समलैंगिक विवाह: उच्चतम न्यायलय ने निर्णय की समीक्षा अस्वीकृत किए

पाठ्यक्रम: GS1/सामाजिक सशक्तिकरण; GS2/सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप

संदर्भ

  • हाल ही में, उच्चतम न्यायालय की पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने भारत में समलैंगिक विवाह को वैध बनाने से मना करने वाले निर्णय की समीक्षा की माँग वाली याचिकाओं को अस्वीकृत कर दिया।

पृष्ठभूमि

  • भारत के उच्चतम न्यायालय ने अक्टूबर 2023 में समलैंगिक जोड़ों द्वारा सामना किए जाने वाले भेदभाव को स्वीकार करते हुए एक निर्णय दिया था एवं इस बात पर बल दिया था कि ऐसा निर्णय संसद द्वारा लिया जाना चाहिए, जो इस जटिल सामाजिक मुद्दे पर परिचर्चा और कानून बनाने के लिए बेहतर रूप से अनुकूल है।

समलैंगिक विवाह

  • यह दो पुरुषों या दो महिलाओं के बीच विवाह की प्रथा है। इसे विश्व के अधिकांश देशों में कानून, धर्म एवं रीति-रिवाजों के माध्यम से विनियमित किया गया है।
  • भारत समलैंगिक जोड़ों के लिए पंजीकृत विवाह या नागरिक संघों को मान्यता नहीं देता है।
    • यद्यपि, भारत के उच्चतम न्यायालय के 2022 के निर्णय के अनुसार, अनुच्छेद 21 (जीवन के अधिकार) के अंतर्गत समलैंगिक दंपत्ति लिव-इन दंपत्ति के रूप में समान अधिकार एवं लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
  • विशेष विवाह अधिनियम, 1954: यह उन दम्पतियों के लिए सिविल विवाह का प्रावधान करता है जो अपने निजी कानून के अंतर्गत विवाह नहीं कर सकते।
    • हालाँकि, भारत के उच्चतम न्यायालय ने (2023 में) निर्णय सुनाया कि 1954 का विशेष विवाह अधिनियम (SMA) समलैंगिक विवाहों पर लागू नहीं होता है:
      • न्यायालय ने सर्वसम्मति से माना कि विवाह करना कोई मौलिक अधिकार नहीं है।
      • न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि विशेष विवाह अधिनियम, 1954 में समलैंगिक विवाह को सम्मिलित करने के लिए संशोधन नहीं किया जा सकता।
      • न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि समलैंगिक दंपत्ति नागरिक विवाह नहीं कर सकते, न ही गोद ले सकते हैं।

भारत में समलैंगिक विवाह के पक्ष में तर्क

  • समानता और गैर-भेदभाव: अधिवक्ताओं का तर्क है कि समान-लिंग वाले दम्पत्तियों को विवाह के अधिकार से वंचित करना भेदभाव का एक रूप है, जो भारतीय संविधान में निहित समानता के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।
    • समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से LGBTQIA+ व्यक्तियों की गरिमा एवं अधिकारों की पुष्टि होगी।
  • कानूनी और सामाजिक लाभ: विवाह से अनेक कानूनी एवं सामाजिक लाभ मिलते हैं, जिनमें उत्तराधिकार अधिकार, कर लाभ और सामाजिक सुरक्षा सम्मिलित  हैं।
    • समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से यह सुनिश्चित होगा कि LGBTQIA+ दम्पतियों को इन लाभों तक पहुँच प्राप्त हो, जिससे उनका कल्याण एवं सुरक्षा को बढ़ावा मिलेगा।
  • मानसिक स्वास्थ्य में सुधार: समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने से LGBTQIA+ व्यक्तियों के मानसिक स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है, क्योंकि इससे उनपर सामाजिक आक्षेप कम होगा एवं  सामाजिक स्वीकृति को बढ़ावा मिलेगा।
  • अंतर्राष्ट्रीय दृष्टांत: कई देशों ने समलैंगिक विवाह को वैध बनाया है, जिससे समानता के लिए वैश्विक उदाहरण कायम हुई है।
    • भारत, एक प्रगतिशील लोकतंत्र के रूप में, समलैंगिक विवाह को मान्यता देकर इन अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप स्वयं को अनुकूलित कर सकता है।

समलैंगिक विवाह पर वैश्विक स्थिति

  • नीदरलैंड 2001 में नागरिक विवाह कानून में संशोधन करके समलैंगिक विवाह को वैध बनाने वाला प्रथम देश था।
  • विदेश संबंध परिषद (Council of Foreign Relations) के अनुसार, संयुक्त राज्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और फ्रांस सहित कम से कम 30 देशों में समलैंगिक विवाह वैध हैं।
  • विभिन्न देशों ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए सबसे पहले समलैंगिक नागरिक संघों को मान्यता दी।
  • उत्तर एवं दक्षिण अमेरिका और यूरोप के अधिकांश देशों ने समलैंगिक विवाह को वैध बना दिया है।

भारत में समलैंगिक विवाह के विरुद्ध तर्क

  • सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताएँ: विरोधियों का तर्क है कि समलैंगिक विवाह पारंपरिक भारतीय सांस्कृतिक एवं  धार्मिक मूल्यों के विपरीत है।
    • उनका मानना ​​है कि विभिन्न समुदायों के रीति-रिवाजों एवं मान्यताओं के अनुसार विवाह एक पुरुष और एक महिला के मध्य होना चाहिए।
  • विधायी क्षेत्राधिकार: भारत के उच्चतम न्यायालय ने निर्णय सुनाया है कि समलैंगिक विवाह को वैध बनाना न्यायपालिका के नहीं, बल्कि विधायी क्षेत्राधिकार के अंतर्गत आता है।
    • इसका तात्पर्य है कि कानून में कोई भी बदलाव संसद से आना चाहिए, जो लोगों की सहमति को दर्शाता हो।
  • सामाजिक तत्परता: कुछ लोगों का तर्क है कि भारतीय समाज अभी समलैंगिक विवाह को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है।
    • उनका मानना ​​है कि समलैंगिक विवाह को वैध बनाने से सामाजिक अशांति उत्पन्न हो सकती है और समाज के रूढ़िवादी वर्गों से तीव्र प्रतिक्रिया हो सकती है।
  • वैकल्पिक कानूनी मान्यता: कुछ लोगों का सुझाव है कि विवाह के स्थान पर, सिविल यूनियन या घरेलू साझेदारी, विवाह की पारंपरिक परिभाषा में परिवर्तन किए बिना, समलैंगिक दंपत्ति को कानूनी मान्यता एवं अधिकार प्रदान कर सकती है।
भारत के उच्चतम न्यायालय में समीक्षा याचिका
– यह एक कानूनी उपाय (legal remedy) है जो उस पक्ष के लिए उपलब्ध है जो उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित किसी निर्णय या आदेश को चुनौती देना चाहता है।
– इसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 137 के अंतर्गत दायर किया जाता है, जो उच्चतम न्यायालय को अपने स्वयं के निर्णयों या आदेशों की समीक्षा करने की शक्ति प्रदान करता है।
1. हालाँकि यह शक्ति उच्चतम न्यायालय द्वारा बनाए गए नियमों (अनुच्छेद 145 के अंतर्गत) के साथ-साथ संसद द्वारा अधिनियमित किसी भी कानून के प्रावधानों के अधीन है।
दाखिल करने के आधार(Grounds for Filing):
1. रिकॉर्ड में स्पष्ट त्रुटि;
2. नई एवं  महत्त्वपूर्ण जानकारी की खोज;
3. कोई अन्य पर्याप्त कारण।
कौन दाखिल कर सकता है: किसी भी व्यक्ति जो किसी निर्णय से व्यथित है, वह समीक्षा याचिका दाखिल कर सकता है, न कि केवल मामले के पक्षकार।
समय सीमा: समीक्षा के लिए माँगे गए निर्णय या आदेश की तारीख से 30 दिनों के अंदर दायर किया जाना चाहिए।
प्रक्रिया: समीक्षा याचिकाओं पर हमेशा उसी पीठ द्वारा सुनवाई की जाती है जिसने मूल निर्णय दिया था।
1. यदि मूल पीठ के न्यायाधीश सेवानिवृत्त हो गए हैं, तो मुख्य न्यायाधीश अपने विवेक का उपयोग करके उन्हें प्रतिस्थापित करेंगे।
परिणाम: उच्चतम न्यायालय समीक्षा याचिका को स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है।
1. यदि स्वीकार कर लिया जाता है, तो न्यायालय अपने मूल निर्णय या आदेश को संशोधित, प्रत्यादिष्ट (Overrule) या पुष्टि कर सकता है।

समीक्षा याचिकाओं को खारिज करने के निहितार्थ

  • इसका तात्पर्य है कि भारत में समलैंगिक दंपत्ति को उनके संबंधों के लिए कानूनी मान्यता नहीं मिलेगी।
  • न्यायलय का निर्णय समलैंगिक दंपत्ति के अधिकारों एवं  मान्यता को संबोधित करने के लिए विधायी कार्रवाई की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
  • तब तक, LGBTQIA+ समुदाय सरकार की नीति एवं  विधायी ज्ञान पर निर्भर रहेगा।

Source: TH

 

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