सुंदरबन के SAIME मॉडल (जलीय कृषि मॉडल) को FAO की मान्यता प्राप्त हुई

पाठ्यक्रम: GS3/पर्यावरण/अर्थव्यवस्था

समाचार में 

  • सस्टेनेबल एक्वाकल्चर इन मैंग्रोव इकोसिस्टम्स (SAIME) मॉडल को संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) से वैश्विक तकनीकी मान्यता प्राप्त हुई है।

सस्टेनेबल एक्वाकल्चर इन मैंग्रोव इकोसिस्टम्स (SAIME) मॉडल 

  • यह मॉडल पश्चिम बंगाल के सुंदरबन में नेचर एनवायरनमेंट एंड वाइल्डलाइफ सोसाइटी (NEWS) द्वारा विकसित किया गया है। 
  • यह पारिस्थितिकी-आधारित, जलवायु-अनुकूल जलीय कृषि को बढ़ावा देता है, जिसमें झींगा तालाबों में 5%–30% मैंग्रोव कवर को एकीकृत किया जाता है। 
  • यह 29.84 हेक्टेयर क्षेत्र में 42 किसानों द्वारा लागू किया गया है और उत्पादन लागत में कमी के माध्यम से शुद्ध लाभ को दोगुना कर दिया है।

महत्व 

  • यह तटीय लचीलापन बढ़ाता है, सतत आजीविका का समर्थन करता है, रसायन-मुक्त झींगा पालन को बढ़ावा देता है, और वैश्विक समुद्र-स्तर वृद्धि की पृष्ठभूमि में कार्बन अवशोषण एवं जलवायु कार्रवाई में सहायक है। 
  • यह पारंपरिक झींगा पालन से भूमि उपयोग में बदलाव की चिंताओं के बीच विशेष महत्व प्राप्त करता है।

सुंदरबन पारिस्थितिकी तंत्र 

  • यह विश्व के सबसे बड़े मैंग्रोव वनों में से एक है। 
  • यह गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदियों के डेल्टा पर बंगाल की खाड़ी में स्थित है। 
  • यह भारत के सुंदरबन विश्व धरोहर स्थल (1987 में सूचीबद्ध) की सीमा से सटा हुआ है।

पारिस्थितिक और रणनीतिक महत्व

  • जैव विविधता का भंडार: यह 260 पक्षी प्रजातियों, बंगाल टाइगर और खाड़ी मगरमच्छ व भारतीय अजगर जैसी संकटग्रस्त प्रजातियों सहित विविध जीव-जंतुओं के लिए जाना जाता है।
  • जलवायु सुरक्षा कवच: इसका घना मैंग्रोव आवरण चक्रवातों, तूफानी लहरों और तटीय कटाव के विरुद्ध प्राकृतिक अवरोध का कार्य करता है, जिससे लाखों लोगों का जीवन एवं आजीविका सुरक्षित रहती है।
  • कार्बन सिंक: मैंग्रोव बड़ी मात्रा में कार्बन अवशोषित करते हैं, जिससे वैश्विक जलवायु शमन प्रयासों में योगदान मिलता है।
  • आजीविका और संस्कृति: यह क्षेत्र मछली पकड़ने, शहद संग्रहण और इको-पर्यटन के माध्यम से लाखों लोगों को आजीविका प्रदान करता है, साथ ही पारंपरिक ज्ञान एवं सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करता है।

उभरते खतरे 

  • IUCN वर्ल्ड हेरिटेज आउटलुक 4 (2025) के अनुसार, सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान की संरक्षण स्थिति “कुछ चिंताओं के साथ अच्छा” से “गंभीर चिंताओं” में बदल गई है।
  • जलवायु परिवर्तन: समुद्र-स्तर में वृद्धि और बार-बार आने वाली तूफानी लहरें मैंग्रोव विविधता को कम कर रही हैं तथा आवास हानि को तीव्र कर रही हैं।
  • लवणता और प्रदूषण: भारी धातु प्रदूषण और बढ़ती लवणता जल गुणवत्ता एवं मृदा स्वास्थ्य को हानि पहुँचा रही है।
  • अस्थायी संसाधन दोहन: अत्यधिक मछली पकड़ना, अवैध कटाई और भूमि उपयोग में बदलाव पारिस्थितिक संतुलन को बाधित कर रहे हैं।
  • मानवजनित दबाव: अतिक्रमण, बुनियादी ढांचा विकास और अपशिष्ट निपटान संरक्षित क्षेत्रों के अंदर भी आवासों को खंडित कर रहे हैं।

सुझाव और आगे की राह 

  • सुंदरबन जलवायु लचीलापन, जैव विविधता और स्थानीय आजीविका के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, इसलिए पारिस्थितिक निगरानी को बढ़ाना तथा सीमाओं के पार रोगजनकों जैसे उभरते खतरों को ट्रैक करना आवश्यक है। 
  • मैंग्रोव पुनर्स्थापन को राष्ट्रीय जलवायु अनुकूलन और आपदा लचीलता योजनाओं में एकीकृत किया जाना चाहिए। 
  • SAIME जैसे सतत आजीविका मॉडल को संरक्षण और आर्थिक आवश्यकताओं के संतुलन हेतु बड़े पैमाने पर अपनाया जाना चाहिए। 
  • संयुक्त पारिस्थितिकी तंत्र प्रबंधन और डेटा साझाकरण के लिए भारत-बांग्लादेश सहयोग को सुदृढ़ करना आवश्यक है। 
  • पर्यावरण साक्षरता और जनभागीदारी को बढ़ावा देना संरक्षण की संस्कृति एवं दीर्घकालिक संरक्षण भावना को विकसित करेगा।

Source :TH

 

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