संदर्भ
- ग्रेट निकोबार द्वीप विकास परियोजना (GNIDP) भारत की “विकसित भारत” आकांक्षाओं का प्रतीक है, लेकिन इसके साथ ही यह पारिस्थितिकीय स्थायित्व और आदिवासी अधिकारों को लेकर तीव्र चिंताएं भी उत्पन्न करता है। यह एक परिचर्चा का विषय बन गया है कि देश रणनीतिक, आर्थिक और पर्यावरणीय अनिवार्यताओं के बीच किस प्रकार संतुलन बनाए रखता है।
रणनीतिक तर्क
- भौगोलिक रणनीतिक स्थिति: भारत का सबसे दक्षिणतम बिंदु इंदिरा पॉइंट, इंडोनेशिया के आचे से मात्र 145 किमी दूर स्थित है और मलक्का जलडमरूमध्य के ऊपर स्थित – जो विश्व का सबसे व्यस्त समुद्री चोकपॉइंट है।
- समुद्री सुरक्षा: भारत के 80% व्यापार और सभी ऊर्जा आयात हिंद महासागर से होकर गुजरते हैं। चीनी नौसेना की गतिविधियाँ एवं बढ़ती प्रतिस्पर्धा भारत के लिए अग्रिम ठिकानों की आवश्यकता को रेखांकित करती हैं।
- आर्थिक संभावनाएँ: प्रस्तावित कंटेनर टर्मिनल का उद्देश्य सिंगापुर और कोलंबो से प्रतिस्पर्धा करना है। हवाई अड्डा और ग्रीनफील्ड टाउनशिप संपर्क एवं रोजगार सृजन का वादा करते हैं, जिससे भारत को इंडो-पैसिफिक व्यापार में सुदृढ़ता प्राप्त होगी।
पारिस्थितिकीय और सामाजिक चिंताएँ
- जैव विविधता की हानि: लगभग 8.65–10 लाख पेड़ और 130 वर्ग किमी वर्षावन के साफ होने का खतरा है, जिससे कोरल रीफ, मेगापोड पक्षी, लवणीय जल के मगरमच्छ, और लेदरबैक कछुओं के प्रमुख प्रजनन स्थल प्रभावित होंगे।
- निवारण की सीमाएँ: हरियाणा के अरावली जैसे स्थानों में प्रतिपूरक वनीकरण द्वीप की विशिष्ट जैव विविधता की पुनरावृत्ति नहीं कर सकता। कोरल का स्थानांतरण और वैकल्पिक अभयारण्यों का निर्धारण विवादास्पद बने हुए हैं।
- भूकंपीय संवेदनशीलता: निर्माण कार्य उच्च जोखिम वाले भूकंप और सुनामी संभावित क्षेत्र में प्रस्तावित है, जहाँ मृदा तरलता के प्रति संवेदनशील है।
- आदिवासी अधिकार: शोम्पेन और निकोबारी दोनों जनजातियों के आवास एवं आजीविका खतरे में हैं। तीव्रता से हो रही स्वीकृति से आदिवासियों की वास्तविक सहमति पर संदेह उत्पन्न होता है; उनकी भागीदारी के लिए क़ानूनी आदेश (पेसा, वन अधिकार अधिनियम) का पालन अपर्याप्त माना जाता है।
शासन और वैधता
- पर्यावरणीय मूल्यांकन: पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) में प्रमुख संस्थानों के अध्ययन शामिल किए गए, लेकिन आलोचकों का कहना है कि ये जल्दबाज़ी में, पारदर्शिता के बिना किए गए और जिन सिफारिशों (जैसे चरणबद्ध मंजूरी, पूर्ण जनजातीय सहमति) को शामिल किया गया, उनका कमज़ोर क्रियान्वयन हुआ।
- निगरानी: स्वीकृति में 42 विशिष्ट और कई मानक शर्तें शामिल हैं, साथ ही प्रदूषण, जैव विविधता और जनजातीय कल्याण के लिए समितियों के गठन का प्रावधान है; लेकिन इन निकायों की वास्तविक क्षमता एवं अधिकार अभी भी स्पष्ट नहीं हैं।
आगे की राह
- रणनीतिक आवश्यकता वास्तविक है: भारत इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में निष्क्रिय नहीं रह सकता। चूँकि भारत का अधिकांश व्यापार और ऊर्जा आयात इन्हीं जलमार्गों से होकर गुजरता है, इसलिए ग्रेट निकोबार में समुद्री अवसंरचना का निर्माण दीर्घकालिक सुरक्षा और क्षेत्रीय प्रभाव का विषय है।
- पारिस्थितिकीय उत्तरदायित्व: द्वीप के मैंग्रोव, कछुओं के प्रजनन तट और कोरल रीफ केवल आँकड़े नहीं हैं; ये जीवित ढाल हैं जो जैव विविधता एवं तटीय समुदायों की रक्षा करते हैं। इन्हें जहाँ हैं वहीं संरक्षित करना प्राथमिकता होनी चाहिए, बजाय इसके कि कहीं एवं पेड़ लगाकर “मुआवज़ा” दिया जाए।
- समावेशी शासन: विकास तभी वैधता प्राप्त करेगा जब वहाँ रहने वाले लोग सहभागी बनें, दर्शक नहीं। निकोबारी और शोमपेन जनजातियों को स्वतंत्र और सूचित सहमति के माध्यम से सुना जाना चाहिए। केवल सुरक्षा उपायों से आगे बढ़कर, कौशल निर्माण, रोजगार सृजन, और यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि समुदाय इस परिवर्तन से लाभान्वित हों, भयभीत नहीं।
- चरणबद्ध और अनुकूलनीय दृष्टिकोण: एक साथ विशाल निर्माण कार्य शुरू करने के बजाय, परियोजना को वास्तविक मांग के अनुसार चरणों में विकसित किया जाना चाहिए। इससे पारिस्थितिकी तंत्र को पुनःस्थापित होने का समय मिलेगा, प्रभावों का अध्ययन किया जा सकेगा, और आगे बढ़ने से पहले आवश्यक सुधार किए जा सकेंगे।
| दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न [प्रश्न] ग्रेट निकोबार द्वीप विकास परियोजना को एक रणनीतिक आवश्यकता के रूप में सराहा गया है और एक पारिस्थितिक आपदा के रूप में इसकी आलोचना की गई है। आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए कि भारत समुद्री महत्वाकांक्षाओं को पारिस्थितिक और जनजातीय अधिकारों के साथ कैसे संतुलित कर सकता है। |
Source: TH