अमेरिकी रक्षा संबंध – भारत को सतर्क रहने की आवश्यकता

पाठ्यक्रम: GS2/अंतर्राष्ट्रीय संबंध; GS3/सुरक्षा

सन्दर्भ

  • भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच विकसित हो रही रक्षा साझेदारी ने प्रौद्योगिकी साझाकरण, संयुक्त अभ्यास और रक्षा खरीद में महत्त्वपूर्ण प्रगति लाई है, लेकिन यह भारत की रणनीतिक स्वायत्तता के बारे में गंभीर प्रश्न उठाती है।

भारत-अमेरिका रक्षा संबंध

शीत युद्ध काल (1947-1991):

  • प्रारंभिक संबंध (1947-1962): प्रारंभ में, भारत और अमेरिका ने सीमित सैन्य सहयोग के साथ राजनयिक संबंध बनाए रखे।
  • भारत-चीन युद्ध (1962): प्रथम बड़ा रक्षा सहयोग, हालाँकि अल्पकालिक, तब हुआ जब अमेरिका और ब्रिटेन ने चीन के साथ सीमा संघर्ष के दौरान भारत को सैन्य सहायता प्रदान की।
  • अमेरिका-पाकिस्तान गठबंधन (1954-1971): पारस्परिक रक्षा सहायता समझौता (1954) और SEATO (1954) और CENTO (1955), जिसने पाकिस्तान को उन्नत अमेरिकी हथियार प्रदान किए।
  • बांग्लादेश मुक्ति युद्ध और भारत-सोवियत संधि (1971): पाकिस्तान को अमेरिका के समर्थन के जवाब में भारत ने शांति, मैत्री और सहयोग की भारत-सोवियत संधि (1971) पर हस्ताक्षर किए, जिससे भारत ने अमेरिका से अपनी दूरी और बढ़ा ली।
  • 1974 के बाद के संबंध और परमाणु प्रतिबंध: – 1974 में भारत के परमाणु परीक्षण (स्माइलिंग बुद्धा) के कारण अमेरिकी प्रतिबंध लगे और रक्षा सहयोग में कमी आई।
    • अमेरिका ने अपनी अप्रसार नीति के अंतर्गत भारत की उन्नत सैन्य प्रौद्योगिकी तक पहुँच पर प्रतिबंध लगा दिया।
  • भारत की गुटनिरपेक्ष नीति और सोवियत संघ के साथ सामरिक साझेदारी ने अमेरिका के साथ रक्षा संबंधों को सीमित कर दिया।

शीत युद्धोत्तर काल (1991-2000):

  • आर्थिक सुधार और रणनीतिक बदलाव (1991): 1991 में भारत के आर्थिक उदारीकरण ने दोनों देशों को निकट ला दिया।
    • अमेरिका ने एशिया में भारत के बढ़ते सामरिक महत्त्व को मान्यता दी।
  • रक्षा सहयोग की शुरुआत (1995): – 1995 में रक्षा संबंधों पर सहमत कार्यवृत्त पर हस्ताक्षर से औपचारिक सैन्य संबंधों की शुरुआत हुई।
    • इससे सैन्य-से-सैन्य संपर्क और उच्च-स्तरीय रक्षा वार्ता संभव हुई।
  • परमाणु परीक्षण और प्रतिबंध (1998): 1998 में भारत के परमाणु परीक्षण (पोखरण-II) के परिणामस्वरूप परमाणु प्रसार रोकथाम अधिनियम के अंतर्गत अमेरिका द्वारा नए प्रतिबंध लगा दिए गए।
    • हालाँकि, कूटनीतिक प्रयासों के फलस्वरूप 2001 तक इन प्रतिबंधों को धीरे-धीरे हटा लिया गया।

9/11 के पश्चात का युग (2001-2010):

  • रक्षा नीति समूह (DPG) पुनर्जीवित (2001): दोनों देशों ने 9/11 के बाद उच्च स्तरीय रक्षा वार्ता और खुफिया जानकारी साझा करना पुनः शुरू किया।
  • अमेरिका-भारत रक्षा संबंधों के लिए नई रूपरेखा (2005): इसने गहन सैन्य सहयोग, संयुक्त अभ्यास और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की नींव रखी।
  • अमेरिका-भारत असैन्य परमाणु समझौता (2008): ऐतिहासिक 123 समझौते ने परमाणु-संबंधी प्रतिबंधों को हटा दिया और दोनों देशों के बीच रणनीतिक विश्वास को बढ़ाया।

आधुनिक युग (2010-वर्तमान): व्यापक रक्षा साझेदारी

  • रक्षा व्यापार और सैन्य खरीद: भारत अमेरिकी रक्षा उपकरणों का सबसे बड़ा आयातक है, जो उन्नत सैन्य हार्डवेयर खरीदता है जैसे: C-17 ग्लोबमास्टर III और C-130J सुपर हरक्यूलिस परिवहन विमान;
    • अपाचे AH-64E और चिनूक CH-47 हेलीकॉप्टर;
    • भारतीय नौसेना के लिए MH-60R सीहॉक हेलीकॉप्टर;
    • P-8I पोसाइडन समुद्री निगरानी विमान;
    • निगरानी और टोही के लिए प्रीडेटर MQ-9B ड्रोन;
  • अमेरिका ने 2016 में भारत को एक प्रमुख रक्षा साझेदार (MDP) का दर्जा दिया, जो अमेरिका के सबसे करीबी सहयोगियों के बराबर स्तर पर रक्षा व्यापार और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करता है।
  • सामरिक समझौते और रसद सहयोग: भारत और अमेरिका ने कई आधारभूत समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं, जिससे विशेष रूप से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में परिचालन समन्वय को अत्यधिक बढ़ावा मिला है, जैसे:
    • लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA) – 2016: यह दोनों देशों के सशस्त्र बलों को ईंधन भरने और पुनः आपूर्ति के लिए एक-दूसरे के स्थानों का उपयोग करने की अनुमति देता है।
    • संचार संगतता और सुरक्षा समझौता (COMCASA) – 2018: उनके सैन्य प्लेटफार्मों के बीच सुरक्षित संचार को सक्षम बनाता है।
    • बुनियादी विनिमय और सहयोग समझौता (BECA) – 2020: सैन्य उपयोग के लिए भू-स्थानिक खुफिया जानकारी और उपग्रह डेटा साझा करने की सुविधा प्रदान करता है।
  • संयुक्त सैन्य अभ्यास: भारत और अमेरिका अंतर-संचालन और तत्परता बढ़ाने के लिए नियमित रूप से संयुक्त सैन्य अभ्यास करते हैं। कुछ उल्लेखनीय अभ्यासों में शामिल हैं:
    • मालाबार (नौसैनिक अभ्यास): क्वाड गठबंधन के हिस्से के रूप में जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ आयोजित किया गया।
    • युद्ध अभ्यास (सेना अभ्यास): भूमि युद्ध समन्वय को बढ़ाता है।
    • वज्र प्रहार (विशेष बल अभ्यास): आतंकवाद-रोधी क्षमताओं को मजबूत करता है।
    • कोप इंडिया (वायु सेना अभ्यास): हवाई युद्ध और हवाई श्रेष्ठता पर केंद्रित।
  • हिंद-प्रशांत रणनीति और क्वाड सहयोग: दक्षिण चीन सागर और हिंद महासागर में चीन की बढ़ती आक्रामकता के साथ, भारत एवं अमेरिका ने एक स्वतंत्र, खुला तथा नियम-आधारित हिंद-प्रशांत सुनिश्चित करने के लिए अपने रणनीतिक हितों को संरेखित किया है।
    • वे जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ क्वाड सुरक्षा वार्ता (QUAD) के सक्रिय सदस्य हैं, जिसका उद्देश्य क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा, बुनियादी ढाँचे के विकास और आर्थिक लचीलेपन को बढ़ावा देना है।
  • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और रक्षा नवाचार: भारत-अमेरिका रक्षा प्रौद्योगिकी एवं व्यापार पहल (DTTI) उन्नत रक्षा प्रौद्योगिकियों के सह-विकास और सह-उत्पादन की सुविधा प्रदान करती है। सहयोग के कुछ प्रमुख क्षेत्र निम्नलिखित हैं:
    • महत्त्वपूर्ण और उभरती हुई प्रौद्योगिकी (iCET) 
    • जेट इंजन प्रौद्योगिकी 
    • मानव रहित हवाई वाहन (UAVs) 
    • रक्षा में AI साइबर सुरक्षा और 
    • अंतरिक्ष आधारित प्रणालियाँ

भारत-अमेरिका रक्षा संबंधों में चुनौतियाँ

  • भारत की सामरिक स्वायत्तता: भारत अपना गुटनिरपेक्ष दृष्टिकोण बनाए रखना चाहता है, तथा रूस और फ्रांस के साथ रक्षा संबंध जारी रखते हुए अमेरिका के साथ संबंधों में संतुलन बनाए रखना चाहता है।
  • अमेरिकी नीति में अप्रत्याशितता: अमेरिकी विदेश नीति की लेन-देन संबंधी प्रकृति, जो बदलते प्रशासन से प्रभावित होती है, अप्रत्याशितता का एक तत्व जोड़ती है।
    • भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसकी रक्षा रणनीति किसी एक साझेदार पर अत्यधिक निर्भर न हो।
  • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण प्रतिबंध: अमेरिका संवेदनशील रक्षा प्रौद्योगिकी साझा करने में सतर्क रहता है।
  • स्वदेशी रक्षा क्षमताएँ: हालाँकि साझेदारी से उन्नत प्रौद्योगिकियाँ प्राप्त हुई हैं, लेकिन इससे भारत के स्वदेशी रक्षा विनिर्माण को कोई विशेष बढ़ावा नहीं मिला है।
  • CAATSA और प्रतिबंधों की चिंताएँ: भारत द्वारा रूसी S-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली खरीदने से CAATSA कानून के अंतर्गत अमेरिकी प्रतिबंधों का खतरा है।
  • नौकरशाही बाधाएँ: जटिल खरीद प्रक्रियाएँ और नीतिगत विसंगतियां रक्षा सहयोग को धीमा कर देती हैं।

आगे की राह

  • साझेदारियों में विविधता: भारत को किसी एक देश पर अत्यधिक निर्भरता से बचने के लिए अनेक रक्षा साझेदारों के साथ संपर्क बनाए रखना चाहिए।
  • आत्मनिर्भरता पर ध्यान: एक मजबूत घरेलू रक्षा उद्योग के निर्माण के लिए ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसी पहल को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
  • संतुलित कूटनीति: अमेरिका के साथ संबंधों को गहरा करते हुए, भारत को संतुलित और स्वतंत्र विदेश नीति सुनिश्चित करने के लिए अन्य वैश्विक शक्तियों के साथ भी मजबूत संबंध बनाए रखना चाहिए।

निष्कर्ष

  • पिछले दो दशकों में भारत-अमेरिका रक्षा संबंध मजबूत हुए हैं तथा एक व्यापक सुरक्षा साझेदारी के रूप में विकसित हुए हैं।
  • चूँकि दोनों देश हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखना चाहते हैं तथा उभरते सुरक्षा खतरों का मुकाबला करना चाहते हैं, इसलिए रक्षा सहयोग उनके द्विपक्षीय संबंधों की आधारशिला बना रहेगा।
  • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, नीति संरेखण और रणनीतिक स्वायत्तता जैसी चुनौतियों का समाधान करके, साझेदारी क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा के लिए अपनी पूरी क्षमता को उजागर कर सकती है।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
[प्रश्न] भारत रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखते हुए और अन्य वैश्विक शक्तियों के साथ विविध साझेदारी को बढ़ावा देते हुए संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ अपने गहन होते रक्षा संबंधों को कैसे संतुलित कर सकता है?

Source: TH

 

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