संसदीय कार्यवाही के उपकरण: अर्थ, प्रकार, अनुप्रयोग एवं महत्त्व

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संसदीय कार्यवाही के उपकरण
संसदीय कार्यवाही के उपकरण

संसदीय कार्यवाही के उपकरण संसद और राज्य विधानमंडलों सहित भारत के सर्वोच्च विधायी निकायों के कामकाज में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारत में विधायिका के कामकाज को समझने के लिए इन उपकरणों के बारे में सीखना जरुरी है। NEXT IAS का यह लेख संसदीय कार्यवाही के उपकरणों के अर्थ, उनके प्रकार, अनुप्रयोगों, महत्त्व आदि के विषय में समझाना का प्रयास करता है।

संसदीय कार्यवाही के उपकरण विधायी निकाय के कार्यों के संचालन को सुगम बनाने के लिए आवश्यक है। ये उपकरण संसदीय प्रणाली के तहत नियोजित विभिन्न प्रक्रियात्मक उपकरणों, तंत्रों एवं पद्धतियों को संदर्भित करते हैं। इन उपकरणों के द्वारा संसद के कुशल और व्यवस्थित रूप से कार्य करने के परिणामस्वरूप विधायकों को सार्वजनिक मुद्दों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिए चर्चा, बहस और निर्णय लेने की अनुमति मिलती है।

भारत में संसद और राज्य विधानसभाओं सहित विधायी निकाय अपनी संसदीय कार्यवाही के संचालन के लिए विभिन्न उपकरणों का उपयोग करते हैं। भारत में उपयोग किये जाने वाले संसदीय कार्यवाही के प्रमुख उपकरणों पर विस्तार से चर्चा की गई है:-

  • प्रश्नकाल की एक निर्धारित अवधि ( 11 से 12 बजे तक का समय ) होती है जहाँ संसद सदस्यों (सांसदों) को संसदीय सत्र के दौरान सार्वजनिक हित के विभिन्न मामलों के संबंध में मंत्रियों से प्रश्न पूछने का अवसर मिलता है।
  • यह अवधि आमतौर पर भारतीय संसद के दोनों सदनों, लोक सभा (निचला सदन) और राज्य सभा (ऊपरी सदन) में हर बैठक के पहले घंटे में होती है।
  • प्रश्नकाल के दौरान मंत्रियों से पूछे जाने वाले विभिन्न प्रकार के प्रश्न इस प्रकार हैं:-

तारांकित प्रश्न (Starred Questions)

  • इन प्रश्नों के उत्तर मंत्रियों द्वारा मौखिक रूप से दिये जाते हैं।
  • तारांकित प्रश्न प्रस्तुत करने वाले सांसदों को पूरक प्रश्न पूछने की अनुमति है।
  • ये हरे रंग में मुद्रित होते है।

अतारांकित प्रश्न (Unstarred Questions)

  • इन प्रश्नों के उत्तर मंत्रियों द्वारा लिखित रूप में दिये जाते हैं।
  • अतारांकित प्रश्न प्रस्तुत करने वाले सांसदों को पूरक प्रश्न पूछने का अवसर नहीं मिलता है।
  • ये सफेद रंग में मुद्रित होते हैं।

अल्प सूचना प्रश्न (Short Notice Questions)

  • इन प्रश्नों को 10 दिन से कम के नोटिस देकर पूछा जा सकता है।
  • इनका उत्तर मौखिक रूप से दिया जाता है।
  • ये हल्के गुलाबी रंग में मुद्रित होते हैं।
  • मंत्रियों के अलावा, कुछ मामलों से संबंधित निजी सदस्यों से भी प्रश्न पूछे जा सकते हैं।
    • ये प्रश्न पीले रंग में छापे जाते हैं।
  • प्रश्नकाल के तुरंत पश्चात् (12 बजे से 1 बजे तक ) की अवधि ‘शून्यकाल’ कहलाती है।
  • इसका उपयोग बिना किसी पूर्व सूचना के मामलों को उठाने के लिए किया जाता है।
  • इसका उल्लेख प्रक्रिया नियमावली में नहीं है। इसलिए, यह एक अनौपचारिक उपकरण है।
  • यह संसदीय कार्यवाही के क्षेत्र में एक भारतीय नवाचार है।
  • सामान्य शब्दों में कहा जाए तो प्रस्ताव सदन के समक्ष लाया गया एक सुझाव होता है जिसके माध्यम से सदन के निर्णय एवं राय को व्यक्त किया जाता है।
  • प्रस्ताव मंत्री या कोई भी निजी सदस्य रख सकता है।
  • पीठासीन अधिकारी की सहमति के बिना, किसी भी विषय पर चर्चा नहीं की जा सकती है। सदन ऐसे प्रस्तावों को स्वीकार या अस्वीकार करके उन मुद्दों पर अपने निर्णय या राय व्यक्त करता है।
  • सदस्यों द्वारा रखे गए प्रस्तावों को मुख्य रूप से तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
  • यह एक स्वतंत्र प्रस्ताव होता है जो अत्यधिक महत्त्वपूर्ण मामलों से संबंधित होता है, जैसे राष्ट्रपति को पद से हटाना,अविश्वास प्रस्ताव आदि।
  • यह मूल प्रस्ताव के स्थान पर रखा गया प्रस्ताव होता है और यह मूल प्रस्ताव का विकल्प प्रस्तुत करता है।
  • यदि सदन द्वारा स्थानापन्न प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया जाता है, तो यह मूल प्रस्ताव का स्थान ले लेता है।
  • यह एक ऐसा प्रस्ताव होता है जिसका स्वयं में कोई अर्थ नहीं होता है अर्थात् यह प्रस्ताव अन्य प्रस्तावों पर निर्भर होता है।
  • सहायक प्रस्तावों की तीन उप-श्रेणियाँ हैं:-

सहयोगी प्रस्ताव (Ancillary Motion)

  • इसका उपयोग विभिन्न प्रकार के कार्यों को करने की नियमित प्रक्रिया के रूप में किया जाता है।

अतिस्थापन प्रस्ताव (Superseding Motion)

  • यह किसी अन्य मुद्दे पर बहस के दौरान रखा जाता है और उस मुद्दे को समाप्त करने का प्रयास करता है।

संशोधन प्रस्ताव (Amendment Motion)

  • इसका उद्देश्य मूल प्रस्ताव के केवल एक हिस्से को संशोधित करना या प्रतिस्थापित करना होता है।
  • कुछ विशेष प्रकार के प्रस्तावों पर नीचे विस्तार से चर्चा की गई है।
  • यह सदन के समक्ष किसी मामले पर बहस को समाप्त करने के लिए सदस्य द्वारा दिया गया प्रस्ताव होता है। यदि प्रस्ताव को सदन द्वारा स्वीकृत कर लिया जाता है, तो बहस को रोक दिया जाता है और मामले को मतदान के लिए रखा जाता है।
  • समापन प्रस्ताव चार प्रकार के होते हैं:

साधारण समापन (Simple Closure)

  • इसमें कहा जाता है कि “विषय पर पर्याप्त चर्चा हो चुकी है, अब मतदान कराया जाए”।

खंडानुसार समापन (Closure by Compartments)

  • इस मामले में, बहस प्रारंभ होने से पहले विधेयक या प्रस्तावों के खंडों को भागों में वर्गीकृत किया जाता है।
  • फिर, बहस पूरे भाग पर होती है और पूरे भाग को मतदान के लिए रखा जाता है।

कंगारू समापन (Kangaroo Closure)

  • इस प्रकार के समापन के अंतर्गत, केवल महत्त्वपूर्ण खंडों को ही बहस और मतदान के लिए रखा जाता है और बीच के खंडों को छोड़ दिया जाता है और उन्हें पारित माना जाता है।
    • उदाहरण: मान लीजिए कि सदन में एक विधेयक पर विचार किया जा रहा है जिसमें 100 खंड हैं। सदन पहले 10 खंडों और अंतिम 10 खंडों पर चर्चा करता है, क्योंकि वे सबसे महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं।
    • इस स्थिति में, कंगारू समापन का उपयोग करके, अध्यक्ष शेष 80 खंडों को बिना किसी चर्चा के पारित मान सकते हैं।

गिलोटिन समापन (Guillotine Closure)

  • यह स्थिति तब उत्पन्न होती है, जब समय की कमी के कारण, विधेयक या प्रस्ताव के उन खंडों पर भी मतदान कराया जाता है, जिन पर चर्चा नहीं हुई है।
    • उदाहरण: मान लीजिए कि सदन में एक विधेयक पर विचार किया जा रहा है जिसमें 100 खंड हैं। सदन पहले 50 खंडों पर चर्चा करता है, लेकिन समय की कमी के कारण, शेष 50 खंडों पर चर्चा नहीं हो पाती है।
    • इस स्थिति में, गिलोटिन समापन का उपयोग करके, अध्यक्ष शेष 50 खंडों को बिना किसी चर्चा के मतदान के लिए रख सकते हैं।
  • इसे सदन के किसी सदस्य द्वारा तब पेश किया जाता है जब उन्हें ऐसा अनुभव होता है कि किसी मंत्री ने तथ्यों को छिपाकर या गलत तथ्य देकर सदन या उसके सदस्यों के विशेषाधिकार का उल्लंघन किया है।
  • इसका उद्देश्य संबंधित मंत्री की निंदा करना है।
  • इस प्रस्ताव का उपयोग सदस्य किसी जरूरी सार्वजनिक महत्त्व के मामले पर मंत्री का ध्यान आकर्षित करने और उनसे एक आधिकारिक वक्तव्य प्राप्त करने के लिए करता है।
  • शून्यकाल की तरह, यह भी भारतीय संसदीय प्रक्रिया का एक नवाचार है।
  • हालाँकि, शून्यकाल के विपरीत, इसका उल्लेख प्रक्रिया के नियमों में किया गया है।
  • इसे तत्काल सार्वजनिक महत्त्व के एक निश्चित मामले पर सदन का ध्यान आकर्षित करने के लिए संसद में पेश किया जाता है।
  • इसे स्वीकार करने के लिए कम से कम 50 सदस्यों के समर्थन की आवश्यकता होती है।
  • इससे सदन का सामान्य कामकाज बाधित होता है। इस प्रकार, यह एक असाधारण उपाय है।
  • इसमें सरकार के खिलाफ निंदा के तत्त्व भी शामिल है, इसलिए राज्यसभा को इस उपाय का उपयोग करने की अनुमति नहीं है।
  • स्थगन प्रस्ताव पर चर्चा दो घंटे तीस मिनट से कम नहीं होनी चाहिए।
  • यह प्रस्ताव निम्नलिखित प्रतिबंधों के अधीन है:
    • इस प्रस्ताव के अंतर्गत एक निश्चित, तथ्यात्मक, जरूरी और सार्वजनिक महत्त्व के मामले को उठाया जा सकता।
    • इसमें एक से अधिक विषयों को कवर नहीं किया जा सकता।
    • यह हाल ही में हुई किसी विशिष्ट घटना तक ही सीमित होना चाहिए।
    • इसमें विशेषाधिकार का प्रश्न नहीं उठाया जा सकता।
    • इस प्रस्ताव के अंतर्गत उन मामले पर फिर से चर्चा नहीं की जा सकती, जिस पर उसी सत्र में चर्चा हो चुकी है।
    • यह किसी ऐसे मामले से संबंधित नहीं होना चाहिए जो न्यायालय द्वारा विचाराधीन है।
    • इसमें ऐसा कोई प्रश्न नहीं उठाया जा सकता, जिसे अलग-अलग प्रस्तावों के माध्यम से अलग से उठाया जा सकता है।
  • यह प्रस्ताव लोकसभा में सरकार में अविश्वास व्यक्त करने के लिए किसी सदस्य द्वारा लाया गया प्रस्ताव है।
    • यह प्रस्ताव अनुच्छेद 75 के प्रावधानों के अनुसार पेश किया जाता है, जिसके अंतर्गत मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होगी। इसका अर्थ है कि सरकार केवल तभी तक बनी रहती है जब तक उसे लोकसभा के अधिकांश सदस्यों का विश्वास प्राप्त है।
  • इसे केवल लोकसभा में ही पेश किया जा सकता है।
  • इसे स्वीकार करने के लिए 50 सदस्यों के समर्थन की आवश्यकता होती है।
  • यदि लोकसभा अध्यक्ष द्वारा अनुमति दी जाती है, तो प्रस्ताव पर बहस की जाती है और फिर मतदान के लिए रखा जाता है। यदि यह सदन द्वारा साधारण बहुमत से पारित हो जाता है, तो सरकार को इस्तीफा देना पड़ता है।
  • सामान्यत: यह प्रस्ताव किसी मंत्री या मंत्रियों के समूह या सम्पूर्ण मंत्रिपरिषद के विरुद्ध लाया जा सकता है, जिससे उनकी नीतियों के प्रति असहमति व्यक्त की जा सकें।
  • इसे केवल लोकसभा में ही लाया जा सकता है, राज्यसभा में नहीं।
  • प्रस्ताव यदि लोकसभा में पारित हो गया तो मंत्रिपरिषद के ऊपर दबाव बढ़ जाता है कि वह अब लोकसभा में अपना बहुमत सिद्ध करें।
  • निंदा प्रस्ताव और अविश्वास प्रस्ताव के मध्य कुछ निम्नलिखित अंतर है:-
निंदा प्रस्ताव (Censure Motion)अविश्वास प्रस्ताव (No-Confidence Motion)
इसे स्वीकार करने के कारणों का उल्लेख करना अनिवार्य है।इसे स्वीकार करने के कारणों का उल्लेख करना अनिवार्य नहीं है।
इसे किसी एक मंत्री, मंत्रियों के समूह या संपूर्ण मंत्रिपरिषद के खिलाफ लाया जा सकता है।इसे केवल संपूर्ण मंत्रिपरिषद के विरुद्ध ही लाया जा सकता है।
इसे विशिष्ट नीतियों और कार्यों के लिए मंत्रिपरिषद की निंदा करने के लिए पेश किया जाता है।इसे मंत्रिपरिषद में लोकसभा के विश्वास को सुनिश्चित करने के लिए पेश किया जाता है।
यदि यह लोकसभा में पारित हो जाता है, तो मंत्रिपरिषद को पद से इस्तीफा देने की आवश्यकता नहीं है।यदि यह लोकसभा में पारित हो जाता है, तो मंत्रिपरिषद को पद से इस्तीफा देना होगा।
  • प्रत्येक आम चुनाव के पश्चात् प्रथम सत्र और प्रत्येक वित्तीय वर्ष के पहले सत्र को राष्ट्रपति द्वारा संबोधित किया जाता है। इस दौरान राष्ट्रपति पिछले वर्ष और आगामी वर्ष में सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों की रूपरेखा प्रस्तुत करते हैं। राष्ट्रपति के इस अभिभाषण पर संसद के दोनों सदनों में “धन्यवाद प्रस्ताव” नामक प्रस्ताव पर चर्चा की जाती है।
  • चर्चा के अंत में प्रस्ताव को मतदान के लिए रखा जाता है।
  • इस प्रस्ताव को सदन में पारित होना चाहिए। अन्यथा, यह सरकार की हार के समान होगा।
  • यह एक ऐसे प्रस्ताव को संदर्भित करता है जिसे अध्यक्ष द्वारा स्वीकार कर लिया गया है, लेकिन इसकी चर्चा के लिए कोई तिथि निर्धारित नहीं की गई है।
  • अध्यक्ष, सदन के नेता के परामर्श से या व्यवसाय सलाहकार समिति की सिफारिश पर, ऐसे प्रस्ताव की चर्चा के लिए समय निर्धारित करते हैं।
  • कोई सदस्य तब औचित्य का प्रश्न उठा सकता है जब उन्हें अनुभव हो कि सदन की कार्यवाही प्रक्रिया के सामान्य नियमों का पालन नहीं कर रही है।
  • यह सदन के समक्ष कार्यवाही को निलंबित कर देता है। अत: यह एक असाधारण उपकरण है।
  • व्यवस्था के प्रश्न पर किसी भी बहस की अनुमति नहीं है।
  • यह पर्याप्त सार्वजनिक महत्त्व के किसी मामले पर चर्चा करने के लिए है, जिस पर बहुत बहस हो चुकी है और जिसके उत्तर को तथ्यात्मक रूप से स्पष्टीकरण की आवश्यकता है। अध्यक्ष सप्ताह में तीन दिन ऐसी चर्चाओं के लिए आवंटित कर सकते हैं।
  • ऐसी चर्चाओं के लिए सदन के समक्ष कोई औपचारिक प्रस्ताव या मतदान नहीं होता है।
  • ऐसी चर्चाओं के लिए आवंटित समय दो घंटे से अधिक नहीं होना चाहिए। इसलिए, इसे “द्वि-घंटे चर्चा” के रूप में भी जाना जाता है। संसद सदस्य तत्काल सार्वजनिक महत्त्व के मामले पर ऐसी चर्चा उठा सकते हैं।
  • अध्यक्ष सप्ताह में दो दिन ऐसी चर्चाओं के लिए आवंटित कर सकते हैं।
  • ऐसी चर्चाओं के लिए सदन के समक्ष कोई औपचारिक प्रस्ताव या मतदान नहीं होता है।
  • ऐसे मामले, जो औचित्य का प्रश्न नहीं है या जिसे ऊपर चर्चा किये गए उपकरणों का उपयोग करके या सदन के किसी भी नियम के तहत नहीं उठाया जा सकता है, उसे राज्य सभा में विशेष उल्लेख के अंतर्गत उठाया जा सकता है।
  • लोकसभा में इसके समान प्रक्रियात्मक उपकरण को ‘नियम 377 के तहत नोटिस (उल्लेख)’ के रूप में जाना जाता है।
  • लोकसभा में नियम 377 के तहत किसी ऐसे मामले को उठाया जा सकता है जो व्यवस्था का प्रश्न न हो या उपरोक्त चर्चा किये गए उपकरणों का उपयोग करके या सदन के किसी नियम के तहत नहीं उठाया जा सकता है।
  • यह समान उद्देश्य के लिए राज्यसभा में उपयोग किये जाने वाले विशेष उल्लेख उपकरण के समकक्ष है।
  • संकल्प सदन या सरकार का ध्यान सार्वजनिक हित के सामान्य मामलों की ओर आकर्षित करने के लिए एक औपचारिक वक्तव्य या प्रस्ताव होता है।
  • किसी संकल्प पर चर्चा पूरी तरह से संकल्प की परिधि में और उससे संबंधित होती है।
  • कोई सदस्य जिसने संकल्प या संकल्प में संशोधन प्रस्तुत किया है, उसे सदन की अनुमति के बिना वापस नहीं लिया जा सकता।
  • संकल्पों को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
  • इसे एक निजी सदस्य द्वारा पेश किया जाता है।
  • इस पर केवल वैकल्पिक शुक्रवार को दोपहर की बैठक में चर्चा की जाती है।
  • यह एक मंत्री द्वारा पेश किया जाता है।
  • इस पर सोमवार से गुरुवार तक किसी भी दिन चर्चा की जा सकती है।
  • इसे किसी निजी सदस्य या मंत्री द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है।
  • इसे सदैव संविधान के प्रावधान या संसद के अधिनियम के अनुसरण में पेश किया जाता है।
संकल्प (Resolutions) एवं​ ​प्रस्ताव (Motions) ​में अंतर
सभी संकल्प ​मूल ​प्रस्ताव (Substantive Motions) ​होते हैं, जबकि सभी ​प्रस्ताव ​मूल ​प्रस्ताव (Substantive Motions) ​नहीं हो सकते हैं।
सभी ​प्रस्तावों पर मतदान कराना आवश्यक नहीं है, जबकि सभी ​संकल्प ​को मतदान ​के लिए रखा जाना ​आवश्यक होता​ ​है।

संसदीय कार्यवाही के उपकरण विधायी कार्यों के सुव्यवस्थित संचालन और लोकतांत्रिक विचार-विमर्श को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये उपकरण कई महत्त्वपूर्ण कार्यों को पूर्ण करते हैं:-

  • चर्चा और बहस को सुगम बनाना: प्रस्ताव, संकल्प और स्थगन प्रस्ताव जैसे उपकरण सांसदों को विभिन्न मुद्दों, नीतियों और विधायी मामलों पर चर्चा और बहस के लिए मंच प्रदान करते हैं।
  • त्वरित निर्णय: ये सांसदों को देश को प्रभावित करने वाले महत्त्वपूर्ण मामलों, जैसे कानून, नीतियों और बजट आवंटन पर प्रस्ताव, विचार-विमर्श एवं निर्णय लेने में सक्षम बनाते हैं।
  • जवाबदेही को बढ़ावा देना: ये सरकारों और अधिकारियों को जवाबदेह बनाते हैं, जिससे सांसद उनसे सवाल पूछ सकते हैं, स्पष्टीकरण माँग सकते हैं और उनके कार्यों एवं नीतियों की जाँच कर सकते हैं।
  • सार्वजनिक हितों का प्रतिनिधित्व करना: ये सांसदों को अपने घटकों के हितों, चिंताओं और शिकायतों का प्रतिनिधित्व करने की अनुमति देते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि विविध दृष्टिकोणों को सुना और माना जाता है।
  • पारदर्शिता सुनिश्चित करना: प्रश्नकाल और शून्यकाल जैसे उपकरण सांसदों को सरकार से जानकारी प्राप्त करने के अवसर प्रदान करते हैं, जिससे शासन और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में पारदर्शिता बढ़ती है।
  • आम सहमति को बढ़ावा देना: संसदीय बहस और चर्चाएं सांसदों के बीच आम सहमति बनाने में मदद करती हैं, जिससे ऐसी नीतियों और कानूनों का निर्माण होता है जो समाज के व्यापक हितों को दर्शाते हैं।
  • लोकतांत्रिक सिद्धांतों को बनाए रखना: ये उपकरण खुली बहस, बातचीत और विविध विचारों की अभिव्यक्ति के लिए एक मंच प्रदान करके भाषण की स्वतंत्रता, समानता और असहमति के अधिकार जैसे लोकतांत्रिक सिद्धांतों को बनाए रखते हैं।
  • सुशासन को बढ़ावा देना: प्रभावी विधायी प्रक्रियाओं को सुगम बनाकर, संसदीय उपकरण सुशासन, जवाबदेही और लोगों की जरूरतों के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ावा देने में योगदान करते हैं।
  • नियंत्रण और संतुलन सुनिश्चित करना: ये उपकरण सरकार की शक्तियों पर नियंत्रण और संतुलन बनाए रखने, अधिकार के दुरुपयोग को रोकने और कानून के शासन के पालन को सुनिश्चित करने के लिए एक तंत्र के रूप में कार्य करते हैं।
  • नागरिकों को सशक्त बनाना: ये उपकरण नागरिकों को उनके निर्वाचित प्रतिनिधियों को उनकी चिंताओं को उठाने, उनके हितों की वकालत करने और देश के भविष्य को आकार देने वाली निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में भाग लेने की अनुमति देकर सशक्त बनाते हैं।

निष्कर्ष रूप में, संसदीय कार्यवाही के उपकरण लोकतांत्रिक शासन की रीढ़ की हड्डी के रूप में कार्य करते हैं, जो विधायी निकायों के भीतर बहस, निर्णय लेने और जवाबदेही के लिए आवश्यक प्रणाली प्रदान करते हैं। सुचारू संसदीय कार्यवाही सुनिश्चित करके संसदीय कार्यवाही के उपकरण प्रभावी शासन एवं लोकतांत्रिक वार्ता को सुगम बनाते हैं। ये उपकरण लोकतांत्रिक लोकाचार के लिए आवश्यक संवाद, विचार-विमर्श और निर्णय लेने की भावना को मूर्त रूप देते हैं।

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