वैश्विक उत्सर्जन में कटौती पेरिस लक्ष्यों से कम रही

पाठ्यक्रम: GS3/ पर्यावरण

संदर्भ

  • संयुक्त राष्ट्र संश्लेषण रिपोर्ट ने पाया है कि वैश्विक उत्सर्जन में कटौती के प्रयास पेरिस समझौते (2015) में निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने में विफल हो रहे हैं।

रिपोर्ट द्वारा उठाई गई चिंताएं

  • यह रिपोर्ट देशों की अद्यतन राष्ट्रीय रूप से निर्धारित योगदान (NDC) पर आधारित है, जो जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन को कम करने या कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने के लिए जंगल लगाने के वादे हैं, जो 2035 तक लागू होंगे।
    • रिपोर्ट 190 देशों में से केवल 64 देशों की प्रस्तुतियों पर आधारित है। भारत ने अभी तक अपना अद्यतन NDC प्रस्तुत नहीं किया है; इसकी अंतिम प्रस्तुति अगस्त 2022 में की गई थी।  
  • देश 2035 तक 2019 के स्तर की तुलना में केवल 17% उत्सर्जन में कटौती की दिशा में अग्रसर हैं, जो वैश्विक तापमान को 1.5°C या 2°C के अंदर रखने के लिए आवश्यक स्तर से काफी कम है।  
  • हालांकि, वैश्विक तापमान वृद्धि को 2°C और 1.5°C के नीचे रखने के लिए देशों को क्रमशः 37% और 57% उत्सर्जन में कटौती करनी होगी (2019 के स्तर की तुलना में)।  
  • ग्लोबल टिपिंग पॉइंट्स रिपोर्ट 2025 बताती है कि विश्व अपने पहले जलवायु टिपिंग पॉइंट तक पहुंच रही है—गर्म जल प्रवाल भित्तियों की व्यापक मृत्यु।
भारत की प्रतिबद्धताएं: उत्सर्जन में कटौती
– भारत ने पर्यावरण के लिए जीवनशैली (LiFE) मिशन शुरू किया है और पेरिस समझौते के तहत अपने NDCs को अद्यतन किया है। 
अद्यतन NDC 2022 के अंतर्गत भारत ने संकल्प लिया है:
  1. 2030 तक 2005 के स्तर की तुलना में उत्सर्जन तीव्रता (GDP प्रति इकाई CO₂) में 45% की कटौती।  
2. 2030 तक स्थापित विद्युत क्षमता का 50% गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से आएगा।  
3. वनों और वृक्ष आवरण को बढ़ाकर 2.5 से 3 बिलियन टन CO₂ समतुल्य (GtCO₂e) का कार्बन सिंक बनाना।

GHG उत्सर्जन में कटौती की चुनौतियाँ

  •  वैश्विक चुनौतियाँ:
    • औद्योगिक प्रतिरोध: यूरोपीय उद्योगों द्वारा शिथिल उत्सर्जन मानदंडों के लिए निरंतर लॉबिंग।  
    • कार्बन क्रेडिट पर निर्भरता: विदेशी कार्बन क्रेडिट पर अत्यधिक निर्भरता से डीकार्बोनाइजेशन का भार विकासशील देशों पर स्थानांतरित हो सकता है।  
    • धीमा परिवहन संक्रमण: स्वच्छ गतिशीलता तकनीकों को अपनाने में धीमी गति के कारण EU में सड़क परिवहन क्षेत्र से लगातार उत्सर्जन।
  •  भारत की चुनौतियाँ:
    • कोयले पर भारी निर्भरता: भारत के लगभग 75% उत्सर्जन का स्रोत अभी भी कोयला है।
      •  इस्पात उद्योग का तेज़ी से विस्तार, जो अभी भी कोयले पर निर्भर है, प्रदूषण की समस्या को बढ़ाता है।  
  • जलवायु लक्ष्य सुदृढ़ होने चाहिए: भारत ने जलवायु लक्ष्य (NDCs) तय किए हैं, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि ये लक्ष्य 1.5°C तापमान सीमा को हासिल करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।  
  • नीतिगत अंतराल: भारत एक कार्बन बाजार स्थापित कर रहा है (जहां कंपनियां उत्सर्जन का अधिकार खरीद-बेच सकती हैं), लेकिन यह अभी वैकल्पिक है और पूरी तरह से कार्यशील नहीं है।

आगे की राह

  •  वैश्विक महत्वाकांक्षा को बढ़ाएं: प्रमुख उत्सर्जक देशों, विशेष रूप से G20 राष्ट्रों को COP30 से पहले अपने NDCs को वैज्ञानिक मार्गदर्शन के अनुरूप सुदृढ़ करना चाहिए।  
  • नवीकरणीय ऊर्जा संक्रमण को तीव्र करें: सौर, पवन, ग्रीन हाइड्रोजन और CCUS (कार्बन कैप्चर, उपयोग और भंडारण) क्षमता का विस्तार प्राथमिकता होनी चाहिए।  
  • अनुकूलन उपायों को सुदृढ़ करें: लचीला अवसंरचना बनाएं, आपदा तैयारी में सुधार करें, और प्रकृति-आधारित समाधान को बढ़ावा दें।
  • जलवायु वित्त का एकत्रण: विकसित देशों को $100 बिलियन वार्षिक प्रतिबद्धता को पूरा करना चाहिए और शमन व अनुकूलन के लिए रियायती वित्त का विस्तार करना चाहिए।  
  • व्यवहार परिवर्तन को प्रोत्साहित करें: मिशन LiFE जैसे अभियानों के माध्यम से सतत जीवनशैली को बढ़ावा दें, जिसमें कम उपभोग और अपशिष्ट पर ध्यान हो।

निष्कर्ष

  • संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट COP30 से पहले एक चेतावनी के रूप में कार्य करती है, जो देशों से अपने NDCs को सुदृढ़ करने, जलवायु वित्त एकत्रण और अनुकूलन प्रयासों को तीव्र करने का आग्रह करती है। 
  • यदि पर्याप्त प्रगति नहीं हुई, तो पेरिस समझौते के 1.5°C और 2°C के लक्ष्य अप्राप्य रहेंगे, जिससे वैश्विक पारिस्थितिकी तंत्र और समुदाय गंभीर जोखिम में पड़ जाएंगे।

Source: TH

 

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