केंद्र ने कहा, मतदान का अधिकार मतदान की स्वतंत्रता से पृथक 

पाठ्यक्रम: GS2/ राजव्यवस्था और शासन

संदर्भ

  • केंद्र ने सर्वोच्च न्यायालय में तर्क दिया है कि चुनाव में ‘मतदान का अधिकार’ और ‘मतदान की स्वतंत्रता’ अलग-अलग हैं।
    • उसने कहा कि जहाँ मतदान का अधिकार मात्र एक वैधानिक अधिकार है, वहीं मतदान की स्वतंत्रता मौलिक अधिकार — अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता — का भाग है।

परिचय 

  • सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष याचिका में जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 53(2) और चुनाव आचरण नियम, 1961 के नियम 11 तथा प्रपत्र 21 और 21B को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है।

संबंधित कानूनी प्रावधान

  • धारा 53(2), आरपीए 1951: यदि वैध रूप से नामांकित उम्मीदवारों की संख्या भरे जाने वाली सीटों के बराबर है, तो रिटर्निंग ऑफिसर (RO) बिना मतदान कराए उन्हें निर्वाचित घोषित करेगा।
  • प्रपत्र 21 और 21B: RO द्वारा बिना मतदान कराए उम्मीदवारों को आधिकारिक रूप से निर्वाचित घोषित करने हेतु प्रयुक्त।
  • अनुच्छेद 19(1)(a): अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है।

याचिकाकर्ताओं के तर्क

  • मतदाताओं की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन: बिना मतदान कराए उम्मीदवार को निर्वाचित घोषित करने से नागरिकों को ‘नोटा’ (None of the Above) के माध्यम से असहमति व्यक्त करने का अधिकार नहीं मिलता।
  • नोटा एक लोकतांत्रिक उपकरण: नोटा मतदाताओं को सभी प्रत्याशियों से असंतोष दर्ज करने का अवसर देता है; मतदान का अवसर हटाने से यह अभिव्यक्ति सीमित हो जाती है।

केंद्र का उत्तर

  • PUCL बनाम भारत संघ (2003) के निर्णय का उदाहरण देते हुए केंद्र ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तभी उत्पन्न होती है जब मतदान होता है।
    • बिना मतदान के इस स्वतंत्रता का प्रयोग करने का अवसर ही नहीं है।
  • अतः मतदान की स्वतंत्रता मतदान की प्रक्रिया से जुड़ी हुई है।
  • यदि चुनाव नहीं होता (जैसे निर्विरोध मामलों में), तो मतदाता मतदान या नोटा का दावा नहीं कर सकते।
  • केंद्र ने यह भी स्पष्ट किया कि नोटा, आरपीए 1951 की धारा 79(b) के अंतर्गत उम्मीदवार नहीं है। यह मात्र एक विकल्प या अभिव्यक्ति है, कोई प्रत्याशी नहीं।
  • चुनाव अनिर्णीत नहीं रह सकते; विजेता घोषित करना निश्चितता सुनिश्चित करता है।

महत्त्व

  • लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व: यह चुनावी दक्षता और मतदाता स्वायत्तता के बीच संतुलन पर प्रश्न उठाता है।
  • संवैधानिक व्याख्या: वैधानिक मतदान अधिकार और संवैधानिक अभिव्यक्ति के अधिकार की सीमा की परीक्षा करता है।
  • चुनावी सुधार बहस: निर्विरोध सीटों की व्यवस्था और नोटा की कानूनी स्थिति पर भविष्य के सुधारों को प्रभावित कर सकता है।

अधिकारों के प्रकार

  • प्राकृतिक अधिकार: ये जन्मजात और अविच्छेद्य अधिकार हैं जो प्रकृति द्वारा व्यक्तियों को दिए जाते हैं।
    • जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार प्राकृतिक अधिकार माना जाता है।
    • भारतीय न्यायालय यह तय कर सकते हैं कि कोई प्राकृतिक अधिकार मौलिक अधिकार में निहित है, पर वे सीधे किसी प्राकृतिक अधिकार को लागू नहीं करते।
    • उदाहरण: अनुच्छेद 21 के अंतर्गत जीवन का अधिकार, गरिमा के साथ जीने के प्राकृतिक अधिकार का प्रतिबिंब है।
    • राज्य को ऐसे कानून बनाने से रोका गया है जो इन अधिकारों का उल्लंघन करें।
  • संवैधानिक अधिकार: ये संविधान में निहित हैं लेकिन भाग III के बाहर।
    • इनमें संपत्ति का अधिकार, मुक्त व्यापार, और बिना विधिक अधिकार के करारोपण न होना शामिल है।
    • ये उच्च न्यायालय में अनुच्छेद 226 के अंतर्गत या उन कानूनों की प्रक्रिया के अनुसार लागू किए जा सकते हैं जो इन्हें संचालित करते हैं।
  • वैधानिक या कानूनी अधिकार: ये संसद या राज्य विधानमंडल के साधारण कानूनों द्वारा प्रदान और संशोधित किए जाते हैं।
    • उदाहरण: मनरेगा के अंतर्गत कार्य का अधिकार; वन अधिकार अधिनियम के अंतर्गत अनुसूचित जनजातियों के अधिकार; राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत सब्सिडी वाले खाद्यान्न का अधिकार।
    • ये उन कानूनों की प्रक्रिया के अनुसार लागू किए जाते हैं जो इन्हें प्रदान करते हैं।

मतदान के अधिकार की स्थिति

  • संविधान का अनुच्छेद 326 प्रत्येक नागरिक को बिना किसी भेदभाव के मतदान का अधिकार प्रदान करता है।
  • संसद द्वारा इस संबंध में बनाए गए कानून हैं: जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 (RP Act, 1950) और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (RP Act, 1951)।
  • भारत में मतदान के अधिकार की कानूनी स्थिति विभिन्न मामलों में परिचर्चा का विषय रही है।
    • एन.पी. पोनुस्वामी मामला (1952): सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि मतदान का अधिकार वैधानिक अधिकार है और उस पर लगाए गए प्रतिबंधों के अधीन है।
    • PUCL मामला (2003): न्यायमूर्ति पी.वी. रेड्डी ने कहा कि मतदान का अधिकार, यदि मौलिक अधिकार नहीं है, तो निश्चित रूप से ‘संवैधानिक अधिकार’ है।
    • अनूप बरनवाल मामला (2023): बहुमत की राय ने कुलदीप नायर मामले के निर्णय को दोहराया कि मतदान का अधिकार केवल वैधानिक अधिकार है।
  • अतः वर्तमान में मतदान के अधिकार की कानूनी स्थिति यह है कि यह एक वैधानिक अधिकार है।

Source: TH

 

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