पाठ्यक्रम: GS3/अन्तरिक्ष
संदर्भ
- भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र 2022 में 8.4 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2033 तक 44 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की संभावना है, जिसका लक्ष्य वैश्विक बाजार का 8% हिस्सा प्राप्त करना है।
अंतरिक्ष उद्योग में भारत की हिस्सेदारी
- भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था वर्तमान में वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में 2-3% योगदान देती है, जो 2030 तक बढ़कर 8% और 2047 तक 15% तक पहुँचने की संभावना है।
- 400 से अधिक निजी अंतरिक्ष कंपनियों के साथ, भारत अंतरिक्ष कंपनियों की संख्या के मामले में विश्व में पाँचवें स्थान पर है।

अंतरिक्ष उद्योग में निजी भागीदारी
- भारत में अंतरिक्ष स्टार्टअप्स की संख्या 2022 में केवल एक से बढ़कर 2024 में लगभग 200 हो गई।
- इन स्टार्टअप्स को प्राप्त वित्त पोषण 2021 में $67.2 मिलियन से बढ़कर 2023 में $124.7 मिलियन तक पहुँच गया।
- स्काईरूट ने भारत का प्रथम निजी रूप से निर्मित रॉकेट, विक्रम-S, अंतरिक्ष में लॉन्च किया, जिसका उद्देश्य उपग्रह प्रक्षेपण को क्रांतिकारी रूप देना है।
| भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023 के अंतर्गत विभिन्न संगठनों की भूमिकाएँ और जिम्मेदारियाँ – IN-SPACe (भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र): यह एक स्वायत्त एकल-विंडो एजेंसी है, जो निम्नलिखित कार्यों के लिए उत्तरदायी है: 1. सभी सरकारी और निजी अंतरिक्ष गतिविधियों को अधिकृत करना 2. उद्योग क्लस्टर, इनक्यूबेशन सेंटर और एक्सेलेरेटर को बढ़ावा देना 3. ISRO से निजी कंपनियों को तकनीक हस्तांतरण की सुविधा देना 4. रिमोट सेंसिंग डेटा के प्रसार और लॉन्च मैनिफेस्ट को स्वीकृति देना – भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO): ISRO का ध्यान अब निम्नलिखित क्षेत्रों पर केंद्रित है: 1. नई अंतरिक्ष तकनीकों में अनुसंधान एवं विकास, मानव अंतरिक्ष उड़ान और वैज्ञानिक अन्वेषण 2. परिचालन अंतरिक्ष प्रणालियों को उद्योग को हस्तांतरित करना 3. रिमोट सेंसिंग डेटा तक खुली पहुँच प्रदान करना 4. अकादमिक और औद्योगिक सहयोग को समर्थन देना 5. अंतरिक्ष में दीर्घकालिक मानव उपस्थिति को सक्षम बनाना – न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL): अंतरिक्ष विभाग की वाणिज्यिक शाखा के रूप में कार्य करता है: 1. ISRO द्वारा विकसित अंतरिक्ष तकनीकों का वाणिज्यीकरण 2. अंतरिक्ष उपकरणों का निर्माण और खरीद 3. सरकारी और निजी क्षेत्र के ग्राहकों को वाणिज्यिक शर्तों पर सेवा प्रदान करना – अंतरिक्ष विभाग (DoS): नीति समन्वयक के रूप में कार्य करता है: 1. हितधारकों के बीच भूमिकाओं का सुचारू वितरण सुनिश्चित करना 2. नीति के कार्यान्वयन की निगरानी करना 3. अंतरराष्ट्रीय सहयोग और अनुपालन का समन्वय करना 4. सुरक्षित संचालन सुनिश्चित करना और विवादों का समाधान करना 5. नेविगेशन प्रणालियों में वैश्विक मानकों और इंटरऑपरेबिलिटी को बनाए रखना |
सरकार द्वारा उठाए गए कदम
- अंतरिक्ष क्षेत्र सुधार (2020): सरकार ने निजी क्षेत्र की भागीदारी की अनुमति दी और IN-SPACe, ISRO और NSIL की भूमिकाओं को परिभाषित किया।
- वेंचर कैपिटल (VC) फंड: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र को समर्थन देने के लिए ₹1,000 करोड़ का वेंचर कैपिटल फंड स्थापित करने की मंजूरी दी है।
- ISRO की संरचनात्मक क्षमता और लागत-कुशलता: ISRO के उच्च प्रभाव वाले, लागत-कुशल मिशनों—जैसे चंद्रयान-3 और मंगलयान—ने भारत को वैश्विक मंच पर सुदृढ़ स्थिति प्रदान की है।
- अंतरिक्ष विजन 2047:
- 2035 तक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) का लक्ष्य
- 2040 तक भारत का चंद्रमा पर उतरना
- गगनयान कार्यक्रम अंतिम चरण में है, प्रथम मानव अंतरिक्ष उड़ान 2027 की प्रथम तिमाही में निर्धारित
- 2028 तक BAS का प्रथम मॉड्यूल
- 2032 तकआगामी पीढ़ी का उपग्रह प्रक्षेपण यान (NGLV)
- 2027 तक चंद्रयान-4, चंद्रमा से नमूने एकत्र करने और वापसी तकनीक का प्रदर्शन
- 2028 तक शुक्र ऑर्बिटर मिशन (VOM), शुक्र का अध्ययन करने हेतु
- भारतीय अंतरिक्ष नीति, 2023: गैर-सरकारी संस्थाओं (NGEs) को अंतरिक्ष गतिविधियों में समान अवसर सुनिश्चित करती है।
- स्पेसटेक इनोवेशन नेटवर्क (SpIN): SpIN अंतरिक्ष उद्योग में स्टार्टअप्स और लघु एवं मध्यम उद्यमों (SMEs) के लिए एक अद्वितीय सार्वजनिक-निजी सहयोग है।
संशोधित FDI नीति के अंतर्गत:
- अंतरिक्ष क्षेत्र में 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति
- उपग्रह-संबंधित गतिविधियों में 74% तक (स्वचालित मार्ग); इससे अधिक के लिए सरकारी मार्ग
- प्रक्षेपण यान और अंतरिक्ष बंदरगाहों में 49% तक (स्वचालित मार्ग); इससे अधिक के लिए सरकारी मार्ग
- उपग्रहों और ग्राउंड/यूज़र सेगमेंट के लिए घटकों और उप-प्रणालियों के निर्माण में 100% (स्वचालित मार्ग)

आगे की राह
- निजी संस्थाएँ अब अनुसंधान, निर्माण और रॉकेट व उपग्रहों की फैब्रिकेशन जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सक्रिय रूप से शामिल हैं, जिससे नवाचार का एक जीवंत पारिस्थितिकी तंत्र विकसित हो रहा है।
- इससे भारतीय कंपनियाँ वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में एकीकृत हो सकेंगी। इसके साथ ही कंपनियाँ देश में ही अपने विनिर्माण केंद्र स्थापित कर सकेंगी, जिससे सरकार की ‘मेक इन इंडिया (MII)‘ और ‘आत्मनिर्भर भारत‘ पहल को प्रोत्साहन मिलेगा।
Source: ET
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