जाँच और संदेह के बीच पुलिस में विश्वास पुनर्निर्माण

पाठ्यक्रम: GS2/शासन

संदर्भ   

  • हाल के वर्षों में, हिरासत में मृत्युएँ, अत्यधिक बल प्रयोग और त्रुटिपूर्ण जांच के हाई-प्रोफाइल मामलों ने भारतीय पुलिस में जनता का विश्वास कमजोर कर दिया है, जिससे जवाबदेही और ईमानदारी पर केंद्रित प्रणालीगत सुधार की तत्काल आवश्यकता उजागर हुई है।

भारत में पुलिस पर विश्वास पुनर्निर्माण की आवश्यकता 

  • विश्वास का संकट और विश्वसनीयता का क्षरण: हिरासत में मृत्युएँ, कथित शक्ति के दुरुपयोग और असफल जांच की घटनाओं ने कानून प्रवर्तन में जनता का विश्वास कमजोर किया है।
    • NCRB की वार्षिक रिपोर्ट और कॉमन कॉज़–लोकनीति ‘स्टेटस ऑफ पुलिसिंग इन इंडिया’ सर्वे 2023 ने उद्धृत किया कि “2020 से नागरिकों का पुलिस पर विश्वास लगभग 11% घटा है।”
    • संजीव भट्ट का मामला, जो कभी एक हाई-प्रोफाइल IPS अधिकारी थे, पुलिस जवाबदेही की जटिलताओं को रेखांकित करता है।
    • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उत्तर प्रदेश पुलिस की ‘लापरवाह’ जांच पर की गई टिप्पणी, जिसने गलत मृत्यु दंड का कारण बना, प्रक्रियात्मक चूक के खतरों को उजागर करती है और चिंताओं को और बढ़ाती है।
    • पुलिस शक्तियों के राजनीतिक दुरुपयोग ने पक्षपात और दण्डमुक्ति की धारणाओं को बढ़ावा दिया है।
  • विश्वास की कमी :स्टेटस ऑफ पुलिसिंग इन इंडिया रिपोर्ट (2022) के अनुसार, 36% नागरिकों ने पुलिस संस्थानों में सीमित या कोई विश्वास व्यक्त नहीं किया। संदेह के कारण हैं:
    • जांच में राजनीतिक हस्तक्षेप;
    • हाशिए पर पड़े समूहों के प्रति असंवेदनशीलता;
    • अत्यधिक बल प्रयोग और हिरासत में हिंसा;
    • कमजोर जवाबदेही ढाँचे।
  • अविश्वास के पीछे आँकड़े : NCRB 2023 रिपोर्ट के अनुसार:
    • 2023 में भारत में 117 हिरासत में मृत्युएँ दर्ज की गईं (2022 में 86 से बढ़कर)।
    • पुलिस के अनुचित आचरण के 1,418 मामले देशभर में दर्ज किए गए।
    • ऐसे मामलों में आरोपियों में से केवल 2.7% को दोषी ठहराया गया।
    • सबसे अधिक हिरासत में मृत्युओं वाले राज्य: उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और गुजरात।
  • भेदभाव के आरोप:
    • हाशिए पर पड़े समुदाय और अधिक वंचित महसूस करते हैं, जिससे सामाजिक तनाव बढ़ता है।
    • भेदभाव के आरोप एक वर्दीधारी सेवा के मूल सिद्धांतों — ईमानदारी, समानता और कर्तव्य — को चुनौती देते हैं।
  • डिजिटल पुलिसिंग पर चिंताएँ :
    • डिजिटल पुलिसिंग ने सेवा वितरण में सुधार किया है लेकिन निगरानी संबंधी चिंताएँ बढ़ाई हैं।
    • 40% से अधिक नागरिकों ने पुलिस के चेहरे की पहचान डेटाबेस को लेकर असहजता व्यक्त की।
    • हालांकि, NCRB के डेटा एनालिटिक्स विंग के तहत प्रेडिक्टिव पुलिसिंग टूल्स लागू करने वाले राज्यों में अपराध पहचान दक्षता 18% बढ़ी।

संबंधित सुधार और नई पहल 

  • कम्युनिटी पुलिसिंग: MHA का SMART पुलिसिंग 2.0 फ्रेमवर्क (2024) — इसमें मानकीकृत नागरिक प्रतिक्रिया प्रपत्र, वास्तविक समय FIR ट्रैकिंग और AI-आधारित कदाचार चेतावनी प्रणाली शामिल की गई।
  • प्रोजेक्ट बंधन (असम): गलत सूचना और घृणा अपराधों का मुकाबला करने के लिए नियमित पुलिस-विद्यालय संवाद शुरू किया।
  • आवाम और पुलिस कार्यक्रम (जम्मू और कश्मीर): 2024 में 6,000 से अधिक सामुदायिक बैठकें आयोजित हुईं, जिससे तनाव कम करने में सहायता मिली।
  • पारदर्शिता और तकनीक: बॉडी-वॉर्न कैमरे, स्वचालित केस ट्रैकिंग और नागरिक प्रतिक्रिया डैशबोर्ड (डिजिटल पुलिस पोर्टल के अनुसार) ने जवाबदेही बढ़ाई।
    • NCRB डेटा (2023) दिखाता है कि e-FIR सिस्टम और डिजिटल निगरानी अपनाने वाले पुलिस विभागों में सार्वजनिक संतुष्टि सूचकांक में 25% सुधार हुआ।
    • CCTNS 2024 तक देशभर में 97% पुलिस स्टेशनों तक विस्तारित हुआ। अब नागरिक FIR की स्थिति ऑनलाइन ट्रैक कर सकते हैं।
    • नया NCRB डैशबोर्ड (2025 बीटा) में ‘पब्लिक ट्रस्ट इंडेक्स’ शामिल है, जो पारदर्शिता मापने हेतु नागरिक सर्वेक्षण डेटा को एकीकृत करता है।
  • जवाबदेही और निगरानी :
    • सर्वोच्च न्यायालय के प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ (2006) निर्णय ने राज्य सुरक्षा आयोगों और पुलिस शिकायत प्राधिकरणों की स्थापना अनिवार्य की, लेकिन कार्यान्वयन असमान है।
    • केवल लगभग 28 में से 12 राज्यों में पूरी तरह कार्यात्मक स्वतंत्र निगरानी निकाय हैं।
  • प्रशिक्षण और संवेदनशीलता :
    • भारतीय लोक प्रशासन संस्थान ने अधिकारियों के लिए निरंतर मानवाधिकार और लैंगिक संवेदनशीलता प्रशिक्षण की आवश्यकता पर बल दिया।
    • राष्ट्रीय पुलिस अकादमी में पाठ्यक्रमों को भावनात्मक बुद्धिमत्ता, सामुदायिक संवाद और तनाव-नियंत्रण रणनीतियों पर बल देने हेतु पुनः डिज़ाइन किया जा रहा है।
  • राज्य-स्तरीय सुधार :
    • केरल का जनमैत्री सुरक्षा प्रोजेक्ट 2024 में विस्तारित हुआ, जिसमें मानसिक स्वास्थ्य प्रथम-प्रतिक्रिया दलों को पुलिस टीमों के साथ जोड़ा गया।
    • दिल्ली पुलिस ‘सेवा फर्स्ट’ पहल (2025): अधिकारियों को TISS एवं MHA द्वारा सह-विकसित सहानुभूति और लैंगिक-संवेदनशीलता प्रशिक्षण मॉड्यूल से गुजरना होता है।
    • तेलंगाना का HawkEye 2.0 ऐप अब गुमनाम प्रतिक्रिया और कदाचार रिपोर्टिंग की अनुमति देता है।

आगे की राह: सुधार के मार्ग

  • स्वतंत्र निगरानी: पुलिस कदाचार की जांच हेतु सुदृढ़, स्वायत्त निकायों की स्थापना।
  • नियुक्तियों और जांच में राजनीतिक हस्तक्षेप कम करना।
    • राज्य स्तर पर पुलिस शिकायत प्राधिकरणों (PCAs) को सुदृढ़ करना।
  • सामुदायिक सहभागिता: नागरिकों को सुरक्षा पहलों में शामिल करने वाले सहभागी पुलिसिंग मॉडल को प्रोत्साहित करना।
    • नागरिक अधिकारों और पुलिस जिम्मेदारियों के बारे में जागरूकता बढ़ाना।
  • प्रशिक्षण और संवेदनशीलता: पुलिस प्रशिक्षण में मानवाधिकार, तनाव-नियंत्रण तकनीक और सहानुभूति पर ध्यान केंद्रित करना।
  • पारदर्शिता और जवाबदेही: बॉडी कैमरे और सार्वजनिक शिकायत पोर्टल जैसी तकनीक का उपयोग कर खुलापन सुनिश्चित करना।
    • वार्षिक पुलिस जवाबदेही और प्रदर्शन रिपोर्ट को सार्वजनिक डोमेन में जारी करना।
    • हिरासत में मृत्यु के मुकदमों के परिणाम NCRB डैशबोर्ड के माध्यम से सार्वजनिक करना।
  • राजनीतिकरण से मुक्ति: निष्पक्षता बनाए रखने हेतु राजनीतिक प्रभाव से परिचालन स्वतंत्रता सुनिश्चित करना।
  • पूर्व खुफिया ब्यूरो प्रमुख पी.सी. हलदार ने पुलिस बल के अंदर आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता पर बल दिया है, यह इंगित करते हुए कि सार्वजनिक सुरक्षा और विश्वास प्रभावी पुलिसिंग की नींव हैं।
    • इनके बिना कानून प्रवर्तन की वैधता प्रभावित होती है।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
[प्रश्न]: बढ़ती सार्वजनिक जांच और संदेह के संदर्भ में, भारतीय पुलिस को जनविश्वास बनाए रखने में किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है? ऐसे कौन-से उपाय सुझाए जा सकते हैं जो इस विश्वास को पुनः स्थापित करने में सहायता करें?

Source: IE


 

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