भारत में चुनावी विकृतियों को रोकने में संसद की भूमिका

पाठ्यक्रम: GS2/राजव्यवस्था और शासन

संदर्भ

  • भारत की चुनावी अखंडता सुधारों की कमी के कारण नहीं, बल्कि परिसीमन, वन नेशन वन इलेक्शन (ONOE), और मतदाता सूची की विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) जैसे संभावित विकृत उपायों के कारण दबाव में है।

भारत का चुनावी लोकतंत्र

  • भारत विश्व का सबसे बड़ा चुनावी लोकतंत्र है, जो भारत के संविधान (1950) में उल्लिखित संसदीय प्रणाली के अंतर्गत संचालित होता है।
  • भारत का चुनाव आयोग (ECI), अनुच्छेद 324 के अंतर्गत एक स्वायत्त संवैधानिक निकाय है, जो संसद, राज्य विधानसभाओं और राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति के पदों के सभी चुनावों का संचालन करता है।
  • भारत का चुनावी लोकतंत्र लंबे समय से अपनी जीवंतता और समावेशिता के लिए सराहा जाता रहा है। लेकिन परिसीमन (जनसंख्या आधारित), वन नेशन वन इलेक्शन (ONOE) और मतदाता सूची की विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) जैसी चुनावी विकृतियों को लेकर बढ़ती चिंताएँ संस्थागत कमजोरियाँ उत्पन्न करती हैं और चुनावों की निष्पक्षता, अखंडता एवं विश्वसनीयता को कमजोर करती हैं।

चिंताओं के विषय

  • जनसंख्या आधारित परिसीमन: आगामी परिसीमन अभ्यास, जो 2026 की जनगणना के बाद अपेक्षित है, राज्यों के बीच शक्ति संतुलन को गंभीर रूप से बदल सकता है।
    • यह दक्षिणी और पूर्वी राज्यों को दंडित करने का जोखिम उठाता है जिन्होंने सफलतापूर्वक जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित किया है, जबकि उच्च प्रजनन दर वाले और उत्तरी हिंदी-भाषी राज्यों को जनसंख्या के आधार पर सीटें आवंटित करके पुरस्कृत करता है।
    • इससे जेरीमैंडरिंग (सीमाओं का पुनर्निर्धारण ताकि अनुकूल परिणाम सुनिश्चित हों) और संघीय सिद्धांतों का पतन हो सकता है।
  • वन नेशन, वन इलेक्शन (ONOE): एक साथ चुनाव कराने का उद्देश्य राष्ट्रीय और राज्य चुनावों को समन्वित करना है, जिसे दक्षता उपाय के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, लेकिन यह सत्तारूढ़ दल के लाभ को बढ़ाता है।
    • राष्ट्रीय कथाएँ और मुद्दे स्थानीय मुद्दों को दबा देते हैं और ऐसे चुनावों में हावी रहते हैं, जिससे प्रमुख राष्ट्रीय पार्टी को लाभ होता है और राज्य स्तर पर मतदाता स्वायत्तता कम होती है।
    • चुनावी कैलेंडर का एकल चक्र (प्रत्येक पाँच वर्ष में) में संकेंद्रण, सत्ता में बैठे लोगों द्वारा प्रबंधनीयता और हेरफेर की संभावना को बढ़ाता है।
  • मतदाता सूची की विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR): SIR प्रक्रिया, विशेषकर असम और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों में, लक्षित मताधिकार-छीनने के भय को बढ़ाती है।
    • स्थानीय अधिकारियों पर गहरी संगठनात्मक पहुँच और प्रभाव द्वारा SIR प्रक्रिया में हेरफेर, अल्पसंख्यक समुदायों के मतदाताओं को बाहर कर सकता है।
    • हाल ही में बिहार में लगभग 44 लाख नाम मतदाता सूची से गायब हो गए, जो राष्ट्रीय स्तर पर बड़े पैमाने पर मताधिकार-छीनने के पैटर्न का संकेत देता है।
    • अनुमान है कि पाँच करोड़ से अधिक नाम हटाए जा सकते हैं, जो लोकतांत्रिक इतिहास में सबसे बड़ा मतदाता बहिष्कार होगा।

वैश्विक विरोधाभास: लोकतंत्र बिना लोकतांत्रिकों के

  • भारत की स्थिति चुनावी सत्तावाद की एक बड़ी घटना का हिस्सा है, जहाँ शासन ऐसे चुनावों से चलता है जो प्रक्रिया के हिसाब से तो सही होते हैं लेकिन असल में खोखले होते हैं।
  • इंटरनेशनल IDEA की ग्लोबल स्टेट ऑफ डेमोक्रेसी रिपोर्ट ने भारत को ‘लोकतांत्रिक पिछड़ापन’ के लिए चिह्नित किया है, विशेषकर ‘विश्वसनीय चुनावों’ जैसे संकेतकों में।
  • ‘दुरुपयोगी संवैधानिकता’ और ‘सत्तावादी वैधानिकता’ जैसे विचार, जो हंगरी, तुर्की एवं वेनेज़ुएला में देखे गए हैं, अब भारत में भी गूँजते हैं।

आगे की राह: संसद को क्या करना चाहिए?

  • परिसीमन के लिए: परिसीमन संविधान के अनुच्छेद 82 और 170 तथा परिसीमन अधिनियम, 2002 द्वारा शासित है।
    • संसद को राज्यों में जनसंख्या-से-सीट अनुपात को निष्पक्ष सुनिश्चित करना चाहिए, संभवतः एक संवैधानिक संशोधन बनाकर दक्षिणी राज्यों के लिए समानता सुनिश्चित करनी चाहिए जिन्होंने प्रभावी रूप से जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित किया है।
    • इसे आगामी जनगणना (2026) के बाद एक नया परिसीमन अधिनियम पारित करना होगा ताकि लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण किया जा सके।
    • संसद को जनसंख्या-आधारित सीट पुनर्वितरण का विरोध करके संघीय संतुलन की रक्षा करनी चाहिए।
  • वन नेशन वन इलेक्शन (ONOE) के लिए:
    • चुनावी चक्रों को समन्वित करने के लिए अनुच्छेद 83, 85, 172, 174 और 356 में संवैधानिक संशोधन आवश्यक हैं, जिसके लिए विशेष बहुमत चाहिए।
    • राज्यों के साथ परामर्श और सर्वदलीय समिति या अंतर-राज्य परिषद के माध्यम से कानूनी समन्वय द्वारा सहमति बनाना आवश्यक है, क्योंकि राज्य विधानसभा चुनाव राज्य का विषय हैं।
    • संसद को प्रस्तावित सुधारों के उद्देश्य और प्रभाव की गहन समीक्षा करनी चाहिए।
  • मतदाता सूची की विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के लिए:
    • ECI की SIR प्रक्रिया का उद्देश्य नए मतदाताओं को शामिल करना और डुप्लीकेट हटाना है, जो जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (1950) की धारा 25 द्वारा निर्देशित है।
    • संसद राज्यों में डिजिटल मतदाता सूची एकीकरण के लिए विधायी समर्थन और वित्तपोषण प्रदान करती है।
    • यह आधार–EPIC लिंकिंग के कार्यान्वयन की निगरानी करती है (डेटा गोपनीयता अनुपालन सुनिश्चित करते हुए)।
    • यह जनगणना डेटा के साथ समन्वय में वार्षिक सूची समीक्षा को अनिवार्य करती है ताकि सूची गतिशील और समावेशी बनी रहे।
    • संसद को मतदाता सूची पुनरीक्षण में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करनी चाहिए, अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व की रक्षा करनी चाहिए और प्रणालीगत मताधिकार-छीनने को रोकना चाहिए।

निष्कर्ष

  • चुनावी विकृतियों को रोकना एक सतत प्रक्रिया है, जिसमें संस्थागत अखंडता, नागरिक सतर्कता और तकनीकी जवाबदेही का संयोजन होता है। चुनावी लोकतंत्र को पारदर्शिता, समावेशिता और समानता की ओर विकसित होना चाहिए।
दैनिक मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
[प्रश्न] चुनावी निष्पक्षता को बनाए रखने में भारतीय संसद की भूमिका का आलोचनात्मक विश्लेषण करें। चर्चा करें कि विधायी निगरानी कैसे पक्षपातपूर्ण परिसीमन, एक राष्ट्र एक चुनाव, और मतदाता सूची के चयनात्मक संशोधन जैसी चुनावी विकृतियों को रोक सकती है।

Source: IE

 

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