पाठ्यक्रम: GS2/शिक्षा; GS3/ IT की भूमिका
संदर्भ
- डिजिटल प्रणालियों की ओर पूर्ण रूप से स्थानांतरण जैसे तकनीकी विकास यह दर्शाते हैं कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और डिजिटल उपकरणों पर अत्यधिक निर्भरता के अनचाहे परिणाम भी हो सकते हैं।
भारत की डिजिटल पहल
- महामारी द्वारा तीव्र और नीतियों द्वारा समर्थित भारत का शिक्षा में डिजिटल परिवर्तन कक्षाओं को स्पष्ट रूप से बदल चुका है।
- भारत की डिजिटल पहल ने स्मार्टबोर्ड, टैबलेट, ऑनलाइन मूल्यांकन और वर्चुअल लर्निंग प्लेटफॉर्म के माध्यम से शिक्षा का लोकतंत्रीकरण किया है।
दृष्टिकोण और नीति ढांचा
- डिजिटल शिक्षा अभियान डिजिटल इंडिया पहल में निहित है और राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 द्वारा सुदृढ़ किया गया है, जो निम्नलिखित पर बल देती है:
- प्रौद्योगिकी तक समान पहुंच
- बहुभाषी डिजिटल सामग्री
- ICT के माध्यम से शिक्षकों का सशक्तिकरण
- शिक्षण में AI और उभरती तकनीकों का एकीकरण
- AI और एडटेक की भूमिका: AI कक्षाओं को इस प्रकार परिवर्तित कर रहा है:
- शिक्षकों को पाठ योजना और मूल्यांकन में सहायता देना
- छात्रों के प्रदर्शन के आधार पर व्यक्तिगत शिक्षण मार्ग प्रदान करना
- समावेशिता के लिए क्षेत्रीय भाषा सामग्री का समर्थन करना
- बेंगलुरु में उदाहरण: AI-सक्षम वॉयस टूल तारा जैसे उपकरण प्रथम पीढ़ी के शिक्षार्थियों को अंग्रेज़ी कौशल सुधारने में सहायता कर रहे हैं, यह दर्शाता है कि तकनीक पारंपरिक शिक्षण का पूरक बन सकती है।
- प्रमुख प्रयास: शिक्षा में डिजिटल पहल
- केंद्रीय बजट (2025): भारत की उभरती तकनीकों के प्रति प्रतिबद्धता को सुदृढ़ करता है:
- शिक्षा में AI के लिए ₹500 करोड़ का आवंटन
- डीप-टेक अनुसंधान के लिए 10,000 फैलोशिप
- अटल टिंकरिंग लैब्स और उत्कृष्टता केंद्रों का विस्तार
- इसके अतिरिक्त, 56,000 से अधिक स्मार्ट कक्षाएं और 2,600+ कंप्यूटर लैब्स सरकारी स्कूलों में स्थापित की गई हैं ताकि डिजिटल अवसंरचना को सुदृढ़ किया जा सके।
- डिजिटल इंडिया: यह डिजिटल अंतर को समाप्त करने की और समावेशी विकास के लिए तकनीक को एक उपकरण बनाने का लक्ष्य रखता है—ग्रामीण गांवों से शहरी महानगरों तक। इसके तीन मुख्य उद्देश्य हैं:
- प्रत्येक नागरिक के लिए डिजिटल अवसंरचना
- मांग पर शासन और सेवाएं
- नागरिकों का डिजिटल सशक्तिकरण
- अन्य प्रयास जैसे PM ई-विद्या कार्यक्रम, DIKSHA, SWAYAM, ई-पाठशाला, NISHTHA, और अटल टिंकरिंग लैब्स भारत में शिक्षा के लिए डिजिटल पहल को गति दे रहे हैं।
चुनौतियाँ और अंतराल
- डिजिटल और पहुंच अंतर: केवल 32.4% स्कूलों में सक्रिय कंप्यूटर हैं; ग्रामीण क्षेत्र पीछे हैं।
- लाखों छात्र अभी भी स्मार्टफोन, लैपटॉप या विश्वसनीय इंटरनेट की पहुंच से वंचित हैं।
- ASER सर्वेक्षण (2021) में पाया गया कि ग्रामीण भारत में लगभग 30% छात्रों के पास घर पर स्मार्टफोन नहीं था।
- अवसंरचनात्मक कमी: कई स्कूलों में सुरक्षित कक्षाएं और शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं।
- विद्युत आपूर्ति में अनियमितता और नेटवर्क कवरेज की कमी के कारण डिजिटल शिक्षण असंगत हो जाता है, चांहे उपकरण उपलब्ध हों।
- भाषा और साक्षरता बाधाएँ: कई प्लेटफॉर्म अंग्रेज़ी-केंद्रित हैं, जिससे गैर-अंग्रेज़ी भाषी और प्रथम पीढ़ी के शिक्षार्थी जुड़ने में कठिनाई महसूस करते हैं।
- शिक्षक प्रशिक्षण: सीमित ICT प्रशिक्षण के कारण प्रभावी तकनीकी एकीकरण बाधित होता है।
- डेटा गोपनीयता: छात्र डेटा संग्रह और AI निगरानी को लेकर चिंताएँ बनी हुई हैं।
सहानुभूति की कमी: जब तकनीक मानवीय संबंधों पर प्रभुत्वशाली हो जाती है
- शिक्षा केवल सामग्री वितरण नहीं, बल्कि जुड़ाव, देखभाल और समझ का माध्यम है।
- सहानुभूति, जो कभी अच्छी शिक्षा की आधारशिला थी, अब डिजिटल दक्षता की दौड़ में पीछे छूट रही है।
- शिक्षक-छात्र अलगाव: वर्चुअल प्लेटफॉर्म सहज बातचीत को सीमित करते हैं, जिससे शिक्षकों के लिए भावनात्मक संकेत पहचानना या व्यक्तिगत समर्थन देना कठिन हो जाता है।
- मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव: एकाकीपन, स्क्रीन थकान, और डिजिटल प्रदर्शन का दबाव छात्रों की मानसिक कल्याण पर प्रभाव डाल रहे हैं।
- एक जैसा समाधान: एल्गोरिदम एवं मानकीकृत मॉड्यूल प्रायः व्यक्तिगत शिक्षण शैली, सांस्कृतिक संदर्भ, और भावनात्मक आवश्यकताओं की अनदेखी करते हैं।
प्रकरण अध्ययन: डिजिटल-प्रथम दृष्टिकोण की छिपी लागत
- महाराष्ट्र आंगनवाड़ी मामला: एक आंगनवाड़ी में AI-सक्षम उपकरण और डिजिटल डिवाइस प्रारंभिक शिक्षा के लिए पेश किए गए। एक तीन वर्षीय बच्चा आत्मविश्वास से इंटरएक्टिव स्मार्ट बोर्ड का उपयोग कर रहा था, जबकि दूसरा AI हेडसेट के माध्यम से वर्चुअल जंगल की खोज कर रहा था।
- हालांकि, ऐसे प्रयास छोटे बच्चों को वास्तविक अनुभवों से वंचित कर सकते हैं, जो संज्ञानात्मक और भावनात्मक विकास के लिए आवश्यक हैं।
- प्रारंभिक बाल शिक्षा पहले से ही कम प्राथमिकता में है; संबंधात्मक, इंद्रिय-आधारित शिक्षण को वर्चुअल उपकरणों से बदलना विकास की नींव को कमजोर कर सकता है।
- शिक्षकों पर प्रभाव:पूर्व-विद्यालय से विश्वविद्यालय तक, डिजिटल समाधान शिक्षा को बदल रहे हैं, जिससे शिक्षकों की पेशेवर स्वायत्तता कम हो रही है।
- सीमित प्रशिक्षण और प्रणालीगत उपेक्षा के कारण शिक्षकों को दरकिनार किया जा रहा है, जिससे शिक्षा प्रणाली कमजोर हो रही है।
आगे की राह: डिजिटल पहल पर पुनर्विचार
- हाइब्रिड मॉडल: डिजिटल उपकरणों को पारंपरिक शिक्षण के साथ मिलाकर समावेशिता सुनिश्चित की जा सकती है और मानवीय जुड़ाव बना रह सकता है।
- स्थानीयकृत सामग्री: प्लेटफॉर्म को बहुभाषी और सांस्कृतिक रूप से प्रासंगिक सामग्री प्रदान करनी चाहिए ताकि विविध शिक्षार्थियों को जोड़ा जा सके।
- सहानुभूति में शिक्षक प्रशिक्षण: डिजिटल साक्षरता के साथ-साथ भावनात्मक बुद्धिमत्ता का प्रशिक्षण भी आवश्यक है।
- सामुदायिक-आधारित पहुंच: गांवों और शहरी झुग्गियों में साझा डिजिटल केंद्र स्थापित किए जा सकते हैं, जहाँ व्यक्तिगत उपकरणों की कमी है, ताकि सभी के लिए पहुंच सुनिश्चित हो सके।
| दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न [प्रश्न] आलोचनात्मक रूप से परीक्षण करें कि कक्षाओं में डिजिटल प्रचार ने शिक्षा तक पहुंच और शिक्षकों और छात्रों के बीच भावनात्मक संबंध दोनों को किस प्रकार प्रभावित किया है। |
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