RBI और बैंक डिजिटल भुगतान इंटेलिजेंस प्लेटफॉर्म लॉन्च करेंगे (DPIP)

पाठ्यक्रम: GS3/अर्थव्यवस्था

समाचार में 

  • प्रमुख सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बैंक भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के मार्गदर्शन में डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) के रूप में डिजिटल भुगतान इंटेलिजेंस प्लेटफॉर्म (DPIP) विकसित करने के लिए सहयोग कर रहे हैं।
क्या आप जानते हैं? 
– डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) ऐसे बुनियादी डिजिटल सिस्टम होते हैं जो सुलभ, सुरक्षित एवं परस्पर-संगत होते हैं, और आवश्यक सार्वजनिक सेवाओं का समर्थन करते हैं। 
– भारत में, DPI ने डिजिटल अर्थव्यवस्था को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जैसे पारंपरिक अवसंरचना ने औद्योगिक विकास में निभाई थी।

डिजिटल भुगतान इंटेलिजेंस प्लेटफॉर्म (DPIP) 

  • इसका उद्देश्य धोखाधड़ी जोखिम प्रबंधन को सुदृढ़ करना है, जिससे वास्तविक समय में डेटा साझा करने और खुफिया जानकारी एकत्र करने के ज़रिए डिजिटल लेनदेन में धोखाधड़ी का पता लगाया जा सके तथा उसे रोका जा सके। 
  • इसकी संस्थागत रूपरेखा सार्वजनिक और निजी बैंकों द्वारा संयुक्त रूप से विकसित की जा रही है, क्योंकि धोखाधड़ी को एक साझा खतरे के रूप में पहचाना गया है। 
  • रिज़र्व बैंक इनोवेशन हब (RBIH) उन्नत तकनीकों का उपयोग करते हुए 5–10 बैंकों के साथ मिलकर एक प्रोटोटाइप तैयार कर रहा है।
  •  यह प्लेटफॉर्म आगामी कुछ महीनों में चालू होने की संभावना है।

आवश्यकता और उद्देश्य 

  • भारत में साइबर अपराध, विशेष रूप से डिजिटल वित्तीय धोखाधड़ी, एक बढ़ता हुआ खतरा है, जो लाखों लोगों को प्रभावित करता है और भारी वित्तीय हानि पहुंचाता है। 
  • RBI की FY25 रिपोर्ट के अनुसार, बैंक धोखाधड़ी में तीन गुना वृद्धि हुई है—₹12,230 करोड़ (FY24) से बढ़कर ₹36,014 करोड़ (FY25) हो गई। 
  • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने ₹25,667 करोड़ की धोखाधड़ी (मुख्यतः ऋण/ऋण अग्रिम में) दर्ज की। 
  • निजी क्षेत्र के बैंकों में डिजिटल भुगतान (कार्ड/इंटरनेट) में सबसे अधिक धोखाधड़ी के मामले सामने आए। 
  • इसलिए DPIP भारत की बढ़ती डिजिटल वित्तीय प्रणाली को सुरक्षित करने की दिशा में एक सक्रिय कदम है। 
  • यह बढ़ती डिजिटल भुगतान धोखाधड़ी से निपटेगा तथा वास्तविक समय में डेटा साझा करने और खुफिया जानकारी एकत्र करने के ज़रिए धोखाधड़ी का पता लगाने और रोकथाम को बेहतर बनाएगा।

चुनौतियाँ 

  • धोखेबाज़ सामान्यतः पीड़ितों को प्रतिरूपण, बैंकिंग क्रेडेंशियल्स की फिशिंग या कार्ड विवरण चुराकर निशाना बनाते हैं, और फिर चुराए गए पैसे को कई खातों के माध्यम से घुमाकर पहचान से बचते हैं। 
  • जांच में प्रमुख चुनौतियाँ होती हैं जैसे रिपोर्टिंग में देरी, पीड़ितों द्वारा साक्ष्य मिटा देना, और वित्तीय संस्थानों से धीमा, असंरचित डेटा साझा करना।

अन्य संबंधित कदम 

  • सरकार, RBI और NPCI जैसे वित्तीय नियामकों के साथ मिलकर डिजिटल वित्तीय धोखाधड़ी से निपटने के लिए साइबर सुरक्षा को मजबूत कर रही है। 
  • गृह मंत्रालय (MHA) ने भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) की स्थापना की और साइबर अपराधों की सार्वजनिक रिपोर्टिंग के लिए राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल शुरू किया, जो मामलों को संबंधित कानून प्रवर्तन एजेंसियों तक पहुंचाता है।
  •  ‘सिटीजन फाइनेंशियल साइबर फ्रॉड रिपोर्टिंग एंड मैनेजमेंट सिस्टम’ ने 13.36 लाख शिकायतों से लगभग ₹4386 करोड़ की राशि बचाने में सहायता की है। 
  • RBI ने डिजिटल भुगतान के लिए सुरक्षा नियंत्रणों को अनिवार्य करते हुए ‘म्यूलहंटर’ नामक एक AI टूल प्रस्तुत किया है, जो मनी म्यूल्स का पता लगाता है। 
  • NPCI ने UPI लेनदेन के लिए डिवाइस बाइंडिंग, दो-कारक प्रमाणीकरण, लेनदेन सीमा और AI-आधारित धोखाधड़ी निगरानी जैसे सुरक्षा उपाय लागू किए हैं।

सुझाव और आगे की राह

  •  भारत में वित्तीय धोखाधड़ी से निपटने के लिए तकनीक, नियामक सुधार, तेज़ डेटा साझा करना और जन जागरूकता जैसे संयुक्त प्रयासों की आवश्यकता है। 
  • बैंकों, फिनटेक कंपनियों, कानून प्रवर्तन और उपभोक्ताओं के बीच सहयोग आवश्यक है ताकि डिजिटल वित्तीय प्रणाली की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके और एक सुरक्षित, विश्वसनीय वातावरण बनाया जा सके। 
  • प्रमुख रोकथाम उपायों में शामिल हैं—मल्टी-डिवाइस लॉगिन अलर्ट, बैंकिंग ऐप्स पर स्क्रीन-शेयरिंग को अक्षम करना, और स्पष्ट, विस्तृत बैंक स्टेटमेंट को अनिवार्य करना।

Source :TH

 

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