मृदा क्षरण: कारण, परिणाम और समाधान

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मृदा क्षरण का तात्पर्य प्राय: कृषि, औद्योगिक या शहरी संदर्भों में अनुचित उपयोग और अपर्याप्त प्रबंधन के कारण मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट से है। यह एक महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय मुद्दा है जिसके दूरगामी परिणाम होंगे।

मृदा क्षरण का अर्थ

मिट्टी एक आवश्यक प्राकृतिक संसाधन है जो सभी स्थलीय जीवों को आधार प्रदान करती हैं इसलिए मिट्टी के क्षरण को रोकना हम सब के लिए महत्त्वपूर्ण हो जाता है। इसके उदाहरणों में मिट्टी की गुणवत्ता में भौतिक, रासायनिक और जैविक गिरावट शामिल है। यह कार्बनिक पदार्थों की हानि, उर्वरता में कमी, मिट्टी की संरचना में गिरावट, जल या हवा के माध्यम से कटाव, लवणता के स्तर में परिवर्तन (जैसे शुष्क भूमि, सिंचाई या शहरी लवणता), मिट्टी की अम्लता या क्षारीयता में वृद्धि, संघनन, सतह सीलन, बड़े पैमाने पर आवाजाही और जहरीले रसायनों या प्रदूषकों से संदूषण आदि के रूप में सामने आ सकता है।

मृदा क्षरण के प्रकार

मृदा क्षरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें मिट्टी के कण वायु ,जल  या अन्य कारकों द्वारा उनके मूल स्थान से हटा दिया जाते हैं। यह एक गंभीर पर्यावरणीय समस्या है जो कृषि, पारिस्थितिकी तंत्र और जल आपूर्ति को नुकसान पहुँचा सकते है।

मृदा क्षरण के तीन मुख्य प्रकार हैं:

जल अपरदन

यह सबसे समान्य प्रकार का मृदा क्षरण है। यह तब होता है जब जल, मिट्टी के कणों को अपने साथ बहा के ले जाते है। जल कटाव के कई प्रकार हैं, जिनमें शामिल हैं:

सतही-कटाव

यह भी सबसे समान्य प्रकार का जल कटाव है। यह तब होता है जब जल, मिट्टी के ऊपरी स्तर को बहाकर ले जाता है।

गली-कटाव

यह तब होता है जब जल, मिट्टी के कणों को एक संकरी नाली में बहा ले जाता है।

रिल-कटाव

जल अपरदन का एक प्रकार है जिसमें वर्षा के कारण मिट्टी की सतह पर पतली और संकीर्ण नालियों का निर्माण होता है।

वायु अपरदन

यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब मिट्टी के कण पवन बलों द्वारा दूर ले जाये जाते हैं। वायु कटाव सामान्यत: शुष्क क्षेत्रों में होता है, लेकिन यह कटाव किसी भी क्षेत्र में हो सकता है।

रासायनिक क्षरण

यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब मिट्टी के कण लवण, अम्लीय वर्षा, या अन्य रसायनों के कारण क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। रासायनिक क्षरण सामान्यत: कृषि क्षेत्रों में होता है, जहां उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है।

मृदा क्षरण के कारण

ऐसे कई कारक हैं जो मृदा क्षरण लिए ज़िम्मेदार हैं लेकिन कुछ निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण कारक हैं:

  1. भौतिक कारक: वर्षा, सतही अपवाह, बाढ़, पवन-कटाव, जुताई और बड़े पैमाने पर हलचल जैसे कारक मिट्टी के क्षरण के कारण होते हैं। ये कारक विभिन्न प्रकार के मिट्टी के कटाव और अलगाव का कारण बनते हैं जिससे ऊपरी मिट्टी और कार्बनिक पदार्थ नष्ट हो जाते हैं।
  2. जैविक कारक: इनमें मानव और पौधों की गतिविधियों को शामिल किया जाता हैं जिससे मिट्टी की गुणवत्ता कम हो जाती हैं। बैक्टीरिया और कवक की अत्यधिक वृद्धि मिट्टी में सूक्ष्म जीवों की गतिविधियों को प्रभावित करती है, जिससे फसल की पैदावार कम होती है और मिट्टी की उत्पादकता भी कम हो सकती है। खराब कृषि पद्धतियाँ और मिट्टी के पोषक तत्वों का कुप्रबंधन भी मिट्टी की उर्वरता को कम कर सकता है।
  3. रासायनिक कारक: रासायनिक कारकों में क्षारीयता, अम्लता या जलभराव के कारण मिट्टी के पोषक तत्वों में कमी आदि शामिल है। इन कारकों से मिट्टी के रासायनिक गुणों में परिवर्तन होता है जिससे पोषक तत्वों की मात्रा भी प्रभावित होती है। नमक का निर्माण और पोषक तत्वों के निक्षालन से मिट्टी के रासायनिक घटकों में अवांछनीय परिवर्तन होने से मिट्टी की गुणवत्ता खराब हो सकती है। ये रासायनिक कारक मिट्टी के पोषक तत्वों की अपरिवर्तनीय हानि तथा कुछ प्रकार की मिट्टी को सख्त कर देते हैं।
  4. वनोन्मूलन: वनोन्मूलन से वृक्षों और फसलों का आवरण हटने से मिट्टी के खनिज उपरी सतह पर आ जाते है, जो मिट्टी के निर्माण के लिए महत्त्वपूर्ण होते हैं। वनस्पति आवरण मिट्टी के बंधन, वातन, जल-धारण क्षमता और जैविक गतिविधि को बढ़ावा देते है। लॉगिंग और स्लैश-एंड-बर्न तकनीकों से पेड़ों को हटाने से कटाव और विषाक्ता बढ़ सकती है और मिट्टी अनुत्पादक हो सकती है।
  5. उर्वरकों का दुरुपयोग या अधिक प्रयोग: कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों का दुरुपयोग या अत्यधिक प्रयोग मिट्टी के ऐसे सूक्ष्म जीवों को नुकसान पहुँचा सकते है जो मिट्टी के सामंजस्य (Cohesion) में योगदान करते हैं। उर्वरकों के अनुचित प्रयोग से मिट्टी के आवश्यक खनिज नष्ट हो सकते हैं और पोषक तत्वों की कमी हो सकती है। इससे मिट्टी की जैविक गतिविधियों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है और मिट्टी में विषाक्त पदार्थों का निर्माण हो सकता है।
  6. औद्योगिक एवं खनन गतिविधियाँ: ये गतिविधियाँ मृदा प्रदूषण को बढ़ावा देती हैं। खनन से फसल का आवरण नष्ट हो जाता है और मिट्टी में जहरीले रसायन फैल जाते हैं, जिससे वह अनुत्पादक हो जाती है। औद्योगिक गतिविधियाँ अपशिष्ट पदार्थ और विषाक्त पदार्थ मिट्टी में छोड़ती हैं जो मिट्टी को प्रदूषित करते हैं, इससे मृदा के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुण प्रभावित होते हैं।
  7. अनुचित खेती पद्धतियाँ: कुछ कृषि पद्धतियाँ जैसे अत्यधिक जुताई, गहरी जुताई, खड़ी ढलानों पर खेती, एकल-फसल, पंक्ति-फसल और सतही सिंचाई आदि मिट्टी की संरचना और उर्वरता को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती हैं। अनुचित खेती पद्धतियों से मृदा में कटाव होता है, मिट्टी का पुनर्भरण कम होता है और कृषि उत्पादकता में कमी आती है।
  8. नगरीकरण: नगरीकरण परिणामस्वरूप मृदा वनस्पति आवरण का अनाच्छादन, निर्माण के दौरान संघनन और जल निकासी पैटर्न में परिवर्तन होता है। शहरी क्षेत्रों की अभेद्य सतहें, सतही अपवाह और अपरदन को बढ़ाती हैं। शहरी क्षेत्रों से निकलने वाले अपवाह में प्राय: प्रदूषक तत्व होते हैं जो जल निकायों को प्रदूषित करते हैं और पारिस्थितिक तंत्र को बाधित करते हैं।
  9. अत्यधिक चराई: इससे मिट्टी के कटाव, मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी और कृषि उत्पादकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह सतही फसल आवरण के साथ ही मिट्टी के कणों को भी नष्ट कर देता है, जिससे कटाव की दर बढ़ जाती है।

मृदा क्षरण के प्रभाव

  1. भूमि निम्नीकरण: यह भूमि क्षरण का एक प्रमुख कारण है, जिसके परिणामस्वरूप उपजाऊ भूमि नष्ट हो जाती है। कटाव, संदूषण और प्रदूषण कृषि भूमि की गुणवत्ता को कम कर देते हैं, जिससे यह कम उत्पादक हो जाती है। दुनिया की लगभग 40% कृषि भूमि में गंभीर गिरावट देखी गई है।
  2. सूखा एवं शुष्कता: मृदा क्षरण, शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में सूखे और शुष्कता को बढ़ाता है। अत्यधिक चराई, खराब जुताई के तरीकों और वनों की कटाई मरुस्थलीकरण को बढ़ावा देती है, जिससे शुष्क और जल की कमी की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इससे जैव विविधता को भी नुकसान पहुँचता है।
  3. कृषियोग्य भूमि की हानि: इससे कृषि योग्य भूमि का काफी नुकसान होता है। मिट्टी की प्राकृतिक संरचना के क्षरण और क्षति के परिणामस्वरूप उत्पादक कृषि भूमि का नुकसान होता है। विश्व की लगभग 40% कृषि भूमि मृदा क्षरण से प्रभावित हुई है।
  4. बाढ़ में वृद्धि: इससे मिट्टी की जल सोखने की क्षमता कम हो जाती है, जिससे सतही अपवाह बढ़ जाता है और बार-बार बाढ़ आती है। वर्तमान में मिट्टी की प्राकृतिक जल-धारण क्षमता कम हो गई है, जिससे भारी वर्षा की घटनाओं का प्रभाव बढ़ गया है।
  5. जलमार्गों का प्रदूषित और अवरुद्ध होना: मृदा अपरदन कृषि उर्वरकों और कीटनाशकों के साथ-साथ तलछट को जलमार्गों में ले जाता है, जिससे नदियों में प्रदूषण बढ़ता है और धाराएँ और नदियाँ अवरुद्ध हो जाती हैं। कृषि पद्धतियों से निकलने वाले प्रदूषक जलीय पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुँचा सकते हैं, जल की उपलब्धता को सीमित कर सकते हैं और इन जल स्रोतों पर निर्भर मानव आबादी को भी प्रभावित कर सकते हैं।

मृदा क्षरण से निपटने के तरीके

  1. वनोन्मूलन को कम करना: वनों की कटाई को कम करने और स्थायी वन प्रबंधन प्रथाओं को बढ़ावा देने के प्रयास किये जाने चाहिए। पुनर्वनीकरण और वन संरक्षण कार्यक्रम वनस्पति आवरण को बहाल करने और मिट्टी के क्षरण को रोकने में सहायता कर सकते हैं।
  2. भूमि पुनर्ग्रहण: भूमि पुनर्ग्रहण में मिट्टी के खोए हुए कार्बनिक पदार्थ और आवश्यक खनिजों को पुनर्ग्रहण करना शामिल है। इसे निम्नीकृत मिट्टी में पौधों के अवशेषों को संयोजित, रेंज प्रबंधन में सुधार करने और पुनर्ग्रहण परियोजनाओं के माध्यम से लवणयुक्त मिट्टी में कमी लाना जैसी गतिविधियों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
  3. लवणता को रोकना (Preventing Salinization): सिंचाई को कम करने, नमक सहनशील फसलें लगाने और सिंचाई दक्षता में सुधार जैसे कार्यों के माध्यम से लवणीकरण को रोकना पुनर्ग्रहण परियोजनाओं की तुलना में अधिक लागत प्रभावी है। मृदा की गुणवत्ता और उर्वरता बनाए रखने के लिए रोकथाम महत्त्वपूर्ण है।
  4. संरक्षण जुताई (Conservation Tillage): मिट्टी की प्राकृतिक स्थिति में परिवर्तन को कम करने वाली संरक्षण जुताई तकनीकों का अभ्यास करने से मिट्टी के क्षरण को रोकने में मदद मिल सकती है। फसल के अवशेषों को सतह पर छोड़ने और गहरी जुताई से बचने से मिट्टी को कटाव से बचाया जा सकता है और इसकी उत्पादकता को बनाए रखा जा सकता है।

निष्कर्ष

यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि मिट्टी का क्षरण एक जटिल मुद्दा है जिसके लिए एक समग्र और बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है जिसमें सतत भूमि प्रबंधन प्रथाओं, उचित कृषि तकनीकों और नीतियों को शामिल किया जाता है जो मिट्टी संरक्षण और पुनर्ग्रहण को प्राथमिकता देते हैं।

मृदा क्षरण को कम करने के लिए स्थायी भूमि प्रबंधन विधियों को लागू करने की आवश्यकता है, जिसमें कटाव-नियंत्रण उपाय, उचित मृदा संरक्षण तकनीक, उर्वरकों और कीटनाशकों का उचित प्रयोग, वनीकरण और पुनर्वनीकरण के प्रयास और मृदा संरक्षण के बारे में जागरूकता और शिक्षा को बढ़ावा देना शामिल है। हम मिट्टी के स्वास्थ्य और संरक्षण को प्राथमिकता देकर, मिट्टी के क्षरण के नकारात्मक प्रभावों को कम कर सकते हैं और एक सतत भविष्य सुनिश्चित कर सकते हैं।

सामान्य प्रश्नोत्तर

मृदा क्षरण का कारण क्या है?

मृदा क्षरण मुख्य रूप से मानवीय गतिविधियों और प्राकृतिक प्रक्रियाओं के कारण होता है। कुछ मुख्य कारणों में वनों की कटाई, अतिचारण, कृषि पद्धतियाँ, मिट्टी का कटाव, औद्योगिक गतिविधियाँ, शहरीकरण, जलवायु परिवर्तन, भूमि कुप्रबंधन और मरुस्थलीकरण शामिल हैं।

मृदा क्षरण के तीन प्रकार क्या हैं?

मृदा क्षरण के तीन मुख्य प्रकार हैं:

1. कटाव (Erosion): यह पानी, हवा या बर्फ की क्रिया के माध्यम से मिट्टी की ऊपरी सतह को भौतिक रूप से हटाता है, जिससे उपजाऊ मिट्टी और पोषक तत्वों का नुकसान होता है।

2. पोषक तत्वों की कमी (Nutrient depletion): बिना उचित पोषक तत्व प्रबंधन के अधिक खेती से मिट्टी से आवश्यक पोषक तत्व समाप्त हो सकते हैं, जिससे यह कम उपजाऊ हो जाती है और फसल उत्पादकता कम हो जाती है।

3. लवणीकरण (Salinization): यह तब होता है जब मिट्टी में नमक की सांद्रता उस स्तर तक बढ़ जाती है जो पौधों के विकास के लिए हानिकारक होती है। नमक प्रभावित पानी से सिंचाई या खराब जल निकासी जैसे कारकों के कारण लवणीकरण हो सकता है।

मृदा क्षरण के 10 कारण क्या हैं?

मृदा क्षरण के शीर्ष 10 कारण हैं अत्यधिक चराई, वनों की कटाई, उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग, शहरीकरण, कंक्रीटीकरण, जलवायु परिवर्तन, झूम खेती, अवैज्ञानिक कृषि पद्धतियाँ आदि।

मृदा क्षरण के 5 प्रभाव क्या हैं?

मृदा क्षरण का पर्यावरण और मानव कल्याण पर कई हानिकारक प्रभाव पड़ते हैं। इनमे से पांच मुख्य प्रभाव निम्नलिखित हैं –

1. कृषि उत्पादकता में कमी: क्षरित मिट्टी में उर्वरता कम होती है, जल-धारण क्षमता कम होती है और पोषक तत्व कम होते हैं, जिससे फसल की पैदावार और खाद्य उत्पादन में कमी आती है।

2. मृदा अपरदन में वृद्धि: निम्नीकृत मिट्टी कटाव के प्रति अधिक सुभेध्य हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप उपजाऊ ऊपरी मिट्टी को नुकसान पहुँचता है और जल निकायों में अवसादन हो सकता है, जिससे पानी की गुणवत्ता और जलीय पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित हो सकते हैं।

3. मरुस्थलीकरण: मिट्टी का क्षरण रेगिस्तान जैसी स्थितियों के विस्तारित कर सकता है, जहां भूमि शुष्क, वनस्पति रहित और कृषि या अन्य उत्पादक गतिविधियों के लिए अनुपयुक्त हो जाती है।

4. जैव विविधता में गिरावट: निम्नीकृत मिट्टी कम पौधों और जानवरों की प्रजातियों के लिए वासयोग्य नही रह जाती है, जिससे जैव विविधता का तो नुकसान होता ही है, साथ में पारिस्थितिक तंत्र में भी व्यवधान होता है।

5. जल की कमी: मिट्टी के क्षरण से जल घुसपैठ और भंडारण क्षमता प्रभावित हो सकती है, जिससे भूजल पुनर्भरण कम हो जाएगा, अपवाह बढ़ जाएगा और पौधों, जानवरों और मानव उपयोग के लिए  पानी जल की उपलब्धता कम हो जाएगी।

हम मृदा क्षरण को कैसे नियंत्रित कर सकते हैं?

विभिन्न विधियों के द्वारा मिट्टी के क्षरण को नियंत्रित और कम किया जा सकता हैं:

1. संरक्षण कृषि
2. सीढ़ीदार और समोच्च जुताई
3. वनरोपण और पुनर्वनीकरण
4. कृषि वानिकी
5. टिकाऊ भूमि प्रबंधन

 

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