महात्मा गाँधी जी के विचार वैश्विक स्तर पर तीव्र गति से प्रासंगिक हो रहे हैं। विश्वभर के लोग अपनी समस्याओं का समाधान गाँधी जी की शिक्षाओं की ओर रुख करके ढूंढ रहे हैं। यह स्पष्ट हो गया है कि युद्ध, समस्याओं का कोई समाधान नहीं देते हैं तथा हिंसक क्रांतियाँ अप्रभावी साबित हुई हैं। समय के साथ यह स्पष्ट हो गया है कि सत्याग्रह (अहिंसक प्रतिरोध की प्रथा) और अहिंसा अनुसरण करने के लिए सबसे प्रभावी मार्ग है।
चाहे वह व्यक्ति हों, संस्थाएँ हों या राष्ट्र अब यह विश्वास बढ़ रहा है कि मानव जाति के कल्याण के लिए असंतोष व्यक्त करने और विरोध दर्ज करने के लिए बेहतर विकल्प के रूप में सत्याग्रह और अहिंसा अधिक मानवीय तरीका है।
शांति
गाँधी जी वास्तव में अहिंसक विश्व व्यवस्था के लिए “आर्थिक समानता” को “मास्टर-कुंजी” मानते थे। शांति की जड़ें भय के स्थान पर बंधुत्व में होनी चाहिए। उनका मानना था कि जब तक वर्तमान वैश्विक सामाजिक व्यवस्था को एक नए सामाजिक व्यवस्था से नहीं बदल दिया जाता जो अहिंसा और शोषण मुक्त सामाजिक व्यवस्था के लिए प्रतिबद्ध होगा तब तक वैश्विक शांति संभव नहीं हो सकती।
गाँधी जी का पर्यावरणीय परिप्रेक्ष्य
- पर्यावरण संरक्षण तेजी से विश्व में एक शीर्ष प्राथमिकता बनता जा रहा है। बिगड़ती पर्यावरणीय परिस्थितियों और जलवायु परिवर्तन के जवाब में विश्वभर के बुद्धिजीवी और कार्यकर्ता सड़कों पर उतर रहे हैं। महात्मा गाँधी जी के जीवनकाल में “पर्यावरण” के प्रति इतनी सजगता नहीं थी, लेकिन फिर भी उन्होंने भविष्य के विषय में चिंता व्यक्त की। गाँधी जी का मानना था कि “हर किसी की जरूरत के लिए पृथ्वी पर पर्याप्त संसाधन है, लेकिन हर किसी के लालच के लिए पर्याप्त नहीं है।”
- अपने लेख “स्वास्थ्य की कुंजी” में गाँधी जी ने स्वच्छ वायु के महत्त्व पर अपने विचार साझा किए। गाँधी जी ने कहा कि वायु, जल और भोजन सभी आवश्यक प्राकृतिक संसाधन है, लेकिन स्वच्छ वायु का अत्यधिक महत्त्व है। उन्होंने आगे भारतीयों को चरखे का प्रयोग करके सूत कातने और हाथ से बुने हुए कपड़े पहनने के लिए प्रेरित किया। इस लक्ष्य का उद्देश्य न केवल स्वदेशी (आत्मनिर्भरता) की भावना को बढ़ावा देना था बल्कि समग्र अपशिष्ट को कम करना था, विशेषकर कपड़ा मिलों से।
गाँधीजी की पर्यावरणीय स्थिरता की अवधारणा
- गाँधी जी जनसमान्य के अर्थशास्त्री और बिना किसी संरचित मॉडल के पर्यावरणविद् थे। हालाँकि उन्होंने पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास का कोई संरचित मॉडल नहीं दिया, लेकिन उनके सभी विचारों को एक साथ जोड़कर पर्यावरणविदों को उनका तार्किक रूप से बनाया गया पर्यावरणीय रूप से सतत विकास मॉडल मिलता है।
- गाँधी जी का सतत विकास एक समग्र प्रतिमान पर आधारित है जो प्रकृति के विषय में व्यक्ति और समाज के सर्वांगीण विकास पर जोर देता है। यह संपूर्ण सोच उस नैतिक दृष्टि पर आधारित थी जिसमें व्यक्ति केंद्रीय स्थिति में होता है।
- हिन्द स्वराज (1909) में महात्मा गाँधी ने अनियोजित और अंधाधुंध औद्योगिकीकरण के खतरों के विषय में बात की है। उनका मानना था कि वृद्धि-उन्मुख सिद्धांतों को सतत विकास के सिद्धांतों से प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए जो पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान न पहुँचाए, बल्कि मनुष्य और पारिस्थितिकी तंत्र के सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व की गारंटी दें।
- सतत विकास एक विचारधारा है जिसे वैश्विक स्तर पर तैयार किया गया है जो इस बात को दर्शाता है कि मनुष्य पारिस्थितिकी तंत्र से अंतर्संबंधित हैं। यह एक आंदोलन है क्योंकि यह जीवन के एक तरीके का सुझाव देता है। इसमें समाज के सभी सदस्यों की सक्रिय भागीदारी शामिल है। स्वयं सहायता समूह, आत्मनिर्भरता, उद्योगों का विकेंद्रीकरण और श्रम-प्रधान प्रौद्योगिकी। ये सार्थक जीवन को संतुष्ट करने के गुणात्मक लक्ष्य हैं।
- गाँधी जी ने ‘अर्थव्यवस्था की प्रकृति’ शब्द का प्रयोग किया जो पारिस्थितिकी के संबंध में मानवीय क्रियाओं की संवेदनशीलता और गहरी समझ को प्रस्तुत करती है।
मानवता: (सर्वोदय के सिद्धांत)
- गाँधी जी सर्वोदय में विश्वास करते थे और इसलिए सभी का कल्याण उनकी सोच का आधार था। इसलिए उनके समुदाय केंद्रित दृष्टिकोण ने ‘मानव जीवन के कल्याण‘ और ‘सभी मानवीय आवश्यकताओं की बुनियादी जरूरतों की पूर्ति सुनिश्चित करने’ पर जोर दिया। गाँधी जी ने महसूस किया कि सभी प्रकार के शोषणों से बचकर मानव कल्याण को अंतिम लक्ष्य बनाया जाना चाहिए और मानवीय गरिमा को स्थापित करने की आवश्यकता है।
- गाँधीजी ने समाज में सत्ता के विकेंद्रीकरण की वकालत की। उनका मानना था कि शक्ति व्यक्तियों में निहित है। विश्व स्तर पर पारस्परिक रूप से अन्योन्याश्रित सहयोगात्मक कार्य मानव-कल्याण के साथ उत्तम वातावरण बनाने में सहायता करता है।
- उनकी ट्रस्टीशिप की अवधारणा सर्वोदय के लिए है। समाज का प्रत्येक सदस्य के सामूहिक प्रयासों से निर्मित वित्त का ट्रस्टी होता है। इस प्रकार यह अवधारणा व्यक्तिगत धन की खोज और संग्रह को नकारता है और इसे एक बेहतर समाज के लिए सभी के धन में परिवर्तित करता है। उन्होंने उम्मीद की थी कि ट्रस्टीशिप के परिणामस्वरूप प्रकृति के संरक्षण के आसपास केंद्रित उत्पादन प्रणालियों पर आधारित अहिंसक और गैर-शोषक सामाजिक-आर्थिक संबंध और विकास मॉडल होंगे।
महिलाओं के लिए गाँधी जी के विचार
- गाँधीजी ने महिलाओं को कुलीन अथवा श्रेष्ठ लिंग कहा। उन्होंने कहा कि अगर वह प्रहार करने में कमजोर है, तो वह पीड़ा सहने में मजबूत है। गाँधी जी ने वर्णन किया; “नारी त्याग और अहिंसा का प्रतीक है।” वह आगे कहते हैं, “बेटी का हिस्सा बेटे के बराबर होना चाहिए। पति की कमाई पति और पत्नी की संयुक्त संपत्ति है क्योंकि वह उसकी सहायता से पैसा कमाता है।”
- 21वीं सदी में यह महसूस करने का समय आ गया है कि भेदभाव, महिलाओं के खिलाफ अपराध और लैंगिक पूर्वाग्रह सदैव महिलाओं के मानवाधिकारों के उल्लंघन का कारण बनेंगे और महिला सशक्तिकरण के लिए बाधा बनेंगे।
- इसलिए यह महात्मा गाँधी के सुनहरे शब्दों का पालन करने और याद रखने का उच्च समय है। यदि उनके अहिंसा के सिद्धांत का सभी राष्ट्रों द्वारा पालन किया जाता है, तो महिलाओं के खिलाफ भेदभाव कम हो जाएगा और जहाँ कोई भेदभाव नहीं है वहाँ महिलाओं को सशक्त बनाने की कोई आवश्यकता नहीं होगी। और इससे स्वतः ही समानता और न्याय पर आधारित एक न्यायपूर्ण समाज का निर्माण होगा।
सामूहिकता-विश्व एक परिवार के रूप में
- गाँधी जी के लिए समूह के हित सर्वोपरि हैं। उनका मानना था कि समुदाय की जरूरतों और गरीबों की सेवा को सदैव हर स्वार्थी या व्यक्तिगत हित से ऊपर रखना चाहिए।
- हालाँकि, इसकी प्रासंगिकता भारत की G20 अध्यक्षता में देखी जा सकती है जहाँ भारत दुनिया को एक परिवार के रूप में देखता है, न कि भौगोलिक सीमाओं द्वारा परिभाषित अलग-अलग संस्थाओं के रूप में, जो अधिक से अधिक सामाजिक कल्याण के लक्ष्य से बंधे हैं। जब परिवार प्रगति करता है तो प्रत्येक सदस्य भी आगे बढ़ता है किसी को पीछे नहीं छोड़ता।
गाँधी जी ने युद्धों और निरंतर विनाश से थके हुए विश्व को सफलतापूर्वक यह प्रदर्शित किया कि सत्य और अहिंसा का पालन केवल व्यक्तिगत व्यवहार के लिए नहीं है, बल्कि वैश्विक मामलों में भी लागू किया जा सकता है। भारतीय लोगों को गाँधी जी ने एक राष्ट्र दिया। दुनिया को उन्होंने सत्याग्रह दिया जो यकीनन एक लंबी और विनाशिता सदी का सबसे क्रांतिकारी विचार था। उन्होंने बाइबिल, टॉल्स्टॉय और ‘भगवद-गीता’ के अपने पाठों से यह सबक सीखा तथा उन्होंने इसे कई विश्व नेताओं और अनगिनत अन्य नेताओं को सिखाया जो आने वाले वर्षों में उनके उदाहरण का अनुसरण करेंगे।
कुछ अर्थों में गाँधी जी की सबसे बड़ी उपलब्धि उनकी विरासत में निहित थी, क्योंकि उनके आदर्शों और उन्हें जीने में उन्होंने जो उदाहरण प्रस्तुत किया, उसने सभी देशों के लोगों को उत्पीड़न से मुक्ति के लिए शांतिपूर्ण संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया और प्रेरित करना जारी रखा।