हिमालय में पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ

पाठ्यक्रम: GS3/ पर्यावरण

संदर्भ

  • हिमालयी क्षेत्र, जिसे प्रायः तीसरा ध्रुव कहा जाता है, को जलवायु-जनित आपदाओं से निपटने के लिए सुदृढ़ प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (EWS) की आवश्यकता है, क्योंकि आपदा तैयारी अभी भी अपर्याप्त है।

हिमालय की बढ़ती संवेदनशीलता

  •  एक रिपोर्ट के अनुसार, 1900 से 2022 के बीच भारत में हुई 687 आपदाओं में से लगभग 240 हिमालयी क्षेत्र में केंद्रित थीं।  
  • हिमालय प्रति दशक 0.15°C–0.60°C की दर से गर्म हो रहा है, जो वैश्विक औसत से तीव्र है, जिससे यह क्षेत्र अधिक अनिश्चित और चरम मौसम घटनाओं के प्रति संवेदनशील होता जा रहा है।  
  • NASA के आंकड़ों के अनुसार, 2007 से 2017 के बीच हिमालयी क्षेत्र में 1,100 से अधिक भूस्खलन हुए।

प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (EWS) की आवश्यकता

  •  EWS हिमालयी क्षेत्र में हिमनद झील विस्फोट बाढ़ (GLOFs), भूस्खलन, हिम तूफान और बादल फटने जैसी घटनाओं की निगरानी एवं पूर्वानुमान कर सकती है।  
  • रीयल-टाइम डेटा निकासी, बचाव योजना और आपदा प्रबंधन को सामुदायिक और प्रशासनिक दोनों स्तरों पर सक्षम बनाता है।  
  • पर्वतीय शासन में EWS का एकीकरण स्थानीय लचीलापन को सुदृढ़ कर सकता है और बार-बार होने वाली आपदाओं से आर्थिक हानि को कम कर सकता है।

हिमालय में EWS स्थापित करने की चुनौतियाँ

  •  भौगोलिक जटिलता: हिमालयी चाप 2,400 किमी से अधिक फैला है, जिसमें विविध स्थलाकृति, ऊँचाई और जलवायु स्थितियाँ शामिल हैं, जिससे एकसमान निगरानी कठिन हो जाती है।  
  • अवसंरचना और कनेक्टिविटी की समस्याएं: कई घाटियाँ मोबाइल नेटवर्क और सैटेलाइट कनेक्टिविटी से बाहर हैं, जिससे डेटा ट्रांसमिशन जटिल हो जाता है।  
  • स्वदेशी तकनीक की कमी: भारत में कम लागत वाली, मौसम-प्रतिरोधी, आसानी से स्थापित की जा सकने वाली EWS प्रणालियों की कमी है जिन्हें स्थानीय स्तर पर बनाए रखा जा सके।  
  • संस्थागत अंतराल: वैज्ञानिक संस्थानों, स्थानीय सरकारों और आपदा प्रतिक्रिया एजेंसियों के बीच समन्वय कमजोर है।
    • अनुसंधान और क्षेत्रीय कार्यान्वयन के लिए वित्त पोषण सीमित है।  
  • सामुदायिक भागीदारी की कमी: स्थानीय समुदाय, जो प्रायः आपदा के समय पहले उत्तरदाता होते हैं, को निगरानी या प्रतिक्रिया तंत्र में शायद ही कभी प्रशिक्षित या शामिल किया जाता है।

EWS में प्रौद्योगिकी और कृत्रिम बुद्धिमत्ता की भूमिका

  •  AI आधारित मॉडल कई सेंसरों से प्राप्त लाइव डेटा को पूर्वानुमान चेतावनियों में बदल सकते हैं, जिससे स्थानीय प्रशासन सूचित निर्णय ले सके।  
  • सैटेलाइट निगरानी और रिमोट सेंसिंग हिमनदों की गतिविधियों, वर्षा की तीव्रता एवं तापमान विसंगतियों को ट्रैक कर सकते हैं, हालांकि उच्च लागत एक चिंता का विषय है।  
  • ड्रोन स्थानीय मानचित्रण में सहायक हो सकते हैं, लेकिन तीव्र वायुऔर ऊँचाई वाले क्षेत्रों में सीमाएं हैं।  AI, ग्राउंड-बेस्ड सेंसर और सामुदायिक नेटवर्क का एकीकरण हिमालय के लिए एक हाइब्रिड, स्केलेबल समाधान प्रदान कर सकता है।

भारतीय पहलें

  •  पर्यावरण मंत्रालय ने हाल ही में उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के सेब बागानों के लिए AI-सहायता प्राप्त ओलावृष्टि EWS को वित्त पोषित किया है, जो उप-किलोमीटर स्तर पर चेतावनी देने में सक्षम है। 
  •  राष्ट्रीय हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण मिशन (NMSHE) और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) जैसे परियोजनाएं तकनीक और सामुदायिक तैयारी के एकीकरण को प्रोत्साहित करती हैं।

आगे की राह

  •  स्वदेशी, कम लागत वाली EWS विकसित करें: स्थानीय रूप से निर्मित, मौसम-प्रतिरोधी प्रणालियों को बढ़ावा दें ताकि उन्हें आसानी से तैनात किया जा सके।  
  • सामुदायिक आधारित आपदा प्रबंधन: स्थानीय आबादी को EWS को संचालित करने और चेतावनियों पर प्रभावी प्रतिक्रिया देने के लिए प्रशिक्षित करें। 
  •  डेटा एकीकरण और AI का उपयोग: सैटेलाइट डेटा, ग्राउंड सेंसर एवं AI-आधारित मॉडल को मिलाकर सटीक और समयबद्ध चेतावनी सुनिश्चित करें।  
  • सीमा-पार सहयोग: चूंकि हिमालयी नदियाँ और हिमनद कई देशों द्वारा साझा किए जाते हैं, क्षेत्रीय डेटा साझाकरण और समन्वय आवश्यक है।  
  • नीति और वित्त पोषण को प्राथमिकता दें: केंद्र और राज्य सरकारों को हिमालयी आपदा लचीलापन को राष्ट्रीय प्राथमिकता मानते हुए समर्पित निधि एवं संस्थागत ध्यान देना चाहिए।

Source: TH

 

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