पाठ्यक्रम: GS3/अवसंरचना
संदर्भ
- भारत के शहरी केंद्रों को प्रतिक्रियाशील स्थानों से विकास के सक्रिय इंजन में बदलने की आवश्यकता है और भूमि उपयोग ज़ोनिंग पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, क्योंकि यह विकसित भारत की दृष्टि के अंतर्गत 2047 तक $30 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनने की आकांक्षा रखता है।
भारत में शहरी नियोजन की आवश्यकता और शहरों की रणनीतिक भूमिका
- आर्थिक विकास: भारत के शहर देश के GDP में 63% से अधिक योगदान देते हैं और 2030 तक यह 75% तक पहुंचने की संभावना है।
- शहरी नियोजन यह सुनिश्चित करता है कि यह विकास स्थानिक रूप से कुशल और आर्थिक रूप से समावेशी हो।
- जनसंख्या वृद्धि: वर्तमान में 400 मिलियन से अधिक लोग शहरों में रहते हैं, और यह संख्या 2036 तक लगभग 600 मिलियन तथा 2050 तक 800 मिलियन तक पहुंचने की संभावना है।
- इस घनत्व, अवसंरचना और सेवाओं के प्रबंधन के लिए नियोजन आवश्यक है।
- जलवायु कार्रवाई में अग्रणी भूमिका: भारत ने 2070 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन प्राप्त करने का संकल्प लिया है, जिसके लिए शहरी नेतृत्व आवश्यक है।
- शहर ऊर्जा की भारी खपत करते हैं और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।
- इसलिए, उन्हें निम्न-कार्बन विकास, कुशल ऊर्जा उपयोग और सतत अवसंरचना को बढ़ावा देने वाली जलवायु कार्य योजनाओं को एकीकृत करना चाहिए।
| क्या आप जानते हैं? – शहरी नियोजन शहरी स्थानीय निकायों (ULBs)/शहरी विकास प्राधिकरणों का कार्य है (भारत के संविधान की 12वीं अनुसूची)। – MoHUA विभिन्न योजनाओं जैसे AMRUT के माध्यम से राज्यों/ULBs को क्षमता निर्माण गतिविधियों में समर्थन दे रहा है, जिससे ULB के कार्यकर्ताओं, निर्वाचित प्रतिनिधियों आदि की क्षमताओं में सुधार हो सके। |
पारंपरिक शहरी नियोजन की सीमाएं
- ऐतिहासिक रूप से, भारत में शहरी नियोजन स्थिर मास्टर योजनाओं के आस-पास रहा है, जो आवासीय, वाणिज्यिक और औद्योगिक उपयोग के लिए भूमि आवंटन को प्राथमिकता देती हैं। हालांकि, यह दृष्टिकोण आधुनिक शहरीकरण की गतिशील चुनौतियों के साथ तालमेल नहीं रख पाया है, जैसे:
- खंडित शासन व्यवस्था: शहरों में अधिकार क्षेत्रों की ओवरलैपिंग और कमजोर स्थानीय शासन के कारण समन्वित नियोजन कठिन हो जाता है।
- गतिशीलता और परिवहन एकीकरण: शहर तीव्रता से बढ़ रहे हैं, लेकिन एकीकृत परिवहन नियोजन के अभाव में जाम और प्रदूषण बढ़ते हैं।
- पर्यावरणीय दबाव: तीव्र शहरी विस्तार के कारण जल संकट, वायु प्रदूषण और गर्मी का तनाव बढ़ा है, जिससे एकीकृत पर्यावरणीय नियोजन की आवश्यकता है।
- सामाजिक अवसंरचना और असमानता: स्वास्थ्य, शिक्षा और सस्ती आवास जैसी सुविधाएं प्रायः बाद में आती हैं, जिससे असमान शहरी विकास होता है।
- आर्थिक गतिशीलता: भूमि उपयोग योजनाएं आर्थिक क्लस्टर, नवाचार केंद्रों या रोजगार क्षेत्रों को शामिल नहीं करतीं जो शहरी समृद्धि को बढ़ाते हैं।
- वित्तीय अंतराल: शहरों को कम अवशोषण क्षमता, खंडित शासन और वाणिज्यिक वित्त तक सीमित पहुंच की समस्या है।
- विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2036 तक शहरी अवसंरचना की मांग को पूरा करने के लिए ₹70 लाख करोड़ की आवश्यकता होगी।
एक नए दृष्टिकोण की ओर: शहरी नियोजन का पुनर्विचार
- आर्थिक दृष्टि को आधार बनाना: शहरी नियोजन को 20–50 वर्षों की शहर-स्तरीय आर्थिक दृष्टि से शुरू करना चाहिए।
- इसमें आर्थिक प्रेरकों की पहचान, रोजगार सृजन की संभावना और भूमि उपयोग व अवसंरचना आवश्यकताओं का संरेखण शामिल है।
- प्राकृतिक संसाधनों का बजट निर्धारण: प्रत्येक शहर को अपनी प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता और वहन क्षमता का आकलन करना चाहिए।
- शहरी योजनाओं में जल, ऊर्जा और अपशिष्ट के लिए संसाधन बजटिंग को शामिल करना चाहिए, साथ ही मांग प्रबंधन एवं परिपत्र अर्थव्यवस्था सिद्धांतों को बढ़ावा देना चाहिए।
- जलवायु कार्रवाई का एकीकरण: शहरों को उत्सर्जन में कमी, नवीकरणीय ऊर्जा अपनाने और लचीलापन निर्माण की रणनीतियों को रेखांकित करने वाली जलवायु कार्य योजनाएं बनानी चाहिए।
- ये योजनाएं 2030 तक ग्रीनहाउस गैस में कमी और 2070 तक नेट ज़ीरो के राष्ट्रीय लक्ष्यों के साथ संरेखित होनी चाहिए।
- पर्यावरण और गतिशीलता नियोजन: शहरी पर्यावरण प्रबंधन में वायु प्रदूषण नियंत्रण, अपशिष्ट प्रबंधन और हरित अवसंरचना को शामिल करना चाहिए।
- एक व्यापक गतिशीलता योजना सार्वजनिक परिवहन, साइक्लिंग और पैदल चलने को बढ़ावा देनी चाहिए ताकि जाम एवं उत्सर्जन कम हो सके, सतत परिवहन सिद्धांतों के अनुरूप।
- क्षेत्रीय और छोटे शहरों का एकीकरण: शहरी अर्थव्यवस्थाएं नगरपालिका सीमाओं से परे फैली होती हैं।
- इसलिए, नियोजन को क्षेत्रीय दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, जिससे शहरी और ग्रामीण अर्थव्यवस्थाएं एकीकृत हो सकें।
- छोटे शहर, जिनकी भूमि लागत कम होती है, विनिर्माण और औद्योगिक विस्तार के लिए अपार संभावनाएं रखते हैं।
- डेटा-आधारित निर्णय लेना: GIS मैपिंग, रीयल-टाइम एनालिटिक्स और स्मार्ट सिटी टूल्स अनुकूली नियोजन को सक्षम बना सकते हैं।
संस्थागत और शैक्षिक सुधार
- संशोधित नियोजन कानून: शहरी योजनाओं में आर्थिक, पर्यावरणीय और क्षेत्रीय एकीकरण को सक्षम करने के लिए।
- क्षमता निर्माण: नियोजन और वास्तुकला में शैक्षिक पाठ्यक्रमों को अद्यतन करना ताकि पेशेवरों को आर्थिक, पर्यावरणीय और तकनीकी चुनौतियों के लिए तैयार किया जा सके।
- अंतःविषय सहयोग: अर्थशास्त्रियों, पर्यावरण वैज्ञानिकों और शहरी योजनाकारों के बीच साझेदारी को प्रोत्साहित करना ताकि समग्र विकास रणनीतियां बन सकें।
सरकार द्वारा संचालित नियोजन सुधार
- नीति आयोग की 2021 रिपोर्ट: अखिल भारतीय शहरी और क्षेत्रीय नियोजन सेवा बनाने, टाउन एंड कंट्री प्लानिंग अधिनियमों में सुधार एवं शहरी नियोजन शिक्षा को सुदृढ़ करने की सिफारिश करती है।
- MoHUA की पहलें: URDPFI और मॉडल बिल्डिंग बाय-लॉज़ के माध्यम से मंत्रालय भूमि उपयोग दक्षता, स्थायित्व एवं वहनीयता को बढ़ावा देता है।
- भारत अवसंरचना रिपोर्ट 2023: शहरी पुनर्विकास, सतत विकास और संस्थागत क्षमता निर्माण की आवश्यकता पर बल देती है।
- पीएम गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान: परिवहन, लॉजिस्टिक्स और शहरी नियोजन को एकीकृत करने वाली बहु-मोडल अवसंरचना रणनीति है, जो निर्बाध कनेक्टिविटी सुनिश्चित करती है।
- स्मार्ट सिटी मिशन: प्रौद्योगिकी-सक्षम शासन, कुशल सार्वजनिक सेवाओं और सतत शहरी डिज़ाइन के माध्यम से जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने का उद्देश्य।
- शहरी अवसंरचना निवेश: भारत अपने GDP का 3.3% अवसंरचना पर व्यय कर रहा है, जिसमें सड़कों, रेलवे और शहरी परिवहन पर विशेष ध्यान है।
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