संवैधानिक नैतिकता

पाठ्यक्रम: GS2/राजव्यवस्था

संदर्भ

  • हाल के दिनों में, हमारी संवैधानिक न्यायालयों ने ‘संवैधानिक नैतिकता’ की बहुआयामी अवधारणा को व्याख्या करने के एक उपकरण के रूप में तथा कानूनों की संवैधानिक वैधता पर निर्णय देने के एक परीक्षण के रूप में अपनाया है।

संवैधानिक नैतिकता के बारे में

  • यह एक मौलिक सिद्धांत है जो संवैधानिक लोकतंत्रों में लोकतांत्रिक शासन और कानूनी व्याख्या का मार्गदर्शन करता है।
  • यह संविधान में निहित मूल मूल्यों के पालन को दर्शाता है; न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व सुनिश्चित करता है।
  • ‘संवैधानिक नैतिकता’ शब्द ने भारत में प्रमुखता प्राप्त की है, विशेष रूप से न्यायिक घोषणाओं के माध्यम से भारतीय संविधान की प्रगतिशील तरीके से व्याख्या की गई है।

संवैधानिक नैतिकता की उत्पत्ति

  • ‘संवैधानिक नैतिकता’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग ब्रिटिश इतिहासकार जॉर्ज ग्रोटे ने अपनी कृति ‘ए हिस्ट्री ऑफ़ ग्रीस’ में किया था।
    • ग्रोटे ने ‘संवैधानिक नैतिकता’ वाक्यांश का प्रयोग संविधान के स्वरूपों और प्रक्रियाओं के प्रति श्रद्धा का वर्णन करने के लिए किया, जिसमें सार्वजनिक तर्क, आत्म-संयम और आलोचना के महत्त्व पर बल दिया गया।
    • ग्रोटे के अनुसार, संवैधानिक नैतिकता का तात्पर्य किसी संवैधानिक व्यवस्था को उसके लिखित प्रावधानों से परे संरक्षित करने के लिए आवश्यक आदतों और मानदंडों से है।
  • भारतीय संदर्भ में, डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने 1948 में संविधान सभा की परिचर्चा के दौरान संवैधानिक नैतिकता की अवधारणा का आह्वान किया।
    • उन्होंने इस बात पर बल दिया कि भारत में लोकतंत्र के लिए एक स्वतंत्र एवं शांतिपूर्ण समाज सुनिश्चित करने के लिए संवैधानिक नैतिकता की स्थापना और प्रसार की आवश्यकता होगी।
    • उन्होंने तर्क दिया कि संवैधानिक नैतिकता एक स्वाभाविक भावना नहीं है, बल्कि एक लोकतांत्रिक राजनीति के कामकाज के लिए एक आवश्यक आदर्श है।
संवैधानिक नैतिकता के पक्ष और विपक्ष
मौलिक अधिकारों और कर्त्तव्यों को कायम रखनासामाजिक न्याय को बढ़ावा देनाजवाबदेही सुनिश्चित करनाबदलते सामाजिक मूल्यों के अनुकूल होनालोकतंत्र को मजबूत करनाव्यक्तिपरकता और अस्पष्टतान्यायिक अतिक्रमणधार्मिक और पारंपरिक मान्यताओं के साथ टकरावसार्वजनिक नैतिकता के साथ टकरावजटिलता और कानूनी अनिश्चितताबहुसंख्यक प्रभाव

भारत में संवैधानिक नैतिकता की बारीकियाँ

  • व्यक्तिगत अधिकारों और सामाजिक मानदंडों में संतुलन: संवैधानिक नैतिकता के लिए प्रायः व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामूहिक हितों के बीच संतुलन बनाना आवश्यक होता है।
    • यह सुनिश्चित करता है कि कानून मौलिक अधिकारों को बनाए रखें, भले ही वे पारंपरिक या बहुसंख्यक दृष्टिकोण को चुनौती देते हों।
  • लोकतांत्रिक शासन में भूमिका: अंबेडकर ने इस बात पर प्रकाश डाला कि लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए संवैधानिक नैतिकता महत्त्वपूर्ण है।
    • यह बहुमत के अत्याचार को रोकता है और यह सुनिश्चित करता है कि संविधान क्षणिक राजनीतिक शक्तियों की सनक के बजाय मार्गदर्शक शक्ति बना रहे।
  • संवैधानिक नैतिकता की विकासशील प्रकृति: चूँकि संवैधानिक नैतिकता एक स्थिर अवधारणा नहीं है, इसलिए यह समय, सामाजिक प्रगति और न्यायिक व्याख्याओं के साथ विकसित होती है।
    • LGBTQ+ अधिकार, लैंगिक न्याय और गोपनीयता जैसे मुद्दों ने भारत में संवैधानिक नैतिकता के आयामों का विस्तार किया है।

न्यायिक व्याख्या और विस्तार

  • केशवानंद भारती केस (1973): तेरह में से तीन जजों ने कहा कि ‘मूल संरचना सिद्धांत स्वयं संवैधानिक नैतिकता से संबंधित है’। 
  • के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ (2017): उच्चतम न्यायालय ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में बरकरार रखा, इसे संवैधानिक नैतिकता के एक आवश्यक पहलू के रूप में व्याख्यायित किया। 
  • नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ (2018): उच्चतम न्यायालय ने धारा 377 को अपराधमुक्त कर दिया, यह दोहराते हुए कि संवैधानिक नैतिकता सामाजिक नैतिकता पर हावी है।
    • नाज़ फाउंडेशन बनाम दिल्ली सरकार (2009): दिल्ली उच्च न्यायालय ने IPC की धारा 377 के अंतर्गत समलैंगिकता को अपराधमुक्त करने के लिए संवैधानिक नैतिकता का आह्वान किया, जिसमें गरिमा और व्यक्तिगत अधिकारों पर बल दिया गया।
  • सबरीमाला मंदिर प्रवेश मामला (2018): न्यायालय ने महिलाओं के पूजा करने के अधिकार को बरकरार रखा, यह निर्णय सुनाया कि संवैधानिक नैतिकता धार्मिक परंपरा के मामलों में भी समानता और गैर-भेदभाव सुनिश्चित करती है।
  •  जोसेफ शाइन बनाम भारत संघ (2018) मामला: उच्चतम न्यायालय ने व्यभिचार के अपराधीकरण को समाप्त करने के लिए संवैधानिक नैतिकता का उदाहरण दिया, संवैधानिक मूल्यों की प्रगतिशील व्याख्या की आवश्यकता पर बल दिया।

निष्कर्ष और आगे की राह

  • संवैधानिक नैतिकता विभिन्न ज्वलंत मुद्दों पर परिचर्चा का केन्द्र बिन्दु बन गई है, जैसे कि लैंगिक अल्पसंख्यकों के अधिकार, मंदिरों में महिलाओं का प्रवेश, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमाएँ, तथा राष्ट्रीय सुरक्षा और नागरिक स्वतंत्रता के बीच संतुलन।
  • संवैधानिक नैतिकता एक महत्त्वपूर्ण अवधारणा है जो संविधान में निहित सिद्धांतों एवं मूल्यों को बनाए रखने के महत्त्व को रेखांकित करती है, और यह संवैधानिक व्याख्या की गतिशील प्रकृति और बदलते सामाजिक मूल्यों को दर्शाते हुए विकसित होती रहती है।
  • जैसे-जैसे भारत आधुनिक शासन की जटिलताओं से निपटता है, संवैधानिक नैतिकता सभी नागरिकों के लिए न्याय, समानता और स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए एक मार्गदर्शक सिद्धांत बनी हुई है।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
[प्रश्न] संवैधानिक नैतिकता की अवधारणा भारत में समकालीन न्यायिक व्याख्याओं एवं सामाजिक मूल्यों को कैसे प्रभावित करती है, तथा शासन के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में संवैधानिक नैतिकता पर विश्वास करने के संभावित लाभ और चुनौतियाँ क्या हैं?

Source: TH

 

Other News

पाठ्यक्रम: GS2/शासन; संदर्भ भारतीय संविधान की 75वीं वर्षगांठ पर संसद में हाल ही में हुई चर्चाओं में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि स्थानीय शासन को मजबूत बनाने की दिशा में प्रगति रुक ​​गई है। पंचायती राज आंदोलन के संकट में कई कारक योगदान दे रहे हैं, जिसके लिए...
Read More

पाठ्यक्रम: GS2/अंतर्राष्ट्रीय संबंध संदर्भ महत्त्वपूर्ण विनिर्माण उपकरणों के निर्यात पर हाल ही में लगाए गए प्रतिबंधों और भारतीय संयंत्रों से चीनी इंजीनियरों एवं तकनीशियनों को वापस बुलाने से आपूर्ति शृंखलाओं के चीन के रणनीतिक शस्त्रीकरण पर प्रकाश पड़ा है। इससे गंभीर चिंता उत्पन्न होती है, क्योंकि चीन भू-राजनीतिक प्रभाव डालने...
Read More

पाठ्यक्रम: GS2/अंतर्राष्ट्रीय संबंध सन्दर्भ भारत एवं फ्रांस आपसी सम्मान, साझा मूल्यों और वैश्विक चुनौतियों पर सहयोग पर आधारित एक मजबूत रणनीतिक साझेदारी साझा करते हैं, जिसकी पुष्टि प्रधानमंत्री मोदी की हालिया फ्रांस यात्रा के दौरान हुई। भारत-फ्रांस संबंध ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: भारत और फ्रांस के बीच राजनयिक संबंध 1947 से ही...
Read More

पाठ्यक्रम: GS2/ सरकारी नीति और हस्तक्षेप, GS3/ पर्यावरण संदर्भ एक विश्लेषण से पता चलता है कि केवल तीन राज्यों - महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और ओडिशा - ने वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006 के अंतर्गत सामुदायिक वन संसाधन (CFR) अधिकारों को मान्यता देने में उल्लेखनीय प्रगति की है। संपूर्ण भारत में अधिकांश...
Read More

पाठ्यक्रम: GS2/अंतर्राष्ट्रीय संबंध; विकसित देशों की नीतियों का प्रभाव संदर्भ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के कार्यकाल में प्रारंभ हुए व्यापार युद्धों और व्यापार शस्त्रीकरण की व्यापक प्रवृत्ति के कारण वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आया है। इन उपायों का वैश्विक अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों पर दूरगामी प्रभाव पड़ा है।...
Read More

पाठ्यक्रम: GS2/अंतर्राष्ट्रीय संबंध संदर्भ हाल के वर्षों में ग्लोबल नॉर्थ और साउथ के बीच एक सेतु के रूप में भारत की भूमिका ने महत्त्वपूर्ण ध्यान आकर्षित किया है, जिससे भारत को ग्लोबल साउथ की आवाज को बढ़ाने में सहायता मिली है, साथ ही ग्लोबल नॉर्थ में पारंपरिक साझेदारों के साथ...
Read More

पाठ्यक्रम: GS2/अंतर्राष्ट्रीय संबंध; GS3/सुरक्षा संदर्भ वैश्विक हिंसा की वर्तमान स्थिति, अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की भूमिका, तथा विभिन्न क्षेत्रों में आधुनिक युद्ध और आतंकवाद की जटिलताओं के साथ खतरों की उभरती प्रकृति, वैश्विक शांति एवं सुरक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ प्रस्तुत कर रही है। हिंसा के दुष्चक्र की संकल्पना 'हिंसा का दुष्चक्र’...
Read More
scroll to top