सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग: मुख्य बिंदु, निर्धारक एवं आलोचना

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सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग एक स्वतंत्र मूल्याँकन है जो किसी देश या संप्रभु इकाई की साख को निर्धारित करती है। यह निवेशकों को राजनीतिक जोखिमों सहित किसी विशेष देश के ऋण में निवेश से जुड़े जोखिम के स्तर के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती है।

जब कोई देश रेटिंग लिए अनुरोध करता है, तो एक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी रेटिंग देने के लिए उसके आर्थिक और राजनीतिक वातावरण का आँकलन करती है। अंतरराष्ट्रीय बांड बाजारों तक पहुँच बनाने के लिए विकासशील देशों को एक अनुकूल सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग प्राप्त करना सामान्यत: महत्त्वपूर्ण है।

सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग के विषय में ध्यान में रखने वाले प्रमुख बिंदु:

  • वे किसी भी देश या संप्रभु इकाई की साख का स्वतंत्र रूप से आँकलन करते हैं।
  • निवेशक किसी देश के बांड से जुड़े जोखिम स्तर का मूल्याँकन करने के लिए इन रेटिंग का उपयोग करते हैं। उदाहरण के लिए: स्टैंडर्ड एंड पूअर्स निवेश ग्रेड के रूप में बीबीबी (-) या इससे अधिक की रेटिंग निर्दिष्ट (Designated) करता है, जबकि बीबी (+) या इससे कम ग्रेड को सट्टा या “जंक” ग्रेड माना है।

सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग्स को समझना:

  • बाहरी ऋण बाजारों में बांड जारी करने के अतिरिक्त, देश प्राय: प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को आकर्षित करने के लिए सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग की माँग करते हैं।
  • निवेशकों के विश्वास को बढानें के लिए स्टैंडर्ड एंड पूअर्स, मूडीज और फिच रेटिंग्स जैसी प्रमुख क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के द्वारा रेटिंग तैयार की जाती है।
  • निवेशक किसी देश के बांड की जोखिम क्षमता का आँकलन करने के लिए सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग पर विश्वास करते हैं।
  • सॉवरेन क्रेडिट जोखिम, जो इन रेटिंग्स में परिलक्षित होता है, इस संभावना को दर्शाता है कि कोई सरकार भविष्य में अपने ऋण दायित्वों को पूरा करने में असमर्थ या अनिच्छुक हो सकती है।
  • किसी विशिष्ट देश या क्षेत्र में निवेश से जुड़े जोखिम के स्तर को निर्धारित करने में कई कारक योगदान करते हैं। इन कारकों में ऋण सेवा अनुपात, घरेलू धन आपूर्ति में वृद्धि, आयात अनुपात और निर्यात राजस्व में भिन्नता शामिल है।

सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग के निर्धारक:

गुणात्मक और मात्रात्मक तकनीकों के संयोजन का उपयोग करके क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों द्वारा सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग निर्धारित की जाती हैं। इन कारकों में शामिल हैं:

  1. प्रति व्यक्ति आय (Per Capita Income): यह किसी विशेष क्षेत्र में व्यक्तियों द्वारा अर्जित औसत आय को मापता है। प्रति व्यक्ति उच्च आय सरकार के लिए बड़े कर आधार(TAX BASE) का संकेत देती है, जिससे ऋण चुकाने की सरकार की क्षमता बढ़ती है।
  2. सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि (GDP Growth): यह समय के साथ किसी देश की सकल घरेलू उत्पाद में प्रतिशत वृद्धि को दर्शाता है। सकारात्मक जीडीपी वृद्धि का अर्थ है कि देश उच्च कर राजस्व के कारण अपने ऋण दायित्वों को पूरा कर सकता है। इसके विपरीत, नकारात्मक वृद्धि आर्थिक संकुचन और ऋण दायित्वों को पूरा करने में संभावित कठिनाइयों की ओर संकेत करती है।
  3. मुद्रास्फीति की दर (Rate of Inflation): मुद्रास्फीति किसी देश के ऋण को वित्तपोषित करने की क्षमता को प्रभावित करती है। उच्च मुद्रास्फीति दरें वित्तीय संरचनात्मक समस्याओं की ओर संकेत करती हैं जिसके कारण जनता में असंतोष बढ़ने से राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
  4. बाह्य ऋण (External Debt): बाहरी ऋणों पर अधिक निर्भर देशों को डिफ़ॉल्ट होने के उच्च जोखिम का सामना करने की संभावना अधिक होती है, जिससे अंतरराष्ट्रीय फंडिंग तक उनकी पहुँच प्रभावित होती है। यदि किसी देश का विदेशी मुद्रा ऋण, निर्यात से प्राप्त होने वाली विदेशी मुद्रा आय से अधिक हो जाता है, तो ऋण का बोझ बढ़ जाता है।
  5. आर्थिक विकास (Economic Development): क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां किसी देश की संप्रभु क्रेडिट रेटिंग का आँकलन करते समय उसके विकास के स्तर को ध्यान में रखती है। विकसित देशों को सामान्यत: विकासशील देशों की तुलना में डिफ़ॉल्ट होने की संभावना कम होती है।
  6. डिफ़ॉल्ट होना (History of Defaults): ऋण दायित्वों पर चूक के रिकॉर्ड वाले देशों को उच्च संप्रभु ऋण जोखिम वाले देशों के रूप में देखा जाता है। ऐसे देशों को कम रेटिंग मिलती है, जिससे वे कम जोखिम वाले निवेशकों के लिए कम आकर्षक बन जाते हैं।

भारत में सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग (SCR) पर आर्थिक सर्वेक्षण का रुख:

  • 2000-2020 की अवधि के दौरान विभिन्न मापदंडों पर अपने प्रदर्शन की तुलना में भारत को लगातार कम रेटिंग प्राप्त हुई है।
  • भारत जीडीपी विकास दर, मुद्रास्फीति, सरकारी ऋण, राजनीतिक स्थिरता, कानून का शासन, भ्रष्टाचार पर नियंत्रण, निवेशक सुरक्षा, व्यवसाय करने में आसानी और संप्रभु डिफ़ॉल्ट हिस्ट्री सहित कई क्षेत्रों में अग्रणी है।
  • भारत की भुगतान करने की क्षमता को उसके कम विदेशी मुद्रा-मूल्य वाले ऋण और पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार द्वारा समर्थित किया जाता है, जो अल्पकालिक निजी क्षेत्र के ऋण के साथ-साथ संप्रभु और गैर-संप्रभु विदेशी ऋण के संपूर्ण स्टॉक को कवर कर सकता है।
  • भारत की राजकोषीय नीति को पक्षपातपूर्ण और संप्रभु क्रेडिट रेटिंग द्वारा नियंत्रित होने के स्थान पर विकास और वृद्धि को प्राथमिकता देनी चाहिए।
  • आर्थिक सर्वेक्षण में सिफारिश की गई है कि विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को भविष्य के संकटों को रोकने के लिए संप्रभु क्रेडिट रेटिंग पद्धतियों में अंतर्निहित पूर्वाग्रहों (inherent biases) और व्यक्तिपरकता (subjectivity) को संबोधित करने के लिए संगठित होकर कार्य करना चाहिये।

क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों की आलोचना:

क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों को अपने परिचालन (operations) के विभिन्न पहलुओं विशेषकर सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग के संबंध में आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है। यहाँ कुछ प्रमुख आलोचनाएँ निम्नलिखित है:

  • प्रतिक्रियाशीलता और पूर्वाग्रह (Reactivity and Bias): संप्रभु क्रेडिट रेटिंग को प्रतिक्रियाशील के रूप में देखा जाता है, विशेषकर उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में, विकसित अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में डाउनग्रेड होने की अधिक संभावना होती है। ऐसी धारणा है कि क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां विकसित देशों को उनकी व्यापक आर्थिक स्थिति को नजरंदाज करते हुए उच्च रेटिंग प्रदान करती हैं, संभावित रूप से अंतर्निहित जोखिमों को भी  नजरअंदाज करती हैं।
  • असमान व्यवहार (Unequal Treatment): एस एंड पी और फिच जैसी कुछ क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों की इस बात के लिए आलोचना की गई है कि अफ्रीकी देशों को अन्य विकासशील देशों की तुलना में अपग्रेड करना अधिक चुनौतीपूर्ण है, भले ही उनकी क्षमता और ऋण चुकाने की इच्छा में स्पष्ट सुधार हुआ हो।
  • क्षेत्रीय एवं सांस्कृतिक प्रभाव (Regional and Cultural Influences): क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के घरेलू देशों के साथ भाषाई और सांस्कृतिक समानता रखने वाले देशों को उच्च रेटिंग प्रदान करते देखा गया है जो जरूरी नहीं कि उनके राजनीतिक और आर्थिक बुनियादी सिद्धांतों द्वारा उचित हो। इससे पता चलता है कि क्षेत्रीय या सांस्कृतिक प्रभाव भी रेटिंग परिणामों को प्रभावित करते हैं।
  • हितों का टकराव (Conflict of Interest): प्रमुख आलोचनाओं में से एक यह है कि क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों,उन कंपनियों के मुआवजे की व्यवस्था के इर्द-गिर्द घूमती है जिनकी प्रतिभूतियों का वे मूल्याँकन करते हैं। चूंकि एजेंसियों को जारीकर्ताओं द्वारा भुगतान किया जाता है, इसलिए हितों का टकराव माना जाता है। कंपनियों को उच्च रेटिंग से लाभ होता है, जिससे बाजार की धारणा कंपनियों के अनुकूल हो जाती है और उधार लेने की लागत भी कम हो जाती है। यह मुआवजा (क्षतिपूर्ति) संरचना क्रेडिट रेटिंग की स्वतंत्रता एवं निष्पक्षता के बारे में चिंता पैदा करती है।

सामान्य प्रश्नोत्तर

भारत की सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग क्या है? 

जुलाई 2023 तक, स्टैंडर्ड एंड पुअर्स (एसएंडपी) और मूडीज़ द्वारा भारत की सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग स्थिर दृष्टिकोण के साथ बीबीबी (-) है। इसका अर्थ यह है कि एसएंडपी और मूडीज का मानना है कि भारत के पास अपने वित्तीय दायित्वों को पूरा करने की मध्यम क्षमता है, लेकिन एक जोखिम है कि वह भविष्य में ऐसा करने में सक्षम नहीं हो सकता है।

फिच रेटिंग्स के द्वारा भारत की सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग क्या है?

फिच रेटिंग्स द्वारा भारत की सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग BBB-/नकारात्मक थी।

भारत में 4 क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां कौन सी हैं?

भारत में चार क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां क्रिसिल (पूर्व में क्रेडिट रेटिंग इंफॉर्मेशन सर्विसेज ऑफ इंडिया लिमिटेड), आईसीआरए (पूर्व में निवेश सूचना और क्रेडिट रेटिंग एजेंसी), केयर (क्रेडिट एनालिसिस एंड रिसर्च लिमिटेड) और इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च (फिच की सहायक कंपनी) हैं।

विश्व की शीर्ष 3 रेटिंग एजेंसियां कौन सी हैं?

दुनिया की शीर्ष तीन रेटिंग एजेंसियां स्टैंडर्ड एंड पूअर्स (एसएंडपी), मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस और फिच रेटिंग्स हैं। ये एजेंसियां सॉवरेन, निगमों और वित्तीय साधनों सहित विभिन्न संस्थाओं के लिए क्रेडिट रेटिंग प्रदान करने में व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त और प्रभावशाली हैं।

भारत की पहली क्रेडिट रेटिंग एजेंसी कौन सी है?

भारत की पहली क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्रेडिट एनालिसिस एंड रिसर्च लिमिटेड (CARE) है। इसकी स्थापना 1993 में हुई थी और यह भारत की प्रमुख क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों में से एक है, जो विभिन्न क्षेत्रों और संस्थाओं के लिए रेटिंग प्रदान करती है।

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