भारतीय नगर पालिकाओं की वित्तीय चुनौतियाँ

पाठ्यक्रम: GS2/ शासन

संदर्भ

  • शहरी भारत राष्ट्रीय GDP का लगभग दो-तिहाई हिस्सा उत्पन्न करता है, फिर भी वित्तीय रूप से कमजोर बना हुआ है, क्योंकि नगरपालिकाओं के पास कर राजस्व का एक प्रतिशत से भी कम नियंत्रण है।

नगरपालिकाओं की वित्तीय संरचना को लेकर चिंताएं 

  • 74वां संविधान संशोधन अधिनियम (1992) ने शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) को 12वीं अनुसूची में सूचीबद्ध 18 कार्यों को करने का अधिकार दिया, जिनमें जल आपूर्ति, अपशिष्ट प्रबंधन और सार्वजनिक स्वास्थ्य शामिल हैं।
    • हालांकि, इसके अनुरूप वित्तीय विकेंद्रीकरण राज्यों में कमजोर और असंगत रहा है, जिससे ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई है जहां जिम्मेदारी तो विकेन्द्रीकृत है लेकिन राजस्व नहीं।
  • उच्च स्तर के अनुदानों पर निर्भरता: शहर अब स्मार्ट सिटी मिशन या AMRUT जैसी योजनाओं के अंतर्गत बंधे हुए और योजना-आधारित अनुदानों पर अधिक निर्भर हो गए हैं, जिससे स्थानीय लचीलापन एवं नवाचार सीमित हो जाता है।
  • स्वयं के राजस्व का कमजोर आधार: संपत्ति कर, उपयोगकर्ता शुल्क और स्थानीय उपकर ULBs की आय का आधार हैं, लेकिन ये मिलकर केवल 20–25% संभावित नगरपालिका आय का ही निर्माण करते हैं।
    • अप्रभावी मूल्यांकन, दरों में संशोधन का राजनीतिक विरोध और कम संग्रहण दक्षता वित्तीय क्षमता को और कमजोर करते हैं।
  • GST का प्रभाव: GST से पहले, शहर ऑक्ट्रॉय, प्रवेश कर, विज्ञापन कर और स्थानीय अधिभार जैसे करों के माध्यम से राजस्व एकत्र करते थे, जो कुल नगरपालिका आय का लगभग 19% था।
    • GST ने इन करों को समाहित कर लिया, जिससे नगरपालिकाएं स्वतंत्र राजस्व स्रोतों से वंचित हो गईं।
संवैधानिक प्रावधान क्या हैं? 
अनुच्छेद 243X: राज्य विधानसभाओं को नगरपालिकाओं को कर, शुल्क, टोल और फीस लगाने, एकत्र करने तथा उपयोग करने का अधिकार देने का प्रावधान करता है। 
अनुच्छेद 243Y: राज्य वित्त आयोग (SFC) को राज्य और नगरपालिकाओं के बीच राज्य राजस्व के वितरण एवं उनकी वित्तीय स्थिति की समीक्षा के लिए सिफारिशें देने का निर्देश देता है।
– अनुच्छेद 280(3)(c): केंद्रीय वित्त आयोग (CFC) को SFC की सिफारिशों के आधार पर राज्य समेकित निधियों को नगरपालिका वित्त के लिए बढ़ाने के उपाय सुझाने का अधिकार देता है।

नगरपालिका बॉन्ड: स्थानीय वित्त का नया क्षेत्र 

  • नगरपालिका बॉन्ड ऐसे ऋण उपकरण हैं जिन्हें शहरी स्थानीय निकाय (जैसे नगर निगम या परिषद) निवेशकों से धन एकत्रित करने के लिए जारी करते हैं। हालांकि, इनकी सफलता गहरे संरचनात्मक सुधारों पर निर्भर करती है।
  • वर्तमान चुनौतियाँ:
    • त्रुटिपूर्ण क्रेडिट रेटिंग प्रणाली: जब एजेंसियां किसी शहर की वित्तीय स्थिति का मूल्यांकन करती हैं, तो वे प्रायः राज्य या केंद्र से मिलने वाले नियमित अनुदानों और हस्तांतरणों को नजरअंदाज कर देती हैं। इससे शहर वास्तविकता से अधिक कमजोर दिखते हैं और निवेशकों को आकर्षित करने की उनकी क्षमता घट जाती है। 
    • शहरों की कम विश्वसनीयता: कई शहरों के पास सुदृढ़ वित्तीय रिकॉर्ड या उचित ऑडिट नहीं होते। निवेशक बॉन्ड खरीदने से संकोच करते हैं क्योंकि उन्हें भय होता है कि शहर समय पर भुगतान नहीं कर पाएगा।

आगे की राह

  • वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाएं: डेनमार्क, स्वीडन और नॉर्वे जैसे देशों में नगरपालिकाओं को स्थानीय आयकर लगाने का अधिकार है, जिससे नागरिकों एवं स्थानीय सरकारों के बीच प्रत्यक्ष जवाबदेही सुनिश्चित होती है। 
  • हस्तांतरण को वैध आय के रूप में मान्यता दें: अनुदान और साझा करों को शहर की आय का हिस्सा माना जाना चाहिए ताकि विश्वसनीय बैलेंस शीट बनाई जा सके। 
  • क्रेडिट रेटिंग में सुधार करें: शहरों की रेटिंग केवल संकीर्ण वित्तीय मानकों पर नहीं, बल्कि शासन की गुणवत्ता, पारदर्शिता और नागरिक भागीदारी जैसे पहलुओं पर आधारित होनी चाहिए। 
  • वित्तीय नवाचार को सक्षम करें: नगरपालिकाओं को अपने GST मुआवजे या राज्य कर हिस्से के एक हिस्से को बॉन्ड जारी करने के लिए संपार्श्विक के रूप में उपयोग करने की अनुमति दी जानी चाहिए।

Source: TH

 

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