पाठ्यक्रम: GS3/ अर्थव्यवस्था
संदर्भ
- 2026–27 के केंद्रीय बजट से पहले, MSME प्रतिनिधियों ने बढ़ते औद्योगिक दबाव को चिन्हित किया है और ऋण उपलब्धता, जोखिम संरक्षण तथा अनुपालन मानदंडों में लक्षित सुधारों की मांग की है।
MSMEs क्या हैं?
- MSMEs या सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम वे व्यवसाय हैं जिन्हें उनके निवेश एवं टर्नओवर स्तरों के आधार पर परिभाषित किया जाता है।
- ये अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र माने जाते हैं क्योंकि ये रोजगार सृजन करते हैं, आय उत्पन्न करते हैं और उद्यमिता को बढ़ावा देते हैं।

MSMEs का योगदान
- अर्थव्यवस्था में योगदान: MSMEs को प्रायः भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहा जाता है; ये 11 करोड़ से अधिक रोजगारों के लिए उत्तरदायी हैं और भारत के GDP में लगभग 27% का योगदान करते हैं।
- रोजगार सृजन: इस क्षेत्र में लगभग 6.4 करोड़ MSMEs शामिल हैं, जिनमें से 1.5 करोड़ उद्यम पोर्टल पर पंजीकृत हैं। यह भारतीय श्रमबल का लगभग 23% रोजगार देता है, जिससे यह कृषि के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा नियोक्ता बनता है।
- उत्पादन और निर्यात: ये कुल विनिर्माण उत्पादन का 38.4% और देश के कुल निर्यात का 45.03% योगदान करते हैं।
भारत में MSMEs द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियाँ
- वित्त तक पहुँच: संपार्श्विक (Collateral) की कमी, सीमित क्रेडिट इतिहास या औपचारिक वित्तीय संस्थानों तक अपर्याप्त पहुँच के कारण MSMEs पूंजी प्राप्त करने में संघर्ष करते हैं।
- बढ़ती प्रतिस्पर्धा: MSMEs को बड़े, स्थापित कंपनियों से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है जिनके पास अधिक संसाधन और बाज़ार प्रभाव होता है।
- प्रौद्योगिकी ज्ञान की कमी: कई MSMEs के पास अपने संचालन को आधुनिक बनाने, नई तकनीकों को अपनाने और बाज़ार में प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए आवश्यक तकनीकी विशेषज्ञता नहीं होती।
- विपणन और नेटवर्किंग अवसर: सीमित संसाधन और नेटवर्क MSMEs को अपने उत्पादों एवं सेवाओं का प्रभावी विपणन करने से रोकते हैं।
MSMEs की प्रमुख माँगें
- सुलभ ऋण पहुँच: सूक्ष्म उद्यमों के लिए ₹1 करोड़ तक का वैधानिक संपार्श्विक-मुक्त ऋण और ऐसे ऋणों पर 6–7 प्रतिशत की ब्याज दर सीमा।
- व्यापार आघातों से सुरक्षा: अचानक टैरिफ वृद्धि से प्रभावित सूक्ष्म निर्यातकों को मुआवजा देने हेतु एक निर्यात जोखिम समानीकरण कोष की स्थापना।
- विनिमय दर अस्थिरता से बचाव: सीमित हेजिंग क्षमता वाले सूक्ष्म उद्यमों के लिए फॉरेक्स उतार-चढ़ाव संरक्षण योजना की शुरुआत।
- सूक्ष्म इकाइयों के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा सरल और सब्सिडी वाले विदेशी मुद्रा हेजिंग उपकरणों पर विचार।
- अनुपालन का सरलीकरण: सूक्ष्म उद्यमों के लिए वस्तु एवं सेवा कर (GST) व्यवस्था के अंतर्गत उच्च छूट सीमा।
- सूक्ष्म इकाइयों के लिए एकल, सरल जीएसटी रिटर्न की शुरुआत।
- युद्धों या वैश्विक व्यवधानों (कच्चे माल, ईंधन और शिपिंग मार्गों को प्रभावित करने वाले) के दौरान आपातकालीन कार्यशील पूंजी विंडो का निर्माण।
MSMEs क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए सरकारी पहल
- MSMEs चैंपियंस योजना: इस योजना का उद्देश्य MSMEs के विनिर्माण प्रक्रियाओं का आधुनिकीकरण करना, अपव्यय को कम करना, नवाचार को प्रोत्साहित करना, व्यापार प्रतिस्पर्धा को तीव्र करना और उनकी राष्ट्रीय एवं वैश्विक पहुँच और उत्कृष्टता को सुगम बनाना है।
- उद्यम पंजीकरण: यह MSMEs के पंजीकरण को सरल बनाने के लिए एक ऑनलाइन प्रक्रिया है। इसका उद्देश्य MSMEs को विभिन्न लाभों और प्रोत्साहनों का लाभ उठाने के लिए एक सुव्यवस्थित प्रक्रिया प्रदान करना है।
- सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास (MSMED) अधिनियम, 2006 की धारा 15 और आयकर अधिनियम की नई धारा 43B(h) के अनुसार व्यवसायों को इन पंजीकृत MSMEs उद्यमों को 15 दिनों के अंदर भुगतान करना होगा, या यदि उनके पास समझौता है तो 45 दिनों तक।
- सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिए क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट (CGTMSE): यह योजना एक क्रेडिट गारंटी तंत्र के माध्यम से सूक्ष्म और लघु उद्यमों को संपार्श्विक-मुक्त ऋण प्रदान करती है।
- पारंपरिक उद्योगों के पुनरुद्धार के लिए कोष योजना (SFURTI): इसे 2005-06 में पारंपरिक कारीगरों को क्लस्टरों में संगठित करने के लिए शुरू किया गया था ताकि प्रतिस्पर्धात्मकता, उत्पाद विकास और सतत आय सृजन में सुधार हो सके।
आगे की राह
- MSMEs नवाचार को बढ़ावा देकर, रोजगार उत्पन्न करके और स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाकर भारत की विकास गाथा को बदल रहे हैं।
- MSMEs की चिंताओं को लक्षित ऋण समर्थन और सरल अनुपालन के माध्यम से संबोधित करना उद्यमों की लचीलापन को सुदृढ़ कर सकता है, रोजगार की रक्षा कर सकता है तथा भारत के विनिर्माण एवं निर्यात पारिस्थितिकी तंत्र को सुदृढ़ कर सकता है।
Source: IE
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