिक समानता: स्मूट-हॉले अधिनियम और महामंदी – 1930 का स्मूट-हॉले टैरिफ अधिनियम प्रतिशोधी व्यापार बाधाओं को उत्पन्न करने वाला था, जिसने महामंदी को और गहरा कर दिया। ट्रंप के हालिया व्यापारिक कदमों ने ऐसा वैश्विक प्रतिशोध उत्पन्न नहीं किया। – हालांकि, प्रभावित देशों ने अपने आयात शुल्क बढ़ाने से बचाव किया और ‘बेगर-थाई-नेबर’ नीति अपनाई। – बेगर-थाई-नेबर नीति: ऐसी संरक्षणवादी आर्थिक रणनीतियाँ जो अपने देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए अन्य देशों को हानि पहुँचाती हैं। |
शुल्कों के पीछे रणनीतिक उद्देश्य
- पारस्परिकता और व्यापार घाटा कम करना: अमेरिका लंबे समय से अपने व्यापार साझेदारों की ‘अनुचित व्यापार प्रथाओं’ की आलोचना करता रहा है, जिसमें भारत को ‘टैरिफ किंग’ कहा गया।
- ये शुल्क ‘पारस्परिक’ रूप में प्रस्तुत किए गए हैं, जिनका उद्देश्य अन्य देशों द्वारा अमेरिकी वस्तुओं पर लगाए गए शुल्कों से सामंजस्यशील या उन्हें पार करना है।
- व्यापक लक्ष्य है — भारत, चीन और ब्राज़ील जैसे देशों के साथ व्यापार घाटा कम करना।
- द्विपक्षीय व्यापार समझौतों के लिए दबाव: अमेरिका इन शुल्कों को एक रणनीतिक उपकरण के रूप में उपयोग कर रहा है ताकि देशों को ऐसे द्विपक्षीय व्यापार समझौतों में शामिल किया जा सके जो अमेरिकी हितों को प्राथमिकता दें।
- यह कदम बहुपक्षीयता से लेन-देन आधारित द्विपक्षीयता की ओर वैश्विक व्यापार को पुनः आकार देने का प्रयास है।
- भू-राजनीतिक संकेत: अमेरिका अपने भू-राजनीतिक रुख को स्पष्ट कर रहा है और उन देशों पर दबाव बना रहा है जो रूस के साथ ऊर्जा या रक्षा संबंध बनाए हुए हैं।
- घरेलू राजनीतिक संदेश: ये शुल्क घरेलू राजनीतिक उपकरण के रूप में कार्य करते हैं, ट्रंप की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति को बल देते हैं और रोजगारों की हानि व विनिर्माण में गिरावट को लेकर चिंतित मतदाताओं को आकर्षित करते हैं।
- वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं का रणनीतिक पुनःसंरेखण: अमेरिका कंपनियों को चीन और अन्य प्रतिकूल अर्थव्यवस्थाओं से आपूर्ति श्रृंखला हटाने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है।
- भारत इस प्रक्रिया में रणनीतिक रूप से मिश्रित द्रिश्तिओक्न के कारण प्रभावित हो रहा है।
- ये शुल्क घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने और इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स तथा रक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता को कम करने के लिए लगाए जा रहे हैं।
वैश्विक प्रतिक्रिया और प्रभाव
- विश्व व्यापार संगठन (WTO) ने चेतावनी दी है कि ये शुल्क 2025 में वैश्विक माल व्यापार में 1.5% की गिरावट ला सकते हैं।
- WTO का विवाद निपटान तंत्र निष्क्रिय बना हुआ है, जिससे देशों के पास अमेरिकी कदमों को चुनौती देने के सीमित विकल्प हैं।
- दक्षिण कोरिया और यूरोपीय संघ जैसे कुछ देशों ने अमेरिका के साथ समझौते किए हैं, जिनमें कम शुल्क दरें सुनिश्चित की गई हैं और अमेरिकी निवेश के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त की गई है।
- भारत ने इन शुल्कों को ‘अनुचित और अकारण’ बताया है, लेकिन प्रतिशोध नहीं किया है।
- आर्थिक प्रभाव: वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं का पुनर्गठन हो रहा है, जिससे फार्मास्यूटिकल्स, इलेक्ट्रॉनिक्स और कृषि जैसे क्षेत्रों में व्यवधान उत्पन्न हो रहा है।
- S&P 500 में तीव्र गिरावट देखी गई, जिससे कुछ ही दिनों में $5 ट्रिलियन से अधिक का बाज़ार मूल्य नष्ट हो गया।
- IMF और WTO ने वैश्विक विकास दर के पूर्वानुमानों को घटा दिया है।
रणनीतिक मौन: वैश्विक प्रतिक्रिया में संयम क्यों?
- वृद्धि की आशंका: प्रतिशोध से अत्यधिक शुल्कों की संभावना और अमेरिकी बाज़ार से बहिष्करण का खतरा बढ़ जाता है।
- कई देशों ने टकराव से बचने के लिए अमेरिकी वस्तुओं पर शुल्क कम किए हैं या घरेलू नियमों में सुधार किया है।
- WTO का ठहराव: WTO का विवाद निपटान तंत्र 2019 से अमेरिका द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति रोकने के कारण प्रभावहीन हो गया है।
- इसका अर्थ है कि देश अमेरिका के विरुद्ध निर्णयों को लागू नहीं कर सकते, जिससे वैश्विक व्यापार नियमों की विश्वसनीयता कमजोर हुई है।
- आर्थिक चेतावनी संकेत: IMF का अनुमान है कि 2025 में वैश्विक विकास दर 2.8% तक गिर सकती है, जो पहले 3.3% थी।
- WTO का अनुमान है कि माल व्यापार में 0.2% की गिरावट आ सकती है — जो हालिया नीतिगत बदलावों के बिना तीन प्रतिशत अंक अधिक होती।
- सेवा व्यापार में भी प्रारंभिक पूर्वानुमानों की तुलना में 4% धीमी वृद्धि की संभावना है।
- भू-राजनीतिक निर्भरता: अमेरिका के पारंपरिक सहयोगी — यूरोप और एशिया में — सुरक्षा के लिए उस पर निर्भर हैं।
- उदाहरण के लिए, NATO ने लंबे समय तक EU देशों को रक्षा की तुलना में कल्याणकारी व्यय को प्राथमिकता देने की अनुमति दी।
- ट्रंप द्वारा NATO व्यय को GDP के 2% से बढ़ाकर 2035 तक 5% करने की मांग ने इस निर्भरता को उजागर किया।
- वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं का गहन एकीकरण: आज के व्यापार नेटवर्क आपस में अत्यधिक जुड़े हुए हैं, जो 20वीं सदी के प्रारंभिक दौर से भिन्न हैं।
- कई देशों को यह ज्ञात है कि आयात शुल्क बढ़ाने से घरेलू उपभोक्ताओं के लिए लागत बढ़ेगी, विदेशी इनपुट तक पहुँच बाधित होगी, और स्थानीय कंपनियों की प्रतिस्पर्धात्मकता कमजोर होगी।
- परिणामस्वरूप, आर्थिक व्यवहारिकता ने व्यापारिक प्रतिशोध पर विजय प्राप्त की है।
- वैश्वीकरण की विरासत: 1991 के पश्चात का वैश्विक व्यवस्था — सोवियत संघ के पतन और मुक्त बाज़ार पूंजीवाद के उदय के साथ — उदार व्यापार के माध्यम से व्यापक समृद्धि को बढ़ावा देता रहा है।
- चीन जैसे देश इसके प्रमुख लाभार्थी बने, जिन्होंने वैश्विक बाज़ारों में गहराई से एकीकरण किया।
- यद्यपि WTO जैसे संस्थान पूर्णतः दोषरहित नहीं हैं, उन्होंने व्यापार तनावों को नियंत्रित करने में सहायता की है।
निष्कर्ष
- ट्रंप की विघटनकारी रणनीतियों के बावजूद, विश्व ने 1930 के दशक की संरक्षणवादी पुनरावृत्ति से बचाव किया। व्यापक प्रतिशोध की अनुपस्थिति यह दर्शाती है कि व्यापार से पारस्परिक लाभ की परिपक्व समझ ने भू-राजनीतिक तनावों के बीच भी व्यवहारिकता को प्राथमिकता दी है।
| दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न [प्रश्न] वैश्विक व्यापार तनाव में हालिया वृद्धि, विशेष रूप से आक्रामक अमेरिकी टैरिफ के कारण, व्यापक चिंता का विषय क्यों नहीं बनी है, इसके कारणों पर चर्चा कीजिए। प्रभावित देशों की रणनीतिक प्रतिक्रियाओं का मूल्यांकन कीजिए। |